लोकसभा चुनाव 2019 (Lok sabha elections 2019) के लोकसभा चुनाव से पहले 1969 की उस घटना का जिक्र कर रहे हैं, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति पद के लिए कांग्रेस के उम्मीदवार के खिलाफ मतदान करने की अपील की थी.
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नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव 2019 (Lok sabha elections 2019) में जीत हासिल कर सत्ता की बागड़ोर अपने कब्जे में लेने की होड़ में सभी राजनैतिक पार्टियां लगी हुई हैं. इस चुनाव में जीत किसके हाथ लगेगी, यह फैसला नतीजे आने के बाद ही हो सकेगा. इस बीच हम आपको 1971 के लोकसभा चुनाव से पहले हुए कुछ ऐसे महत्वपूर्ण घटनाक्रम से अवगत कराते हैं, जिसने भारतीय राजनीति की दिशा और दृष्टि को पूरी तरह से बदल दिया. चुनावनामा में आज हम जिक्र कर रहे हैं इंदिरा गांधी के उस फैसले की, जिससे नाराज होकर कांग्रेस के दिग्गज नेताओं ने पार्टी से बगावत कर दी.
लालबाहदुर शास्त्री की मृत्यु के बाद इंदिरा ने संभाली थी देश की बागड़ोर
काशकंद में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद देश की बागड़ोर कुछ दिनों के लिए गुलजारी लाल नंदा के पास रही. जिसके बाद इंदिरा गांधी को देश का नया प्रधानमंत्री बना दिया गया. 1967 का लोकसभा चुनाव इंदिरा गांधी के नेतृत्व में लड़ा गया. जिसमें कांग्रेस को नुकसान जरूर हुआ, लेकिन इंदिरा गांधी बहुमत के साथ सरकार बनाने में कामयाब रही. देश की बागड़ोर संभालने के बाद इंदिरा ने राजनीति की नई इबारत लिखना शुरू कर दिया था. इंदिरा की इस इबारत के खिलाफ कांग्रेस के कई दिग्गज नेता खुलकर विरोध में आ गए थे.
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राष्ट्रपति पद को लेकर कांग्रेस के दिग्गज नेताओं से इंदिरा का सीधा टकराव
प्रधानमंत्री बनने के बाद इंदिरा गांधी जिस तेजी से बड़े फैसले ले रही थीं, यह बात कांग्रेस के कुछ दिग्गज को पसंद नहीं आ रही थी. कांग्रेस के दिग्गज नेताओं और इंदिरा के बीच का मनमुटाव 1969 के राष्ट्रपति चुनाव के समय खुलकर सामने आ गया. दरसअल, इंदिरा गांधी बाबू जगजीवन राम को राष्ट्रपति पद के लिए कांग्रेस का उम्मीदवार बनाना चाह रहे थे. लेकिन कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं ने इंदिरा की बात को नजरअंदाज कर नीलम संजीव रेड्डी को पार्टी का उम्मीदवार घोषित कर दिया. यह बात इंदिरा गांधी को बिल्कुल रास नहीं आई थी.
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इंदिरा की चाल के सामने ध्वस्त हुए कांग्रेस और विपक्षी दलों के मंसूबे
कांग्रेस पार्टी द्वारा नीलम संजीव रेड्डी को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया जाना इंदिरा गांधी को बिल्कुल पसंद नहीं आया था. इसी बीच, देश के उपराष्ट्रपति वीवी गिरि ने अपने पद से इस्तीफा देकर राष्ट्रपति पद के लिए दावेदारी पेश कर दी. दावेदारी पेश होते ही तमाम विपक्षी दल वीवी गिरि के पक्ष में आकर खड़े हो गए. इंदिरा गांधी इसी मौके का इंतजार कर रही थी. मतदान से ठीक पहले इंदिरा गांधी ने अपने समर्थक सांसदों और विधायकों से वीवी गिरि के पक्ष में मतदान करने को बोल दिया. इंदिरा के इस फैसले से पूरी कांग्रेस में हड़कंप की स्थिति हो गई.
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दिग्गज कांग्रेसियों की बगावत के बाद दो हिस्सों में बंट गई कांग्रेस
इंदिरा के समर्थन के बाद राष्ट्रपति के चुनाव में वीवी गिरि को विजय हासिल हुई और कांग्रेस के उम्मीदवार को हार का सामना करना पड़ा. इंदिरा की रणनीति के सामने पस्त पड़े कांग्रेस के दिग्गज नेताओं ने बगावत कर दी. अब कांग्रेस के दो टुकड़े हो चुके थे. बागवत करने वाले नेताओं ने कांग्रेस संगठन के नाम से नई पार्टी का गठन कर लिया. कांग्रेसी नेताओं के इस फैसले ने इंदिरा को भले की कुछ दिनों के लिए परेशानी में डाला हो, लेकिन इंदिरा इस मुसीबत से भी सफलता पूर्वक बाहर निकल आईं.