Vaishakh Amavasya के दिन किया ये काम दूर करेगा हर कष्ट, सुख-समृद्धि से भर जाएगा जीवन
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Vaishakh Amavasya के दिन किया ये काम दूर करेगा हर कष्ट, सुख-समृद्धि से भर जाएगा जीवन

Vaishakh Amavasya Par Kya kare: हिंदू धर्म में अमावस्या तिथि का विशेष महत्व है. इस दिन पितरों के निमित्त किए गए कर्मों से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है. अमावस्या तिथि के दिन पितृ स्तोत्र पाठ करने से विशेष फलों की प्राप्ति होती है. 

 

vaishakh amavasya 2024

Pitra Stotra Path: सनातन धर्म में अमावस्या तिथि का खास महत्व बताया गया है. मान्यता है कि इस दिन श्राद्ध कर्म और पिंडदान आदि करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और वे प्रसन्न होकर वंशजों को तरक्की का आशीर्वाद प्रदान करते हैं. अमावस्या तिथि के दिन पूजा-पाठ, स्नान-दान और तर्पण आदि करने से विशेष लाभ होता है. 

वैदिक पंचांग के अनुसार वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या इस बार 8 मई, बुधवार के दिन पड़ रही है. इस दिन वैशाख अमावस्या का व्रत रखा जाएगा. धार्मिक मान्यता है कि इस दिन पितृ स्तोत्र का पाठ करने से विशेष फलों की प्राप्ति होती है. इससे पितर प्रसन्न होते हैं और वंशजों को तरक्की का आशीर्वाद प्रदान करते हैं. इतना ही नहीं, इससे जीवन में सुख-समृद्धि आती है. 

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पितृ स्तोत्र पाठ

अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम् ।

नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।।

इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा ।

सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान् ।।

मन्वादीनां च नेतार: सूर्याचन्दमसोस्तथा ।

तान् नमस्यामहं सर्वान् पितृनप्युदधावपि ।।

नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा ।

द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि:।।

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देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान् ।

अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येहं कृताञ्जलि: ।।

प्रजापते: कश्पाय सोमाय वरुणाय च ।

योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि: ।।

नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु ।

स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे ।।

सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा ।

नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम् ।।

अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम् 

अग्रीषोममयं विश्वं यत एतदशेषत: ।।

ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्रिमूर्तय:।

जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिण: ।।  

तेभ्योखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतामनस:।

नमो नमो नमस्तेस्तु प्रसीदन्तु स्वधाभुज ।।

पितृ कवच

कृणुष्व पाजः प्रसितिम् न पृथ्वीम् याही राजेव अमवान् इभेन।

तृष्वीम् अनु प्रसितिम् द्रूणानो अस्ता असि विध्य रक्षसः तपिष्ठैः।।

तव भ्रमासऽ आशुया पतन्त्यनु स्पृश धृषता शोशुचानः।

तपूंष्यग्ने जुह्वा पतंगान् सन्दितो विसृज विष्व-गुल्काः।।

प्रति स्पशो विसृज तूर्णितमो भवा पायु-र्विशोऽ अस्या अदब्धः।

यो ना दूरेऽ अघशंसो योऽ अन्त्यग्ने माकिष्टे व्यथिरा दधर्षीत्।।

उदग्ने तिष्ठ प्रत्या-तनुष्व न्यमित्रान् ऽओषतात् तिग्महेते।

यो नोऽ अरातिम् समिधान चक्रे नीचा तं धक्ष्यत सं न शुष्कम्।।

ऊर्ध्वो भव प्रति विध्याधि अस्मत् आविः कृणुष्व दैव्यान्यग्ने।

अव स्थिरा तनुहि यातु-जूनाम् जामिम् अजामिम् प्रमृणीहि शत्रून्।।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

 

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