ZEE जानकारी: एक आपराधिक घटना को धार्मिक रंग देने की कोशिश!
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ZEE जानकारी: एक आपराधिक घटना को धार्मिक रंग देने की कोशिश!

क्या किसी अपराध को धार्मिक और राजनीतिक चश्मा पहनकर देखना चाहिए ? क्या धर्म के नाम पर राजनीति करने वालों के पास किसी अपराधी को पुलिस थाने से छुड़ाकर ले जाने का लाइसेंस है ? 

ZEE जानकारी: एक आपराधिक घटना को धार्मिक रंग देने की कोशिश!

आज विश्लेषण की शुरुआत कुछ सवालों के साथ करते हैं. क्या किसी अपराध को धार्मिक और राजनीतिक चश्मा पहनकर देखना चाहिए ? क्या धर्म के नाम पर राजनीति करने वालों के पास किसी अपराधी को पुलिस थाने से छुड़ाकर ले जाने का लाइसेंस है ? 

ये दोनों सवाल इसलिए पूछने ज़रूरी हैं, क्योंकि 16 जून यानी रविवार को देश की राजधानी में पुलिस और एक Tempo ड्राइवर के बीच हिंसक वारदात हुई थी. एक तरफ वर्ल्ड कप में भारत और पाकिस्तान का मैच चल रहा था. और दूसरी तरफ दिल्ली की सड़कों पर खून खराबा हो रहा था. Social Media पर इस घटना की तस्वीरें पिछले तीन दिनों से Viral हो रही हैं. इन तीन दिनों में इस पर खूब राजनीति भी हुई.

और इसे एक धर्म विशेष के खिलाफ हमला बताकर ना सिर्फ दिल्ली पुलिस के खिलाफ एजेंडा चलाया गया. बल्कि एक आपराधिक घटना को धार्मिक रंग देकर नफरत फैलाई गई. और इसका प्रचार विदेशों में भी किया गया. हम चाहते, तो इस ख़बर का विश्लेषण सोमवार को ही कर लेते. लेकिन हमने सभी तथ्यों के सामने आने का इंतज़ार किया. ताकि, सच और झूठ को अलग किया जा सके. सबसे पहले आपको पूरी ख़बर समझाते हैं. और एक-एक करके इस वारदात के Videos दिखाते हैं. ताकि आप पूरे मामले को तस्वीरों की मदद से समझ सकें. 

रविवार दोपहर दिल्ली के मुखर्जी नगर इलाके में सरबजीत सिंह नाम के Tempo चालक ने पुलिस की गाड़ी को टक्कर मार दी.
सरबजीत ग्रामीण सेवा Tempo चलाता था. जिसमें 8 से 10 लोग बैठ सकते हैं. टक्कर के बाद एक पुलिसकर्मी ने इस Tempo ड्राइवर को रोकने की कोशिश की. लेकिन आरोपी सरबजीत ने अपनी तलवार निकाल ली, और सामने खड़े पुलिसकर्मी को धमकाना शुरू कर दिया. यहां पर ध्यान देने वाली बात ये है, कि अमृतधारी सिख धर्म को मानने वाले लोगों के पास जो कृपाण होती है, उसकी लंबाई 3 इंच से 9 इंच के बीच होती है. लेकिन, सरबजीत ने जिस हथियार से उस पुलिसकर्मी को धमकाने की कोशिश की, उसकी लंबाई, कृपाण के मुक़ाबले ज़्यादा थी. इसीलिए, इस हथियार को हम तलवार कह रहे हैं. आगे क्या हुआ, उसे समझने से पहले आप तस्वीरों की मदद से ये पूरा Sequence देखिए.

आरोपी सरबजीत की धमकी के बाद सड़क पर खड़ा पुलिसकर्मी, थोड़ी दूरी पर मौजूद मुखर्जी नगर Police Station गया. और अपने साथी पुलिसकर्मियों को लेकर मौके पर आया. सभी पुलिसवालों का मकसद था, किसी तरह सरबजीत को काबू में लाया जा सके. और उसके हाथों से धारदार हथियार छीना जा सके. लेकिन सरबजीत हिंसक हो गया. और उसने अपनी तलवार से पुलिसकर्मियों पर हमले की धमकी दी. इसी बीच बिना वर्दी पहने दिल्ली पुलिस के Assistant Sub Inspector योगराज ने उसे पीछे से पकड़ लिया और उसे काबू में करने की कोशिश की. लेकिन सरबजीत ने उस पर भी तलवार से हमला करके उसे घायल कर दिया. 

अभी तक हमने आपको दो Videos दिखाए. और इन दोनों ही Videos में एक बात साफ थी कि दिल्ली पुलिस के जवान आरोपी सरबजीत को किसी तरह पकड़ने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन सरबजीत का इरादा, पुलिसकर्मियों को नुकसान पहुंचाने का दिख रहा था.

घटना के समय सरबजीत का नाबालिग़ बेटा भी उसके साथ था. जैसे ही उसने देखा कि पुलिसवाले सरबजीत को क़ाबू में करने की कोशिश कर रहे हैं. वो तेज़ी से अपने Tempo की तरफ भागा. और फिर पुलिसकर्मियों को Tempo से टक्कर मार दी. इसके बाद भी दिल्ली पुलिस के जवान संघर्ष करते रहे. और आखिरकार दोनों को पकड़ कर थाने ले जाया गया. अब आप ये पूरा Sequence देखिए.

रविवार दोपहर हुई इस घटना के बाद राजनीति शुरु हो गई. और धार्मिक एजेंडा चलने लगा. इन सभी Videos को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर उसे Circulate किया जाने लगा. ताकि सिखों की भावनाओं को भड़काया जाए. 

ये प्रचारित किया गया, कि एक सिख की पुलिसकर्मियों ने पिटाई की है. रिश्वत ना देने पर उसके साथ बुरा व्यवहार किया गया. ऐसे भी आरोप लगाए गए, कि सरबजीत की पगड़ी को जान-बूझकर गिराने की कोशिश की गई. जबकि सच्चाई ये थी, कि जिस वक्त आरोपी व्यक्ति को क़ाबू में करने की कोशिश हो रही थी, उसी झड़प में उसकी पगड़ी गिर गई. और बाद में तलवार की चोट से घायल हुए, दिल्ली पुलिस के ASI योगराज के बहते खून को, उसी कपड़े से ढक कर रोका गया. 

ये घटना, जंगल में लगी आग की तरह फैली. और अफवाह फैलाने वालों ने सिखों को भड़काना शुरू कर दिया. इसके बाद 16 जून की रात हिंसक भीड़ ने मुखर्जी नगर थाने के बाहर पुलिसकर्मियों पर पथराव भी किया. और एक ACP रैंक के अधिकारी की पिटाई भी की.

जिस दौरान Police Station के बाहर हंगामा हो रहा था. और सिख धर्म के लोग नारेबाज़ी कर रहे थे. उस दौरान सरबजीत सिंह और उसका नाबालिग़ बेटा थाने के अंदर था. अपनी शिकायत में सरबजीत के बेटे ने आरोप लगाया है कि थाने में दिल्ली पुलिस ने उन दोनों के साथ बुरा व्यवहार किया. और उनकी पिटाई भी की. लेकिन थाने के भीतर का सच क्या है, इसे समझने के लिए आपको ये Video देखना चाहिये, जिसे Police Station में ही रिकॉर्ड किया गया था. इस Video में पुलिसवाले उनकी पिटाई नहीं कर रहे, बल्कि उन्हें पानी पिलाते हुए और उन्हें समझाते हुए दिखाई दे रहे हैं.

हिंसक भीड़ थाने से हटने का नाम नहीं ले रही थी. और इसी के दबाव में आकर आरोपी सरबजीत को छोड़ना पड़ा. ज़ी न्यूज़ ने जब आरोपी Temo ड्राइवर से इस पूरी घटना पर सवाल पूछे तो उसकी दलील ये थी, कि उसने पुलिसवालों पर हमला Self Defence में किया. हालांकि, Self Defence की बात करने वाला ये व्यक्ति इतना भी शरीफ़ नहीं है. आज हम इसकी शराफ़त की भी पोल खोलेंगे. लेकिन उससे पहले देखिए, कि इसने हमसे क्या कहा ?

इस पूरे घटनाक्रम के अगले ही दिन यानी सोमवार को शुरुआती जांच में कार्रवाई करते हुए तीन पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर दिया गया. इसमें तलवार की चोट से घायल दिल्ली पुलिस के ASI योगराज भी शामिल हैं. 

17 जून की रात भी मुखर्जी नगर थाने के बाहर भीड़ इकट्ठा थी. और उनकी मांग थी कि आरोपी पुलिसकर्मियों को बर्ख़ास्त किया जाए.

घटना की Fact Finding Report की ज़िम्मेदारी मनीष अग्रवाल को दी गई. जो, दिल्ली पुलिस में Northern Range के Joint कमिश्नर हैं.

इसी बीच पुलिस ने एक Cross FIR भी दर्ज की है. यानी सरबजीत की शिकायत पर पुलिसकर्मियों के खिलाफ FIR की गई है, और घायल पुलिसकर्मी की शिकायत पर सरबजीत पर मामला दर्ज किया गया है. लेकिन राजनीति की वजह से सरबजीत सिंह के खिलाफ हल्की धाराएं लगाई गईं हैं. 

तस्वीरों में साफ है, कि उसके नाबालिग़ बेटे ने पुलिसकर्मियों पर Tempo चढ़ा दिया. और सरबजीत ने धारदार हथियार से हमला किया. ऐसे में IPC की धारा 307 के तहत सरबजीत पर हत्या की कोशिश का Case भी दर्ज हो सकता था.

लेकिन, दबाव की वजह से सरबजीत पर IPC की धारा 186, धारा 353, 332 और धारा 34 के तहत मामला दर्ज किया गया गया.ये सभी वही धाराएं हैं, जब किसी सरकारी कर्मचारी को On Duty काम करने से रोकने पर लगाई जाती हैं. या फिर Duty के दौरान उसके ऊपर हमले की कोशिश या चोट पहुंचाने की स्थिति में लगाई जाती हैं. लेकिन तस्वीरों को ध्यान से देखने पर एक बात स्पष्ट हो जाती है, कि सरबजीत ने पुलिसवालों पर जानलेवा हमला करने की कोशिश की थी.

IPC की धारा 186 का मतलब हुआ, सरकारी कर्मचारी के काम में बाधा पहुंचाना. इसके तहत सिर्फ़ 3 महीने की सज़ा का प्रावधान है या 500 रुपये का जुर्माना.

वहीं, धारा 353 का मतलब हुआ, सरकारी कर्मचारी पर Duty के दौरान हमला करना. इसमें 2 साल की सज़ा और जुर्माने का प्रावधान है.

IPC की धारा 332 का मतलब हुआ, सरकारी कर्मचारी को जान-बूझकर चोट पहुंचाना, जिससे वो अपना काम ना कर सके. इसमें 3 साल की सज़ा और जुर्माना या दोनों का प्रावधान है. इन धाराओं पर मिलने वाली सज़ा के बारे में जानकर आप भी हैरान हो सकते हैं. क्या इन तस्वीरों को देखकर ये मान लिया जाए कि कोई भी पुलिसवालों की पिटाई कर सकता है. और फिर 500 रुपए का जुर्माना देकर छूट सकता है.

Cross FIR की जांच दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच कर रही है. क्योंकि मामला ज़िले की पुलिस से जुड़ा हुआ था और उसी के ऊपर आरोप लगे थे. इसलिए निष्पक्ष जांच के लिए मामला क्राइम ब्रांच को सौंपा गया. इस बीच मानव अधिकारों के लिए लड़ने वाली एक वकील ने सरबजीत के मामले को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में एक PIL दाखिल की है. 

इसमें मांग की गई, कि पूरे मामले की जांच कोर्ट Monitor करे या CBI मामले की जांच करे.

Tempo ड्राइवर सरबजीत का बेटा नाबालिग़ है, इसलिये उसकी पहचान गुप्त रखी जाये.

सरबजीत सिंह का मेडिकल रिकार्ड देखा जाये.

और घटना वाले दिन, थाने का CCTV फुटेज सुरक्षित रखा जाये. और जितने भी पुलिस वाले इसमें शामिल थे, उन पर कार्रवाई की जाए.

दिल्ली हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए गृह मंत्रालय और दिल्ली पुलिस से एक हफ्ते में जवाब मांगा है. नाबालिग़ बच्चे पर हमला करने वाले सभी दोषी पुलिसवालों की पहचान करके, उन पर विभागीय कार्रवाई के आदेश दिए हैं. और मीडिया को बच्चे की पहचान सार्वजनिक ना करने के लिए कहा है. इस मामले की अगली सुनवाई 2 जुलाई को होगी. 

अब आपको इस व्यक्ति का आपराधिक इतिहास भी बता देते हैं.

इसी साल अप्रैल के महीने में सरबजीत ने गुरुद्वारा बंगला साहिब में वहां के एक सेवादार के साथ मार-पीट की थी. और उसका हाथ तोड़ दिया था. इस घटना के बाद पुलिस ने मामला दर्ज करके, सरबजीत सिंह को गिरफ्तार भी किया था.
इससे पहले 2006, 2011 और 2013 में सरबजीत पर दिल्ली के दो अलग-अलग इलाकों में शांति भंग करने की धाराओं के तहत मामला दर्ज हुआ था. और उसे गिरफ्तार भी किया गया था. 

इन तथ्यों से साफ है, कि सरबजीत सिंह नाम के इस व्यक्ति का आपराधिक इतिहास रहा है. लेकिन, अब उसे पुलिस के हाथ पीड़ित के तौर पर पेश किया जा रहा है.
मुखर्जी नगर की ये घटना बहुत ही शर्मनाक है और इससे भी ज़्यादा शर्मनाक इस पर हो रही राजनीति है. हमारे देश में कुछ नेताओं की ये फ़ितरत है कि वो हर घटना में धर्म ढूंढ लेते हैं. मुखर्जी नगर में टेंपो ड्राइवर पर हुई पुलिस की कार्रवाई को भी उन्होंने धर्म वाला रंग दे दिया. कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के नेताओं ने इस केस की सच्चाई और इसकी तह तक जाने की बजाय गिद्ध वाली राजनीति शुरू कर दी. उन्हें इसमें वोट बैंक नज़र आने लगा. 

16 जून को ये घटना हुई और 17 जून की सुबह दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस मुद्दे पर दिल्ली पुलिस को निशाना बनाकर Tweet किया.
उन्होंने लिखा कि ये दिल्ली पुलिस की निर्दयता वाली कार्रवाई है. और दिल्ली पुलिस को बेक़ाबू हिंसक भीड़ की तरह काम नहीं करना चाहिये.

पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी Tweet किया. उन्होंने इसे Petty issue...यानी मामूली बात कहते हुए दिल्ली पुलिस की शर्मनाक कार्रवाई बताया है.

यानी इस मुद्दे में क़ानूनी पहलू को पूरी तरह नज़रअंदाज़ किया जा रहा है. ये राजनीतिक दल पूरी तरह दिल्ली पुलिस को दोषी ठहरा रहे हैं.

दिल्ली में राजौरी गार्डन से विधायक और शिरोमणि अकाली दल के प्रवक्ता मनजिंदर सिंह सिरसा ने भी Tweet करके पूछा है कि दिल्ली पुलिस को कौन ये हक़ देता है कि वो किसी बेगुनाह इंसान की बात सुने बग़ैर उसकी पिटाई करे. दूसरे Tweet में उन्होंने लिखा कि आरोपी ड्राइवर ने पुलिस को नुक़सान नहीं पहुंचाया...ना ही उसका बेटा इस दौरान आक्रामक था...फिर भी दिल्ली पुलिस ने दोनों को बुरी तरह पीटा.

ये Drawing Room वाली Politics है, जो सुनी-सुनाई बातों और Social Media के झूठ वाले प्रचार को अपना आधार बनाती है. और फिर इसे वायरल करके समाज में ज़हर घोलने की कोशिश करती है. यानी मुखर्जी नगर की घटना पर राजनीति करके नेता इस वक़्त समाज में खलनायक की भूमिका निभा रहे हैं. इस केस में दोषी कौन है, इसकी जांच हो रही है. मामला कोर्ट में भी है.

इसलिये हमारा मानना ये है कि इस केस में नेताओं को दख़ल नहीं देना चाहिये. ये मामला एक सामान्य अपराध की तरह सुलझाया जाना चाहिये. 

इस केस में पुलिस को भी Clean Chit नहीं दी जा सकती. हमारे समाज में पुलिस का मतलब Power होता है. हमने फिल्मों में पुलिस को खलनायक की भूमिका में भी देखा है. ऐसा Real Life में तब होता है जब पुलिस...यानी ख़ाकी वर्दी ये समझने की ग़लती करती है कि उसके ऊपर कोई नहीं है. वो किसी को जवाबदेह नहीं है.

इसलिये इस मामले में दिल्ली पुलिस की भूमिका की भी जांच हो रही है. 
लेकिन धारदार हथियार लिए हुए एक आदमी को क़ाबू में करना आसान नहीं था. इसमें किसी पुलिसकर्मी की जान भी जा सकती थी. और ऐसा होने पर यही नेता घड़ियाली आंसू भी बहाते. मुखर्जी नगर वाली घटना में ASI योगराज ने धारदार हथियार से हमला करने वाले सरबजीत को पकड़ने की कोशिश की थी. इस दौरान वो घायल भी हो गये. वो जानते थे कि सरबजीत को रोकने में उनकी जान भी जा सकती है. लेकिन भीड़ के दबाव में उनको निलंबित कर दिया गया और उन पर भी FIR दर्ज कर ली गई. इसलिये ये केस दिल्ली पुलिस के हौसले को भी कमज़ोर करेगा. जबकि इस फोर्स के कई जवान हर साल अपना फ़र्ज़ निभाते हुए शहीद हो जाते हैं.

2017 में दिल्ली में ड्यूटी करते हुए 21 पुलिसकर्मी शहीद हुए थे.
2018 में दिल्ली पुलिस के 6 जवान ड्यूटी पर शहीद हुए. 

तब मीडिया में वाह-वाही लेने के लिये यही नेता मुआवज़े का ऐलान भी करते हैं. दिल्ली सरकार Duty पर शहीद होने वाले पुलिसकर्मियों के परिवारों को एक करोड़ रुपये की मदद करने का वादा करती है. लेकिन इस बार अरविंद केजरीवाल को पुलिस पर सरेआम हुआ हमला नज़र नहीं आया. इसमें भी उन्हें पंजाब और दिल्ली का एक वोट बैंक ही दिखाई दिया.

धर्म देखकर होने वाली यही वोट बैंक वाली राजनीति समाज को बांटती है...और देश के टुकड़े-टुकड़े करने वाले अपने अपवित्र सपनों को भी पूरा करने की कोशिश करते हैं.

दिल्ली में मुखर्जी नगर की घटना के बाद खालिस्तान के समर्थक भी सक्रिय हो गये हैं. 16 जून की रात को मुखर्जी नगर थाने के बाहर भीड़ ने खालिस्तान ज़िंदाबाद के नारे लगाये. इसके बाद जम्मू-कश्मीर के त्राल में भी कुछ लोग Bus Stand के पास इकट्ठा हुए और देश विरोधी नारेबाज़ी की. 

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