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DNA with Sudhir Chaudhary: आपको भारत में आ रहे एक बहुत बड़े बदलाव के बारे में जानना चाहिए. इनमें पहला बड़ा बदलाव उत्तर प्रदेश में हुआ है. उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं, जिसके तहत सड़कों पर निकाले जाने वाले धार्मिक जुलूस और धार्मिक स्थलों पर इस्तेमाल होने वाले लाउडस्पीकर के इस्तेमाल को लेकर सख्त नियम बनाए गए हैं.
इसके तहत जिन धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर का इस्तेमाल पहले से किया जा रहा है. वहां ये सुनिश्चित करना जरूरी होगा कि लाउडस्पीकर का शोर उस धार्मिक स्थल के परिसर से बाहर ना जाए. यानी अगर मस्जिद में लाउडस्पीकर पर अजान होती है या किसी मन्दिर में लाउडस्पीकर पर आरती की जाती है तो इस दौरान अजान और आरती की ध्वनि इतनी ही होनी चाहिए कि वो मन्दिर और मस्जिद के परिसर के बाहर ना जाए. अगर इस नियम का उल्लंघन होता है तो उत्तर प्रदेश पुलिस और स्थानीय प्रशासन जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई कर सकता है.
इसके अलावा उत्तर प्रदेश में अब नए धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर के इस्तेमाल की बिल्कुल इजाजत नहीं होगी. उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा है कि ऐसे धार्मिक स्थलों पर अगर लाउडस्पीकर का इस्तेमाल होता है तो इसे कानूनन अपराध माना जाएगा और ऐसे मामलों में सख्त से सख्त कार्रवाई की जाएगी.
इन नए निर्देशों के तहत अब से उत्तर प्रदेश में सड़कों पर किसी भी तरह के धार्मिक अनुष्ठान, जुलूस और शोभायात्रा को निकालने की इजाजत नहीं होगी. अगर पुलिस को लगता है कि किसी धार्मिक जुलूस या शोभायात्रा की वजह से सड़क मार्ग बंद होता है और ट्रैफिक जाम की स्थिति पैदा होती है तो पुलिस तुरंत आयोजकों पर कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र होगी.
हालांकि, निर्धारित स्थानों पर धार्मिक जुलूस और शोभायात्रा निकालने के लिए स्थानीय पुलिस से इजाजत मांगी जा सकती है. अगर पुलिस इजाजत देती है तो आयोजकों को उसकी तरफ से बताए गए तमाम नियम और कानूनों का पालन करना होगा. इसके लिए आयोजकों से एक शपथ पत्र पर भी हस्ताक्षर कराए जाएंगे. उत्तर प्रदेश के अलावा दूसरा बड़ा बदलाव महाराष्ट्र में हुआ है.
अब महाराष्ट्र के नासिक में धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर का इस्तेमाल करने से पहले पुलिस की इजाजत लेनी होगी और तीन मई के बाद अगर किसी धार्मिक स्थल पर बिना इजाजत लाउडस्पीकर का इस्तेमाल किया जाता है तो पुलिस ऐसे मामलों में कड़ी कार्रवाई करेगी. इसी तरह का एक बड़ा बदलाव मुंबई में भी हुआ. मुंबई पुलिस ने बताया है कि वहां की करीब 72 प्रतिशत मस्जिदों ने सुबह 5 बजे की अजान के लिए लाउडस्पीकर का इस्तेमाल बंद कर दिया है. ये एक बहुत बड़ा बदलाव है. क्योंकि भारत में इससे पहले शायद कभी किसी मस्जिद ने स्वेच्छा से लाउडस्पीकर के इस्तेमाल को बंद नहीं किया था. लेकिन मुंबई में ऐसा हुआ है और ऐसा करने वाली एक दो मस्जिद नहीं हैं. बल्कि मुंबई की 72 प्रतिशत मस्जिदें इसका पालन कर रही हैं. अब मुंबई के बाद देश के दूसरे राज्यों में लाउडस्पीकर के खिलाफ ये मांग तेज हो सकती हैं.
यहां एक बात स्पष्ट करना जरूरी है कि उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के नासिक में ये निर्देश किसी एक धर्म विशेष के खिलाफ लागू नहीं हुए हैं. बल्कि सभी धार्मिक स्थलों के लिए एक समान दिशानिर्देश जारी किए गए हैं. लेकिन ये दुखद है कि उत्तर प्रदेश में इन नए नियमों को एक धर्म विशेष के खिलाफ बता कर इनका विरोध शुरू हो गया है. हमारे देश के विपक्षी नेताओं ने ये कहना शुरू कर दिया है कि ये नए नियम भारत की धर्मनिरपेक्षता को नुकसान पहुंचाएंगे.
उत्तर प्रदेश में साढ़े तीन लाख से ज्यादा मंदिर, मस्जिद, चर्च और गुरुद्वारे हैं और इनमें से अधिकतर ऐसे हैं, जहां स्थानीय प्रशासन और पुलिस की इजाजत के बिना लाउडस्पीकर का इस्तेमाल किया जाता है. कुछ वर्ष पहले उत्तर प्रदेश सरकार ने खुद ये माना था कि धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर के इस्तेमाल की वजह से ध्वनि प्रदूषण होता है. क्योंकि इस दौरान ये लाउडस्पीकर इतना शोर पैदा करते हैं कि आसपास के इलाकों में ध्वनि प्रदूषण काफी बढ़ जाता है.
उत्तर प्रदेश सरकार Central Pollution Control Board यानी CPCB की ही Guidelines को मानती हैं. जिसके तहत, रिहायशी इलाकों में दिन के समय 55 Decible से ज्यादा शोर नहीं होना चाहिए और रात के समय 45 Decible से ज्यादा शोर नहीं होना चाहिए. जबकि मन्दिर और मस्जिद पर इस्तेमाल होने वाले लाउडस्पीकर इससे कहीं ज्यादा शोर पैदा करते हैं.
ईरान में की गई एक Study कहती है कि मस्जिदों पर लगे लाउड-स्पीकर की आवाज 85 Decibels से 95 Decibels तक होती है. इसके अलावा कुछ अध्ययन कहते हैं कि भारत में धार्मिक स्थलों पर लगे लाउडस्पीकर की आवाज 110 Decibels या उससे ज्यादा होती है. इनमें मस्जिदों के अलावा मन्दिर और गुरुद्वारे भी हैं. ये शोर कितना खतरनाक है, इसे आप इसी बात से समझ सकते हैं कि 70 Decibels से ऊंची आवाज इंसानों के अन्दर मानसिक बदलाव ला सकती है और ये हमारे शरीर की धमनियों में खून के प्रवाह को भी बढ़ा सकती है और कई मामलों में इससे आपका Blood Pressure भी High हो सकता है. लेकिन ये दुर्भाग्य है कि हमारे देश के लोग इस धार्मिक शोर पर खामोश बने रहते हैं. जबकि जो देश खुद को इस्लामिक बताते हैं, वहां भी इसके खिलाफ कानून बनाए जा रहे हैं.
इस समय जब रमजान का महीना चल रहा है, तब सऊदी अरब में मस्जिदों पर लगे लाउडस्पीकर के इस्तेमाल को काफी सीमित कर दिया गया है. वहां इस समय लाउडस्पीकर का इस्तेमाल सिर्फ अजान और इकामत के लिए हो रहा है और इस दौरान लाउडस्पीकर की आवाज एक तिहाई कम कर दी गई है. यहां बड़ी बात ये है कि सऊदी अरब एक इस्लामिक देश होते हुए अपने देश की मस्जिदों पर लगे लाउडस्पीकर की आवाज कम कर सकता है. लेकिन भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश होते हुए भी इस पर सीमित प्रतिबंध नहीं लगा सकता.
जबकि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 में स्पष्ट रूप से लिखा है कि कोई भी मौलिक अधिकार Absolute नहीं है. मतलब असीमित नहीं है. यानी अगर भारत का संविधान देश के नागरिकों को उनके धर्म का पालन करने की आजादी देता है तो वो साथ ही ये भी कहता है कि इस आजादी की भी कुछ सीमाएं हैं. असल में कोई भी नागरिक अधिकार तभी तक व्यावहरिक होता है, जब तक उससे किसी दूसरे नागरिक अधिकार का उल्लंघन नहीं होता हो. लेकिन जब किसी धार्मिक अनुष्ठान के लिए सड़कों को बंद कर दिया जाता है, लाउडस्पीकर से ध्वनि प्रदूषण होता है तो इससे दूसरे लोगों को जो तकलीफ होती है, ये उनके अधिकारों का उल्लंघन होता है. लेकिन हमारे देश में इस पर ज्यादा बात नहीं होती.
हमारे देश में जो लोग ये कहते हैं कि धर्म लाउस्पीकर के बिना गूंगा रह जाएगा, उन्हें हम बताना चाहते हैं कि लाउडस्पीकर को आए 150 साल भी नहीं हुए हैं, जबकि हिन्दू धर्म पांच हजार साल से भी ज्यादा पुराना है. बौद्ध धर्म ढाई हजार साल पुराना है. ईसाई धर्म दो हजार साल पुराना है. इस्लाम धर्म 1300 साल पुराना और सिख धर्म लगभग 500 साल पुराना है. जबकि लाउडस्पीकर का आविष्कार 1861 में हुआ और वर्ष 1876 में Alexander Graham Bell ने पहली बार इसका Patent कराया. लेकिन आज स्थिति ऐसी है कि जैसे लाउडस्पीकर का अविष्कार इन धर्मों के उदय के साथ हुआ.
ये बात जानकर आपको और हैरानी होगी कि 1970 के दशक से पहले भारत की मस्जिदों में लाउडस्पीकर का ज्यादा इस्तेमाल नहीं होता था और तब भारत के मुसलमान लाउडस्पीकर को वर्जित मानते थे और इसके इस्तेमाल का विरोध करते थे. उनका कहना था कि लाउडस्पीकर आधुनिकता का प्रतीक है और मुसलमानों को अजान के लिए लाउडस्पीकर का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. लेकिन 1970 के दशक के बाद ये धारणा धीरे-धीरे बदली और लगभग सभी मस्जिदों में लाउडस्पीकर को अपना लिया गया.
दुनिया में पहली बार किसी मस्जिद पर लाउडस्पीकर का इस्तेमाल वर्ष 1936 में हुआ था. उस समय सिंगापुर की मस्जिद सुल्तान पर लाउडस्पीकर से अजान हुई थी. यानी आज से 86 साल पहले मस्जिदों पर लाउडस्पीकर का इस्तेमाल नहीं होता था. जब लाउडस्पीकर नहीं आया था, तब भारत समेत दुनियाभर की मस्जिदों में मुंह से अजान की जाती थी. लेकिन आज अगर आप भारत में ऐसा करने के लिए कहेंगे तो इसे तुरंत एक धर्म विशेष के खिलाफ मान लिया जाएगा और ये कहा जाएगा कि सरकार मुसलमानों के अधिकारों का दमन कर रही है. लेकिन हमें लगता है कि आज जो नियम उत्तर प्रदेश में लागू हुए हैं, वो पूरे भारत में लागू होने चाहिए. क्योंकि ध्वनि प्रदूषण के मुद्दे को हम जितना मामूली समझते हैं, ये उससे कहीं ज्यादा गम्भीर है.
Indian Medical Association की रिपोर्ट कहती है कि 80 Decible से ज्यादा की आवाज ना सिर्फ कानों को नुकसान पहुंचाती है बल्कि इसका पूरे शरीर पर बुरा असर पड़ता है. ज्यादा ऊंची आवाज से Heart Rate और ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है और रात में होने वाला शोर, बुजुर्गों और छोटे बच्चों की नींद को प्रभावित करता है और इससे चिड़चिड़ापन और तनाव भी बढ़ जाता है.
शोर आपकी काम करने की क्षमता को भी प्रभावित कर सकता है और इससे किसी व्यक्ति की पूरी Personality में नकारात्मक बदलाव आ सकते हैं. World Health Organisation के मुताबिक ध्वनि प्रदूषण के कारण भारत में करीब 6 करोड़ 30 लाख लोगों की सुनने की क्षमता गंभीर रूप से प्रभावित हो चुकी है और World Hearing Index नामक एक रिपोर्ट के मुताबिक मुंबई और दिल्ली, दुनिया के उन Top 10 शहरों में शामिल हैं, जहां सबसे ज्यादा ध्वनि प्रदूषण है और इसकी वजह से सबसे ज्यादा लोग अपनी सुनने की क्षमता खो रहे हैं.
यानी हमारे देश में अभिव्यक्ति की आजादी तो सबको मिली हुई है. लेकिन शोर ना सुनने की आजादी किसी के पास नहीं है. ऐसे में आप भी अपने आसपास ध्वनि प्रदूषण को चेक कीजिए. अब बहुत सारे Mobile Apps आ गए हैं, जिनकी मदद से आप ध्वनि प्रदूषण को चेक कर सकते हैं और ये आपका अधिकार है.
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