कांग्रेस के लिए राजस्थान में मिशन 25 की राह नहीं है आसान
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कांग्रेस के लिए राजस्थान में मिशन 25 की राह नहीं है आसान

राजस्थान के 100 सीटों पर काबिज कांग्रेस के लिए लोकसभा में ज्यादा सीटें जीतने के लिए लगातार प्रयास कर रही है.

1984 के बाद कांग्रेस लोकसभा की सारी सीटें नहीं जीत पाई है. (फोटो साभार: DNA)

जयपुर: राजस्थान में कांग्रेस ने लोकसभा की 25 सीटों पर फतह हासिल करने के मकसद से मिशन 25 का आगाज कर दिया है. लेकिन कांग्रेस के लिए सत्ता में होने के बावजूद यह राह इतनी आसान नहीं लगती है. राजस्थान में कांग्रेस के पास फिलहाल एक भी लोकसभा सीट नहीं है. यानी उसे 0 से 25 सीट तक की बड़ी छलांग लगानी है.

राजस्थान में लोकसभा में कांग्रेस की बुरी स्थिति के पीछे जो सबसे बड़ा कारण उसका घटता वोट शेयर है. इसके अलावा 1984 में लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस राजस्थान में 25 सीटें कभी नहीं जीत पाई है. 

वैसे, विधानसभा चुनाव में राज्य में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद कांग्रेस लोकसभा के मिशन 25 को कामयाब बनाने की दिशा में जुट गई है. लगातार प्रदेश से लेकर ब्लॉक स्तर पर बैठकों का दौर चल रहा है. प्रत्याशियों के चयन के लिए सभी वरिष्ठ नेताओं और कार्यकर्ताओं से फीडबैक लिया जा रहा है. लेकिन इन तमाम कवायद के बावजूद पिछले चुनावों का रिकॉर्ड बताता है कि राजस्थान में कांग्रेस के लिए 25 सीटें जीत पाना आसान नहीं है. 

हालांकि प्रदेश में एक ट्रेंड रहा है कि जिस दल की सरकार होती है लोकसभा चुनाव में उसे लाभ मिलता है. लेकिन इस बार विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस आशा अनुरूप परिणाम नहीं दे पाई है. रामगढ़ उपचुनाव की जीत को कर शामिल करें तो कांग्रेस के पास सीटों का आंकड़ा महज 100 ही है.

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1984 के बाद राज्य में नहीं जीत पाई है 25 सीट

राजस्थान में पिछले 9 चुनाव के अगर रिकॉर्ड को खंगाले तो जो तस्वीर नजर आती है वह कांग्रेस के लिए अधिक आशा भरी नहीं है. ये सच है कि 1984 के लोकसभा के बाद कांग्रेस राजस्थान में 25 सीट नहीं जीत पाई है. 1989 चुनाव में बीजेपी को 13 और कांग्रेस को महज 11 सीटें मिली थीं. 1991 में हुए चुनाव में कांग्रेस को 13 और बीजेपी को 12 सीटें हासिल हुई. वहीं, 1996 के चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी की सीटों का स्कोर 12- 12 के साथ बराबर रहा था. 

जबकि 1998 के लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस ने 19 सीट जीतकर वापसी की, तो बीजेपी को केवल 5 सीटें ही मिल पाई. 2004 में लोकसभा के लिए बीजेपी को 21 सीट मिली, तो कांग्रेस को केवल 4 सीटों से ही संतोष करना पड़ा. 2009 में लोकसभा में कांग्रेस ने एक बार फिर से वापसी करते हुए 21 जीतीं और बीजेपी को 4 सीटें मिल पाई. इसके बाद 2014 में हुए पिछले चुनाव में मोदी लहर में बीजेपी ने 25 सीट जीत का सूपड़ा साफ कर दिया.

घटता वोट प्रतिशत है जिम्मेवार

राजस्थान में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की बुरी स्थिति के पीछे जो सबसे बड़ा कारण है वह लगातार कम होता वोट प्रतिशत है. 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का वोट शेयर पिछले चुनाव के मुकाबले करीब 17 फीसदी घटकर 30.40 प्रतिशत रह गया था इससे उसे 20 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था. इस चुनाव में बीजेपी को करीब 51 फीसदी वोट मिला था और उसने 25 सीटें जीती थी. 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को राजस्थान में 47.19 फीसदी वोट शेयर मिला था और उसे 20 सीटें जीती थी जबकि भारतीय जनता पार्टी और 36.57 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 4 सीटें हासिल हुई थी. 2009 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 49.01 वोट शेयर के साथ 21 सीटें मिली थी. जबकि कांग्रेस को 41.42 वोट शेयर के साथ 4 सीटें हासिल हुई थी. 

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कांग्रेस नेताओं ने बनाई है पुख्ता रणनीति

ऐसा नहीं है कि राजस्थान लोकसभा सीटों में कम होते वोट प्रतिशत को लेकर कांग्रेस के नेता चिंतित नहीं है. कांग्रेस इस बार इस वोट प्रतिशत को बढ़ाने के लिए खास रणनीति पर काम कर रही है. जिसके लिए 12 फरवरी से लेकर आगामी 1 महीने तक प्रदेश में कांग्रेसी खास तरह के प्रशिक्षण कैंप लगाने जा रही है. 200 विधानसभा सीटों पर होने वाले इन ट्रेनिंग कैंप में बूथ मैनेजमेंट और वोट प्रतिशत को बढ़ाने पर जोर दिया जाएगा.

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राजस्थान कांग्रेस के मिशन राहुल के लिए है महत्वपूर्ण

 कांग्रेस के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए उत्तर भारत की लोकसभा सीटों का अहम रोल रहने वाला है. ऐसे में राजस्थान की 25 सीटें महत्वपूर्ण हो सकती हैं. निश्चित तौर पर कांग्रेस को अपने मिशन 25 को कामयाब बनाने के लिए ना केवल हाईटेक और आक्रामक चुनाव प्रचार करना होगा. बल्कि जमीनी स्तर पर झटक चुके अपने कार्यकर्ता और वोटर को पार्टी से वापस जोड़ने के लिए भी ठोस और सघन अभियान चलाना होगा. ऐसे में देखना होगा कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सरकार और सचिन पायलट के संगठन के तालमेल से यह मिशन 25 किस हद तक कामयाब हो पाता है.

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