पार्किंसंस रोग से पीड़ित लोगों के लिए एक बहुत अच्छी खबर सामने आई है. अक्सर आपने सुना होगा कि डायबिटीज के मरीजों में पार्किंसंस के भी लक्षण दिखते हैं. इससे संबंधित फ्रांस में एक स्टडी प्रकासित हुई है, जिसमें एक ऐसे दवा के बारे में बताया गया है जो डायबिटीज के साथ पार्किंसन रोग के लिए भी कारगर हो सकता है.
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अक्सर आपने सुना होगा कि डायबिटीज के मरीजों में पार्किंसंस के भी लक्षण दिखते हैं. पार्किंसंस एक प्रकार का मेंटल डिसआर्डर है जिसका खतरा डायबिटीज से जूझ रहे लोगों में बहुत ज्यादा होता है. ऐसे में पार्किंसंस रोग से पीड़ित लोगों के लिए एक बहुत अच्छी खबर सामने आई है. फ्रांसीसी वैज्ञानिकों की एक नई स्टडी में पाया गया है कि डायबिटीज की दवा "लिक्ससीनाटाइड" (Lixisenatide) पार्किंसंस रोग के मरीजों में होने फायदेमंद सकती है. आइए इस लेख में इस स्टडी को आसान भाषा में समझते हैं साथ ही ये भी जानेंगे कि इस दवा का साइड एफेक्ट क्या है?
क्या है ये स्टडी?
ये स्टडी द न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसीन में 3 अप्रैल को पब्लिश हुई. इस स्टडी के अनुसार 156 लोगों को इसमें शामिल किया गया, जिन्हें पार्किंसंस के शुरुआती लक्षण या मध्यम लक्षण थे और वो पहले से ही पार्किंसंस की दवाइयां ले रहे थे. इन 156 लोगों में से आधे को एक साल तक "लिक्ससीनाटाइड" दवा दी गई, जबकि बाकी आधे लोगों को दिखाने के लिए बनाई गई नॉर्मल दवा (प्लेसीबो) दी गई. एक साल बाद देखा गया कि जिन लोगों को असली दवा नहीं दी गई, उनकी हालत बिगड़ी हुई है, जबकि जिन लोगों को "लिक्ससीनाटाइड" दिया गया, उनके लक्षणों में बहुत हद तक सुधार देखी गई.
दवा के साइड-इफेक्ट्स-
हालांकि, रिसर्च करने वालों ने ये भी पाया कि "लिक्ससीनाटाइड" के कुछ साइड-इफेक्ट्स भी हैं. इस दवा को लेने वाले लगभग 46% लोगों को मिचली आई, वहीं करीब 13% लोगों को उल्टी भी हुई.
क्या है पार्किंसंस रोग?
पार्किंसंस रोग दिमाग से जुड़ी एक बीमारी है, जो धीरे-धीरे बढ़ती है. इस बीमारी में शरीर के उन हिस्सों को हिलाने-डुलाने वाले मांसपेशियों को मेसेज भेजने वाली कोशिकाएं (न्यूरॉन्स) कमजोर पड़ जाती हैं. इसकी वजह से शरीर में अकड़न, कंपन और संतुलन बिगड़ने जैसी समस्याएं हो सकती हैं.
क्या आगे भी कारगर होगी ये दवा?
रिसर्च करने वाले इस बात को लेकर सतर्क हैं कि कहीं ऐसा न हो कि शुरुआती फायदे बाद में न मिलें. उनका कहना है कि ये दवा अभी दूसरे चरण के परीक्षण में है और आगे और बड़े पैमाने पर रिसर्च की जरूरत है, जिसकी प्रयास में ऑलरेडी वैज्ञानिक लगे हुए हैं.