Sawan Kanwar 2024: सावन में कावड़ के पीछे का रहस्य पता है? गंगाजल ही क्यों भरा जाता है, जानिए कैसे चढ़ाना चाहिए जल
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Sawan Kanwar 2024: सावन में कावड़ के पीछे का रहस्य पता है? गंगाजल ही क्यों भरा जाता है, जानिए कैसे चढ़ाना चाहिए जल

Kanwad Rules: 22 जुलाई से सावन माह की शुरुआत हो चुकी है. इस माह में शिव भक्तों की कांवड़ी यात्रा भी शुरू हो जाती है. शास्त्रों में कांवड़ यात्रा का विशेष महत्व बताया गया है. कांवड़ यात्रा क्यों की जाती है, इसका क्या अर्थ होता है और इसमें गंगाजल भर कर क्यों लाते हैं. जानें

 

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Sawan Kanwar Meaning: सावन का महीना शिव भक्तों के लिए बेहद खास होता है. इस माह में भगवान शिव की उपासना करने से भक्तों को शुभ फलों की प्राप्ति होती है और भोलेनाथ हर मनोकामना पूर्ण करते हैं. इस माह में कांवड़ यात्रा भी निकाली जाती है. माना जाता है कि इस माह में भगवान शिव की कृपा पाने और मनोकामना पूर्ति के लिए लोग कांवड़ लेकर शिव धाम जाते हैं. बता दें कि भगवान शिव और मां पार्वती को कंधे पर लेकर चलने का भाव ही कांवड़ यात्र कहलाता है.  

कांवड़ यात्रा 28 दिनों की होती है. सावन के पहले दिन से लेकर सावन के अंतिम दिन तक यह यात्रा चलती है. कांवड़ का अर्थ होता है “कंधों पर रखा हुआ”. लकड़ी की एक डंडी जिसके दोनों सिरों पर एक-एक पात्र रहता है, जिसे लोग कंधे पर रखकर पहले गंगा नदी पहुंचते है और वहां से जल लेने के बाद किसी भी शिवधाम पर पहुंचकर शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं. 

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श्रवण कुमार ने की थी इसकी शुरुआत 

कांवड़ यात्रा को लेकर कई तरह की मान्यताएं प्रचलित है. जिसमें से एक मान्यता यह भी है कि श्रवण कुमार ने इस यात्रा की शुरुआत की थी. माता-पिता की इच्छा अनुसार उन्हें कांवड़ में बैठाकर हरिद्वार लाए और गंगा स्नान कराया था.

पुराण के अनुसार कांवड़ यात्रा की शुरुआत समुद्र मंथन से जुड़ी है. ऐसा माना जाता है कि समुद्र मंथन से निकले विष को पी लेने के कारण भगवान शिव का कंठ नीला हो गया था. विष के ताप को कम करने के लिए शिव के अनन्य भक्त रावण ने गंगाजल से भरे कांवड़ से उनका जलाभिषेक किया. जिसके बाद से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई.

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कांवड़ से जुड़े नियम

- कांवड़ यात्रा करते समय चमड़े का कोई भी सामान नहीं ले जाना चाहिए.

- यात्रा के दौरान बीड़ी, मदिरा, भांग, मांस का सेवन नहीं किया  जाता है, सात्विक रहना है.

- यात्रा के दौरान किसी भी तरह के सौन्दर्य प्रसाधन जैसे- साबुन, तेल, इत्र आदि का प्रयोग नहीं किया जाता है.

- कांवड़ को जमीन पर नहीं रखा जाता है, किसी ऊंची जगह पर रखने के बाद ही लेटना या बैठना चाहिए.

- गंगा जल भरने से पहले कांवड़िए  को व्रत रखना चाहिए.

- सूर्योदय के दो घंटे  पहले और सूर्यास्त के दो घंटे बाद तक ही यात्रा करनी है.

- जमीन पर विश्राम करना चाहिए, बिस्तर का प्रयोग नहीं करना है, यानी कि किसी भी प्रकार की सुख सुविधा का भोग नहीं करते हैं.

- यात्रा के दौरान बाल और नाखून नहीं काटने चाहिए.

- अपने अंदर असुरी प्रवृत्ति नहीं लानी है क्योंकि आप शिव से जुड़ रहे हैं.

 

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