बच्चों की लंबी उम्र और संपन्नता के लिए रखा जाता है जीवित्पुत्रिका व्रत, जानिए पूजन विधि और महत्व
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बच्चों की लंबी उम्र और संपन्नता के लिए रखा जाता है जीवित्पुत्रिका व्रत, जानिए पूजन विधि और महत्व

महिलाओं के कुछ सबसे कठिन व्रतों में जीवित्पुत्रिका व्रत (Jivitputrika Vrat) भी शमिल है. यह व्रत बच्चों की लंबी उम्र और संपन्नता के लिए रखा जाता है.

जितिया व्रत पूजन और कथा

नई दिल्ली: महिलाओं के कुछ सबसे कठिन व्रतों में जीवित्पुत्रिका व्रत (Jivitputrika Vrat) भी शमिल है. छठ की तरह 3 दिन तक चलने वाला यह व्रत बच्चों की लंबी उम्र और संपन्नता के लिए रखा जाता है. जीवित्पुत्रिका व्रत को जितिया या जिउतिया व्रत (Jitiya Vrat) भी कहा जाता है. सुहागिन स्त्रियां इस दिन निर्जला उपवास करती हैं. महिलाएं अपनी संतान की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए यह व्रत रखती हैं. जिउतिया व्रत मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh), बिहार (Bihar) और झारखंड (Jharkhand) के कई क्षेत्रों में किया जाता है. उत्तर पूर्वी राज्यों में जीवित्पुत्रिका व्रत बेहद लोकप्रिय है.

  1. बच्चों की लंबी उम्र और संपन्नता के लिए मांएं जीवित्पुत्रिका व्रत रखती हैं
  2. यह कठिन व्रत 3 दिनों तक चलता है
  3. इसमें मांएं निर्जला व्रत रखकर बच्चों के लिए पूजा करती हैं

जीवित्पुत्रिका व्रत 2020 मुहूर्त
आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 9 सितंबर (बुधवार) को दोपहर 1 बजकर 35 मिनट से आरंभ हो चुकी है, जो कि 10 सितंबर (गुरुवार) को दोपहर 3 बजकर 4 मिनट तक है. जीवित्पुत्रिका व्रत उदया तिथि में रखा जाता है. ऐसे में यह व्रत 10 सितंबर को है.

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पारण का समय
जीवित्पुत्रिका व्रत रखने वाली माताएं 11 सितंबर (शुक्रवार) को सूर्योदय के बाद दोपहर 12 बजे तक पारण करेंगी. मान्यता है कि जीवित्पुत्रिका व्रत का पारण दोपहर 12 बजे तक कर लेना चाहिए. पर्व के तीसरे दिन मुख्य रूप से झोर भात, मरुवा की रोटी और नोनी साग खाया जाता है. अष्टमी को प्रदोषकाल में महिलाएं जीमूतवाहन की पूजा करती हैं. जीमूतवाहन की कुशा से निर्मित प्रतिमा को धूप-दीप, अक्षत, पुष्प, फल आदि अर्पित करके फिर पूजा की जाती है.

जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व
जीवित्पुत्रिका व्रत की ​कथा महाभारत से जुड़ी है. अश्वत्थामा ने बदले की भावना से उत्तरा के गर्भ में पल रहे पुत्र को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया था. उत्तरा के पुत्र का जन्म लेना जरूरी था. तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपने सभी पुण्यों के फल से उस बच्चे को गर्भ में ही दोबारा जीवन दिया था. गर्भ में मृत्यु को प्राप्त कर पुन: जीवन मिलने के कारण उसका नाम जीवित पुत्रिका रखा गया. वह बालक बाद में राजा परीक्षित के नाम से प्रसिद्ध हुआ था. इसीलिए अपने बच्चों की लंबी उम्र और सौभाग्य के लिए मांएं यह व्रत निर्जला रहकर करती हैं.

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जीवित्पुत्रिका व्रत की पूजन विधि
अगर आप जीवित्पुत्रिका व्रत रख रही हैं तो इस विधि से पूजन करें-
1. सुबह स्नान करने के बाद व्रती प्रदोष काल में गाय के गोबर से पूजा स्थल को लीपकर साफ कर लें.
2. इसके बाद वहां एक छोटा सा तालाब बना लें.
3. तालाब के पास एक पाकड़ की डाल लाकर खड़ी कर दें.
4. अब शालिवाहन राजा के पुत्र धर्मात्मा जीमूतवाहन की कुशनिर्मित मूर्ति जल के पात्र में स्थापित करें.
5. अब उन्हें दीप, धूप, अक्षत, रोली और लाल एवं पीली रूई से सजाएं.
6. अब उन्हें भोग लगाएं.
7. अब मिट्टी या गोबर से मादा चील और मादा सियार की प्रतिमा बनाएं.
8. दोनों को लाल सिंदूर अर्पित करें.
9. अब पुत्र की प्रगति और कुशलता की कामना करें.
10. इसके बाद व्रत कथा सुनें या पढ़ें.

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व्रत के दौरान ध्यान में रखें ये बातें
हर व्रत के अपने नियम होते हैं और उनका पालन करने से ही इच्छित फल की प्राप्ति होती है. जीवित्पुत्रिका व्रत में भी कुछ खास नियमों का पालन किया जाता है. जानिए उनके बारे में-
1. व्रत कोई भी हो, उसका अर्थ हमेशा ही संयम होता है. जीवित्पुत्रिका व्रत के दौरान मन, वचन और कर्म की शुद्धता बेहद जरूरी है. इसलिए मन और शरीर को संयमित रखें.
2. क‍िसी के भी प्रत‍ि न तो गलत सोचें और न ही बोलें. अन्‍यथा व्रत से म‍िलने वाला पुण्‍य फल नष्‍ट हो जाता है.
3. अगर गर्भवती महिलाएं यह व्रत करना चाहें तो घर की बुजुर्ग महिलाओं से राय जरूर लें. बेहतर यही होगा क‍ि आप अपनी संतान की लंबी आयु की कामना के ल‍िए व्रत रखने के बजाय केवल पूजा कर लें. गर्भवती महिलाओं के ल‍िए यह भी व्रत रखने के बराबर ही है.

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जीवित्पुत्रिका व्रत कथा
जितिया व्रत के महत्व को लेकर एक कथा काफी प्रचलित है. एक समय की बात है, एक जंगल में चील और लोमड़ी घूम रहे थे. तभी उन्होंने मनुष्य जाति को इस व्रत को विधिपूर्वक करते देखा एवं कथा सुनी. उस समय चील ने इस व्रत को बहुत ही श्रद्धा के साथ ध्यानपूर्वक देखा, वहीं लोमड़ी का ध्यान इस ओर बहुत कम था. चील की संतानों एवं उनकी संतानों को कभी कोई हानि नहीं पहुंची, लेकिन लोमड़ी की संतान जीवित नहीं बची. इसलिए इस व्रत को हर माता अपनी संतान की रक्षा के लिए करती है.

जितिया व्रत आरती (Jitiya Vrat Aarti)
जितिया व्रत में यह आरती मुख्य तौर पर गाई जाती है.
ओम जय कश्यप नन्दन, प्रभु जय अदिति नन्दन।
त्रिभुवन तिमिर निकंदन, भक्त हृदय चन्दन॥ओम जय कश्यप॥
सप्त अश्वरथ राजित, एक चक्रधारी।
दु:खहारी, सुखकारी, मानस मलहारी॥ओम जय कश्यप॥
सुर मुनि भूसुर वन्दित, विमल विभवशाली।
अघ-दल-दलन दिवाकर, दिव्य किरण माली॥ओम जय कश्यप॥
सकल सुकर्म प्रसविता, सविता शुभकारी।
विश्व विलोचन मोचन, भव-बंधन भारी॥ओम जय कश्यप॥
कमल समूह विकासक, नाशक त्रय तापा।
सेवत सहज हरत अति, मनसिज संतापा॥ओम जय कश्यप॥
नेत्र व्याधि हर सुरवर, भू-पीड़ा हारी।
वृष्टि विमोचन संतत, परहित व्रतधारी॥ओम जय कश्यप॥
सूर्यदेव करुणाकर, अब करुणा कीजै।
हर अज्ञान मोह सब, तत्वज्ञान दीजै॥ओम जय कश्यप॥

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जितिया व्रत विधि
जितिया व्रत तीन दिनों तक चलने वाला विशेष और बेहद कठिन व्रत है. हर मां चाहती है कि उसकी संतान दीर्घायु, सकुशल और कामयाब रहे. अपनी संतानों की मंगलकामना करने वाली मां को यह व्रत बिल्कुल भी कठिन नहीं लगता है. जानिए तीन दिनों तक क्या और कैसे होता है.
1. नहाय खाय
छठ की तरह ही जिउतिया में भी नहाय खाय होता है. महिलाएं सुबह गंगा स्नान करती हैं. इस दिन सिर्फ एक बार ही सात्विक भोजन किया जाता है. नहाय खाय की रात को छत पर जाकर चारों दिशाओं में कुछ खाना रख दिया जाता है.

2. निर्जला व्रत
दूसरे दिन को खुर जितिया कहा जाता है. इस दिन मांएं निर्जला व्रत रखती हैं.

3. पारण का दिन
आखिरी दिन व्रत का पारण किया जाता है. इस दिन इच्छा और सामर्थ्य के अनुसार दान दिया जाता है.

मां को अर्पित करें ये चीजें
इस दिन मां को ये चीजें अर्पित करना शुभ माना जाता है- 16 पेड़े, 16 दूब की माला, खड़े चावल के 16 दाने, 16 गांठ का धागा, 16 लौंग, 16 इलायची, 16 पान, 16 खड़ी सुपारी और श्रृंगार का सामान.

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