Pandharpur Wari 2024: क्‍या है पंढरपुर के विट्ठल की कहानी, जिसके लिए हर साल लाखों भक्‍त करते हैं पैदल यात्रा
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Pandharpur Wari 2024: क्‍या है पंढरपुर के विट्ठल की कहानी, जिसके लिए हर साल लाखों भक्‍त करते हैं पैदल यात्रा

Sant Tukaram ki Palki: ओडिशा के पुरी की जगन्‍नाथ रथ यात्रा की तरह महाराष्‍ट्र में संत तुकाराम की पादुका की पालकी यात्रा भी निकलती है. 15 दिन की देहु से पंढरपुर की इस यात्रा में लाखों श्रद्धालु पैदल चलते हैं. 

Pandharpur Wari 2024: क्‍या है पंढरपुर के विट्ठल की कहानी, जिसके लिए हर साल लाखों भक्‍त करते हैं पैदल यात्रा

Pandharpur Mela 2024: महाराष्ट्र के पंढरपुर में भगवान श्रीकृष्‍ण का प्रसिद्ध मंदिर है, जिसमें वह विट्ठल रूप में विराजमान हैं. यहां  भगवान विट्ठल और देवी रुक्मणि के दर्शन करने के लिए हर साल लाखों भक्‍त पहुंचते हैं. इसमें 2 उत्‍सव तो बहुत ही खास हैं. पहला, पंढरपुर की वारी यात्रा, जिसमें लाखों भक्‍त संत तुकाराम और संत ज्ञानोबा की चरण पादुकाएं लेकर देहू से पंढरपुर तक की 15 दिन की पैदल यात्रा करते हैं. यह यात्रा आषाढ़ शुक्‍ल एकादशी यानी कि देवशयनी एकादशी को पंढरपुर पहुंचती है. वहीं दूसरा उत्‍सव कार्तिक शुक्‍ल एकादशी यानी कि देवउठनी एकादशी को मनाया जाता है. इस साल यह यात्रा 28 जून से शुरू हो चुकी है और 16 जुलाई 2024 को आषाढ़ी एकादशी को पंढरपुर पहुंचेगी. 

विट्ठल रूप में पूजे जाते हैं भगवान श्रीकृष्‍ण 

कथाओं के अनुसार छठवीं सदी में महान संत पुंडलिक थे जो माता-पिता के परम भक्त थे. साथ ही वे अपने इष्टदेव भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन रहते थे. एक दिन उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान श्रीकृष्ण पत्‍नी देवी रुकमणी के साथ प्रकट हो गए. भगवान श्रीकृष्‍ण पुंडलिक को स्नेह से पुकार कर कहा, 'पुंडलिक, हम तुम्हारा आतिथ्य ग्रहण करने आए हैं.' 

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उस समय पुंडलिक शयननिद्रा में लीन अपने पिता के पैर दबा रहे थे. उनके आराम में बाधा ना आए इसलिए उन्‍होंने भगवान से कहा कि अभी मेरे पिताजी शयन कर रहे हैं, इसलिए आप इस ईंट पर खड़े होकर प्रतीक्षा कीजिए. इसके बाद वे पुन: अपने पिता के पैर दबाने में लीन हो गए. भगवान ने अपने भक्त की आज्ञा का पालन किया और कमर पर दोनों हाथ धरकर और पैरों को जोड़कर ईंट पर खड़े हो गए. ईंट पर खड़े होने के कारण श्री विट्ठल का जो विग्रह रूप बना भगवान उसी रूप में लोकप्रिय हो गए. भगवान विट्ठोबा कहे जाने लगे और यह स्थान पुंडलिकपुर फिर अपभ्रंश रूप में पंढरपुर कहलाया. 

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वारकली संप्रदाय की हुई स्‍थापना 

पंढरपुर महाराष्‍ट्र का सबसे प्रसिद्ध तीर्थ है. जो कि महाराष्‍ट्र में भीमा नदी के तट पर शोलापुर शहर के पास स्थित है. साथ ही यह वारकरी संप्रदाय का स्‍थापना स्‍थल भी है. यहीं से वारकरी संप्रदाय की शुरुआत हुई, जो भगवान विट्ठल की पूजा करते हैं. हर साल लाखों वारकरी विट्ठल-विट्ठल नाम जपते हुए 15 दिन की पैदल यात्रा करते हैं. यह यात्रा देहु से पंढरपुर के बीच निकाली जाती है. यह यात्रा 800 सालों से लगातार जारी है. इसमें भगवान विट्ठल के दर्शन करने के लिए देश के कोने-कोने से पताका-डिंडी लेकर भक्‍त इस तीर्थस्थल पर लोग पैदल चलकर पहुंचते हैं. 

इस यात्रा में भक्‍त देहु से चलकर पुणे और फिर जजूरी होते हुए पंढरपुर पहुंचते हैं. इनको ज्ञानदेव माउली की डिंडी के नाम से दिंडी जाना जाता है.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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