ZEE Jankari: अमरनाथ यात्रा के बहाने हिंदू विरोध की राजनीति का DNA टेस्ट
Advertisement
trendingNow1549941

ZEE Jankari: अमरनाथ यात्रा के बहाने हिंदू विरोध की राजनीति का DNA टेस्ट

अमरनाथ यात्रा कश्मीर घाटी के आतंकवाद प्रभावित ज़िलों से होकर गुज़रती है. यात्रा के Route पर कई बार आतंकवादी हमले हो चुके हैं. इसलिए श्रद्धालुओं की सुरक्षा को ध्यान में रखकर कश्मीर घाटी में Highway और कुछ अहम रास्तों पर सुरक्षा के सख्त इंतज़ाम किए गए हैं.

ZEE Jankari: अमरनाथ यात्रा के बहाने हिंदू विरोध की राजनीति का DNA टेस्ट

ऐसा लगता है कि देश और हिंदू धर्म का विरोध अब जम्मू और कश्मीर की राजनीति के DNA में शामिल हो चुका है. आज हम हिंदू विरोध की राजनीति के इस DNA का DNA टेस्ट करेंगे. अमरनाथ यात्रियों की सुरक्षा के लिए जम्मू और कश्मीर में कुछ रास्तों पर Traffic को निश्चित समय के लिए रोका जा रहा है. अमरनाथ यात्रा कश्मीर घाटी के आतंकवाद प्रभावित ज़िलों से होकर गुज़रती है. यात्रा के Route पर कई बार आतंकवादी हमले हो चुके हैं. इसलिए श्रद्धालुओं की सुरक्षा को ध्यान में रखकर कश्मीर घाटी में Highway और कुछ अहम रास्तों पर सुरक्षा के सख्त इंतज़ाम किए गए हैं. श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए किए गए इन फैसलों पर कोई राजनीति नहीं होनी चाहिए.

लेकिन जम्मू कश्मीर के दो पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला इसका विरोध कर रहे हैं. महबूबा मुफ्ती ने तो एक कदम आगे बढ़ते हुए बिलकुल साफ-साफ कहा है कि सुरक्षा के इन इंतज़ामों से कश्मीरियों को परेशानी हो रही है.
आपको याद होगा. वर्ष 2017 में कश्मीर घाटी के अनंतनाग ज़िले में श्रद्धालुओं से भरी एक बस पर आतंकवादी हमला हुआ था, जिसमें 8 तीर्थयात्री मारे गए थे.  

लेकिन ऐसा लगता है कि महबूबा मुफ्ती को तीर्थ यात्रियों की सुरक्षा की कोई फिक्र नहीं है. पत्थरबाजों और आतंकवादियों के लिए तो उनके मन में बहुत हमदर्दी नज़र आती है. लेकिन श्रद्धालुओं की सुरक्षा की उन्हें कोई परवाह नहीं है.
ये सांप्रदायिक राजनीति है, जिसे Expose करना बहुत ज़रूरी है. हम महबूबा मुफ्ती का वो बयान आपको दिखाएंगे. लेकिन पहले आपको कुछ तस्वीरें दिखाना बहुत ज़रूरी है.

आज अलगाव-वादियों ने कश्मीर घाटी में बंद बुलाया था. श्रीनगर के बाज़ार आज बंद पड़े थे. क्योंकि आज ही के दिन वर्ष 2016 में सुरक्षा बलों ने आतंकवादी बुरहान वानी को मार दिया था. आश्चर्य की बात ये है कि तीर्थयात्रियों के सुरक्षा इंतज़ाम से महबूबा मुफ्ती दुखी हैं. लेकिन वो अलगाववादियों के बंद और आतंकवादियों के महिमा मंडन का विरोध नहीं करती हैं.

कश्मीर में आतंकवादियों के प्रति हमदर्दी रखने वाले नेताओं को पत्थरबाजी से कोई समस्या नहीं है. ये लोग पत्थरबाजों का समर्थन करते हैं. सुरक्षाबलों पर पत्थरबाज़ी इन्हें आज़ादी की लड़ाई नज़र आती है. लेकिन शांति से सड़कों पर गुज़रने वाले अमरनाथ यात्रियों से इन्हें नफरत है. कश्मीर घाटी में इस साल भी ईद के दिन पत्थरबाज़ी हुई. यहां अक्सर इस्लामिक स्टेट के काले झंडे दिखाकर प्रदर्शन किए जाते हैं. आतंकवादियों के समर्थन में नारेबाजी की जाती है और आतंकवादियों के पोस्टर लहराए जाते हैं, लेकिन उस वक्त भी इन नेताओं को कश्मीरित पर कोई खतरा नज़र नहीं आता है.

इतना ही नहीं कश्मीर में आतंकवादियों के जनाज़े निकाले जाते हैं. आतंकवादी और अलगाव-वादी इन जनाज़ों में शामिल होने के लिए आम कश्मीरियों को धमकी देते हैं. लेकिन इन सभी घटनाओं पर इन लोगों ने लंबा मौन व्रत धारण कर रखा है.
महबूबा मुफ्ती के अलावा उमर अब्दुल्ला ने भी सुरक्षा इंतज़ामों के तहत Highway को बंद करने का विरोध किया है.

उमर अब्दुल्ला ने Tweet किया है कि 'ऐसी बात नहीं है कि हम यात्रियों की सुरक्षा को लेकर बेपरवाह हैं. लेकिन 30 सालों में सिर्फ राज्यपाल सत्यपाल मलिक का ही प्रशासन है, जिसे तीर्थ यात्रियों की सुरक्षा के लिए Highway और Railway Line बंद करने की ज़रूरत पड़ी है. ये अ-क्षमता और आलस्य की हद है.'

अभी कुछ दिनों पहले ही सुरक्षा एजेंसियों ने अलर्ट जारी किया था कि कुछ पाकिस्तानी आतंकवादी पुलवामा के एक Highway पर हमले की योजना बना रहे हैं. निशाने पर वो Highway भी हैं जहां से अमरनाथ यात्री गुज़रते हैं. लेकिन इस चेतावनी को नज़र अंदाज़ करके कश्मीर की दो सबसे बड़ी क्षेत्रीय पार्टियां प्रशासन का विरोध करने में लग गई है. महबूबा मुफ्ती इस मामले में उमर अब्दुल्ला से काफी आगे निकल गई हैं. उन्होंने बिलकुल साफ साफ कहा है कि सुरक्षा के इंतज़ामों से कश्मीरियों को परेशानी हो रही है. उनका कहना है कि तीर्थ यात्री हमारे मेहमान हैं, लेकिन सख्त सुरक्षा इंतज़ामों से भाईचारा कम हो रहा है. सुरक्षा व्यवस्था का भाईचारे से क्या संबंध है? ये समझना बड़ा मुश्किल है.

इन बयानों का जवाब देते हुए राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कहा है कि सुरक्षा व्यवस्था का विरोध करने वालों को अपनी सहनशीलता बढ़ानी चाहिए. अगर सुरक्षा इंतज़ामों से परेशानी होती तो कश्मीर के लोग इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर सकते थे, लेकिन इस तरह के किसी भी विरोध प्रदर्शन की खबर नहीं है. विरोध सिर्फ राजनेताओं के द्वारा किया जा रहा है और वो भी अपनी सांप्रदायिक राजनीति के लिए.

Zee News ने अमरनाथ यात्रा पूरी करके लौटे कुछ श्रद्धालुओं से बात की है. श्रद्धालुओं ने हमें बताया कि कश्मीर के लोगों ने यात्रा में उनकी मदद की है विरोध नहीं. ऐसा नहीं है कि वर्ष 2017 में पहली बार अमरनाथ यात्रियों पर हमला हुआ था. आज से करीब 19 साल पहले साल 2000 में तीर्थयात्रियों के पहलगाम बेस कैंप पर आतंकवादियों ने हमला किया था. हमले में 32 लोगों की मौत हुई थी जिसमें 21 श्रद्धालु थे. वर्ष 2001 में श्रद्धालुओं के एक कैंप पर 2 ग्रेनेड फेंके गए थे. इस हमले में 13 की मौत हुई. इनमें से 8 श्रद्धालु थे.

वर्ष 2002 में लश्कर-ए-तैयबा के हमले में 9 श्रद्धालुओं की मौत हुई थी. अमरनाथ यात्रियों पर हुए ये सभी हमले अनंतनाग ज़िले में हुए थे. इसके बावजूद हिंदुओँ का विरोध, अब कश्मीर की राजनीति के DNA में शामिल हो चुका है. वर्ष 1989 और 1990 में कश्मीर घाटी में सैकड़ों कश्मीरी पंडितों को जेहाद के नाम पर मार दिया गया. 2 लाख कश्मीरी पंडितों को अपने घरों से पलायन करना पड़ा. जो लोग हजारों वर्षों से कश्मीर में रहते थे. उन्हें आतंकवादियों ने मारकर भगा दिया था. आज भी घाटी में कश्मीरी पंडितों के लिए कोई जगह नहीं है. इतना छोटा दिल रखने वालों को कश्मीरियत पर उपदेश नहीं देना चाहिए. आज हम अलगाव-वाद की राजनीति करने वाले नेताओं को कश्मीर का इतिहास याद दिलाना चाहते हैं. कश्मीर को हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति से अलग नहीं किया जा सकता है.

आज से 700 वर्ष पहले कश्मीर, मंदिरों के निर्माण और वास्तुकला के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध था. इनमें से कई प्राचीन मंदिर आज खंडहर बन चुके हैं. ये खंडहर आज भी अपने गौरवशाली इतिहास की गवाही दे रहे हैं. आज हम आपको कश्मीर के कुछ प्राचीन मंदिरों की तस्वीरें दिखाएंगे. जम्मू और कश्मीर की राजधानी श्रीनगर में 2 हजार 200 वर्ष पुराना शंकराचार्य मंदिर आज भी मौजूद है.

मार्तण्ड मंदिर, कश्मीर का सबसे प्रसिद्ध प्राचीन मंदिर है. अनंतनाग ज़िले में मौजूद ये मंदिर करीब 1200 वर्ष पुराना है. कश्मीर घाटी के बारामूला ज़िले में मौजूद शंकर-गौरी-ईश्वर मंदिर करीब एक हज़ार वर्ष पुराना है. कश्मीर में मुस्लिम शासन के दौरान बहुत सारे प्रसिद्ध मंदिरों को तोड़ दिया गया. लेकिन ये कुछ ऐसे मंदिर हैं जो आज भी कश्मीर में हिंदू धर्म की धरोहर हैं. दुर्भाग्य की बात ये है कि ये मंदिर अब खंडहर बन चुके हैं. आज़ादी के बाद भी सरकारों ने इन मंदिरों पर कोई ध्यान नहीं दिया.

Trending news