शरीर की कोशिकाएं आमतौर पर संक्रमण के समय खुद को विस्फोट करके मार लेती हैं, ताकि दूसरी कोशिकाओं तक संक्रमण न जाए, लेकिन वैज्ञानिकों ने ऐसी कोशिकाएं खोजी हैं, जो अपनी मौत को भी धोखा दे सकती हैं.
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नई दिल्ली: वैज्ञानिकों ने ऐसी कोशिकाएं खोजी हैं, जो अपनी मौत को भी धोखा दे सकती हैं. शरीर की कोशिकाएं आमतौर पर संक्रमण के समय खुद को विस्फोट करके मार लेती हैं, ताकि दूसरी कोशिकाओं तक संक्रमण न जाए. शरीर की कोशिकाएं कई तरीकों से मर सकती हैं, लेकिन अब वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि ऐसी भी कोशिकाएं हैं जो अपनी मौत को धोखा दे सकती हैं.
जब कोशिकाएं संक्रमण से शरीर के बाकी हिस्सों को बचाने के लिए खुद को विस्फोट करके उड़ाती हैं. तब इस प्रक्रिया को पाइरोप्टोसिस कहते हैं. इससे संक्रमित कोशिका मर जाती है, लेकिन आस-पास की कोशिकाएं संक्रमण से कुछ देर के लिए बच जाती हैं. मरने वाली कोशिका मरते-मरते खतरे का सिग्नल छोड़ती है, जिसे साइटोकाइन्स (Cytokines) कहते हैं. शिकागो स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ इलिनॉय के बायोइंजीनियर गैरी मो कहते हैं यह प्रक्रिया बेहद तेजी से होती है. कोशिका गुब्बारे की तरफ फूलती है, साइटोकाइन्स सिग्नल भेजती है. इसके बाद मर जाती है. वैज्ञानिकों का मानना था कि पाइरोप्टोसिस वन-वे प्रक्रिया है, लेकिन ऐसा नहीं है.
गैरी मो और उनकी टीम ने हाल ही में स्टडी के दौरान पाया कि कोशिकाओं में पाइरोप्टोसिस की वन-वे प्रक्रिया को पलटने का एक अंदरूनी मैकेनिज्म भी होता है. इससे कोशिका की मौत कुछ वक्त के लिए टल जाती है. वैज्ञानिकों का दावा है कि कोशिका अपनी मौत को धोखा देकर कुछ और समय जीवित रह सकती है. ये स्टडी Nature Communications जर्नल में प्रकाशित हुई है.
इस स्टडी से गैरी मो और उनकी टीम के वैज्ञानिक अब यह पता करने की कोशिश कर रहे हैं कि पाइरोप्टोसिस की प्रक्रिया कैसे पलटी जा सकती है और क्या इससे कैंसर की कोशिकाओं को खत्म किया जा सकता है.
वैज्ञानिकों के मुताबिक, जैसे ही किसी कोशिका को यह संदेश मिलता है कि पाइरोप्टोसिस की प्रक्रिया शुरू करनी है. इसके अंदर मौजूद एक खास तरह का प्रोटीन गैसडरमाइन्स (Gasdermines) सक्रिय हो जाता है. इस प्रोटीन के सूक्ष्म कण आपस में एक बंधन बनाकर कोशिका की बाहरी परत में एक छेद करते हैं. ताकि कोशिका के अंदर के हिस्से छेद से बाहर निकल जाएं. गैरी मो कहते हैं कि पाइरोप्टोसिस को रोकने के लिए कोशिकाओं के अंदर ही एक पॉज बटन होता है. जो इसे रोक देता है.
गैरी मो कहते हैं कि पाइरोप्टोसिस एक बेहद जटिल प्रक्रिया है. इस प्रक्रिया को समझने के लिए लाइट रेस्पॉन्सिव गैसडरमाइन्स प्रोटीन की प्रक्रिया को देखा गया. वैज्ञानिकों ने पाया कि जब वो पाइरोप्टोसिस की वजह से खत्म हुई कोशिका को देख रहे थे तब उन्हें कैल्शियम आयंस की बढ़ोतरी मिली. कोशिकाओं की बाहरी परत के चारों तरफ कैल्शियम की मात्रा थोड़ी ज्यादा होती है. लेकिन तभी उन्होंने देखा कि कोशिका में गैसडरमाइन्स द्वारा बनाया गया छेद बंद होने लगा है और कैल्शियम का बहाव रुक गया है.
कोशिका यह निर्धारित करती है कि उसे कितने कैल्शियम आयंस की जरूरत है. जैसे ही उसे लगता है कि अब मात्रा ज्यादा हो रही है, वह गैसडरमाइन्स द्वारा बनाए गए छिद्र को बंद कर देती है. यानी पाइरोप्टोसिस की प्रक्रिया रुक जाती है. एक तरह से कोशिका का मरना टल जाता है. इसके बाद उस कमजोर छेद के पास कोशिका फैट वाली परत बनाती है. ताकि वह कुछ देर जिंदा रह सके और यह छिद्र खुले नहीं.
ओरेगॉन हेल्थ एंड साइंस यूनिवर्सिटी की इम्यूनोलॉजिस्ट इसाबेला रॉश कहती हैं कि किसी कोशिका द्वारा उसकी बाहरी परत में किए गए छेद को बंद करना हैरान करने वाली घटना है. कुछ ऐसे तत्व हैं जो कोशिका को मरने से बचाते हैं, जो पाइरोप्टोसिस की प्रक्रिया को रोकते हैं.