गुजरातः अनहोनी के डर से होली नहीं खेलते इस गांव के लोग, 200 साल पहले मिला था यह श्राप
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गुजरातः अनहोनी के डर से होली नहीं खेलते इस गांव के लोग, 200 साल पहले मिला था यह श्राप

 इस गांव का नाम रामसन गांव है, जिसका पौराणिक नाम "रामेश्वर" है. बताया जाता है कि राम ने भी यहां आकर रामेश्वर भगवान की पूजा की थी.

202 सालों से ग्रामीणों ने नहीं मनाई होली

अल्केश राव/बनासकांठाः देश भर में रंगों के त्यौहार होली को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. असत्य पर सत्य की जीत का यह त्यौहार होली देश के हर राज्य, प्रांत, कसबे में मनाया जाता है, लेकिन गुजरात के बनासकांठा जिले में एक गांव ऐसा भी है, जहां पिछले 200 सालों से किसी ने होली नहीं मनाई. यहां के लोग ऐसा करने के पीछे एक श्राप को बताते हैं. यहां होली का नाम सुनते ही लोगों के चेहरे पर मातम सा छा जाता है. बता दें इस गांव का नाम रामसन गांव है, जिसका पौराणिक नाम "रामेश्वर" है. बताया जाता है कि राम ने भी यहां आकर रामेश्वर भगवान की पूजा की थी.

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रामेश्वर के नाम पर बना और बसा यह गांव तकरीबन 10 हजार की आबादी वाला गांव है और इसी ऐतिहासिक गांव में 207 साल पहले दूसरे गावों की तरह इस गांव में भी होलिका दहन किया जा रहा था, लेकिन अचानक ही गांव में आग लग गई और गांव के कई घर इस आग की चपेट में आकर जल गए. आखिर अचानक आग क्यों लगी इसके पीछे मान्यता यह है कि उस समय के गांव के राजा ने साधू-संतो को अपमानित किया था और क्रोधित साधुओं ने श्राप दिया था की होली के दिन गांव में आग लग जाएगी. जिसके बाद होली पर्व पर गाव में आग लग गई थी.

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उसके बाद कुछ साल बाद फिर से गांव के लोगों ने होलीका का दहन  करने का प्रयास किया तो फिर से गांव में आग लग गई. कुछ मकान भी जले ऐसा तीन बार लगातार हुआ. वो भी होली के ही दिन बस उस के बाद यहां "होलीका को नही जलाया जाता और लोग होली नहीं मनाते. हमारे गांव के बरसों से होली का त्योहार नही मनाया जाता. बरसों पहले कोई साधु के श्राप के कारण होली के दिन गांव में आग लग गई और मकान जल गए. ऐसा तीन बार हुआ तबसे लोग डरे हुए हैं और होली नही मनाते.

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स्थानीय गीता बेन कहती हैं कि गांव में होली के दिन आग लग जाती है इसलिए हम होली नहीं मनाते. हमें दुख है कि हम होली नहीं मना पाते. रामसन गांव के लोग बताते हें कि जब होली आती है तब गांव के बुजुर्ग लोगों से सुनी तबाही की बात याद आ जाती हैं और कोई होली के बारे में सोचता भी नही है. गांव में 200 साल पहले होली जलाई गई थी और भयानक आग लग गई थी. तब से यहां होली जलाना मना है. गांव के अंदर ऐसे भी लोग हैं जिनको मालूम नहीं कि होली का त्यौहार क्या होता है.

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कई लोग बताते हैं कि वो जब दूसरे गांव में जाकर होली देखते हैं तो उनको बहुत दुःख होता है कि वो अपने गांव में होली का त्यौहार नहीं मना पाते. ग्रामीण शिवराज सिंह बाघेला का कहना है कि हमारे गांव में होली नहीं मनाई जाती उसका हमें बहुत दुख है. हमें होली देखने के लिए दूसरे गांव में जाना पड़ता है. होली का नाम सुनते ही गांव के लोग डर जाते हैं.

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एक ग्रामीण पारस त्रिवेदी का कहना है कि हमारे गांव में होलिका का दहन नहीं होता. यहां ऋषिमुनि का श्राप है. हम हमारे गांव में होली नहीं देख पाए और हमारी आने वाली पीढ़ियां भी होली नहीं देख पाएंगी उसका हमे बहुत दुख है. रामसन गांव के लोग आज भी डरे हुए और भयभीत हैं जिसके कारण कोई भी गांव में होली का त्योहार मनाना नहीं चाहता. लोग आज भी शापित इस भूमि से डरे-सहमे हैं और भयभीत भी हैं कि अगर होली जलाई गई तो फिर से गांव आगकी लपटों में घिर जाएगा.

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