पितृपक्ष से पहले जान लें कि क्या है 'श्राद्ध'? वरना झेलनी पड़ेगी बड़ी हानि
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पितृपक्ष से पहले जान लें कि क्या है 'श्राद्ध'? वरना झेलनी पड़ेगी बड़ी हानि

Shradh 2024: आज वैज्ञानिक युग में सभी तेजी से आधुनिक हो रहे हैं, लेकिन श्राद्ध का महत्व कम नहीं हुआ है. यह एक ऐसा संस्कार है, जो हमें अपने पूर्वजों से जोड़ता है और यह याद दिलाता है कि आज जो कुछ भी हैं, वह उनके योगदान का ही परिणाम है. 

पितृपक्ष से पहले जान लें कि क्या है 'श्राद्ध'? वरना झेलनी पड़ेगी बड़ी हानि
Pitru Paksha 2024: व्यक्ति के जीवन में उनके पूर्वजों की भी अहम भूमिका होती है. बल्कि आज जहां भी हैं उसमें भी उनकी बहुत बड़ी भूमिका है. इस प्रकार, श्राद्ध सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह संस्कारों, परंपराओं और रिश्तों को मजबूती देने का माध्यम है. यह हमें हमारी संस्कृति और मूल्यों से जोड़ता है. श्राद्ध के माध्यम से पितृगणों के प्रति अपना सम्मान और कृतज्ञता प्रकट करते हैं. उनके योगदान के लिए श्रद्धा और आभार व्यक्त करते हैं. 17 सितंबर से श्राद्ध आरंभ हो रहे जबकि 18 सितंबर को पितृपक्ष प्रतिपदा  होगी. इसके पहले श्राद्ध को समझना बहुत आवश्यक है. चलिए पंडित शशिशेखर त्रिपाठी से जानते हैं  पितृपक्ष और श्राद्ध के महत्व को.
 
 
क्या है श्राद्ध? 
 
श्राद्ध संस्कार हिंदू धर्म में एक विशेष कर्म है, जिसे पितरों (मृत पूर्वजों) के उद्देश्यों को ध्यान में रखकर विधि पूर्वक किया जाता है. श्राद्ध का शाब्दिक अर्थ है "श्रद्धा से किया गया कर्म." शास्त्रों के अनुसार, पितरों के प्रति श्रद्धा और सम्मान प्रकट करने हेतु जो कर्म किया जाता है, उसे ही श्राद्ध कहा जाता है. शास्त्रों में इसका वर्णन इस प्रकार मिलता है: 'श्रद्धया पितॄन् उद्दिश्य विधिना क्रियते यत्कर्म तत् श्राद्धम्।' अर्थात श्रद्धा के साथ विधिपूर्वक पितरों के लिए किए गए कर्म को श्राद्ध कहते हैं.
 
 
श्राद्ध का शास्त्रीय वर्णन   
 
श्राद्ध शब्द का उद्गम 'श्रद्धा' से हुआ है. 'श्रद्धा' का अर्थ है पवित्र मन से किया गया कार्य, जो पूर्ण श्रद्धा और निष्ठा से किया जाता है. विभिन्न धर्मग्रंथों जैसे मनुस्मृति, पुराणों और श्राद्ध से संबंधित अन्य ग्रंथों में इसे पितृयज्ञ के रूप में वर्णित किया गया है. यह एक धार्मिक कृत्य है, जिसके द्वारा पितरों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की जाती है.  महर्षि पराशर ने श्राद्ध के संबंध में कहा है, "देश, काल और पात्र में तिल, दर्भ(कुश) और मंत्रों से युक्त होकर जो कर्म श्रद्धा से किया जाता है, उसे श्राद्ध कहते हैं. इसी प्रकार, महर्षि बृहस्पति और महर्षि पुलस्त्य के अनुसार, दूध, घी और शहद से युक्त सात्विक भोजन ब्राह्मणों को प्रदान करने की प्रक्रिया को भी श्राद्ध कहा जाता है. 
 
श्राद्ध की विधि और महत्व   
 
श्राद्ध मुख्य रूप से पितृपक्ष के दौरान किया जाता है, जो आमतौर पर भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन महीने की अमावस्या तक चलता है. इस दौरान लोग अपने पितरों के लिए तर्पण, पिंडदान और हवन करते हैं, जिससे पितृ प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद देते हैं. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और इसे जीवन के पवित्र कर्तव्यों में गिना जाता है. श्राद्ध की प्रक्रिया में ब्राह्मणों को आमंत्रित किया जाता है और उन्हें भोजन, वस्त्र और दक्षिणा दी जाती है. इस अवसर पर तिल, जल, कुशा और अन्य पवित्र सामग्रियों का उपयोग होता है. श्राद्ध कर्म का उद्देश्य पितरों की आत्मा को शांति प्रदान करना और उनके आशीर्वाद से वंश को समृद्ध करना होता है.
 
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.) 

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