ZEE जानकारी: देश के 135 करोड़ लोगों के मानव-अधिकारों का विश्लेषण
Advertisement
trendingNow1608031

ZEE जानकारी: देश के 135 करोड़ लोगों के मानव-अधिकारों का विश्लेषण

आज अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस है.आज के ही दिन वर्ष 1948 में United Nations ने मानव अधिकारों को अपनाने की घोषणा की थी. इसका नाम है Universal Declaration of Human Rights. 

ZEE जानकारी: देश के 135 करोड़ लोगों के मानव-अधिकारों का विश्लेषण

आज अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस है.आज के ही दिन वर्ष 1948 में United Nations ने मानव अधिकारों को अपनाने की घोषणा की थी. इसका नाम है Universal Declaration of Human Rights. जिसे आप मानव सभ्यता के इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज़ों में से एक कह सकते हैं. इसमें हर मनुष्य को सुरक्षित और आजाद जीवन जीने का अधिकार है. जिसे हर हाल में सुनिश्चित करना सरकारों की जिम्मेदारी है.

रविवार को दिल्ली में आग से 43 लोगों की मौत हो गई. और सिर्फ 48 घंटों में ही ये खबर Headlines से गायब हो गई है. देश की राजधानी में, संसद से करीब 6 किलोमीटर की दूरी पर गरीब, बंधुआ मजदूरों की तरह काम कर रहे थे. जिन लोगों की मौत हुई वो अ-मानवीय हालात में रहकर काम कर रहे थे...इसलिए आज हम इनके और हम सबके मानव-अधिकारों की बात करेंगे.

मानवाधिकारों के मुताबिक किसी भी इंसान का नस्ल, रंग, जाति, धर्म, लिंग, भाषा, राष्ट्रीयता और किसी विचारधारा के आधार पर उत्पीड़न नहीं किया जा सकता . मानव अधिकारों में शिक्षा, स्वास्थ्य, घर, रोजगार, भोजन और मनोरंजन से संबंधित इंसान की बुनियादी जरूरतें शामिल हैं. अगर कोई इन चीजों से वंचित है तो ये माना जाता है कि कहीं न कहीं उसके मानव-अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है.

वर्ष 2019 में मानवाधिकार दिवस का विषय है. Youth Standing Up for Human Rights...यानी युवाओं को अब मानव-अधिकारों के लिए काम करने और आगे बढ़ने की जरूरत है. दिल्ली में आग से जिन लोगों की मौत हुई उन्हें मूलभूत मानव-अधिकार भी नहीं दिया गया था. वो सभी मजदूर जान जोखिम में डालकर.

खतरनाक हालात में काम करते थे. मानव-अधिकार का मूलभूत नियम है कि कानून के सामने सभी बराबर हैं और हर इंसान को सुरक्षा का समान अधिकार हासिल है . लेकिन ऐसा लग रहा है मानो गरीबी ने इन मजदूरों के मानव अधिकारों को छीन लिया है.

मानव अधिकारों के मुताबिक किसी भी इंसान को गुलाम बनाकर नहीं रखा जा सकता है. लेकिन भारत में आज भी 1 करोड़ 80 लाख लोग गुलामों की श्रेणी में आते हैं. ये लोग अपनी इच्छा के विरूद्ध काम करते हैं और इनके मालिक ही इनकी जिंदगी का फैसला करते हैं. इसलिए इन्हें नए जमाने का गुलाम कहा जाता है और भारत में ऐसे लोगों की संख्या दुनिया में सबसे ज्यादा है.

मानवाधिकार का सीधा रिश्ता Human Freedom Index से है. 2018 में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के 162 देशों में भारत का स्थान 110वें नंबर पर है. इस Index से ये पता चलता है कि किसी देश में वहां की जनता को कितनी स्वतंत्रता है. वहां उन्हें कितने अधिकार हैं. और इस लिस्ट में New Zealand पहले पर है और Syria अंतिम नंबर पर है.

अगर आजादी की कमी हो तो इसे भी मानव-अधिकारों में घुसपैठ माना जाएगा . वैसे, कहने के लिए भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है... लेकिन आजादी के 72 वर्ष बीतने के बाद भी, हम जनता को बुनियादी मानव-अधिकार देने की सिर्फ बातें कर रहे हैं. हम बच्चों को देश का भविष्य और महिलाओं को देवी जैसा सम्मान देते हैं पर हमारी सरकारों के लिए ये सब किताबी बातें हैं.

वैसे एक अच्छी खबर ये है कि Human Development Index में भारत दुनिया के 189 देशों में 130वें स्थान से 129वें स्थान पर आ गया है. इसका मतलब ये है कि भारत में औसत आय बेहतर हुई है. पर अभी भी मानव-अधिकारों के मामले में हम बहुत पीछे हैं. और गरीबों के मानव अधिकारों की तो कोई बात भी नहीं करता है .

आज सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ दिल्ली में मानव-अधिकार दिवस पर हुए एक कार्यक्रम में पहुंचे . वहां उन्होंने कहा कि देश को आज खुद से ये सवाल पूछना होगा कि...हमारे बहुत से नागरिक सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक बहिष्कार जैसे हालात का सामना क्यों कर रहे हैं. जस्टिस चंद्रचूड़ ने ये भी कहा कि ... हमें ऐसा माहौल बनाना होगा- जिसमें हम अपनी आलोचनाओं को स्वतंत्र और सम्मानित तरीके से रख सकें .

दुनियाभर में गरीबों के मानव-अधिकारों की रक्षा के लिए बड़े बड़े अभियान चलाए जाते हैं. 7 दिसंबर को दुनिया के कई बड़े शहरों जैसे London, New York और Brisbane में 50 हजार से ज्यादा लोगों ने सड़कों पर पूरी रात बिताई... ताकि वो बिना घर के सड़कों पर रहने वाले लोगों की पीड़ा समझ सकें.

इनमें से कई शहरों का तापमान 10 डिग्री सेल्सियस से भी कम था. इस campaign का नाम है The World's Big Sleep Out... इसकी शुरुआत Scotland में की गई थी और पिछले दो वर्षों में इसकी मदद से बेघरों के लिए 70 करोड़ रुपए से ज्यादा इकट्ठा किए गए हैं.

लेकिन हमारे देश में मानव-अधिकारों की बात करने वाले चुन चुनकर मुद्दों को उठाते हैं. कुछ लोगों ने मानव-अधिकारों का इस्तेमाल सिर्फ अपनी राजनीति चमकाने के लिए किया है. इनके पास मानो मानव अधिकारों का Copy Right भी है.इसलिए कोई निर्भया के मानव-अधिकारों की बात नहीं करता है .

लेकिन हैदराबाद में दिशा के रेपिस्ट के Human Rights की बात होती है. इसी तरह से आतंकवादी कसाब और याकूब मेमन के मानव अधिकारों का मुद्दा उठाया जाता है... लेकिन कश्मीरी पंडितों के लिए कोई आवाज नहीं उठाता है. पिछले 72 वर्षों से देश में यही हो रहा है.

फिर भी हमारे देश में मानव-अधिकारों की बात करना एक फैशन बना दिया गया है . इस पर कुछ बुद्धीजीवियों ने Copy Right कर लिया है और ये लोग अपनी सुविधा के हिसाब से मानव-अधिकारों को लेकर मुहिम चलाते हैं और आपके असली मानव-अधिकारों की परवाह कोई नहीं करता . यानी आपको जीने का अधिकार नहीं मिलने के साथ मानव-अधिकार भी नहीं मिल रहा है.

हमारे देश में कभी मानवाधिकार के नाम पर तो कभी कोर्ट में पुनर्विचार याचिका के नाम पर सिस्टम का मजाक उड़ाया जाता है. सभी को समान न्याय मिले इसके लिए भारतीय कानून में कई विकल्प हैं. कई बार अपराधी इन विकल्पों का फायदा उठाकर...न्याय की प्रक्रिया का मजाक बना देते हैं . आज ऐसा ही कुछ...निर्भया के साथ हुआ है .

पिछले 7 वर्षों से पूरा देश निर्भया को इंसाफ मिलने का इंतज़ार कर रहा है . 16 दिसंबर 2012 को निर्भया के साथ गैंगेरप हुआ था . दिल्ली की सेशंस कोर्ट ने 13 सितंबर 2013 को 4 दोषियों को फांसी की सज़ा सुनाई थी . मार्च 2014 को दिल्ली हाईकोर्ट ने दोषियों की फांसी की सज़ा बरकरार रखी . और 3 फरवरी 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने भी फांसी की सज़ा पर ही मुहर लगाई .

तब से अब तक 34 महीने बीत गए हैं और अब भी निर्भया के गुनहगारों को फांसी नहीं दी जा सकी है . इस दौरान गुनहगारों की ओर से 4 बार पुनर्विचार याचिका दायर की जा चुकी है . इनमें पहली तीन याचिकाएं खारिज होने के बाद आज एक बार फिर...सजा को टालने के लिए सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की गई . इस मामले में दोषी..अक्षय ने सुप्रीम कोर्ट में दायर पुनर्विचार याचिका में फांसी से बचने के लिए अजीब तर्क दिए हैं .उसने कहा है कि दिल्ली में प्रदूषण की वजह से लोगों की आयु वैसे ही कम हो रही है तो उसे मौत की सजा क्यों मिले ?

मेरे हाथ में उस याचिका की कॉपी है . और इसे मैं आपको पढ़कर सुनाता हूं. ताकि आप ये समझ सकें कि किस तरह एक रेपिस्ट....हमारे सिस्टम और कानून से मिले अधिकार का गलत फायदा उठा रहा है. और देश का मजाक उड़ा रहा है. 

उसके मुताबिक. दिल्ली और आस पास के इलाकों में Air Quality यानी वायु की गुणवत्ता बहुत खराब है. ये शहर गैस चैंबर बन गया है. इसके लिए उसने संसद में केंद्र सरकार की रिपोर्ट का हवाला दिया है . वो कह रहा है कि हवा और पानी को लेकर दिल्ली और आस पास क्या हो रहा है...इसके बारे में सभी जानते हैं . तो जब ज़िंदगी वैसे ही कम हो रही है तो उसे फांसी की सजा क्यों मिलनी चाहिए ?

इस तरह की दलील से ऐसा लग रहा है कि वो हमारे समाज और सिस्टम को चिढ़ा रहा है . इसलिए ये पुनर्विचार याचिका नहीं...बल्कि हमारे सिस्टम के साथ किया गया एक मजाक है .फांसी की सजा से बचने के लिए रेप के गुनहगार ने अपनी याचिका में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और गरीबी का भी जिक्र किया . उसने कहा कि महात्मा गांधी कहते थे कि कुछ भी करने से पहले हमेशा उस व्यक्ति के बारे में सोचिए जो सबसे गरीब हो और बेसहारा हो . क्या ये उसके हित में है ? इससे क्या हासिल होगा ?

Trending news