गुड़गांव लोकसभा सीट: बीजेपी ने 2014 में पहली बार की यहां से जीत दर्ज, होगा दिलचस्प मुकाबला
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गुड़गांव लोकसभा सीट: बीजेपी ने 2014 में पहली बार की यहां से जीत दर्ज, होगा दिलचस्प मुकाबला

 27 सितंबर 2016 को हरियाणा के मंत्रिमंडल और केंद्र सरकार के अनुमोदन के बाद इस शहर का नाम बदलकर गुड़गांव से गुरुग्राम कर दिया गया. 

बीजेपी ने एक बार फिर यहां से राव इंद्रजीत सिंह पर भरोसा किया है. (फाइल फोटो)

गुड़गांव: ग्रीन लैंड के नाम से मशहूर हरियाणा भले अब पंजाब का हिस्सा नहीं है ब्रिटिश भारत में पंजाब प्रान्त का एक भाग रहा है और इसके इतिहास में इसकी एक महत्वपूर्ण भूमिका है. राज्य के दक्षिण में राजस्थान और पश्चिम में हिमाचल प्रदेश और उत्तर में पंजाब की सीमा और पूर्व में दिल्ली क्षेत्र है. हरियाणा और पड़ोसी राज्य पंजाब की भी राजधानी चंडीगढ़ ही है. इस राज्य की स्थापना 1 नवम्बर 1966 को हुई. क्षेत्रफल के हिसाब से इसे भारत का 20 वां सबसे बड़ा राज्य बनाता है.

गुरुग्राम आईटी सेक्टर का हब भी माना जाता है. इस शहर ने तेजी औद्योगिक विकास किया है. 27 सितंबर 2016 को हरियाणा के मंत्रिमंडल और केंद्र सरकार के अनुमोदन के बाद इस शहर का नाम बदलकर गुड़गांव से गुरुग्राम कर दिया गया. इसके पीछे खट्टर सरकार ने तर्क दिया कि नये नाम से शहर के समृद्ध विरासत को संरक्षित करने में मदद करेगा

 

राजनीतिक लिहाज से भी गुरुग्राम का खास महत्व है. 2014 लोकसभा चुनाव में यहां से बीजेपी ने जीत हासिल की थी. बीजेपी के इंद्रजीत सिंह ने आईएनएलडी के जाकिर हुसैन को दो लाख से अधिक मतों से हाराया था. 2009 में इंद्रजीत सिंह ने यहां से कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की थी. 

बीजेपी ने एक बार फिर यहां से राव इंद्रजीत सिंह पर भरोसा किया है तो वहीं, कांग्रेस ने अजय सिंह यादव को यहां से उम्मीदवार बनाया है. जेजेपी और आप गठबंधन ने महमूद खान को मैदान में उतारा है तो वहीं, आईएनएलडी ने विरेंद्र राणा को टिकट दिया है.  

अभी तक हुए चुनावों में गुरुग्राम से सबसे अधिक बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की है. 2014 में पहली बार बीजेपी ने यहां से जीत दर्ज की तो वहीं, बीजेपी इस बार भी अपनी जीत को दोहराने की कोशिश करेगी और कांग्रेस अपने पुराने किले को फिर से पाना चाहेगी. इसलिए कहना गलत नहीं होगा कि बीजेपी

गुरुग्राम के रण में बहरहाल जीत किसकी होती है यह देखना दिलचस्प होगा क्योंकि सभी पार्टियों ने चुनाव के लिए अपनी ताकत पूरी तरह से झोंक दी है. लोकतंत्र के इस महापर्व में जनता का फैसला सर्वोपरि होता है और 23 मई को जनता का फैसला लोगों के सामने होगा. 

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