CAB: असम में नहीं थम रहा विरोध-प्रदर्शन, मुख्यमंत्री को दिखाए गए काले झंडे
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CAB: असम में नहीं थम रहा विरोध-प्रदर्शन, मुख्यमंत्री को दिखाए गए काले झंडे

केंद्र सरकार ने इसी 8 जनवरी को लोकसभा से नागरिकता संशोधन विधेयक (CAB) पारित किया है और यह बिल अभी राज्य सभा से पास होना शेष है.

मोरीगांव पुलिस प्रशासन को इन संगठनों के कार्यकर्ताओं को रोकने के लिए काफी मशक़्क़त करनी पड़ी.

अंजनील कश्यप, गुवाहाटी: असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल के काफिले को कई संगठनों ने नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएबी) का विरोध करते हुए काले झंडे दिखाए. प्रदर्शनकारियों ने बिल के विरोध में नारेबाजी कर बिल को तुरंत हटा लेने की मांग की. सोनोवाल मोरीगांव जिला के जागीरोड में जनजातियों के जूनबेली मेला के एक समारोह में शामिल होने जा रहे थे.  

मोरीगांव पुलिस प्रशासन को इन संगठनों के कार्यकर्ताओं को रोकने के लिए काफी मशक़्क़त करनी पड़ी. पुलिस ने कृषक मुक्ति संग्राम समिति, असम जातीयतावादी युवा छात्र परिषद् और ऑल असम माइनॉरिटीज स्टूडेंट्स यूनियन सात कार्यकर्ताओं को सिटीजनशिप अमेंडमेंट बिल का विरोध करने और मुख्यमंत्री का काफिला रोकने की कोशिश करते हुए गिरफ्तार कर लिया. उन्हें बस में भरकर मुख्यमंत्री के कार्यक्रम स्थल से दूर ले जाया गया.

पुलिस के बस में सवार गिरफ्तार किए कृषक मुक्ति संग्राम समिति के 5 सदस्य- बदन शर्मा, रमेन सैकिया, जीतू डेका, मनोरंजन बोरा, जहीरुल इस्लाम और असम जातीयतावादी युवा छत्र परिषद् के ललित पासौनि और मिर्ज़ा आरिफ आलम ने चलती बस से भी बिल का विरोध किया. बस की खिड़की से मौके पर हाज़िर मीडिया कर्मियों को बिल के विरोध को जायज़ ठहराते हुए कहा कि गणतांत्रिक रूप से अहिंसापूर्ण तरीके से विरोध करने के बावजूद भी असम की सोनोवाल सरकार की पुलिस ने हमे रोका और गिरफ्तार किया. इस बिल को जब तक रद्द नहीं किया जाता, तब तक विरोध आंदोलन जारी रखेंगे.    

बता दें कि केंद्र सरकार ने इसी 8 जनवरी को लोकसभा से नागरिकता संशोधन विधेयक को पारित किया है और यह बिल अभी राज्य सभा से पास होना शेष है. बिल को लेकर असम और उत्तर पूर्वी राज्यों में काफी विरोध हो रहा है. असम में इस बिल का विरोध सबसे अधिक मुखर रूप से देखा जा रहा हैं, क्योंकि माना जा रहा है कि असम में कई वर्षों से रह रहे तक़रीबन 9 लाख हिन्दू बांग्लादेशी शरणार्थियों को नागरिकता देने से असम की सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनितिक, भौगौलिक और आर्थिक समीकरण बदल सकते हैं और काश्मीर के विस्थापित हिन्दू पंडितों की तरह असमिया समाज के लोगों के लिए भयावह हालात पैदा हो सकते हैं. 

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