संजय कुमार बोले, 'तेजी से जनाधार खिसकना, आप के लिए गठबंधन की मजबूरी', पढ़िये सवाल-जवाब
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संजय कुमार बोले, 'तेजी से जनाधार खिसकना, आप के लिए गठबंधन की मजबूरी', पढ़िये सवाल-जवाब

लोकसभा चुनाव के लिए आम आदमी पार्टी (आप) और कांग्रेस के बीच दिल्ली में गठबंधन के लिए दो महीने से जारी कवायद अब तक अधूरी ही है.

आप और कांग्रेस गठबंधन पर विश्‍लेषण. फाइल फोटो

नई दिल्ली : लोकसभा चुनाव के लिए आम आदमी पार्टी (आप) और कांग्रेस के बीच दिल्ली में गठबंधन के लिए दो महीने से जारी कवायद अब तक अधूरी ही है. गठबंधन के पीछे आप की मजबूरी और कांग्रेस एवं भाजपा के नफा नुकसान पर, पेश हैं चुनावी विश्लेषण से जुड़ी शोध संस्था ‘सीएसडीएस’ के निदेशक संजय कुमार से समाचार एजेंसी भाषा के पांच सवाल और उनके जवाब :

सवाल : आम आदमी पार्टी (आप) और कांग्रेस के गठबंधन पर चल रही रस्साकशी को आप किस रूप में देखते हैं? 
जवाब : इतने लंबे समय से गठबंधन को लेकर चल रही खींचतान, चुनावी राजनीति के परिणाम के मद्देनजर, आप और कांग्रेस, दोनों के लिये बहुत खराब है. अगर उन्हें गठबंधन नहीं करना है तो शुरु में ही निर्णय कर लेना चाहिए था. इतनी खींचतान के बाद अगर गठबंधन हुआ भी तो इसका उतना फायदा आप और कांग्रेस नहीं उठा पाएगी जितना फायदा पहले गठबंधन करने से हो पाता. ऐसा करने से दोनों दलों को जनता के बीच इसे सही ठहराने के लिए पर्याप्त समय मिल पाता.

 

सवाल : आप और कांग्रेस के लिये गठबंधन कितना महत्वपूर्ण है? इसके लिये आप इतनी उत्सुक क्यों है? 
जवाब : मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों में दोनों के लिये गठबंधन बहुत जरूरी है. भाजपा का लगभग 44 प्रतिशत वोटबैंक बरकरार है और त्रिकोणीय मुकाबले में उसे सीधा फायदा मिलना तय है. भाजपा को हराने के लिये आप और कांग्रेस को अपना वोटबैंक एकजुट करने की मजबूरी जगज़ाहिर है. गठबंधन पर आप की उत्सुकता की वजह भी साफ है. आप का दिल्ली में जनाधार पिछले सालों में बहुत तेजी से खिसका है. दिल्ली विधानसभा चुनाव में फिर भी कुछ लोग आप को वोट देंगे, लेकिन लोकसभा चुनाव में स्थिति बिल्कुल भिन्न है. 2013 और 2015 के विधानसभा चुनाव में आप को जबरदस्त बहुमत मिला, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में आप शून्य पर आ गई. इसलिये ‘आप’ को पता है कि इतनी लोकप्रियता के बावजूद अगर 2014 में खाता नहीं खुला तो 2019 में अपने बलबूते खाता खोल पाना नामुमकिन होगा. 

सवाल : गठबंधन की कवायद के पीछे क्या वाकई नरेंद्र मोदी को रोकना मूल मकसद है? 
जवाब : यह इस बात पर निर्भर करता है कि मोदी को रोकने की परिभाषा क्या है. दरअसल, दिल्ली में भाजपा को रोकने के लिये गठबंधन की कोशिश हो रही है. गठबंधन के सिद्धांत के मुताबिक जब किसी एक दल के खिलाफ अन्य दल एकजुट होते हैं तो उनका प्रतिबद्ध मतदाता वर्ग भी एकजुट होता है. ऐसे में गठबंधन के विरोध में खड़ी पार्टी को नुकसान उठाना पड़ता है. स्पष्ट है कि अगर यह गठबंधन होता है तो भाजपा को नुकसान उठाना पड़ सकता है. हालांकि गठबंधन में हो रहा विलंब और इस पर मंडराते खतरे से इसके संभावित लाभ हानि के समीकरण भी वैसे नहीं होंगे जो समय पर गठबंधन करने से होते.

सवाल : अगर यह गठबंधन होता है तो इसका क्या भविष्य होगा? 
जवाब : इस गठबंधन की कोशिश बहुत सीमित समय के लाभ को ध्यान में रखकर की जा रही है. इसलिये अगर यह गठबंधन होता है, जिसकी उम्मीद अब कम ही है, तो इसका भविष्य बहुत लंबा नहीं देखा जाना चाहिये. क्योंकि, अगले साल ही दिल्ली में विधानसभा चुनाव होंगे और उसमें मुझे नहीं लगता कि दोनों दल एक साथ चुनाव लड़ेंगे. मेरे विचार से, अगर गठबंधन होता है तो लोकसभा चुनाव के दिल्ली में आने वाले परिणाम से इसका भविष्य तय होगा.

सवाल : इस गठबंधन की कोशिशों ने भाजपा की रणनीति को कितना प्रभावित किया है, साथ ही, गठबंधन होने पर इसके चुनावी परिणाम के बारे में आपका क्या आंकलन है? 
जवाब : यह तो मैं नहीं कह सकता कि भाजपा अपने उम्मीदवारों का खुलासा क्यों नहीं कर रही है. लेकिन यह जरूर है कि भाजपा स्थिति पर पूरी नजर रखे हुये है, क्योंकि गठबंधन होने या नहीं होने से उसका हित सीधे तौर पर जुड़ा है. इससे उसकी रणनीति प्रभावित होना लाजिमी भी है

गठबंधन के परिणाम के बारे में मेरा मानना है कि ऐसा होने से आप कांग्रेस दोनों को लाभ होगा. गठबंधन नहीं होने पर त्रिकोणीय मुकाबले में सभी सीटें भाजपा जीत सकती है और अगर गठबंधन होता है तो यह नतीजा पूरी तरह से उलट भी सकता है.

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