China News: अगले 11 साल में ताइवान और भारत पर हमला करेगा करेगा चीन! जवाब देने के लिए एकजुट हो रहे ये बड़े देश
Advertisement
trendingNow12288063

China News: अगले 11 साल में ताइवान और भारत पर हमला करेगा करेगा चीन! जवाब देने के लिए एकजुट हो रहे ये बड़े देश

India China News: चीन एक अखबार का सनसनीखेज दावा है कि अगले कुछ सालों में चीन भारत और ताइवान समेत 6 बड़े देशों के खिलाफ युद्ध करने जा रहा है. इसके लिए उसकी तैयारियां भी जोरों पर चल रही है. उसके नापाक इरादों को देखते हुए भारत- यूएस समेत बड़े देश भी एकजुट हो रहे हैं.

China News: अगले 11 साल में ताइवान और भारत पर हमला करेगा करेगा चीन! जवाब देने के लिए एकजुट हो रहे ये बड़े देश

China War Drill Against Taiwan and India: मोदी 3.0 के शपथग्रहण के बाद दुनिया भर की निगाहें भारत पर टिकी हैं क्योंकि भारत आने वाले 5 साल में दुनिया के विनाश को रोकने में बड़ी भूमिका निभाने वाला है. इस विनाश की आहट ताइवान से मिल रही है जहां मिडिल ईस्ट से बड़ा वॉर फ्रंट खुल सकता है. ताइवान को लेकर दुनिया की महाशक्तियों में बढ़ रहे तनाव के बीच भारत का झुकाव जिस तरफ होगा. उसका पलड़ा भारी हो जाएगा. प्रधानमंत्री मोदी ने चुनाव जीतने और शपथ ग्रहण के बीच ये भी साफ कर दिया कि अगले 5 साल में महाशक्तियों के बीच होने वाले महायुद्ध में भारत का रुख क्या होगा. ये महायुद्ध ही तय करेगा दुनिया में इक्कीसवीं सदी का बाकी बचा वक्त किसका होने वाला है. 

नई दिल्ली में मोदी 3.0 के शपथ ग्रहण में कुछ ऐसे मेहमान भी दिखाई दिए. जिनकी नई दिल्ली में मौजूदगी चीन को बहुत खल रही होगी. जिन्हें चीन ने भारत के खिलाफ एक औजार की तरह इस्तेमाल किया प्रधानमंत्री मोदी के तीसरे शपथ ग्रहण में उनकी मौजूदगी सिर्फ एक ट्रेलर है. मोदी 3.0 में ऐसे कई झटके चीन को मिलने वाले हैं. एक झटका तो मोइज्जू की दिल्ली में मौजूदगी से पहले और भारत में चुनाव के नतीजे आने के ठीक बाद भी चीन को लगा था. 

ताइवान की बधाई से जल-भुन गया चीन

जब ताइवान के राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री मोदी को चुनाव में जीत की बधाई दी थी और प्रधानमंत्री मोदी के जवाब से चीन जल भुन गया था. दूसरा झटका चीन को उस वक्त लगेगा जब चीन ताइवान पर कब्जा करने की कोशिश करेगा. दुनिया इस वक्त युद्धों के ज्वालामुखी के बीच सहमी हुई खड़ी है. यूरोप में रूस और यूक्रेन के बीच घमासान जारी है. मिडिल ईस्ट में इज़रायल और हमास की जंग जारी है लेकिन युद्ध के एक और ज्वालामुखी से लावा निकलना शुरू हो चुका है.

 इस बार युद्ध दो ऐसे देशों को बीच होगा जो मजबूत शक्तियां नहीं महाशक्तियां हैं. अमेरिका और चीन के बीच होने वाले संभावित युद्ध का मैदान बनने वाला है ताइवान और इस युद्ध के नतीजे का भारत पर भी असर पड़ना तय है. इसीलिए भारत ने भी अपनी राह चुन ली है. मोदी 3.0 की शुरूआत ही चीन के लिए अच्छी खबर लेकर नहीं आई है. 

जिनको युद्ध से डर लगता है. वो सिर्फ डर दिखाकर युद्ध जीतना चाहते हैं और जब इस डर का परमानेंट इलाज कर दिया जाता है तो गीदड़ भभकी देने वालों के पास युद्ध के सिवाय कोई चारा नहीं बचता. ऐसा ही हाल चीन का हो रहा है . ताइवान पर कब्जा करना शी जिनपिंग का वो सपना है जिसे चीन के राष्ट्रपति ने अपने पूरे देश का ख्वाब बना दिया है. लेकिन ताइवान के लिए मरने मारने की बात करने वाले चीन को दुनिया के दो बड़े लोकतांत्रिक देशों ने संदेश दे दिया है कि चीन ने अपना ख्वाब पूरा करने की कोशिश की तो उसका अंजाम सिर्फ तबाही होगी.

विस्तारवादी, अतिक्रमणकारी और दुनिया के लिए सिरदर्द लेकिन ताकतवर चीन ने अगर ताइवान पर हमला किया तो उसकी सेना का सामना दुनिया की सबसे आधुनिक और ताकतवर सेना से होगा. जो दुनिया के किसी भी कोने में युद्ध लड़ने और जीतने की ताकत रखती है. चीन जो लगातार ताइवान पर कब्जे की धमकी देता रहता है...उसको सुपर पावर अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने आखिरी चेतावनी दे दी है. ताइवान पर कब्जे की शी जिनपिंग की सनक इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि वो ताइवान का किसी मुल्क से दोस्ताना संबंध भी बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं. 

अमेरिकी राष्ट्रपति का चीन को संदेश

अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने साफ कर दिया है अगर चीन ने ताइवान पर हमला किया तो अमेरिका ताइवान की रक्षा करने के लिए अपनी सेना को उतार देगा. इस बयान के मायने हैं कि अगर चीन ने ताइवान पर कब्जा करने की कोशिश की तो विश्वयुद्ध शुरू हो जाएगा. ये बयान अमेरिका के राष्ट्रपति ने उस वक्त दिया है, जब अमेरिका की खुफिया एजेंसी ने ताइवान पर चीन के हमले की डेट का खुलासा भी कर दिया है.

अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए के मुताबिक शी जिनपिंग ने अपनी सेना को ताइवान पर कब्जे के लिए हमले का आदेश दे दिया है और चीन की सेना इस मिशन पर आगे बढ़ चुकी है. इ​सलिए अमेरिका भी चीन के काउंटर के लिए ताइवान को मजबूत करने के साथ साथ सीधे ताइवान बैटल फील्ड में उतरने को तैयार है. बाइडेन ने खुद एक इंटरव्यू मे ताइवान की रक्षा करने का एलान किया है. इसके बाद ताइवान में अमेरिका और चीन का युद्ध तय माना जा रहा है. 

यानि सबसे बड़ी और आधुनिक सेना अब चीन को घर में घुसकर मारने की तैयारी कर रही है और इस काम में उसे इस क्षेत्र की बड़ी शक्तियों की सबसे ज्यादा जरूरत होगी. अमेरिका के सहयोगी देश जापान में चीन को घेरने की तैयारी भी शुरू हो गई हैं. अमेरिका ने दुनिया के सबसे खतरनाक और आधुनिक लड़ाकू विमान एफ-22 रैप्टर को जापान के कडेना एयरबेस में तैनात कर दिया है. जो चीन से सिर्फ 650 किलोमीटर दूर है. यहां से ताइवान की दूरी भी इतनी ही है...एफ 22 रैप्टर ताइवान पर हमले की स्थिति में सिर्फ 10 से 15 मिनट में चीन को सबक सिखाने पहुंच जाएगा. 

4 बैटल ग्रुप उतार सकता है जंग में

अमेरिका के एयरक्राफ्ट कैरियर भी हिंद प्रशांत क्षेत्र मे तैनात हैं. जो किसी किले से कम नहीं. अमेरिका अपने 4 से 5 बैटल ग्रुप इस क्षेत्र में उतार सकता है. अब तो चीन से सिर्फ 6 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद ताइवान के किनमैन द्वीप पर भी अमेरिकी सैनिकों की मौजूदगी का खुलासा हो गया है. 

अमेरिका ने चीन की आक्रामकता के खिलाफ सहयोगियों के साथ विमर्श की बात कही है. इधर एशिया में चीन के दुश्मन और अमेरिका के दोस्त भारत ने भी ताइवान को लेकर अपना रुख साफ कर दिया है. प्रधानमंत्री मोदी ने 3.0 के लिए ताइवान की बधाई स्वीकार करके चीन की दुखती रग पर हाथ रख दिया. चीन दर्द से चीख उठा और तभी अमेरिका ने उसके जख्मों पर नमक डाल दिया. 

प्रधानमंत्री मोदी ने ताइवान को लेकर अपने फ्यूचर प्लान को ताइवान के राष्ट्रपति के बधाई वाले ट्वीट के जवाब में बता दिया था कि वो ताइवान से अपने संबंधों को घनिष्ठ करना चाहते हैं. लेकिन चिढ़े हुए चीन ने जब भारत को एक चीन के सिद्धांत का पालन करने और ताइवान की राजनीतिक चालों का विरोध करने की बात कही तो अमेरिका फौरन भारत के समर्थन में उतर आया. अमेरिका ने दो विदेशी नेताओं का एक दूसरे को इस प्रकार के बधाई संदेश देना राजनयिक शिष्टाचार का हिस्सा बताकर चीन को और चिढ़ा दिया. हालांकि चीन को मोदी 3.0 की शुरुआत में जो ज़ोर का झटका धीरे से लगा वो थी अपने खास नेता की दिल्ली में मौजूदगी.  

मोइज्जू भी निकले चीन के हाथ से

भारत में मोदी 3.0 शपथग्रहण में वो चेहरा भी मौजूद था, जिसे दुनिया चीन का टूल मानती है. मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मोइज्जू भी मोदी 3.0 शपथ ग्रहण में मौजूद रहे. नरेन्द्र मोदी के तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ के मौके पर मोहम्मद मोइज्जू को भारत क्यों आना पड़ा. अब तक भारत के ख़िलाफ़ नजर आ रहे मोइज्जू को मोदी से रिश्ते मधुर करने की जरूरत क्यों पड़ी और भारत में तीसरी बार मोदी सरकार से क्या क्या बदलने वाला है. इस बात की चर्चा अब सारी दुनिया में हो रही है.

मोइज्जू इस वक्त अपने चीन प्रेम को लेकर खुद अपने देश के निशाने पर हैं. माना जा रहा है मोदी 3.0 में उनकी मौजूदगी अपने पुराने पापों को धोने और  भारत से रिश्तों को सामान्य करने की कोशिश है. असल में मोइज्जू समझ चुके हैं भारत के बगैर मालदीव का गुजारा नहीं चलेगा. अगर भारत और मालदीव की सरकार के संबंध सुधरते हैं तो चीन के लिए कितना बड़ा झटका है. तो एक तरफ मोदी 3.0 में चीन को झटके पर झटके दिए जा रहे हैं दूसरी तरफ अमेरिका चीन का पक्का इलाज करने की तैयारी कर रहा है.

चीन की रॉकेट फोर्स ताकतवर हो रही है. जिसके जवाब में अमेरिका की स्पेस फोर्स ने अपनी घातक मिसाइल मिनटमैन का परीक्षण करके चीन को चेतावनी दे दी है. अमेरिका ने अपनी जिस सबसे शक्तिशाली मिसाइल मिनटमैन 3 का सफल परीक्षण किया है. यह मिसाइल 10000 किलोमीटर की दूरी तक मार कर सकती है. 24,000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ान भरने में सक्षम है और दुनिया के किसी भी कोने में परमाणु धमाका कर सकती है. इसे भी चीन पर दबाव बनाने की कोशिश समझा जा रहा है. 

अमेरिका से भिड़ने की तैयारी कर रहा चीन

चीन को भी खतरे का अंदाजा है, इसीलिए वह भी अमेरिका से संभावित युद्ध को लेकर तैयारियों में जुटा है. चीन ने अपनी रॉकेट फोर्स के साथ परमाणु जखीरे को बढ़ाना शुरू कर दिया है. अमेरिका के पास रूस के बाद सबसे ज्यादा बड़े परमाणु हथियारों के अलावा टैक्टिकल परमाणु हथियारों के बड़े भंडार मौजूद हैं. आशंका जाहिर की जा रही है अगर ताइवान पर चीन का हमला हुआ तो अमेरिका और चीन के बीच टैक्टिकल परमाणु वॉर शुरू हो जाएगी. 

इसका अंदाजा भी दुनिया को है अगर एक बार चीन और अमेरिका के बीच वॉर शुरू हो गई तो ये कहां तक जाएगी इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता, इसीलिए चीन ताइवान पर अब तक हमला करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है. अब तक चीन ने ताइवान पर हमले का अभ्यास किया है लेकिन वो एक ना एक दिन हमला भी करेगा ये भी तय है. दुनिया को गाहे बगाहे चीन ताइवान को लेकर अपने नापाक मंसूबों की जानकारी भी देता रहता है. 

दुनिया के देशों की ताइवान से दोस्ती की खबरें आएं या फिर ताइवान में लोकतंत्र मजबूत हो. ताइवान पर अपना कब्जा दिखाने के लिए चीन का सबसे बड़ा प्रोपेगैंडा होता है युद्धाभ्यास. चीन ने कुछ दिनों पहले ताइवान को धमकाने के लिए ऐसा ही युद्धाभ्यास किया...इसे Punishment' Military Drill का नाम दिया गया. एक्सपर्ट इसे ताइवान पर कब्जे की ड्रिल भी बता रहे हैं. 

चीन- ताइवान युद्ध का भारत पर कितना पड़ेगा असर

ताइवान ही क्यों दक्षिण चीन सागर में चीन की दादागीरी भी अमेरिका और चीन को आमने सामने खड़ा कर सकती है. अब चीन की तैयारी दक्षिण चीन सागर के समुद्री मार्ग पर कब्जा करने की है. अमेरिका और चीन के बीच युद्ध की स्थिति दक्षिण चीन सागर में भी बन रही है. फिलीपींस को दिए जा रहे अमेरिकी सहयोग से बौखलाए चीन ने ऐलान किया है कि वह दक्षिण चीन सागर में अपने दावे वाले जलक्षेत्र में प्रवेश करने वाले विदेशी नागरिकों को गिरफ्तार करने के लिए कानून बनाने जा रहा है. चीन का यह ऐलान अमेरिका के साथ सीधे सैन्य टकराव की वजह बन सकती है. 

तो फिलहाल चीन और अमेरिका दोनों एक दूसरे के खिलाफ युद्ध की तैयारी कर रहे हैं और भारत की निगाह अपने दुश्मन नंबर 1 चीन की ताइवान पर होने वाले किसी भी संभावित एक्शन की तैयारी पर टिकी हैं. 

चीन अगर ताइवान पर कब्जा कर लेता है तो इसका असर भारत की सुरक्षा और अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा. बढ़े हौसले के साथ चीन एलएसी पर भी आक्रामकता दिखा सकता है. ऐसे में भारत के लिए भी उन ताकतों का मजबूत होना अच्छी ख़बर है जो ताइवान पर आक्रमण के खिलाफ हैं. 

अमेरिका ने फिलहाल चीन को सीधी चेतावनी दे दी है कि अगर ताइवान पर हमला हुआ तो चीन को अमेरिका की ताकतवर सेना से टकराना होगा लेकिन इसके अलावा अमेरिका ताइवान को ऐसे ब्रह्मात्रों से लैस कर रहा है जिनसे ताइवान चीन को बड़ा सबक सिखा सकता है. >

किसी भी सेना को दो तरह के हथियारों की जरूरत होती है..पहले नंबर पर होते हैं हमला करनेवाले हथियार. जिससे दुश्मनों पर अटैक किया जाता है और दूसरे वो जिनसे खुद का, अपनी सेना का बचाव किया जाता है यानी रक्षा कवच. अमेरिका की सरकार बिना रुके ताइवान को लगातार दुनिया के सर्वश्रेष्ठ हथियारों से लैस कर रही है. 

ताइवान को बचाने के लिए यूएस ने बनाए खास हथियार

अमेरिकी सेना खुद ताइवान में मौजूद है. ताइवान में संघर्ष की आशंका अमेरिका को पहले से है. दावा तो ये भी है कि ताइवान के लिये अमेरिका ने कुछ स्पेशल वेपन्स भी बनाये हैं और अमेरिकी हथियारों से ताइवान के चारों तरफ एक ऐसा सुरक्षा कवच तैयार किया है, जिसे जिनपिंग की सेना चाहकर भी तोड़ नहीं पाएगी. 

चीन के आक्रमण पर ताइवान का जवाबी हमला

समंदर या आसमान में लक्ष्मण रेखा लांघते ही चीन की रेड आर्मी पर ताइवान का जवाबी हमला तय है. ताइवान और चीन के बीच मौजूद इसी खाड़ी में दुनिया का सबसे खतरनाक संघर्ष शुरु हो सकता है. वजह साफ है.. चीन के तानाशाह जिनपिंग ने ताकत के बल पर ताइवान को हड़पने की प्लानिंग की है. पर ऐसा ऑपरेशन चाइनीज आर्मी के लिए आसान नहीं होने वाला.

यूक्रेन युद्ध ने ताइवान जैसे देशों को नये जमाने के युद्ध का खतरनाक बारूदी ट्रेलर दिखाया है. ये भी समझाया कि छोटे-छोटे हथियारों से भी किसी पावरफुल सेना के हमले पर फुल स्टॉप लगाना मुमकिन है. ताइवान ने यूक्रेन से जो सबक लिया है. उसका चीन के संभावित अटैक पर असर जरूर पड़ेगा. 

रूस-यूक्रेन संघर्ष ने ये बात साबित की है कि जंग लड़ने और दुश्मन सेना से दो कदम आगे रहने के लिये सुपरपावर आर्मी जरूरी नहीं है..अगर किसी देश के पास छोटी सेना हो लेकिन साथ में नई तकनीक वाले हथियार हों तो वो दुश्मन पर भारी साबित हो सकती है..ताइवान सेना भी संख्या में कम है पर वो घातक हमला करने की क्षमता रखती है.

ताइवान आर्मी की सबसे बड़ी जिम्मेदारी..इस छोटे आइलैंड को चीन के आक्रमण से बचाने की है. जिनपिंग सेना ताकत के बल पर ताइवान पर कब्जे का सपना देख रही है..3 दशकों से चीन लगातार अपनी मिलिट्री पावर को बढ़ा रहा है..पर क्या ताइवान के शस्त्र भंडार में चीन को रोकने वाला ब्रह्मास्त्र आ गया है.

चीनी सेना से भिड़ने के लिए ताइवान भी तैयार

ताइवान के बारूदी भंडार में मौजूद सबसे खतरनाक मिसाइलों में एक है..AGM-154 ग्लाइड बम. अमेरिका की नेवी और एयरफोर्स ने मिलकर इसे बनाया है..ये बम हवा में तैरकर 130 किलोमीटर की दूरी तय कर लेगा. इसका टारगेट दुश्मन के एयरपोर्ट, मिसाइलें..और वो ठिकाने हैं जिनके करीब जाकर अटैक खतरनाक है. एयरक्राफ्ट से आसमान में इसे लॉन्च करते ही इसके विंग्स खुल जाते हैं और फिर ये ग्लाइड करते हुए खामोशी से बिना खबर दिये अपने टारगेट तक पहुंच जाता है.

ताइवान के पास ऐसे एक नहीं कई अस्त्र-शस्त्र हैं और इनमें से हर एक दूसरे से ज्यादा घातक है. अगला हथियार सबसे अलग है, जो चीन के रडार और एयर डिफेंस सिस्टम का काल बन जाएगा. दुश्मन के रडार किसी इलेक्ट्रॉनिक आंख की तरह दूर से ही मिसाइल..फाइटर जेट और ड्रोन का पता कर लेते हैं..अगर रडार पर हमला हो तो शत्रु सेना की देखने की क्षमता खत्म हो जाती है. उसको कुछ भी दिखाई नहीं देगा.

ताइवान ने अमेरिकन हार्म ((HARM)) यानी High-speed Anti-Radiation Missile. चीन के रडार को उड़ाने के लिए खरीदी है. ये किसी भी तरह के रडार सिग्नल को पकड़ लेगी और उसे नष्ट कर देगी. अगर चीन ने हार्म (HARM) के डर से अपना रडार बंद किया तो भी उसकी बर्बादी पक्की है. ये मिसाइल रडार की अंतिम लोकेशन याद रखती है. नये जमाने के हाईटेक युद्ध में रडार और कम्युनिकेशन सिस्टम को तबाह करना ही जीत की पहली गारंटी है.

अमेरिका ने ताइवान को पिछले कुछ वर्षों में ऐसे हथियारों की सप्लाई की है. जो किसी बैटल का नक्शा बदल देंगे. बात चाहे मिसाइलों की हो..या फिर फाइटर जेट्स की. अमेरिका ने चुन-चुनकर हर वो हथियार ताइवान की सेना को दिया है जो चीन की मुश्किलें बढ़ा सकते हैं. यानी अगर चीन ने ताइवान पर हमला करने की गलती की तो ये छोटा देश जिनपिंग की सेना को करारा जवाब देने की ताकत रखता है.

ताइवान को मिले हथियार जिनपिंग का हमला नहीं रोक सकते पर ये जरूर तय कर देंगे कि अटैक करने वाली चाइनीज आर्मी को जबरदस्त नुकसान हो और वो जंग के फैसले पर सौ बार सोचने के लिये मजबूर हो जाए.

किस तरीके से ताइवान पर अटैक करेगा चीन?

जब पूरी दुनिया का ध्यान यूक्रेन पर टिका था. तब अमेरिका और ताइवान ने अगले युद्ध की तैयारी शुरु कर दी. अमेरिका को पूरी आशंका है कि ताइवान के लिये उसको चीन से एक युद्ध लड़ना ही होगा. नये जमाने के युद्ध मिसाइलों-बमों-सटीक अटैक करनेवाले हथियारों से लड़े जाते हैं. जिनका स्टॉक तैयार किया जा रहा है. युद्ध स्तर पर हथियारों का प्रोडक्शन हो रहा है. कुछ खास तरह के वेपन्स बनाये जा रहे हैं, जिनकी ताकत बता रही है कि टारगेट पर जिनपिंग की सेना है.

लंबी दूरी तक मार करनेवाली एंटी शिप मिसाइलों की बड़ी खेप तैयार है. ताइवान ने बड़ी संख्या में अमेरिका से हार्पून (Harpoon) और मैवरिक (Maverick) मिसाइलों की डील की है. हार्पून मिसाइलें किसी भी मौसम में 200 किलोमीटर की रेंज में दुश्मन पर अटैक करने की ताकत रखती हैं..ये समंदर की लहरों के करीब उड़ान भरती हैं.. इसलिए आखिरी वक्त तक दुश्मन को इनका पता भी नहीं लगता. जब ये मिसाइलें करीब पहुंचती हैं तब तक देर हो जाती है..इन मिसाइलों को किसी फाइटर जेट के अलावा दूसरे युद्धपोत से भी लॉन्च किया जा सकता है. ताइवान के समुद्री किनारे पर ऐसी मिसाइलें चीन के युद्धपोतों का इंतजार कर रही हैं. 

ऐसे हथियारों का स्टॉक ताइवान में भी तैयार किया गया है ताकि संघर्ष शुरु होने पर ताइवान के पास खुद को बचाने और सुरक्षा करने की ताकत मौजूद रहे. अगर ताइवान में जंग छिड़ी तो चीन की सेना उसके चारों तरफ एक घेरा तैयार करके किसी भी बाहरी मदद को पहुंचने से रोक देगी. इससे बचने के लिये अमेरिका ने ताइवान में ही अपने हथियारों का गोदाम तैयार कर दिया है. अगर युद्ध हुआ तो इन्हीं हथियारों से ताइवान और अमेरिका के सैनिक फाइट करेंगे. इसका मतलब ये भी है कि चीन-ताइवान के बीच संघर्ष तय है..बस तारीख का इंतजार हो रहा है. 

ताइवान ने अपने भंडार में ऐसी मिसाइलें शामिल हैं जो युद्ध में चीन के पराजय की वजह बन सकती है.इस छोटे से देश ने ऐसे हथियार इकट्ठा किये हैं जो देखने में भले ही छोटे हैं पर उनका हमला जानलेवा है..

कंधे पर रखकर छोड़ी जाने वाली इन मिसाइलों से 70 टन के टैंक को भी तबाह और बर्बाद किया जा सकता है. मेड इन अमेरिका जेवलिन मिसाइल सिस्टम पूरी तरह ऑटोमैटिक है और ये टैंकों के सबसे कमजोर हिस्से पर अटैक करता है. जेवलिन मिसाइल.. टैंक और बख्तरबंद गाड़ियों पर हमेशा ऊपर से अटैक करती है. इससे हेलीकॉप्टरों को भी मार गिराया जा सकता है. इसका सॉफ्ट लॉन्च सिस्टम मिसाइल दागनेवाले को दुश्मन से भी बचाता है. दूर से देखने पर ये पता नहीं चलता कि जेवलिन कहां से लॉन्च हुई है. पहली मिसाइल छूटते ही दूसरी मिसाइल तुरंत फायर की जा सकती है. करीब 5 किलोमीटर रेंज वाली ये मिसाइल दुनिया की सबसे अचूक और बेरहम हथियारों में एक है.

ताइवान पर हमले की प्रैक्टिस कर रहा चीन

चीन और ताइवान की मुख्यभूमि के बीच करीब 180 किलोमीटर की दूरी है..इनके बीच समंदर है..यानि हमला आसमान और समुद्र के रास्ते होगा. अब अमेरिका ने बाकायदा एक प्रोजेक्ट लॉन्च किया है. जिसमें आसमानी हमला रोकनेवाली मिसाइलों पर अरबों रूपये खर्च किये जा रहे हैं. ऐसे खास हथियार बन रहे हैं..जो समंदर में मौजूद दुश्मन युद्धपोत पर सटीक अटैक कर पाएंगे.

चीन के फाइटर जेट्स अक्सर ताइवान की हवाई सीमा पर घुसपैठ करते हैं. अक्सर ताइवान के F-16 फाइटर जेट्स इनका पीछा करते हैं और तब चीन की वायुसेना बिना देर किये ही अपने एरिया में वापस चली जाती है. ऐसा करने की वजह है हवा में मार करनेवाली मिसाइल ऐमरैम (AMRAAM). ये जिस एरिया में मौजूद होती है वहां सौ-सौ किलोमीटर दूर तक दुश्मन एयरक्राफ्ट अलर्ट हो जाते हैं. ताइवान की ये मिसाइल दिन या रात. बारिश या बर्फ किसी भी मौसम में अटैक कर सकती है. कई युद्धों में इसने फाइटर जेट्स को मार गिराया है. सबसे खास है इस मिसाइल की स्ट्राइक रेट..एक बार ये दुश्मन जहाज को देख ले तो फिर उसका बचना लगभग नामुमकिन होता है.

ताइवान ने चीन के खिलाफ जो भी प्लान तैयार किया है उसमें लगातार सुधार किये जा रहे हैं. यूक्रेन की जंग पर अमेरिका और ताइवान करीबी नजर रखे हुए हैं. वहां जो भी बदलाव होते हैं उसका असर ताइवान के प्लान जिनपिंग में नजर आ रहा है..ताइवान सेना 70 के दशक के बाद पहली बार अपनी सेना की दो बटालियन को अमेरिका से ट्रेनिंग दिलवा रही हैं. इतनी तैयारी का एक ही मतलब है कि खतरा बहुत करीब है.

ताइवान की सेना ने यूक्रेन युद्ध से बड़ा सबक सीखा है. रूसी हमलों का मुकाबला करने के लिए यूक्रेन पश्चिमी देशों की सैन्य मदद पर निर्भर है. पर ताइवान ने पिछले कई वर्षों से फाइटर जेट्स और टैंकों का एक बेड़ा तैयार किया है. इसके साथ ही अमेरिका ने उसे कंधे पर रखकर फायर की जाने वाली मिसाइलें...ड्रोन्स और समुद्री बारूदी सुरंगों का फुल स्टॉक सप्लाई किया है..जो किसी भी आक्रमण की रफ्तार धीमी कर सकते हैं.

टेक्नॉलॉजी में चीन से आगे है ताइवान

लंबी दूरी की मिसाइलें किसी भी बैटलफील्ड का फ्यूचर हैं. यानी दुश्मन को देखे बिना ही सैंकड़ों किलोमीटर की दूरी से हमला शुरु हो जाएगा. अमेरिका का अनुमान है कि ताइवान-चीन के बीच सिर्फ तीन हफ्तों तक संघर्ष चला तो उसमें 5 हजार से ज्यादा मिसाइलें खर्च हो जाएंगी. अब नई जेनरेशन की सस्ती और कारगर मिसाइलों को डेवलप करने का प्रोजेक्ट चल रहा है. कोशिश है इन मिसाइलों में ऐसे उपकरण लगाएं जाएं जो आसानी से मिलें ताकि जरूरत के मुताबिक कम समय में ज्यादा मिसाइलों का प्रोडेक्शन हो सके. 

ताइवान के पास भले ही हथियार कम हों पर उनकी टैक्नोलॉजी एडवांस है और वो किसी भी चाइनीज वेपन से ज्यादा भरोसेमंद हैं. अगर ताइवान संघर्ष हुआ तो ये चीन के हथियारों का सबसे बड़ा टेस्ट होगा. अमेरिकी हथियारों की मार चीन की सेना और चीन के हथियार बाजार दोनों पर भारी पड़ सकती है..अगर जंग का नतीजा ताइवान के पक्ष में हुआ तो जिनपिंग को डबल नुकसान होगा.

अमेरिकी हथियार ताकत और तकनीक के मामले में चीन के मुकाबले इक्कीस हैं.. दुनिया में सबसे ज्यादा युद्धों में अमेरिकी हथियार इस्तेमाल किये गये हैं.. इन्हें जांचा-परखा जा चुका है..इनकी ताकत के बारे में कोई कंफ्यूजन नहीं है..ताइवान आर्मी, मेड इन यूएसए वेपन्स की मदद से चीन को टक्कर देगी..और ये भी हो सकता है कि उन्हें पीछे हटने या रुकने के लिए मजबूर कर दे.

ताइवान को अमेरिका ने पैट्रियट मिसाइल डिफ़ेंस सिस्टम दिया है. जो चीन के मिसाइल और ड्रोन हमलों के ख़िलाफ़ एक कारगर हथियार साबित होगा..इस मिसाइल सिस्टम की मदद से दुश्मन के हवाई हमलों को आसमान में ही रोका जा सकता है. पेट्रियट मिसाइल दुश्मन की मिसाइलों को उड़ाने के लिए इस्तेमाल की जाती है. 40 किलोमीटर से लेकर 160 किलोमीटर तक इसकी रेंज है..इसका इस्तेमाल शहरों और हाई वैल्यू टारगेट्स की सुरक्षा के लिये किया जाता है. पेट्रियट मिसाइल सिस्टम ताइवान के चारों तरफ ये ऐसा घेरा है जो चीन की मिसाइलों पर हवा में ही फंदा कस देगा.

400 लड़ाकू विमानों का मजबूत बेड़ा

अमेरिका की मदद से ही ताइवान अगले दो सालों में लड़ाकू विमानों का दोहरा शतक लगाने वाला है..ताइवान के पास अमेरिकी एफ-16 फाइटर जेट्स हैं और इनकी मदद से ज्यादा अमेरिकी मिसाइलों को लॉन्च किया जाएगा. ताइवान की सेना के पास साल 2026 तक 200 से ज्यादा अमेरिकन फाइटर जेट्स होंगे. अगर सभी लड़ाकू विमानों को जोड़ें तो ये आंकड़ा 400 के पार पहुंच जाएगा. एक छोटे देश के पास इतने लड़ाकू विमान दुश्मन के लिये बहुत डेंजरस साबित होंगे. सीधे-सीधे कहें तो ताइवान के फाइटर जेट्स और उनपर लगने वाली मिसाइलें चाइनीज हमले को रोकने के लिए बड़ा पलटवार कर सकती हैं.

ताइवान को अमेरिका से हथियार मिल रहे हैं और मोदी 3.0 से समर्थन मिल रहा है..ये देखकर बीजिंग के होश उड़ गये हैं. असल में जिनपिंग के तीन दुश्मनों अमेरिका, भारत और ताइवान ने हाथ मिला लिया है..और यही चीन के लिए नंबर वन टेंशन है. ताइवान पर चीन की नजऱ है. फिलीपींस..वियतनाम और जापान के कुछ हिस्सों पर भी चीन अपना दावा करता है. हर पड़ोसी के साथ चीन का सीमा विवाद है. इस लिस्ट में भारत का नंबर भी आता है..इसी वजह से एलएसी पर चीन और भारत के सैनिकों का जमावड़ा लगा हुआ है .

लेकिन चीन से विवाद वाले दूसरे देशों और भारत में एक बड़ा फर्क है. विवाद की स्थिति में उन्हें चीन को जवाब देने के लिए सहयोगी की जरूरत है लेकिन भारत चीन को मुंहतोड़ जवाब अपने दम पर दे सकता है. मोदी 3.0 में जवाब देने की ये ताकत और ज्यादा बढ़ने वाली है. जब आपका दुश्मन मजबूत होता है तो शांतिकाल में अपनी तैयारियों को इतना मजबूत कर लेना चाहिए कि युद्धकाल में दुश्मन को कमज़ोर किया जा सके. भारत इस बात को बखूबी समझता है. ताइवान पर चीन का कब्ज़ा भारत के हित में नहीं है. इसलिए मोदी 3.0 की शुरूआत में ही चीन को ताइवान पर साफ संदेश दे दिया गया है...अगले 5 साल में भारत अपनी रक्षा तैयारियों और ताइवान से दोस्ती दोनों को मजबूत करने जा रहा है. 

ताइवान से अपने संबंधों को मजबूत करना भारत के लिए हर लिहाज़ से जरूरी है. पहली जरूरत चीन की दादागीरी का जवाब देने के लिए. दूसरी जरूरत ताइवान की चिप टेक्नोलॉजी के लिए. भारत ताइवान की ये साझेदारी चीन पर भारी पड़ सकती है. 

चीन ने पिछले कुछ दशकों में अपनी सैन्य ताकत में सबसे ज्यादा इजाफ़ा किया है. जिन जिन देशों से चीन का सीमा विवाद है...उन्हें डराकर या युद्ध के जरिए चीन अपने दावे वाले इलाकों को हड़पना चाहता है. जिन देशों से चीन की सीमा जुड़ती है लगभग उन सभी देशों से चीन का सीमा विवाद है. कुछ छोटे देशों को चीन डरा सकता है लेकिन ताइवान, जापान, फिलीपींस, दक्षिण कोरिया और वियतनाम जैसे देशों के साथ अमेरिका खड़ा है. भारत खुद चीन को मुंह तोड़ जवाब दे सकता है. ऐसे में चीन इन देशों से युद्ध की तैयारी कर रहा है. 

अगले 50 साल में चीन लड़ेगा 6 युद्ध

चीन के एक अख़बार का दावा है कि चीन अगले 50 सालों में 6 बड़े युद्ध शर्तिया लड़ने जा रहा है. इस लिस्ट में चीन और भारत का युद्ध भी शामिल है. जो  2030 से 2035 के बीच हो सकता है. भारत और चीन के बीच सीमा विवाद नहीं सुलझा है. दोनों देशों की सेनाएं एलएसी पर तैनात हैं. सैन्य इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत किया जा रहा है. दुनिया भी मानती है ये किसी संभावित युद्ध की तैयारियां हैं. 

कुछ दिनों पहले भारत ने अपने 10 हज़ार सैनिकों को पश्चिमी सीमा से हटाकर एलएसी पर तैनात कर दिया. इससे भी चीन को काफी मिर्ची लगी थी. गलवान के बाद से चीन और भारत के संबंधों में सीमा पर तनाव बरकरार है. चीन ने सीमा पर बड़ी संख्या में हथियार तैनात किए, जिसके जवाब में भारत ने भी घातक हथियार एलएसी के पास पहुंचा दिए. 

चीन का रक्षा बजट 232 बिलियन डॉलर दुनिया में अमेरिका के बाद नंबर दो पर है. रूस और अमेरिका के बाद चीन ही वो देश है जिसने अपनी सेना के लिए देश में बड़ा मैन्युफैक्चरिंग इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार किया है. युद्धपोतों की संख्या के लिहाज से चीन की नेवी अमेरिका से आगे निकल चुकी है. चीन 2030 तक 1 हजार परमाणु हथियार तैयार करने वाला है. हालांकि चीन की ये सैन्य प्रतिस्पर्धा अमेरिका से मुकाबले के लिए है लेकिन भारत की सीमा पर भी चीन की तैयारियां खतरनाक हैं.  

चीन एलएसी के पास अपने लड़ाकू विमानों की संख्या भी बढ़ा रहा है..भारत के रफाल लड़ाकू विमानों के जवाब में चीन ने अपने जे 20 और जे 10 जैसे लड़ाकू विमानों को सिक्किम के पास तैनात किया है. चीन ने पाकिस्तान को भी जे 10 लड़ाकू विमान दिए हैं. ये तैयारियां बताती हैं चीन के इरादे ठीक नहीं. 

चीन जे 20 लड़ाकू विमान स्टील्थ और पांचवी पीढ़ी का बताता है, जिसका मुकाबला वो अमेरिका के एफ 22 रैप्टर से करता है. लेकिन इसकी क्षमताओं पर सवाल उठते रहे हैं. फिर भी चीन की सैन्य तैयारियां कान खड़ा करने वाली हैं. 

रक्षा विशेषज्ञ भी चीन से सतर्क रहने की नसीहत देते हैं और मोदी 2.0 में इसकी तैयारी भी शुरू कर दी गई थी. चीन से युद्ध की स्थिति में भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती लंबे खिंचे युद्ध के दौरान गोला बारूद की कमी हो सकती है क्योंकि आयात किए गए हथियारों से लंबा युद्ध नहीं लड़ा जा सकता है. 

चीन 6 युद्धों को लड़ने के लिए अपनी सेना को लगातार मजबूत कर रहा है. लेकिन भारत भी मजबूत दुश्मन के खिलाफ चुपचाप नहीं बैठा. अगले 5 साल में भारत रक्षा क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन करने वाला है..जो भारत के दुश्मनों के लिए बुरी खबर है. भारत ने यूक्रेन वॉर से सबक सीखकर रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की तैयारी पहले ही शुरू कर दी है और चीन को चुनौती देने वाले हथियार भी इकट्ठे किए जा रहे हैं.  

चीन से निपटने के लिए भारत की तैयारियां तेज

भारत एक तरफ दुनिया में सबसे ज्यादा हथियारों का आयात करने वाला देश है तो दूसरी तरफ अब उसकी योजना हथियारों का निर्यात करने वाला देश बनने की है. भारत अब देश में फाइटर प्लेन...अटैक हेलीकॉप्टर..टैंक..होवित्ज़र..से लेकर सबमरीन...युद्धपोत यहां तक की एयरक्राफ्ट कैरियर भी बना रहा है. बंदूक के लिए गोलियां और तोप और टैंक के लिए गोले भी देश में तैयार हो रहे हैं. भारत की ब्रह्मोस जैसी मिसाइलें अब चीन के फिलिपींस जैसे दुश्मनों ने भी भारत से खरीदकर तैनात कर दी हैं..जिससे चीन को और मिर्ची लगी है. मोदी 3.0 के पहले भाषण में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने डिफेंस सेक्टर को आत्मनिर्भर बनाने का एलान करके चीन ​की चिंता और बढ़ा दी है. 

जाहिर सी बात है चीन को काउंटर करना है तो भारत में बने हथियारों से ही करना होगा. इसके लिए आकाश और ज़मीन के साथ समंदर में भी तैयारी हो रही हैं. भारत ने पहला स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर समंदर में उतार दिया है. लेकिन ये तो बस शुरुआत है. भारत की योजना अगले 5 साल में अपनी नौसेना को और ज्यादा मजबूत करने की है..अगले 5 साल में भारत को अपना तीसरा एयरक्राफ्ट कैरियर भी मिल सकता है..समंदर में भारत यहीं पर नहीं रुकने वाला. अगले 5 साल में कई घातक युद्धपोत और सबमरीन भी भारतीय नौसेना का हिस्सा होंगे.

भारत की योजना 5 से 6 एयरक्राफ्ट कैरियर तैयार करने की है. 5 से 6 एयरक्राफ्ट कैरियर तैयार करके भारत सिर्फ अपना नहीं चीन से पीड़ित दूसरे देशों का सिरदर्द भी कम कर पाएगा. इससे हिंद महासागर में भारत का दबदबा और ताकत और ज्यादा बढ़ जाएगी. जापान...फिलीपिंस..वियतनाम और मलेशिया जैसे देशों पर भी चीन का दबाव कम होगा. 

भारत अपनी सैन्य ताकत बढ़ा रहा है और चीन के पड़ोस में मौजूद ताइवान से रणनीतिक..व्यापारिक और तकनीक के क्षेत्र में गठबंधन और मजबूत करने की कोशिश है...भारत और ताइवान चीन से साझा खतरे को देखते हुए नौसेना के क्षेत्र में ख़ुफ़िया जानकारी और सूचना साझा करने को लेकर एक तंत्र विकसित करने में लगे हुए हैं...जिससे चीन का बीपी बढ़ता रहता है.. 

सेमीकंडक्टर क्षेत्र में भारत ताइवान की दोस्ती चीन के लिए बड़ा खतरा है. चीन के खिलाफ भारत और ताइवान की दोस्ती चीन से चिप वॉर के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है...ताइवान चिप का चैंपियन है और भारत इस क्षेत्र में बड़ा खिलाड़ी बनने की तरफ आगे बढ़ चुका है. रक्षा और अर्थव्यवस्था दोनों ही क्षेत्रों में चिप से चीन को चित करने की तैयारी की जा रही है. ताइवान के बड़े सेमीकंडक्डर निर्माताओं की भारत में दिलचस्पी भी चीन में चर्चा का विषय है...और इसकी वजह भी बेहद खास है.

अमेरिका से भारत का बढ़ रहा सैन्य सहयोग

मोदी 3.0 में भारत ताइवान की दोस्ती और सहयोग का बड़ा अध्याय खुल सकता है. भारत क्षेत्र की बड़ी सैन्य ताकत है...अमेरिका और भारत के रणनीतिक संबंध मजबूत होते जा रहे हैं और अमेरिका...इस क्षेत्र में चीन के खिलाफ एक चक्रव्यूह भी तैयार कर रहा है. अगर चीन ने ताइवान पर हमला किया तो वो इस चक्रव्यूह में फंस जाएगा. 

अमेरिका ने चीन के खिलाफ एक चक्रव्यूह तैयार किया है. जिसमें तीन किरदार हैं.. पहला हथियार..दूसरा युद्धपोत और तीसरे नंबर पर हैं सैन्य अड्डे. सेकेंड वर्ल्ड वॉर के बाद से ऐसी तैयारियां पहली बार हो रही हैं..ऐसा लग रहा है मानो चीन की घेराबंदी शुरु हो चुकी है...चीन के आसपास मौजूद देशों से लेकर कुछ हजार किलोमीटर दूर अमेरिका सहयोगी तैयार कर रहा है..चीन के खिलाफ वॉशिंगटन ने साम-दाम-दंड-भेद यानी हर उपाय अपना कर एक दीवार बना दी है और जिनपिंग चाहकर भी इस अभेद्य चक्रव्यूह को तोड़ नहीं पा रहे हैं.

अमेरिका के सबसे तेज रफ्तार B1-B बमवर्षक विमान, दुनिया का सबसे महंगा और अदृश्य एयरक्राफ्ट B-2 बॉम्बर, अमेरिका की सबसे खतनाक परमाणु मिसाइलों वाली सबमरीन, और अमेरिका का एयर डिफेंस सिस्टम थाड (THAAD). ये सभी घातक हथियार अमेरिका के नौसैनिक अड्डे गुआम में मौजूद हैं..गुआम से ही अमेरिका ने चीन के खिलाफ जंग लड़ने की पूरी मिलिट्री तैयारी की है. 

चीन के पास अमेरिका का सबसे खतरनाक सैन्य अड्डा है गुआम . प्रशांत महासागर में गुआम वो ठिकाना है जहां पर अमेरिका के लंबी दूरी के बमवर्षक विमान मौजूद हैं. अमेरिका की परमाणु पनडुब्बियों के ठहरने का इंतजाम है..गुआम में ही अमेरिका ने अपनी सबसे तेज रफ्तार वाली हाइपरसोनिक मिसाइलों का सफल परीक्षण किया है. अमेरिकी डिफेंस एक्सपर्ट तो ये भी दावा करते हैं कि गुआम से ही अमेरिका अपना अगला युद्ध लड़ेगा..

चीन से करीब 3 हजार किलोमीटर की दूरी पर गुआम मौजूद है और यहां पर अमेरिका ने अपने सभी खतरनाक हथियार तैनात कर रखे हैं. गुआम के एयर फोर्स बेस पर अमेरिका के परमाणु हमला करनेवाले विमान मौजूद रहते हैं. ये एयरक्राफ्ट नागासाकी पर किये गये परमाणु हमले से 60 गुना ज्यादा ताकतवर न्यूक्लियर बम लेकर उड़ान भर सकते हैं और किसी दुश्मन पर हमला भी कर सकते हैं. 

गुआम बेस से ही अमेरिका ने अपनी हाइपरसोनिक मिसाइल का सफल परीक्षण किया. ये मिसाइलें 24 हजार किलोमीटर की रफ्तार से चलेंगी और सिर्फ 8 मिनट में ही गुआम से चीन तक की दूरी तय कर लेंगी...अमेरिका का एक B1-B बमवर्षक विमान कुल मिलाकर 31 हाइपरसोनिक मिसाइलें ले जा पाएगा और यह चीन के लिए सबसे बड़ी खतरे की ख़बर है.

गुआम में अमेरिका ने बहुत बड़ा बारूदी भंडार भी तैयार है..यहां मजबूत कंक्रीट की मदद से हथियारों को रखने का गोदाम बनाया गया है. जो जमीन की गहराई में है..यानी हमले के बावजूद ये भंडार सुरक्षित रहेंगे.

चीन के लिए गुआम अकेला खतरा नहीं है. इसके करीब ही अमेरिका ने दूसरे देशों में भी ऐसी मिसाइलें तैनात की हैं, जिनके निशाने पर जिनपिंग आर्मी के ठिकाने हैं. चीन के करीब मौजूद जापान को अमेरिका ने एक ऐसी मिसाइल दी है..जो 1600 किलोमीटर दूर तक अचूक अटैक करती है..इस हथियार का नाम है टोमाहॉक मिसाइल((Tomahawk Missile)).अमेरिका अक्सर इस मिसाइल का इस्तेमाल अपने दुश्मनों के खिलाफ करता है. जापान ने 400 टोमाहॉक मिसाइलें खरीद कर सीधे बीजिंग को अलर्ट मैसेज भेजा है.

जापान भी चीन के खिलाफ कर रहा तैयारी

जापान ने अमेरिका से लंबी दूरी तक साइलेंट अटैक करनेवाली टोमाहॉक मिसाइलों की डील की है..ये एक लंबी दूरी तक अटैक करनेवाली क्रूज मिसाइल है..अक्सर युद्धपोत और सबमरीन से ये मिसाइल लॉन्च करके जमीन पर किसी लक्ष्य को टारगेट किया जाता है..टोमाहॉक एक हरफन-मौला मिसाइल हैं यानी जरूरत के मुताबिक अलग-अलग तरीके के हमले कर सकती है.. चाहे जमीन पर किसी बंकर नष्ट करना हो या फिर समंदर में चल रहे किसी युद्धपोत को टारगेट बनाना हो..टोमाहॉक से हर तरह का हमला मुमकिन है..जापान से चीन की राजधानी करीब 1400 किलोमीटर दूर है..और ये मिसाइल 16 सौ किलोमीटर से ज्यादा दूर जा सकती है..यानी जापान से बीजिंग तक आक्रमण संभव है. 

चाइनीज खतरे का मुकाबला करने के लिये जापान और अमेरिका मिलकर गठबंधन बना चुके हैं. इसे अमेरिका-जापान के सिक्योरिटी अलायंस में पिछले 60 वर्षों का सबसे बड़ा बदलाव बताया जा रहा है..जापान ने अपने डिफेंस बजट में रिकॉर्ड बढ़ोतरी की है..2024 में जापान की सेना 56 बिलियन डॉलर तक खर्च करेगी..साथ ही जापान की स्ट्राइक करने की क्षमता को भी बढ़ाया जा रहा है..जापान में भी नये मिलिट्री बेस तैयार किये जा रहे हैं.

प्रशांत महासागर में चीन को फंसाने के लिए एक जाल बिछाया जा रहा है. अमेरिका ने कई देशों के साथ सैन्य संबंध बनाये..कुछ देशों को हथियार दिये.. कुछ देशों में अपनी मिसाइलें तैनात की और जब इन सभी को मिलाकर देखा गया तो सबके टारगेट पर चीन ही दिखाई दिया.

ताइवान के साथ-साथ जापान पर भी चीन का खतरा मंडरा रहा है..जापान ने अपने एक आइलैंड पर चीन के अटैक को रोकने और घुसपैठिया सेना को खदेड़ने की मिलिट्री ड्रिल को अंजाम दिया है..2023 के अंत में हुई इस ड्रिल में जमीन..समंदर और आसमान यानी तीन तरफ से हुए हमले से बचाने की तैयारी हुई..हाल में जापान और अमेरिका के बीच हुई ज्वाइंट मिलिट्री एक्सरसाइज में चीन को दुश्मन नंबर वन बताया गया.. लेकिन जापान को खतरा सिर्फ चीन से ही नहीं बल्कि जिनपिंग के दोस्त उत्तर कोरिया से भी है..अब अमेरिका ने चीन को काउंटर करने के लिए हजारों किलोमीटर दूर जाकर भी तैयारी शुरु कर दी है.

चीन और ऑस्ट्रेलिया के बीच करीब 7 हजार किलोमीटर की दूरी है.  लेकिन अब ऑस्ट्रेलिया भी चीन के खिलाफ अमेरिका का सहयोगी बन गया है..ऑस्ट्रेलिया को अमेरिका से परमाणु पनडुब्बी की तकनीक मिली है..ये पनडुब्बियां पानी में लगभग अदृश्य हो जाती हैं..यानी इनका पता लगाना असंभव होता है..और इनकी मदद से लंबी दूरी तक हमला करना भी संभव है..एक बार तैनात होते ही चीन के खिलाफ ये अमेरिका का सबसे कारगर हथियार बन जाएंगी.

ऑस्ट्रेलिया भी ड्रैगन को दबोचने के लिए रेडी

ये पनडुब्बियां न्यूक्लियर एनर्जी से चलनेवाली अमेरिका की लेटेस्ट सबमरीन हैं..जिन्हें Virginia-class के नाम से जाना जाता है..ये दुश्मन की पनडुब्बियों के खिलाफ ऑपरेशन चला सकती हैं और जरूरत के मुताबिक निगरानी से लेकर...समंदर के किनारे और सैंकड़ों-हजारों किलोमीटर दूर जाकर शक्ति प्रदर्शन भी कर सकती हैं..इनमें टॉरपीडो से लेकर मिसाइलों तक हर तरह का गोला-बारूद मौजूद है..नई तकनीक से बनी ये पनडुब्बियां साल 2060 से आगे 2070 तक भी काम करती रहेंगी..और जबतक समंदर की लहरों के नीचे ये हथियार लगातार चीन के खिलाफ पहरा देता रहेगा..

अमेरिका..जापान..ऑस्ट्रेलिया..ताइवान..गुआम में मिलिट्री तैयारियों को देखेंगे तो एक बात क्लियर है कि जिनपिंग सेना चाहे कितनी भी कोशिश कर लें, उसके लिये इतने देशों की संयुक्त सेना से पार पाना मुश्किल ही नहीं करीब-करीब नामुमकिन होगा..फिलहाल एक बात क्लियर है अगर चीन की सेना ने ताइवान में कदम रखा तो फिर बीजिंग पर बम बरसने शुरु हो जाएंगे..

अमेरिका और चीन एक-दूसरे से भिड़ने के लिये तैयार हैं.. ताइवान तो बस एक बहाना है..असल में चीन और अमेरिका एक-दूसरे को अपनी ताकत दिखाना चाहते है..फिलहाल ताइवान की बैटलफील्ड में जिसका पलड़ा भारी होगा..वही सुपरपावर की गद्दी का हकदार बनेगा. दुनिया ये भी जानती है मोदी 3.0 में भारत वो ताकत बनने वाला है जिसकी दोस्ती ये गद्दी दिला सकती है तो दुश्मनी हमेशा हमेशा के लिए सुपरपावर की रेस से बाहर कर सकती है. 

Trending news