बिहार से पलायन को कभी तो गंभीरता से सोचना पड़ेगा
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बिहार से पलायन को कभी तो गंभीरता से सोचना पड़ेगा

बिहार पिछले कई सालों से कई विकसित राज्यों को पछाड़कर विकास दर के मामले में पहले स्थान पर बना हुआ है. लेकिन वास्तव में यह लोगों के जीवन को कितना बेहतर कर पा रहा है. अभी भी बिहार में विकास का मतलब बेहतर सड़कें, बिजली और कुछ हद तक अपराध पर नियंत्रण तक ही सीमित हैं. इससे आगे बेहतर स्वास्थ्य, शिक्षा, औद्योगीकरण, नौकरियां और बेहतर कामकाजी माहौल के बारे में कोई चर्चा ही नहीं होती है.

बिहार से पलायन को कभी तो गंभीरता से सोचना पड़ेगा

"बिहार के लोग अपनी इच्छा से पलायन करते हैं, मजबूरी में नहीं" जब बिहार के मुख्यमंत्री और राज्य में 'विकास के प्रतीक' बन चुके नीतीश कुमार ने एक टीवी इंटरव्यू में जब ये वाक्य कहे तो उनके दिमाग में क्या चल रहा था? क्या वह मान चुके हैं कि मजबूरी में पलायन करने वाले लोगों की संख्या बहुत कम हो गई है? या वह परोक्ष तौर पर राज्य के विकास की अपनी सीमाओं को समझने लग गए हैं? दोनों ही पहलू विकास को लेकर बिहार की आकांक्षाओं को धाराशायी करने वाला है. राजनीतिक इच्छाशक्ति के जरिए अपराध पर नियंत्रण करने वाले नीतीश कुमार न सिर्फ बेहतर सड़क और बिजली मुहैया कराने वाले मुख्यमंत्री के तौर पर जाने जाते हैं, बल्कि उन्होंने बिहार को बेहतर जीवन जीने का सपना भी दिखाया.


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