अब हम आपको ये बताएंगे कि सीबीआई के प्रमुख आलोक वर्मा को आग बुझाने के काम में क्यों लगा दिया गया है? आज एक High Powered कमेटी ने सीबीआई के प्रमुख आलोक वर्मा को उनके पद से हटा दिया है. आलोक वर्मा की नई तैनाती Fire Services, Civil Defence & Home Guards के DG के तौर पर की गई है. आलोक वर्मा को मंगलवार को ही सुप्रीम कोर्ट ने उनके पद पर बहाल किया था. और ये भी कहा था कि फैसले के एक हफ्ते के अंदर High Powered कमेटी मीटिंग करे और आलोक वर्मा पर लगे आरोपों पर फैसला किया जाए.
इस कमेटी में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और जस्टिस एके सीकरी शामिल थे. वैसे इस कमेटी में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस होते हैं, लेकिन जस्टिस सीकरी का नामांकन खुद चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने ही अपने प्रतिनिधि के तौर पर किया.
आज इस कमेटी की 2 घंटे तक बैठक हुई. जिसके बाद 2-1 के बहुमत से आलोक वर्मा को हटाने का फैसला लिया गया. 2-1 का मतलब ये है कि 2 लोग आलोक वर्मा को हटाने के पक्ष में थे, जबकि एक व्यक्ति ने आलोक वर्मा को हटाने का विरोध किया. विरोध मल्लिकार्जुन खड़गे ने किया, जबकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और जस्टिस एके सीकरी आलोक वर्मा को हटाने के पक्ष में थे.
हैरानी की बात ये है कि जब आलोक वर्मा की नियुक्ति हुई थी.. तब भी मल्लिकार्जुन खडगे ने इसका विरोध किया था और आज जब आलोक वर्मा को पद से हटाया गया, तब भी उन्होंने इस फैसले का विरोध किया. ये बहुत बड़ा विरोधाभास है.
अब आपको ये बताते हैं कि इस हाईपावर्ड कमेटी ने आलोक वर्मा को हटाने का फैसला क्यों किया?
हमारे सूत्रों के मुताबिक CVC यानी Central Vigilance Commission की रिपोर्ट में आलोक वर्मा के ख़िलाफ बहुत गंभीर आरोप थे. कमेटी ने ये भी पाया कि एक संवेदनशील संस्था के प्रमुख होने के बावजूद आलोक वर्मा पूरी सत्यनिष्ठा से काम नहीं कर रहे थे.
CVC ने अपनी रिपोर्ट में मोईन कुरैशी मामले में जांच को प्रभावित करने के सबूत भी पाए थे. ये भी सबूत थे कि इस मामले में आलोक वर्मा ने 2 करोड़ रुपये की रिश्वत ली थी.
CVC को ये भी लगता है कि अगर इस मामले की आपराधिक जांच की गई, तो पूरा सच सामने आ जाएगा.
अपनी जांच के दौरान CVC को ये भी लगा था कि IRCTC केस में लालू यादव के परिवार के सदस्यों पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच को प्रभावित करने में भी आलोक वर्मा हस्तक्षेप कर चुके हैं.
हाई पावर्ड कमेटी ने इस बात का भी ध्यान रखा कि आलोक वर्मा ने कैसे उन अफसरों को CBI में रखा था, जिनकी ईमानदारी पर संदेह था.
इस कमेटी को ये भी लगा कि बहुत से मामलों में आलोक वर्मा के खिलाफ आपराधिक जांच होनी चाहिए. इसलिए ऐसी परिस्थितियों में वो सीबीआई के डायरेक्टर बने नहीं रह सकते. इसलिए उनका ट्रांसफर किया जाना चाहिए.
CBI में गृहयुद्ध का ये पूरा मामला इन्हीं आरोपों से शुरू हुआ था, जब CBI के पूर्व स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना ने आलोक वर्मा के खिलाफ कैबिनेट सेक्रेटरी को शिकायत की थी. इसके बाद CVC ने जांच की थी. आलोक वर्मा के आदेश पर सीबीआई ने राकेश अस्थाना के खिलाफ FIR दर्ज कर दी थी. इसके बाद सरकार को दखल देना पड़ा. और केंद्र सरकार ने 23 अक्तूबर की आधी रात को सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा और स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना को छुट्टी पर भेज दिया था.
सरकार का कहना था कि उसने इसलिए हस्तक्षेप किया क्योंकि संस्थान के दो शीर्ष अधिकारी आपस में लड़ रहे थे और इस कारण संस्थान की छवि ख़राब हो रही थी.
इसके बाद आलोक वर्मा सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए. सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अपना फैसला सुनाया और सरकार को आदेश दिया कि एक हफ्ते के अंदर आलोक वर्मा के खिलाफ जो आरोप और सबूत हैं उन्हें इस High Powered कमेटी के सामने रखा जाए. और फिर यही समिति आलोक वर्मा पर लगे आरोपों पर CVC की जांच रिपोर्ट को देखकर फैसला करेगी, कि उनका आगे क्या होगा?
इसलिए आज कमेटी ने आलोक वर्मा को ट्रांसफर करने का फैसला कर लिया.
यहां आपको एक तथ्य और पता होना चाहिए. जैसे ही अक्टूबर में सरकार ने आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजा था, इसके साथ ही उनके चहेते कुछ अफसरों के भी ट्रांसफर कर दिए गए थे. लेकिन जैसे ही आलोक वर्मा ने अपना पद संभाला उन्होंने अपने चहेते 10 से ज्यादा अफसरों के ट्रांसफर वापस दिल्ली कर दिए .
इन अफसरों में अजय कुमार बस्सी, ए के शर्मा और मनीष कुमार सिन्हा प्रमुख थे.
ये सभी अधिकारी राकेश अस्थाना पर दर्ज हुए केस से जुड़े हुए थे.
यही नहीं आलोक वर्मा ने अपने चहेते सीबीआई अधिकारियों को नई पोस्टिंग भी दे दी थी.
लेकिन आज खुद उन्हीं का ट्रांसफर कर दिया गया.
अब ये हो सकता है कि आगे आलोक वर्मा एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंच जाएं . और ये दलील दें कि उन्हें गलत तरीके से हटाया गया है. लेकिन अगर वो ये कहें कि उनका पक्ष नहीं सुना गया, तो ये गलत होगा.
क्योंकि आलोक वर्मा को CVC के सामने अपने पक्ष रखने का पूरा मौका दिया गया. और उन्होंने सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त रिटायर्ड जस्टिस एके पटनायक की मौजूदगी में अपना पक्ष रखा था.
सुप्रीम कोर्ट ने CVC की रिपोर्ट की कॉपी आलोक वर्मा के वकील को भी सौंपी थी.