ZEE जानकारी: Digital युग में 5G की रफ्तार से फैल रहे हैं दंगे
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ZEE जानकारी: Digital युग में 5G की रफ्तार से फैल रहे हैं दंगे

आज हम जिन दंगों का विश्लेषण कर रहे हैं वो Digital युग के पहले दंगे हैं. और ये दंगे अब पूरे देश में 5G की रफ्तार से फैल रहे हैं. 

ZEE जानकारी: Digital युग में 5G की रफ्तार से फैल रहे हैं दंगे

आज हम जिन दंगों का विश्लेषण कर रहे हैं वो Digital युग के पहले दंगे हैं. और ये दंगे अब पूरे देश में 5G की रफ्तार से फैल रहे हैं. लेकिन इस विश्लेषण से पहले आपको कुछ तस्वीरें देखनी चाहिए. ये तस्वीरें उन लोगों को भी देखनी चाहिए जो कह रहे हैं कि ये शांतिपूर्ण प्रदर्शन है और अमन पसंद लोग. अपने हक की आवाज़ उठा रहे हैं.

पहली तस्वीर गुजरात के अहमदाबाद की हैं जहां प्रदर्शनकारी ना सिर्फ पुलिस वालों पर हमला कर रहे हैं. बल्कि पुलिस कर्मियों को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा जा रहा है. हिंसा रोकने के लिए जब पुलिस कर्मी बस लेकर इस जगह पर पहुंचे..तो भीड़ हिंसक हो गई और जब एक पुलिसकर्मी बस में चढ़ते समय नीचे गिर गया तो भीड़ ने उसे पीटना शुरू कर दिया . ये लोग पुलिस की गाड़ियों पर पत्थर भी बरसा रहे थे और पुलिस वालों को घेर कर मार भी रहे थे.

गुजरात के बनासकांठा से भी एक ऐसी ही तस्वीर आई है. वहां भी पुलिस की गाड़ी को दंगाइयों ने रोक लिया और उस पर हमला करने लगे. ये लोग उस गाड़ी को पलट देना चाहते थे. दंगाइयों के बीच ये गाड़ी बहुत मुश्किल से निकल पाई.

आपको बनासकांठा में हुई हिंसा का एक Areal Visual भी देखना चाहिए. इस तस्वीर में आप देख सकते हैं कि शांतिपूर्ण प्रदर्शन के नाम पर कैसे इन लोगों ने एक सड़क को पूरी तरह से घेर लिया है. और ये लोग पुलिस के वाहनों को आगे नहीं बढ़ने दे रहे. सफेद रंग को शांति का रंग माना जाता है. लेकिन आज सफेद कपड़े पहनकर आए ये लोग..हिंसा और डर की मिसाल पेश कर रहे थे.

गुजरात के बाद अब आपको दिल्ली से आई एक तस्वीर भी देखनी चाहिए. दिल्ली की जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी के गेट के सामने सड़क पर ही आज कुछ लोगों ने नमाज़ पढ़नी शुरू कर दी. भारत एक सेक्युलर देश है और ये तस्वीरें भारत की धर्म निरपेक्षता पर सवाल उठाती है.

इन तस्वीरों के ज़रिए एक संदेश देने की कोशिश की जा रही है. इसलिए हम इस विषय पर ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहते क्योंकि आप खुद अंदाज़ा लगा सकते हैं कि सड़क पर नमाज़ पढ़कर क्या जतलाने की कोशिश हो रही है. किसी भी देश का स्वर्णिम काल वो होता है. जब वहां एक मजबूत सरकार होती है. देश तरक्की तब करता है. जब सरकार बड़े-बड़े फैसले लेती है और वहां के नागरिक सौहार्दपूर्ण माहौल में एक दूसरे के साथ रहना सीख लेते हैं. लेकिन हमारे देश के बुद्धिजीवियों, Celebreties और कुछ पत्रकारों के लिए स्वर्णिम काल वो होता है.

जब देश में एक कमज़ोर सरकार होती है और वो सरकार गठबंधन की लाठी के सहारे चलती है. ऐसी सरकारों में इन लोगों की सभी अधूरी इच्छाएं आसानी से पूरी हो जाती हैं . इन्हें बिना कुछ किए...बड़े बड़े पुरस्कार मिलते हैं...पद्म विभुषण, पद्म श्री जैसे सम्मान मिलते हैं . इनकी मर्ज़ी के हिसाब से इन्हें अलग-अलग संस्थाओं में नियुक्ति मिल जाती है और ये सरकारी पैसे पर देश-विदेश में घूमकर.

अपना एजेंडा चलाते हैं. लेकिन जब देश में भारी बहुमत से चुनी गई कोई ऐसी सरकार आती है..जो बड़े फैसले लेने में सक्षम होती है. और जिसे गठबंधन के नाम पर ब्लैकमेल नहीं किया जा सकता. तो इन लोगों को परेशानी होने लगती है. और ये लोग अफवाहों और डर के मिश्रण से सांप्रदायकिता का फार्मूला तैयार कर लेते हैं और इसी फार्मूले के दम पर. पूरे देश को बंधक बनाने की कोशिश करते हैं.

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