History of Laundry: साबुन- सर्फ के बिना आज के समय में कपड़े को धोने की कल्पना भले ही असंभव हो गया हो लेकिन एक समय था जब लोग गंदे कपड़ों को धोने के लिए इसका इस्तेमाल नहीं करते थे. तो कपड़े धोए कैसे जाते थे? इसका ही जवाब आज हम आपको इस लेख में दे रहे हैं.
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आजकल तो वाशिंग मशीन और डिटर्जेंट ने कपड़े धोने का काम बेहद आसान बना दिया है. बस बटन दबाएं और कपड़े चमक उठते हैं. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है पुराने जमाने में जब ना तो साबुन होता था और ना ही सर्फ, तो राजा-रानियों के कपड़े कैसे साफ हुआ करते थे? उनके कपड़े वाशिंग मशीन से धोए गए कपड़ों से भी ज्यादा चमकदार और साफ कैसे हुआ करते थे?
यदि नहीं तो आज हम आपको इसके बारे में बता रहे हैं. लेकिन इससे पहले आपको बता दें कि साबून और डिटर्जेंट का आविष्कार भारत में अंग्रेजों के साथ पहुंचा था. इससे पहले यहां नहाने से लेकर गंदे कपड़ों की साफ सफाई के लिए नेचुरल चीजों का इस्तेमाल किया जाता था. इस लेख में आप ऐसे ही कुछ नेचुरल सर्फ और साबून के बारे में जान सकते हैं-
रीठा
रीठा एक प्राकृतिक साबुन है जो कपड़ों से गंदगी और दाग हटाने में मदद करता है. पुराने जमाने में राजा-रानी के महंगे रेशमी वस्त्रों को चमकाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाला ये सुपर सोप आज भी कपड़ों को कीटाणु मुक्त और साफ करने के लिए सबसे बेहतरीन ऑर्गेनिक प्रोडक्ट है. बता दें रीठा का इस्तेमाल बालों को धोने के लिए भी किया जाता है.
मुल्तानी मिट्टी
मुल्तानी मिट्टी एक प्राकृतिक क्लींजर है जो त्वचा और बालों के लिए भी फायदेमंद है. पुराने जमाने में राजा-रानी के महंगे कपड़ों को साफ करने के लिए भी मुल्तानी मिट्टी का इस्तेमाल किया जाता था. इसके लिए मुल्तानी मिट्टी को पानी में घोलकर कपड़ों पर लगाया जाता था और फिर उन्हें धोया जाता था.
राख का इस्तेमाल
पुराने जमाने में कपड़े धोने के लिए राख का इस्तेमाल एक आम तरीका था. लकड़ी की राख में क्षारीय तत्व होते हैं जो कपड़ों से गंदगी और दाग हटाने में मदद करते हैं. राख को पानी में घोलकर कपड़ों को भिगोया जाता था और फिर उन्हें हाथ से धोया जाता था.
इस चीज का भी होता था इस्तेमाल
खाली पड़ी भूमि, नदी-तालाब के किनारे या खेतों में किनारे पर सफेद रंग का पाउडर जमा होता है जिसे रेह कहा जाता है. वैसे तो यह एक बहुमूल्य खनिज है जिसमें सोडियम सल्फेट, मैग्नीशियम सल्फेट और कैल्शियम सल्फेट होता है। इसमें सोडियम हाइपोक्लोराइट भी पाया जाता है. लेकिन इसकी कोई कीमत नहीं है. पुराने समय में इस पाउडर को पानी में मिलाकर कपड़ों को भिगो दिया जाता था और फिर लकड़ी की थापी या पेड़ों की जड़ों से बने स्क्रब से रगड़कर साफ किया जाता था.
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