Trending Photos
भोपाल : भोपाल गैस त्रासदी के बाद अपने पतियों को खो देने वाली सैकडों महिलाओं के रहने के लिये यहां बनायी गयी ‘विधवा कॉलोनी’ या ‘जीवन ज्योति कालोनी’ अब धीरे धीरे अराजक तत्वों का निशाना बन रही है । इस सिलसिले में महिलाओं द्वारा कई बार शिकायत करने के बावजूद प्रशासन और पुलिस की ओर से कोई खास मदद नहीं मिल रही है। गैस हादसे से अपने पति को गंवाने वाली आबिदा बेगम ने बताया कि इस दुर्घटना की विधवाओं के लिए मध्यप्रदेश गृह निर्माण मंडल द्वारा मुख्य शहर से सात.आठ किलोमीटर दूर करोंदकला गांव में तैयार की गई कालोनी में 2486 मकान बने और 2290 आवंटित किए गए और 196 अब भी खाली हैं।
आबिदा ने कहा कि पूरी कालोनी एक लंबे समय से दुर्दशा और अव्यवस्था का शिकार है, गंदगी का यहां ऐसा साम्राज्य है, जिसमें आज सभ्य समाज का कोई परिवार रहने की कल्पना भी नहीं कर सकता है। सभी मकान जर्जर अवस्था में है और उनके रखरखाव की कोई व्यवस्था नहीं है। भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के संयोजक अब्दुल जब्बार ने कहा कि यहां गैस राहत विभाग ने रोजगार के लिए शेड आदि बनाये थे, जिनमें लंबे अरसे से ताला लगा है। किसी के यहां एक बार चूल्हा जलता है, तो कोई आसामाजिक तत्वों एवं दबंगों से परेशान है। अनेक महिलाएं, जिनके परिवार में सभी सदस्यों की मृत्यु हो चुकी है, यहां रहने से घबराती है।
गैस त्रासदी में अपने पतियों को गंवा देने वाली सैकडों महिलाओं में शुमार जुनिया बाई, नूरजहां और लक्ष्मी ठाकुर अब बूढ़ी हो चलीं हैं । ऐसी महिलाओं ने कुछ दिन पहले जब सवाल उठाया तो सरकार ने विधवा कालोनी का नाम े जीवन ज्योति कालोनी े जरुर कर दिया। लेकिन इसकी उपेक्षा बदस्तूर जारी है। एक विधवा की युवा पुत्री ने नाम प्रकाशित नहीं करने की शर्त पर बताया कि छोटी सी चहारदीवारी में अकेली और पुरुष सदस्यों के न होने से शहर के मवालियों एवं मनचलों के लिए यह बस्ती एक ‘साफ्ट टारगेट’ बन गई है। शाम ढलते ही यहां आवारा लोगों की बेधड़क आवाजाही हो जाती है। पुलिस सब जानती है, पर करती कुछ नहीं है। इसलिए बसाहट के कुछ समय बाद से ही यह एक बदनाम इलाका बनकर रह गया है। अपनी इज्जत की खातिर ही हमने अब इस कालोनी से बाहर किराए का घर लिया है और अब वहीं रहेंगे।
कालोनी की निवासी जुनिया बाई बताती हैं, मकान उस समय 78165 रूपये में विधवाओं को मुहैया कराए गये थे, लेकिन हाल ही में जब कुछ विधवाओं के गुजरने के बाद उनके बेटे-बेटियों ने इन्हें बेचना चाहा तो कौडियों के मोल बेचकर जाना पड़ा क्यों कि ये पट्टे पर है और उनके पास इनका मालिकाना हक तक नहीं है। रईसा बी (65) ने कहा कि नगर निगम उनसे पेयजल का 150 रूपये वसूलता है। रोजगार तो कोई मिला नहीं है, उपर से पानी के लिए 150 रु. कहां से लाएं। नगर निगम को इस कालोनी में नि:शुल्क पेयजल देना चाहिए और उसकी शुद्धता की भी गारंटी लेना चाहिए।
विधवा कालोनी की निवासी नूरहजहां अब बूढ़ी हो चली हैं। वह बताती हैं कि यह उनके जैसी दो हजार औरतों की बस्ती है। इन बूढ़ी औरतों के बच्चे अब जवान हो गए हैं। जब वे यहां आई थीं तो जवान थीं। यहां पर रहने में डर लगता है। उन्होंने कहा कि जीवन ज्योति कालोनी सम्मानजनक नाम है, लेकिन इस नाम को कोई संबोधित नहीं करता। जो नाम पड़ गया, वह पड़ गया। आते जाते आज भी लोग पूछते हैं कि क्या विधवा कालोनी जा रही हो। गैस के कहर से बचने के बाद ये जिल्लत भोगना अभी हमारी जिंदगी का हिस्सा बन गया। आवासहीन गैस पीड़ित शहनाज अपनी आपबीती सुनाते हुए कहती है, मैने तो 12 साल बाद ये मकान किसी से खरीदा है। मुझे मुआवजे के 80 हजार रुपए मिले थे। हर माह 700 रु. मिलते थे, उन्हीं से घर चलाया। गैस रिसने पर जब सब भागे तो हम भी भागे थे। घर में गाय-भैंस थी, लेकिन जब लौटे तो जानवर मरे पड़े थे।
विधवा कालोनी की अवधारणा को लेकर समाजशास्त्री डा. वी डी मेहता कहते हैं कि यह उस भयानक सामाजिक सच्चाई को उजागर करने का प्रयास है, जिसमें पुरुष प्रधान समाज में वैधव्य एक अभिशाप की तरह है। लेकिन यहां बदतर जीवन बिताने वाली महिलाओं के सवाल पर मानवाधिकारों की पैरोकार लेखिका डा. स्वाति तिवारी कहती हैं कि आजाद भारत के इतिहास में एक अकेला शहर भोपाल है, जहां किसी सरकार द्वारा पहली बार कोई ‘विधवा कालोनी’ बनाई, बसाई तो गयी लेकिन उसकी लगातार उपेक्षा भी की गयी है। (एजेंसी)