Self Experiment by Scientists: वायरोलॉजिस्ट बीटा हैलासी ने लैब के भीतर वैक्सीन बनाई और उससे अपने ब्रेस्ट कैंसर का सफल इलाज करके दिखाया. लेकिन क्या वैज्ञानिकों के लिए स्वयं पर प्रयोग करना उचित है?
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Science News in Hindi: विषाणु विज्ञानी बीटा हैलासी हाल में उस समय सुर्खियों में आईं जब उन्होंने एक प्रयोगात्मक उपचार से स्वयं अपने स्तन कैंसर का सफलतापूर्वक इलाज करने की रिपोर्ट प्रकाशित की. पूर्व में मैस्टेक्टमी (स्तन-उच्छेदन) और कीमोथेरेपी करवा चुकीं हैलासी ने अपने चिकित्सकों को बताया कि वह अपने ट्यूमर का इलाज ऐसे विषाणु के इंजेक्शन से करना चाहती है जो कैंसर कोशिकाओं पर हमला करने के लिए जाने जाते हैं. इस तरह के दृष्टिकोण को ऑन्कोलिटिक वायरोथेरेपी (ओवीटी) कहा जाता है. स्तन कैंसर के उपचार के लिए ओवीटी को अभी तक मंजूरी नहीं मिली है, लेकिन प्रयोगात्मक दृष्टिकोण के रूप में इसका अध्ययन किया जा रहा है.
हैलासी चिकित्सा में स्व-प्रयोग की एक सफल कहानी हैं. वह बैरी मार्शल जैसे अन्य उदाहरणों में शामिल हो गई हैं, जिन्होंने गैस्ट्राइटिस और पेप्टिक अल्सर में इसकी भूमिका साबित करने के लिए हेलिकोबैक्टर बैक्टीरिया का स्वयं पर प्रयोग किया था और इसके लिए 2005 में चिकित्सा में नोबेल पुरस्कार जीता था. अनुमान है कि उनके प्रयोग से लाखों लोगों की जान बची है.
फिर भी खुद पर प्रयोग को अकसर संदेह की दृष्टि से देखा जाता है. खुद पर प्रयोग को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं क्योंकि यह अब केवल पेशेवर वैज्ञानिकों का क्षेत्र नहीं रह गया है. जैव प्रौद्योगिकी की उपलब्धता और ‘ओपन-सोर्स’ विज्ञान की व्यापकता के कारण ‘बायो-हैकिंग’ समुदायों का विकास हुआ है, जो विभिन्न प्रकार के स्व-प्रयोगों में संलग्न हैं. क्या स्वयं पर प्रयोग से नैतिक चिंताएं पैदा होती हैं? इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए अनुसंधान नैतिकता के पहले सिद्धांतों पर वापस लौटना उपयोगी है.
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स्वायत्तता
चिकित्सा अनुसंधान में ज्ञात सहमति प्रक्रिया एक अहम सुरक्षा उपाय है. अनुसंधानकर्ताओं को यह सुनिश्चित करने के लिए सख्त प्रक्रिया का उपयोग करना होगा ताकि व्यक्ति परीक्षणों में भाग लेने के लिए स्वैच्छिक विकल्प चुनें, और वे प्रयोगात्मक हस्तक्षेप (और विकल्पों) के जोखिम और लाभों को समझें.
स्पष्ट रूप से, स्वयं पर प्रयोग करने वाले अप्रमाणित इलाज पद्धति को स्वयं लागू करने के लिए ज्ञात विकल्प चुन सकते हैं. हैलासी की रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि उन्होंने सबकुछ जानते हुए प्रयोग किया. विषाणु विज्ञान में उनकी विशेषज्ञता ने उन्हें अपने दृष्टिकोण के लिए एक स्पष्ट वैज्ञानिक तर्क विकसित करने में सक्षम बनाया. फिर भी, प्रायोगिक उपचारों के दौरान अज्ञात दुष्प्रभाव सामने आ सकते हैं, इसलिए किसी अन्य की निगरानी भी वांछनीय है.
इसके अलावा, खुद पर प्रयोग करने वाले लोगों को उक्त प्रयोग की पूर्ण जानकारी नहीं होती है. एक वैध चिंता यह है कि स्वयं पर प्रयोग के अनियमित रूपों में यह महत्वपूर्ण सुरक्षा उपाय तब शामिल नहीं होते जब आम जनता स्वयं के स्तर पर प्रयोग करते हैं.
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प्रतिभागी के लिए संभावित जोखिम
अनुसंधान नैतिकता में सभी पहलुओं की जानकारी देकर सहमति प्राप्त करना एकमात्र महत्वपूर्ण सुरक्षा उपाय नहीं है. अकसर यह दावा किया जाता है कि सहमति देने वाले वयस्कों को भी अनुसंधान के दौरान केवल ‘तार्किक जोखिम’ के संपर्क में आना चाहिए.
नैतिकतावादी अकसर इस बात पर बहस करते हैं कि ‘तार्किक जोखिम’ को कैसे परिभाषित किया जाए. लेकिन इस बात पर व्यापक सहमति है कि तार्किक जोखिमों को कम से कम उन तक सीमित किया जाना चाहिए जो आवश्यक हैं. हालांकि, यह तय करना अधिक जटिल है कि क्या उचित माना जाएगा. वह भी तब जब कोई व्यक्ति गंभीर बीमारी से ग्रस्त हो और वह प्रायोगिक उपचार करवा रहा हो, जिससे उसे लाभ हो सकता है (या नहीं भी हो सकता है).
जहां एक व्यक्ति को प्रायोगिक इलाज प्राप्त करने से लाभ मिलता है, ‘आनुपातिकता’ आंशिक रूप से इस बात से संबंधित है कि प्रायोगिक इलाज अन्य उपचारों की तुलना में कैसा है, जिन्हें चिकित्सक ‘देखभाल के मानक’ के रूप में उपयोग कर सकते हैं.
हैलासी के मामले में यह एक प्रासंगिक प्रश्न है. उल्लेखनीय है कि हैलासी को अपने उपचार के दौरान पहले ही मैस्टेक्टमी और कीमोथेरेपी से गुजरना पड़ा था. इसके अलावा, उनके प्रयोगात्मक ओवीटी में प्रयुक्त खसरा वायरस और वेसिकुलर स्टोमेटाइटिस वायरस के प्रति उनके शरीर में प्रतिरोधक क्षमता का रिकॉर्ड अच्छा था.
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इसके विपरीत, जहां भागीदार को इलाज प्राप्त करने से कोई लाभ नहीं होता है, कभी-कभी यह दावा किया जाता है कि यह केवल भागीदार को न्यूनतम जोखिम में डालने के लिए आनुपातिक हो सकता है. अन्य लोगों ने दलील दी है कि यदि अनुसंधान के लाभ पर्याप्त हों तो कभी-कभी अधिक जोखिम भी आनुपातिक हो सकते हैं.
यहां एक समस्या यह है कि खुद पर प्रयोग में अकसर केवल एक ही भागीदार शामिल होता है. इसका मतलब यह हो सकता है कि इसे सामान्यीकृत करना कठिन है (या यह भ्रामक भी हो सकता है). लेकिन बैरी मार्शल के मामले से पता चलता है, केवल एक व्यक्ति को शामिल करके स्वयं पर किए गए प्रयोग से कभी-कभी अविश्वसनीय रूप से उपयोगी निष्कर्ष निकल सकते हैं.
लेकिन हमें संभावित नुकसान पर भी विचार करना होगा.
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दूसरों को नुकसान
हॉलीवुड में, खलनायक वैज्ञानिकों के स्वयं पर किए गए प्रयोग अकसर विनाशकारी साबित होते हैं. द फ्लाई में जेफ गोल्डब्लम द्वारा एक विलक्षण वैज्ञानिक का चित्रण देखें. इस तरह की विज्ञान-कथाएं अकसर बेहद अविश्वसनीय होती हैं. लेकिन इससे हमें अधिक विश्वसनीय हानिकारक प्रभावों की आशंका से मुंह नहीं मोड़ना चाहिए.
एक चिंता यह है कि अन्य मरीज भी हैलासी के पदचिन्हों पर चलने के लिए प्रेरित हो सकते हैं, तथा अन्य मानक उपचारों का उपयोग करने से पहले, संभवतः गैर परंपरागत उपचार का प्रयास कर सकते हैं. इसे रोकने के लिए यह स्पष्ट होना चाहिए और यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि मरीज मौजूदा उपचारों के आजमाए हुए तथा परखे हुए लाभों को समझें.
एक अलग चिंता यह है कि बहुत जोखिम भरे प्रयोगों से होने वाले प्रतिकूल प्रचार के कारण महत्वपूर्ण अनुसंधान करना अधिक कठिन हो सकता है. शुरुआती दौर में कम से कम आठ अनुसंधानकर्ता थे जिनकी स्वयं पर प्रयोग के दौरान मौत हो गई. इनमें 29 वर्षीय चिकित्सक विलियम स्टार्क भी शामिल थे, जिनकी 18वीं शताब्दी में अपने आहार पर अत्यधिक प्रतिबंध लगाने के कारण स्कर्वी रोग से मृत्यु हो गई थी.
खुद पर प्रयोग करने के मामले पर त्रव्यापक रूप से विचार करने के दौरान अन्य चिंताएं भी सामने आती हैं. स्वयं पर प्रयोग करने वाले अब आसानी से क्रिस्पर-कैस9 जीन-संपादन उपकरण जैसी शक्तिशाली प्रौद्योगिकी तक पहुंच सकते हैं.
जोशिया जेनर नामक एक ‘बायोहैकर’ ने 2017 में मांसपेशियों की वृद्धि को बढ़ाने के उद्देश्य से स्वयं को डीआईवाई क्रिस्पर-कैस9 जीन थेरेपी का प्रयोग किया था.
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क्रिस्पर-कैस9 में समाज को महत्वपूर्ण लाभ पहुंचाने की क्षमता है, लेकिन यदि इसका गलत इस्तेमाल या दुर्भावना से किया जाए तो यह काफी नुकसान भी पहुंचा सकता है. यहां खुद पर प्रयोग को लेकर चिंता केवल दुरुपयोग से होने वाले प्रत्यक्ष नुकसान तक सीमित नहीं है. दुरुपयोग के मामले इस महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकी को सुरक्षित रूप से विकसित करने के लिए विनियमित प्रयासों की सामाजिक स्वीकृति को भी कमजोर कर सकते हैं.
वैज्ञानिकों के लिए खुद पर प्रयोग करना नैतिक हो सकता है. ऐसे अध्ययनों को कम से कम कभी-कभी अनुमति दी जानी चाहिए, और निश्चित रूप से उन्हें प्रकाशित किया जाना चाहिए ताकि अन्य लोग उनसे सीख सकें. लेकिन यह मान लेना गलत होगा कि खुद पर किए गए प्रयोग का प्रभाव केवल संबंधित व्यक्ति पर ही पड़ता है. हैलासी ने बिना किसी नैतिक निगरानी के स्वयं पर प्रयोग शुरू कर दिए. उनके लिए सबकुछ अच्छा रहा, लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होगा. (भाषा)
(जोनाथन पुघ, डोमिनिक विल्किंसन और जूलियन सावुलेस्कु, ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय)