कर्म की प्रधानता होनी चाहिए उसी के हिसाब से मूल्यांकन होना चाहिए. जो सम्पन्न हैं जाति से दलित हैं. यदि वह भी आरक्षण चाहते हैं तो वे दलित ही रहेंगे. अपनी सोच से अपने विचारों से. ना जाने क्यों जब-जब आगे बढ़ना चाहते हैं तब-तब कमजोर जातिगत भावनाए भारत को आहत कर देती हैं.
Trending Photos
जिधर दृष्टि डालों कुछ पाने की ही चाह है करने का ठेका सिर्फ देश के शहीदों का ही है, क्या मांगते हैं ये सैनिक फौजी हमसे कुछ नहीं सिर्फ देश की रक्षा में जीवन लगा देते हैं. और यहां नारे बुलन्द हो रहे हैं. मनमानी हो रही है. कानून व राष्ट्र से ऊपर उठकर जातिगत फैसले लिए जा रहे हैं. वर्षों पहले हुआ आरक्षण का नासूर इतना बढ़ गया कि आखिर तनिक से मुद्दे पर फूट ही गया विस्फोटक हो गया. भारत की तकदीर क्या यूं ही टुकड़ों में बिखर जायेगी?
हमारे राष्ट्र को क्या इस तरह तिल-तिल कर ये जातिगत भेदभाव खोखले करते जाएंगे. अमर देश के हर कोनो से ये अलग-अलग जाति के आरक्षण संबंधित मुद्दे उठते रहेंगे तो कैसे मजबूत रह पायेगा हमारा देश. आरक्षण खोखला कर रहा है समाज को. मानते हैं आरक्षण चाहिए पर आरक्षण उसे मिले जो गरीब हो, कमजोर वर्ग का हो. समाज में समानता का अधिकार होना चाहिए.
कर्म की प्रधानता होनी चाहिए उसी के हिसाब से मूल्यांकन होना चाहिए. जो सम्पन्न हैं जाति से दलित हैं. यदि वह भी आरक्षण चाहते हैं तो वे दलित ही रहेंगे. अपनी सोच से अपने विचारों से. ना जाने क्यों जब-जब आगे बढ़ना चाहते हैं तब-तब कमजोर जातिगत भावनाए भारत को आहत कर देती हैं. कभी जाट आन्दोलन के रूप में. भयंकर आगजनी तोड़फोड़ और दंगा क्या मजहब है इन लोगों की क्या जाति है. इनकी जो अपने कर्मों से भारत की आत्मा को छलनी कर रहे हैं, सिसक तो भारत ही रहा है ना.
मूक खड़े वाहन जब धूं-धूं कर जलते हैं तो उनसे किसी जाति की दुर्गन्ध नहीं उठती. उस समय देश की सम्पदा जलती है. हमारी अपनी अमूल्य चीजें नष्ट होती हैं हर उस शख्स का दिल रोता है जो ये आरक्षण नहीं चाहता फिर चाहे वह सामान्य जाति का हो या दलित का. इंसान ईश्वर की बनायी रचना है वो दलित कैसे हो सकता है उसके कर्म उसे दलित बनाते हैं.
खत्म होना चाहिए ये आरक्षण, जिसके अहसास तले दबकर आज भी दलितों की पहचान बनी हुई है. दलितों में बुद्धिजीवी पक्ष आज भी आहत है, क्योंकि स्वयं की मेहनत से पाकर भी जब समाज द्वारा आरक्षण का ठप्पा उस पर लगाया जाता है तो उसका सही मूल्यांकन नहीं हो पाता. सभी जाति से सब तरह के व्यक्ति होते हैं. जरूरी नहीं सभी आरक्षण चाहे. आरक्षण उन गरीबों को दे जो आज भी भूखे सोने की मजबूर हैं जो चौराहे, तिराहों पर भीख मांग रहे हैं. भरी दोपहरी में बच्चो को लेकर पेट की आग बुझाने निकल पड़े हैं, जिन मजबूर लोगों की झोपड़ियों में जलाने को चिराग नहीं है, खाने को भेजन नहीं है, पीने के पानी के लिए शोषण किया जा रहा है.
इतनी गरीबी जिस देश में कदम-कदम पर दिखाई देती हो, वहां आरक्षण के नाम पर देश की सम्पदा को यूं नष्ट कर देना क्या भारत की आर्थिक कमर तोड़ देने के लिए काफी नहीं है. समानता के अधिकार को स्वीकार करें. भारत लोकतांत्रिक देश है अलग-अलग मुद्दे उठकर इसकी प्रभुसत्ता को कमजोर न करें. कर्म करें, फल पायें, मुफ्त के पाने की कोशिश न करें, आवश्यकतानुसार हर जाति के गरीब को आरक्षण मिले कितने ही गरीब बच्चे जो सामान्य वर्ग के हैं आज भी स्वंय को बेबस व मजबूर पाते हैं उनकी दबी आवाज को सुनने वाला कोई नहीं है, क्योंकि स्वाभिमान उनका गहना है ओर मांगना उनके संस्कारों में नहीं.
जरूरत ये है कि सभी को आगे बढ़ने का अधिकार मिलना चाहिए. जातिगत आरक्षण खत्म हो, सभी को आगे बढ़ने का अधिकार मिलना चाहिए. जातिगत आरक्षण खत्म हो, सभी को समान अधिकार मिले, यदि यह सम्भव नहीं हुआ तो भले ही कानूनन आरक्षण का सहारा लेकर दलित आगे बढ़ जाये, सामाजिक दृष्टि से वे भेदभाव के पात्र ही रहेंगे. देश को खोखला करने वाले शख्स किसी के आदर के पात्र नहीं हो सकते.
देश की अखण्डता को नष्ट कर रहे हैं ये कभी भी सम्मान के पात्र नहीं हो सकते. दलित वह है, जो देश के टुकड़े कर रहा है आरक्षण की मांग कर रहा है. जनहानि कर रहा है. देश की संपदा नष्ट कर रहा है. जाति कोई भी दलित नहीं है छोटी-छोटी बातों पर उत्तेजित होकर हर गली, हर कूचे से टोलिया लेकर निकल पड़ना राष्ट्र की भावनाओं को आहत करना कानून व सरकार पर दोष लगाना बड़ा ही आम हो गया है, जरूरत है सख्त कदम की, कानून बनाकर छीन ले ये अधिकार इन देश की खोखला करने वाले असामाजिक तत्वों से जो समाज को समानता का अधिकार पाने से वंचित कर रहे है.
दुनिया इक्कीसवीं सदी में प्रवेश कर रही है और हम आज भी, पिछड़ी छोटी, दलित, सामान्य उलझनों में उलझे हुए हैं. कब होगा हमारा विकास-हम विकसित होने का ढ़ोंग मात्र ही कर रहे हैं. सरकार को चाहिए गरीबों का उद्वार करें, गरीबों को आरक्षण दें. दें आरक्षण हर उस जाति के गरीब को जो भारत की है जो हिन्दुस्तान की कहलायी जाती है हर उस वर्ग को आरक्षण दें जो समान मेहनत करके भी पिछड़ जाता है. समझें उसके दर्द को, जो आरक्षण नहीं चाहता, पर आरक्षण की मार में मारा जाता है.
महसूस करें समाज की तकलीफ को, हर व्यक्ति अधिकार से आगे बढ़े हैं, तभी यह दलित शब्द समाज के शब्द कोश से समाप्त होगा, अन्यथा सब कुछ पाकर भी आरक्षण का ठप्पा दलितों को दलित रहने पर ही मजबूर कर देगा. छीनना या मांगना सम्मान जनक नहीं जागरूक हो, योग्यता से हासिल करने में ही सम्मान समझें. बराबरी करना है तो समानता से जीने का अधिकार मांगें. आरक्षण नहीं. वेश को प्रमुख मानें गरीबों को अपना मानें बाकी हम सबको मिलकर ही देश को आगे ले जाना है, आरक्षण को मिटाना है. दलित सामान्य एक है योग्यता ही बिन्दु होना चाहिए, आइए इस बिन्दु की ही खोज करें.
(रेखा गर्ग सामाजिक विषयों पर टिप्पणीकार हैं)
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)