ZEE जानकारी: राजनीतिक आलोचना पर अटल से सीख लेंगे आज के नेता?
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ZEE जानकारी: राजनीतिक आलोचना पर अटल से सीख लेंगे आज के नेता?

अटल जी संयम, कर्मयोग, राष्ट्रवाद और ईमानदारी के लिए जाने जाते थे. यही वजह है कि उनके विरोधी हों या समर्थक. सभी उनका सम्मान करते थे. आज अटल जी की जयंती पर दिल्ली के 'सदैव अटल स्मारक' पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह सहित कई मंत्रियों और नेताओं ने उनको याद किया. 

ZEE जानकारी: राजनीतिक आलोचना पर अटल से सीख लेंगे आज के नेता?

आज सारी दुनिया क्रिसमस मना रही है. भारत में क्रिसमस के साथ-साथ पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का जन्मदिन भी मनाया जा रहा है. 95 वर्ष पहले आज ही के दिन मध्य प्रदेश के ग्वालियर में उनका जन्म हुआ था. अटल जी एक कवि थे... जो एक नेता भी थे. शब्द और भाव पर उनकी ऐसी पकड़ थी कि उन्होंने Google, Facebook और WhatsApp का इस्तेमाल किए बगैर अपनी पार्टी को 2 सांसदों से शुरु करके दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बना दी. उनके जन्म दिन पर आज हम उनकी शख्सियत का एक विश्लेषण करेंगे. और इस विश्लेषण के लिए आज अटल जी के ही शब्दों का प्रयोग करेंगे.

अटल जी संयम, कर्मयोग, राष्ट्रवाद और ईमानदारी के लिए जाने जाते थे. यही वजह है कि उनके विरोधी हों या समर्थक. सभी उनका सम्मान करते थे. आज अटल जी की जयंती पर दिल्ली के 'सदैव अटल स्मारक' पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह सहित कई मंत्रियों और नेताओं ने उनको याद किया.

आज प्रधानमंत्री मोदी ने अटल भूजल योजना की शुरुआत भी की. जिसके जरिए भूमिगत जल का प्रबंधन किया जाएगा और हर एक घर तक पीने के स्वच्छ पानी को पहुंचाने की योजना पर काम होगा. देश के लिए अटल जी के योगदान को सम्मान देते हुए रोहतांग दर्रे के नीचे बनी रणनीतिक सुरंग का नाम आज Atal Tunnel रखा गया है.

करीब 9 किलोमीटर लंबी इस सुरंग को बनाने का फैसला वर्ष 2000 में लिया गया था. तब अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री थे. इस सुरंग की वजह से सड़क मार्ग से मनाली और लेह की दूरी 46 किलोमीटर कम हो जाएगी . आज संसद के सेंट्रल हाल में भी अटल जी को याद किया गया. इसके बाद लखनऊ में भारत रत्न अटल जी की 25 फीट ऊंची प्रतिमा का अनावरण किया गया और प्रधानमंत्री मोदी ने लखनऊ में बनने वाली अटल बिहारी वाजपेयी मेडिकल यूनिवर्सिटी का शिलान्यास भी किया.

आज दुनिया भर की सरकारों पर आरोप लग रहे हैं कि कुर्सी पर बैठे नेता आलोचना बर्दाश्त नहीं करते हैं. पिछले कुछ दिनों से हमारे देश में कुछ लोग ये कहकर विरोध कर रहे हैं कि सरकार अब जनता की बात नहीं सुन रही है और ऐसा लगता है जैसे संवादहीनता की स्थिति बन गई है. लोकतंत्र में संवाद का जारी रहना बहुत जरूरी है... चाहे वो सरकार और आम आदमी के बीच का संवाद हो या फिर पक्ष और विपक्ष का. आजकल कई बार ऐसे शब्दों का इस्तेमाल किया जा रहा है जिसमें नैतिकता का अभाव है.

लेकिन लोकतंत्र में विरोध के बावजूद परस्पर सम्मान को चोट पहुंचाने वाली बात नहीं होनी चाहिए. अटल जी गठबन्धन के नेता थे... सबको साथ लेकर चलते थे... वो हर जाति, संप्रदाय और विचारधारा के लोगों में लोकप्रिय थे. और उनकी राजनीति... किसी से वैचारिक विरोध के बाद भी बातचीत का सिलसिला नहीं तोड़ती थी. सरकार की आलोचना और आरोप पर अटल जी की बातों से भारत के जननायक आज भी सीख ले सकते हैं.

राजनीतिक जीवन में संयम अटल जी की एक और बड़ी ताकत थी. वर्तमान में सत्ता के लोभ और लालच ने राजनीतिक पार्टियों की नैतिकता को पाताल में पहुंचा दिया है. करीब 20 वर्ष पहले 17 अप्रैल 1999 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार 13 महीने के कार्यकाल के बाद सिर्फ़ एक वोट की वजह से गिर गई थी.

उस समय AIADMK की अध्यक्ष जयललिता ने अटल जी के नेतृत्व में चल रही NDA सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था . इससे सरकार अल्पमत में आ गई थी . लेकिन अटल जी ने राजनीतिक संयम रखते हुए अपने आदर्शों से कोई समझौता नहीं किया. आज आपको तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का संसद में दिया गया भाषण सुनना चाहिए जिससे कांग्रेस और विपक्षी दलों की बोलती बंद हो गई थी. और इस भाषण ने देश की जनता के मन में अपनी खास जगह बना ली थी.

अटल जी की तरह राष्ट्रवादी बनना आसान नहीं है. क्योंकि इसके लिए इरादा और हौसला भी अटल होना चाहिए. भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का इरादा भी एक ऐसी चट्टान की तरह था...जिसे हिला पाना असंभव था.... इसका सबसे मज़बूत उदाहरण वर्ष 1998 में देखने को मिला था.

जब 11 मई और 13 मई 1998 को, भारत ने 5 सफल Nuclear Tests किए थे. भारत के सफल परमाणु परीक्षण से दुनिया तिलमिला गई थी और हमारे ऊपर कई प्रकार के प्रतिबंध भी लगाए गए थे. लेकिन अटल जी के इस फैसले ने भारत को दुनिया में एक परमाणु शक्ति के तौर पर स्थापित कर दिया था. देश को शक्तिशाली बनाने के लिए उन्होंने ये राष्ट्रवादी फैसला लिया था. हालांकि हैरानी की बात ये है कि इस परमाणु परीक्षण के लिए अपने देश में ही उन्हें विपक्ष के विरोध का सामना करना पड़ा था.

अटल जी. कर्मयोगी थे और ये उनके चरित्र की एक और बड़ी विशेषता थी. कर्मयोगी वो होते हैं जो लगातार अपना काम ईमानदारी से करते हैं. अटल जी चाहे पक्ष में रहे या विपक्ष में... वो लगातार देश के पक्ष में काम करते रहे . वर्ष 1996 में अटल जी ने 13 दिनों की सरकार चलाई थी. लेकिन विश्वास मत हासिल नहीं होने के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया था. और इस्तीफा देने से पहले उन्होंने संसद में एक भाषण दिया था.

इस भाषण में उन्होंने देश के सामने जोविचार रखे थे... उसे सुनकर आज के नेता भी चाहें तो सीख ले सकते हैं. अपने जीवन के शुरुआती दिनों में अटल जी की पहचान एक क्रांतिकारी के रूप में हुई . इसके बाद वो कवि और पत्रकार के रूप में मशहूर हो गये. राजनीति की दुनिया में प्रवेश करने के बाद वो इस क्षेत्र में शीर्ष तक पहुंचे.

लेकिन एक कवि के तौर पर उन्हें ये अहसास हुआ कि जनता तक अपनी बात पहुंचाने का सबसे अच्छा माध्यम कविताएं ही हो सकती हैं . भारत रत्न अटलजी की कविताएं ज़िंदगी के बहुत करीब थी . वो अक्सर कहा करते थे-

छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता
टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता

इन पंक्तियों में उनके जीवन का सार छुपा हुआ है . आज अटलजी हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी लिखी हुई कविताएं हमेशा हमारे बीच गूंजती रहेंगी.

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