कभी किसी घऱ में लड़के के पैदा होने पर ‘बधाई हो गणेश’ हुआ है सुनने का नहीं मिला. वहां बधाई हो लड़का हुआ है ही बोला जाता है.
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27 दिसंबर 2014, रात का वक्त था. सर्दी अपने पूरे उफान पर थी. सर्दी बीते पूरे मौसम की कसर निकाल रही थी. एम्स की चार दीवारियों के अंदर रिस-रिसकर हवा घुस रही थी. जो हाड़ तक कंपा दे रही थी. मैं औऱ मेरा दोस्त, कभी टहलकर कभी बैठकर रात काटने की कोशिश में लगे हुए थे. उसका वहां होना एक अऩोखा संयोग था. जैसे-तैसे रात कटी और सुबह हुई. चारों तरफ घना कोहरा छाया हुआ था. इतना कोहरा कि बीते दस सालों में देखने को नहीं मिला था. समाचार वाले चिल्ला-चिल्लाकर दिल्ली के तापमान के 2 पर पहुंचने की खबर सुना रहे थे. सारी तैयारियां हो चुकी थी. कोहरे को पार करते हुए मेरी पत्नी को ऑपरेशन थियेटर की तरफ ले जाया गया. वहां पहले से मौजूद मेरे दोस्त और उसकी पत्नी (मेरी दोस्त) की लेबर रूम में जाने की तैयारी हो चुकी थी. करीब दो घंटा इंतज़ार करने के बाद पहली खबर दोस्त की तरफ से आई. लड़की हुई थी. ठीक दो घंटे बाद अब हमारी बारी थी. लड़की हुई थी. दोस्त ने और मैंने अपने अपने करीबियों को फोन लगाना शुरू किया. मेरी सासु मां भी फोन लगाने में व्यस्त हो गई थी. कभी फोन के दूसरी तरफ से कोई बधाई देते हुए कह रहा था कि बधाई हो लक्ष्मी आई है. कभी मेरी सासु मां लक्ष्मी के आने की सूचना दे रही थी.
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बाद में और कई रिश्तेदारों के घर जब भी कभी लड़की पैदा होने की खबर मिलती तो यही वाक्य सुनने को मिलता.. बधाई हो लक्ष्मी आई है. कभी अपने घऱ में, कभी दूसरे के घर में हर जगह लक्ष्मी आने की सूचना मिलती रहती है. इस सूचना में एक सांत्वना मिली रहती है जो लक्ष्मी के नाम पर ढंकी जा रही होती है.
कभी किसी घऱ में लड़के के पैदा होने पर ‘बधाई हो गणेश’ हुआ है सुनने का नहीं मिला. वहां बधाई हो लड़का हुआ है ही बोला जाता है.
मेरी पत्नी की मां जब भी कभी किसी को लड़की होने की बधाई दे रही होती थी तो उसमें एक सांत्वना जुड़ी रहती है. मुझे अक्सर ये बात बुरी लगती थी, क्योंकि उनकी खुद चार लड़किंया हैं और लड़कियां ही उनको आज बुढ़ापे में संभाल रही हैं. खास बात ये है कि उन्होंने कभी भी अपनी लड़कियों की परवरिश में किसी बात की कमी नहीं रखी. उनके ऊपर किसी तरह की सामाजिक बंदिश भी नहीं रही. यहां तक कि कई मामलों में वो मुझे नई पीढ़ी से ज्यादा व्यवहारिक लगती हैं, लेकिन फिर भी जब कभी रिश्तेदारी में किसी के घर में अगर लड़की हुई तो उनकी शुरुआत ऐसे ही होती है, चलो कोई बात नहीं, लक्ष्मी आई है.
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दरअसल, इस बात का जवाब उनके अतीत में ही छिपा हुआ है. हरियाणा और राजस्थान जैसे बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का गाना गाने वाले राज्य में रहते हुए जब उनकी एक के बाद एक चार बेटियां हुई और एक बेटा हुआ, लेकिन वो पैदा होते ही मर गया तो उन्होंने अपना ऑपरेशन करवा लिया. उनकी ये पहल गांव के लोगों को बर्दाश्त नहीं हुई, क्योंकि गांव के लोगों के मुताबिक उन्हें तब तक कोशिश करनी चाहिए थी जब तक लड़का नहीं हो जाता. खैर, उन्होंने सब को धता बताते हुए जब ऑपरेशन करवाया तो उसके बाद वो जब भी गांव जातीं तो उनका परिचय इसी तरह से दिया जाता था- ये वो फलाने की बहु है, जिसने चार लड़कियों के बाद ऑपरेशन करवा लिया था. बीच-बीच में कोई सांत्वना के बोल बोलता और लड़कियों को लक्ष्मी का रूप बताकर उनके कथित जख्मों को सहलाने की कोशिश कर देता था. वो पढ़ी-लिखी नहीं हैं, लेकिन दुनिया की पढ़ाई उन्होंने अव्वल नंबरों से की है. और वो जानती हैं कि अगर मैं किसी को सांत्वना मिश्रित बधाई नहीं दूंगी तो वो बुरा मान सकता है और हो सकता है उसे ये लगे कि मेरे घर में लड़की होने पर इन लोगों को खुशी मिल रही है.
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ऐसे ही एक बार घर में गांव से एक रिश्तेदार आए, वो बहुत अच्छे और भले सज्जन हैं. मेरी उनसे खूब छनती है. बात-बात में बात निकली तो हमने जब कहा कि हमारी एक ही बेटी है और वो अकेली ही हमारे लिए काफी है. इस बात को सुनकर उन्होंने छूटते ही कहा कि नहीं एक लडका कर लो परिवार पूरा हो जाएगा. हालांकि ये बात सभी पर लागू नहीं होती है, लेकिन अक्सर पहला लड़का हुआ उसके बाद दूसरा लड़का हुआ तो परिवार पूरा मान लिया जाता है, लेकिन लड़की के मामले में ऐसा नहीं होता है. मुझे याद है कॉलेज में मेरा एक दोस्त था. उसके यहां परिवार को पूरा करने की चाहत में एक के बाद एक छह लड़कियां हुईं औऱ जब सातवें नंबर पर मेरा दोस्त हुआ तब जाकर उसके पिताजी ने माना की अब उनका परिवार पूरा हो गया है. मेरे चाचाजी की जिदगी गैस त्रासदी ने लील ली थी. वो जब तक रहे, बीमार ही रहे. उन्होंने भी परिवार को पूरा करने की चाहत में चार लड़कियां पैदा कीं. औऱ अंत समय में भी उनकी चिंता इसी बात की थी अगर उनका एक लड़का होता तो उनकी ताकत ‘दोगुनी’ हो जाती.
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वैसे इस तरह की बात नहीं करनी चाहिए, लेकिन जो लोग लड़की के पैदा होने पर लक्ष्मी आई कहकर सांत्वना देते हैं मन करता है उनसे कह दूं, बधाई हो गणेश हुआ है. अब गोबर निकलता है या गणेश रहता है ये भविष्य में तय हो जाएगा.
इसी बात को कभी किसी नाटक के लिए लिखे हुए गाने के साथ छोड़ जाता हूं. गाना कम ये भड़ास ज्यादा है, साथ ही नाटक का निर्देशन करने वाली महिला ने इस गाने को महिला आधारित नाटक में ही लेने से मना भी कर दिया, तो आपके साथ साझा कर लेता हूं-
अरे हो... सुनो सुनो मेरे भाई// एक बात समझ नहीं आई// जिस दिन वो धरती पर आई// क्यों मां तक ना मुस्काई// चुप थे बाबा, चुप थी दादी//
चुप थे चाचा चाची// चिंता में दिखते थे पापा// और गुमसुम थी माई// देख के सबको हक्का-बक्का// दाई वहां पर आई, औऱ ज़ोर से बोली// लक्ष्मी आई ..लक्ष्मी आई. लक्ष्मी आई... लक्ष्मी
ये कैसी है ल-क्ष्मी जो घर में नहीं सुहाई../// हां लक्ष्मी आई..लक्ष्मी आई..
क्यों गणेश ना होते घर में// और ना होवे शंकर// क्यों विष्णु ना पैदा होते// और ना होए पैगबंर/// पर जब घर में बिटिया आती// दुनिया सुर में गाती// जिसे भी देखो वही दे रहा बस एक यही बधाई/// अरे लक्ष्मी आई..लक्ष्मी आई.. लक्ष्मी आई..लक्ष्मी
उमर से क्या है लेना देना// गर वो हो एक औरत// नीच है लोगों की नज़रें// पर जाती उसकी इज्जत
कपट किया था इंद्र ने //उसने ही नज़र गढ़ाई// पर दोषी बनी अहिल्या ही// उस पर ही मुश्किल आई
और कहते फिरते हरदम ये ही/// लक्ष्मी आई.. लक्ष्मी आई.. लक्ष्मी आई..लक्ष्मी
दान भी होता कन्या का// और बिकती भी है कन्या
दांव पे भी लगती कन्या ही// और बंटती भी है कन्या
कहीं दिया है भीख में उसको// कहीं बनी ये कमाई..
और कहते फिरते हरदम ये ही// लक्ष्मी आई.. लक्ष्मी आई.. लक्ष्मी आई.. लक्ष्मी
नहीं चाहती देवी बनना// और ना चाहे पुजना
नहीं चाहती हरदम वो// सजना के लिए ही सजना
नहीं चाहती, दुनिया उसको// समझे चीज़ पराई
जैसी है वो वैसी रहे/// बस यही है उसकी लड़ाई........// लक्ष्मी आई.. लक्ष्मी आई.. लक्ष्मी आई.. लक्ष्मी
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)