North East: कैसे इस पहाड़ पर बन गईं 99 लाख 99 हजार 999 मूर्तियां, जल्द ही इस जगह को मिलेगा वर्ल्ड हेरिटेज का टैग
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North East: कैसे इस पहाड़ पर बन गईं 99 लाख 99 हजार 999 मूर्तियां, जल्द ही इस जगह को मिलेगा वर्ल्ड हेरिटेज का टैग

Unakoti temple: उनाकोटी के मूर्तियों को लेकर रिसर्चर्स का मानना है कि इन मूर्तियों को करीब 8वीं या 9वीं शताब्दी में बनाया गया था लेकिन इसे किसने बनाया इस बात की कोई ठोस जानकारी नहीं हैं.

फाइल फोटो

Unakoti sculptures: नॉर्थ-ईस्ट में उनाकोटी की मूर्तियां काफी मशहूर हैं. यह मूर्तियां त्रिपुरा के रघुनंदन हिल्स के एक पहाड़ के चट्टानों को काटकर बनाई गईं हैं. जाने माने इतिहासकार पन्नालाल रॉय बताते हैं कि यहां एक, दो या दस मूर्तियां नहीं हैं बल्कि इनकी संख्या 1 करोड़ से मात्र 1 कम हैं यानी की यहां पर 99 लाख 99 हजार 999 मूर्तियां मौजूद हैं. पन्नालाल रॉय इन पर लंबे असरे से स्टडी कर रहे हैं. बंगाली भाषा में उनाकोटी का मतलब ही होता है एक करोड़ से एक कम. रिसर्चर्स की मानें तो इन मूर्तियों को करीब 8वीं या 9वीं शताब्दी में बनाया गया होगा लेकिन इसे किसने बनाया इस बात की कोई ठोस जानकारी नहीं हैं. हालांकि कुछ मूर्तियां इसमें से खराब भी हो गई हैं.

किसकी हैं ये मूर्तियां?

उनाकोटी में ज्यादातर मूर्तियां हिंदू देवी - देवताओं की हैं. इनमें भगवान गणेश, भगवान शिव और दूसरे देवताओं की मूर्तियां मौजूद हैं. फिलहाल इस जगह के संरक्षण का जिम्मा ASI (आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया) ने अपने सिर ले रखा है. इसके बाद से यहां कि हालत में कुछ सुधार देखने को मिला है. यहां मौजूद कई मूर्तियां इतनी विशाल हैं कि इनके ऊपर से झरने बहते हैं. यहां देश के कई हिस्से से लोग घूमने के लिए भी आते हैं. गौरतलब है कि कुछ खास मूर्तियों के पास आमजनों को जाने की अनुमति नहीं है.

नंदी बैल भी है मौजूद

यहां आपको नंदी बैल भी दिखाई देगा. यह नंदी बैल भगवान शिव के नजदीक है. इन नंदी बैलों की संख्या तीन है. अप्रैल के महीने में इस जगह पर एक बहुत बड़ा मेला भी लगता है जिसे अशोकाष्टमी का मेला कहा जाता है. उनाकोटी में बनी भगवान शिव की मूर्ति को उनाकोटिश्वरा काल भैरवा नाम से पुकारा जाता है जो करीब 30 फीट के आस - पास ऊंची है. भारत सरकार अब इस जगह को वर्ल्ड हेरिटेज साइट का टैग दिलाने की तैयारी कर रही है क्योंकि सरकार का कहना है कि यह एक अनोखी सांस्कृतिक धरोहर है.

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