कर्पूरी ठाकुर जब बिहार के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने इस सीट से इस्तीफा दे दिया और मधुबनी के फुलपरास विधानसभा सीट से उपचुनाव लड़े.
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समस्तीपुर : बिहार के समस्तीपुर संसदीय सीट अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित है. इस संसदीय क्षेत्र में विधानसभा कुल की छह सीटें आती हैं. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जननायक कर्पूरी ठाकुर 1977 में जनता पार्टी की टिकट पर इस सीट से लोकसभा चुनाव जीते थे. इससे पहले लगातार यहां से कांग्रेस के उम्मीदवार चुनाव जीतते आ रहे थे. 2014 में यह सीट भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के खाते में गई थी. यहां से रामविलास पासवान ने अपने भाई रामचंद्र पासवान को चुनावी मैदान में उतारा था. वह लगभग सात हजार मतों से चुनाव जीतने में सफल रहे थे.
कर्पूरी ठाकुर जब बिहार के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने इस सीट से इस्तीफा दे दिया और मधुबनी के फुलपरास विधानसभा सीट से उपचुनाव लड़े. उनके इस्तीफे के बाद खाली हुई इस सीट पर 1978 में जनता पार्टी के अजीत कुमार मेहता चुनाव लड़े और उन्होंने जीत दर्ज की. उन्होंने 1980 में भी जनता पार्टी (एस) की टिकट पर चुनाव जीतने में सफल रहे. 13 साल के लंबे अंतराल के बाद 1984 में कांग्रेस को इस सीट पर फिर से जीत मिली. रामदेव राय यहां से सांसद चुने गए.
इसके बाद 1989 से 1998 तक समस्तीपुर लोकसभा सीट पर राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) का कब्जा रहा. 1999 में आरजेडी छोड़ जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) में आए मंजय लाल चुनाव जीतने में सफल रहे. 2004 में एकबार फिर आरजेडी ने इस सीट को अपने पाले में किया. आलोक कुमार मेहता चुनाव जीतने में सफल रहे. 2009 के लोकसभा चुनाव में पूरे बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए की एक लहर चल रही थी. समस्तीपुर सीट पर भी जेडीयू को सफलता मिली और महेश्वर हजारी चुनाव जीतकर दिल्ली पहुंचे.
2014 के लोकसभा चुनाव में यह सीट लोजपा के पाले में चली गई. रामचंद्र पासवान चुनाव मैदान में उतरे. लगभग 15 लाख मतदाताओं वाले इस लोकसभा क्षेत्र में 2014 के चुनाव में 57.38 प्रतिशत वोटिंग दर्ज की गई थी. इस चुनाव में जेडीयू ने महेश्वर हजारी को फिर से चुनावी मैदान में उतारा. लगभग दो लाख मतों के साथ वह तीसरे स्थान पर रहे. वहीं रामचंद्र पासवान ने 270401 वोटों के साथ कांग्रेस उम्मीदवार डॉ अशोक कुमार को मात दी, जिन्हें कुल 263529 वोट मिले थे. वहीं, बसपा ने भी इस सीट पर अपना उम्मीदवार उतारा था, जिन्हें महज 12813 मतों से संतोष करना पड़ा.