Lockdown के चलते डिप्रेशन का शिकार हो रहे लोग, डॉक्टरों ने बताई चौंका देने वाली सच्चाई
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Lockdown के चलते डिप्रेशन का शिकार हो रहे लोग, डॉक्टरों ने बताई चौंका देने वाली सच्चाई

काउंसलर अदिति तेंदुलकर कहती हैं, "अभी तक हमने लॉकडाउन जैसी स्थिति का सामना नहीं किया. इसकी अवधारणा हमारे लिए अनजानी है. हम इसका सामना करने में असमर्थ हैं."

प्रतीकात्मक तस्वीर.

पणजी: कोरोना वायरस (Coronavirus) का बढ़ता प्रकोप लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर डाल रहा है. विशेषज्ञों का दावा है कि लॉकडाउन (Lockdown) की वजह से गोवा (Goa) में तनाव, चिंता और घरेलू हिंसा के मामलों में वृद्धि हुई है.

  1. लोगों में चिंता, हताशा, पैनिक अटैक, अचानक भूख में कमी या भूख बढ़ जाना जैसी समस्याएं आम हो गई हैं
  2. अनिद्रा, डिप्रेशन, मूड स्विंग, भ्रम, भय और आत्महत्या की प्रवृत्ति, लॉकडाउन के दौरान काफी आम हो गए हैं.
  3. इन दिनों घरेलू हिंसा की शिकायतों में भी बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है.

तटीय राज्य के काउंसलरों के अनुसार, इस दौरान घरेलू हिंसा की शिकार बनी पीड़िताओं की SOS कॉलों और चिंता से पीड़ित लोगों की संख्या में भारी इजाफा हुआ है.

काउंसलर अदिति तेंदुलकर कहती हैं, "अभी तक हमने लॉकडाउन जैसी स्थिति का सामना नहीं किया. इसकी अवधारणा हमारे लिए अनजानी है. हम इसका सामना करने में असमर्थ हैं." उन्होंने कहा कि लोगों में चिंता, हताशा, पैनिक अटैक, अचानक भूख में कमी या भूख का बढ़ जाना, अनिद्रा, डिप्रेशन, मूड स्विंग, भ्रम, भय और आत्महत्या की प्रवृत्ति, लॉकडाउन के दौरान काफी आम हो गए हैं.

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साइकियाट्रिक सोसाइटी ऑफ गोवा (PSG) ने लॉकडाउन के दौरान नागरिकों को मुफ्त ऑनलाइन मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन और उपचार प्रदान करने के लिए कोविडैव (Covidav) नामक सेवा शुरू की है.

पीएसजी से जुड़ी सलाहकार मनोचिकित्सक डॉ प्रियंका सहस्रभोजनी के मुताबिक लॉकडाउन ने उन लोगों की परेशानियां और भी बढ़ा दी हैं जो पहले से ही मानसिक परेशानियों से पीड़ित थे. उन्होंने कहा कि शराब और ऐसी अन्य चीजों के न मिलने से नशे से जूझ रहे मरीजों के लिए लॉकडाउन ज्यादा चैलेंजिंग साबित हो रहा है. आसानी से दवा न मिल पाने के कारण मानसिक स्वास्थ्य रोगी दवा नहीं ले पा रहे जिससे उनकी हालत खराब होती जा रही है.

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डॉ सहस्रभोजनी ने यह भी कहा कि इन दिनों घरेलू हिंसा की शिकायतों में भी बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है. दरअसल, लॉकडाउन के कारण ऐसे लोग एक साथ रहने को मजबूर हैं जिनके रिश्ते आपस में अच्छे नहीं हैं. दिनभर ऐसे लोगों की एक साथ मौजूदगी से घरेलू हिंसा के मामले बढ़ रहे हैं. इसके अलावा इस दौरान जो वित्तीय अनिश्चितता बनी हुई है उसने भी लोगों में तनाव बढ़ा दिया है.  

पोद्दार फाउंडेशन के मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ और मैनेजिंग ट्रस्टी प्रकृति पोद्दार ने कहा कि कोविड-19 लॉकडाउन अब आर्थिक लॉकडाउन बन गया है, क्योंकि इसमें वेतनभोगी व्यक्तियों और व्यापारियों दोनों को नुकसान हुआ है. उन्होंने कहा कि पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसॉर्डर (पीटीएसडी) इस संकट का नतीजा हो सकता है, क्योंकि इस लॉकडाउन में बहुत से लोगों की नौकरियां गई हैं. अब ऐसे लोगों को अपनी जीविका चलाने में खासी मशक्कत करनी पड़ेगी.

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