DNA ANALYSIS: बेरूत धमाके ने दिलाई हिरोशिमा-नागासाकी परमाणु हमले की याद
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DNA ANALYSIS: बेरूत धमाके ने दिलाई हिरोशिमा-नागासाकी परमाणु हमले की याद

बेरूत में हुए धमाके को सदी का सबसे बड़ा धमाका भी कहा जा रहा है और इस धमाके की तस्वीरों की तुलना, जापान के हिरोशिमा और नागासाकी की तस्वीरों से की जा रही है, जहां आज से 75 वर्ष पहले अमेरिका ने परमाणु बम गिराया था. 

DNA ANALYSIS: बेरूत धमाके ने दिलाई हिरोशिमा-नागासाकी परमाणु हमले की याद

नई दिल्ली: एक चिंगारी कैसे पूरे शहर को तबाह कर देती है, लेबनान की राजधानी बेरूत इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. बेरूत में दो दिन पहले ऐसा धमाका हुआ है, जिससे पूरा शहर उजड़ गया है. इसे सदी का सबसे बड़ा धमाका भी कहा जा रहा है और इस धमाके की तस्वीरों की तुलना, जापान के हिरोशिमा और नागासाकी की तस्वीरों से की जा रही है, जहां आज से 75 वर्ष पहले अमेरिका ने परमाणु बम गिराया था. बेरूत में परमाणु विस्फोट तो नहीं हुआ, लेकिन वहां पर धमाका, परमाणु विस्फोट की तरह ही था. 

बेरूत में जिस तरह का धमाका हुआ, जिस तरह से धमाके के बाद आग का गोला और मशरूम के आकार में भयानक धुआं दिखा, वैसा धमाका परमाणु विस्फोट में देखा जाता है. ये इतना बड़ा धमाका था, कि आसपास के देशों की जमीन भी कांप गई. बेरूत से 200 किलोमीटर दूर साइप्रस में इस धमाके को सुना गया. अब आप कल्पना कीजिए कि खुद बेरूत शहर का क्या हाल हुआ होगा. इस धमाके से 20 लाख की आबादी वाले बेरूत में 3 लाख लोग बेघर हो गए. 135 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और 5 हजार से ज्यादा लोग घायल हो चुके हैं. जब ये धमाका हुआ, उस वक्त बेरुत में शाम के 6 बज रहे थे. 

कैसे हुआ धमाका
बेरूत में धमाका कैसे हुआ? धमाके की वजह क्या थी ? ये भी जानना जरूरी है. असल में इस धमाके के पीछे एक लापरवाही थी, जिसने पूरे शहर को बर्बाद कर दिया. बेरूत शहर के बंदरगाह पर एक गोदाम में करीब 2 हजार 750 टन अमोनियम नाइट्रेट रखा था. जिसमें आग लगने से इतना बड़ा धमाका हो गया.

अमोनियम नाइट्रेट एक औद्योगिक केमिकल होता है. जिसका इस्तेमाल खाद बनाने के लिए किया जाता है और जिसे खदानों में खनन के लिए विस्फोटक की तरह भी इस्तेमाल किया जाता है. अगर इसे सुरक्षित तरीके से रखा जाए तो आम तौर पर इससे कोई खतरा नहीं होता. लेकिन किसी तरह से आग के संपर्क में आने या असुरक्षित तरीके से रखे जाने पर, अक्सर अमोनियम नाइट्रेट बड़ा खतरा बन जाता है और इससे कई बड़े हादसे भी हो चुके हैं. कई बार आतंकवादियों ने भी इसका इस्तेमाल बम बनाने के लिए किया है.

बेरूत के धमाके में बड़ी लापरवाही ये थी कि वहां के बंदरगाह के एक वेयरहाउस में 2 हजार 750 टन अमोनियम नाइट्रेट, पिछले 7 वर्षों से रखा था, लेकिन इसकी सुरक्षा को लेकर कोई भी सावधान नहीं था और ना ही सबको इसकी जानकारी थी. इतना अमोनियम नाइट्रेट, रूस के एक समुद्री जहाज के जरिए 2013 में बेरूत पहुंचा था. ये जहाज मोजाम्बिक जा रहा था, लेकिन पैसे की तंगी से ये लोग जहाज को बेरूत में ही छोड़कर चले गए.

इस जहाज में रखे अमोनियम नाइट्रेट को तब बेरूत बंदरगाह के एक गोदाम में रख दिया था और तब से ये वहीं था और इसे सुरक्षित रखने के लिए कोई कदम नहीं उठाए गए.

आखिर आग लगी कैसे? 
अब तक ये पता नहीं चल पाया है कि बेरूत के बंदरगाह में रखे 2 हजार 750 टन अमोनियम नाइट्रेट तक आखिर आग कैसे पहुंची. कई लोग बता रहे हैं कि इसके बगल में ही पटाखों का एक गोदाम था, जिसमें पहले धमाका हुआ और फिर यहां से अमोनियम नाइट्रेट के गोदाम में आग लगी. लेकिन कई लोग ये भी कह रहे हैं कि वहां पर एक दरवाजे की वेल्डिंग का काम चल रहा था, जिससे निकली चिंगारी, अमोनियम नाइट्रेट तक पहुंची. अब कारण जो भी हो, लेकिन इसने बेरूत ही नहीं, पूरे लेबनान को अगले कई वर्षों तक बहुत बड़े संकट में डाल दिया है.

इस धमाके की वजह से बेरूत में वो गोदाम भी तबाह हो गया. जहां पर लेबनान का 85 प्रतिशत अनाज स्टोर करके रखा जाता है. यानी लेबनान के लिए अब भूख का भी बहुत बड़ा संकट होगा. धमाके की वजह से बेरूत के 10 किलोमीटर के इलाके में हजारों घरों और इमारतों को नुकसान पहुंचा है. हमने आपको बताया है कि बेरूत में करीब 3 लाख लोग बेघर हो चुके हैं. वहां पर 90 प्रतिशत होटल तबाह हो गए. धमाका इतना भयानक था, कि बंदरगाह का एक हिस्सा पूरी तरह से नष्ट हो गया और ठीक धमाके वाली जगह पर 405 फीट का गड्ढा हो गया.

धमाके की तुलना परमाणु हमले से 
इस धमाके की वजह से बेरूत शहर को करीब 75 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है, जो पूरे लेबनान की जीडीपी का करीब 17 प्रतिशत है. बेरूत के गर्वनर ने तो ये कहा है कि ये धमाका, जापान के हिरोशिमा और नागासाकी के परमाणु विस्फोट की तरह था. बेरूत की तबाही को देखकर बेरूत के गर्वनर कैमरे के सामने ही रोने लगे.

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बेरूत में जिस तरह का धमाका हुआ, उससे हिरोशिमा और नागासाकी की यादें ताजा हो गईं. ये भी इत्तेफाक है कि आज इस पहले और आखिरी परमाणु हमले की बरसी है. 75 वर्ष पहले आज के ही दिन अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा शहर पर परमाणु हमला किया था. इसमें 1 लाख 40 हजार लोगों की मौत हो गई थी, जिसमें 70 हजार लोगों की मौत तो परमाणु बम गिराने के तुरंत बाद हो गई थी.

द्वितिय विश्व युद्ध (Second World War) के दौरान, 6 अगस्त 1945 को अमेरिका ने हिरोशिमा पर जो परमाणु बम गिराया था, उसका नाम लिटल बॉय था. इसके तीन दिन बाद 9 अगस्त 1945 को अमेरिका ने दूसरा परमाणु बम, जापान के ही नागासाकी शहर पर गिराया था. इस बम का नाम फैट मैन था और इससे नागासाकी में करीब 70 हजार लोगों की मौत हो गई थी.

अमेरिका ने हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम इसलिए गिराया था, क्योंकि द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिका और उसके सहयोगियों का सबसे बड़ा दुश्मन जापान था. जापान, अमेरिका को लगातार हमलों की धमकी दे रहा था और उसके युद्धपोतों को निशाना बना रहा था. इसी के जवाब में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति Harry Truman ने जापान को सरेंडर करवाने के लिए परमाणु हमला करने की अनुमति दे दी.

हिरोशिमा और नागासाकी ही क्यों?
परमाणु हमले के लिए हिरोशिमा और नागासाकी को ही अमेरिका ने क्यों चुना? इसकी वजह ये थी कि जापान की युद्ध लड़ने की क्षमता को अमेरिका पूरी तरह से नष्ट करना चाहता था. हिरोशिमा, जापान की सैन्य ताकत का एक बड़ा केंद्र था, इसलिए अमेरिका ने सबसे पहले 6 अगस्त 1945 को यहीं पर पहला परमाणु बम गिराया. और तीन दिन बाद नागासाकी पर परमाणु हमला किया. इस परमाणु हमले के 6 दिन बाद जापान ने सरेंडर कर दिया था.

लेकिन ये मानवता के प्रति अमेरिका का सबसे बड़ा अपराध था. क्योंकि हिरोशिमा और नागासाकी में 2 लाख से ज्यादा लोग उसी समय मारे गए थे. बाद में वर्षों तक इस परमाणु बम से फैले रेडिएशन की वजह से वहां पर लोग तिल-तिल कर दम तोड़ते रहे हैं. अकेले हिरोशिमा शहर में ही आज भी 50 हजार से ज्यादा लोगों पर 75 वर्ष पहले हुए इस परमाणु हमले का प्रभाव है. नागासाकी में 30 हजार लोग आज भी इससे प्रभावित हैं.

हिरोशिमा में गिराए गए लिटल बॉय नाम के परमाणु बम की ताकत 16 हजार टन थी. जिसके हिरोशिमा में गिरते ही वहां का तापमान 6000 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था. इस तापमान ने हिरोशिमा शहर को भस्म कर दिया था. 

आपको ये जानकर भी हैरानी होगी कि हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराने वाले अमेरिकी विमान, बम गिराने से पहले भारत में असम के एयरबेस पर रुके थे यहां इन विमानों की तकनीकी जांच की गई थी. ये विमान भारत में इसलिए उतर पाए थे क्योंकि द्वितिय विश्व युद्ध अमेरिका और ब्रिटेन मिलकर लड़ रहे थे और भारत में तब ब्रिटिश राज था और ब्रिटेन की सहमति के बाद ही अमेरिका ने जापान पर परमाणु हमला किया था.

हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराने से एक महीने पहले ही अमेरिका ने परमाणु बम का सफल परीक्षण किया गया था. अमेरिका के इस प्रोजेक्ट को मैनहट्टन प्रोजेक्ट कहा जाता है. इस परमाणु परीक्षण का कोड नाम था ट्रिनिटी । ये नाम “Father” Of The Atomic Bomb कहे जाने वाले अमेरिकी वैज्ञानिक J. Robert Oppenheimer ने दिया था. Oppenheimer हिंदू संस्कृति से बहुत प्रभावित थे और इस परीक्षण के बाद उन्होंने भगवद् गीता के एक श्लोक का वर्णन करते हुए दुनिया को इस न्यूक्लियर टेस्ट के बारे में जानकारी दी थी. इसमें उन्होंने भगवान कृष्ण द्वारा महाभारत के युद्ध के बीच अर्जुन को दिए उपदेश की बात करते हुए कहा था कि भगवान कृष्ण कर्म करने की शिक्षा देते हैं. वो सृजन भी करते हैं और वो संहार करने वाले भी हैं. 

द्वितिय विश्व युद्ध के दौरान खुद महात्मा गांधी ने भारत के सैनिकों को युद्ध में भेजने और सेना में भर्ती होने के लिए गांव-गांव में अभियान चलाया था. प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भारत के तत्कालीन नेताओं ने सबक नहीं सीखा और अंग्रेजों को युद्ध में मदद देने के लिए कांग्रेस बार-बार प्रस्ताव पारित करती रही. खुद महात्मा गांधी कह रहे थे कि अगर ब्रिटेन ये युद्ध हार गया और उन्हें भारत छोड़ना पड़ा तो फिर भारत के लोगों का क्या होगा और इस स्थिति में भारत पर जापान जैसे देशों का अधिकार हो जाएगा, जो उस समय ब्रिटेन और अमेरिका का सबसे बड़ा दुश्मन था. तथ्यों की नजर से देखा जाए तो ये भी एक तरह से तुष्टीकरण की नीति थी, जिसमें उस समय के ब्रिटिश राज को खुश किया जा रहा था.

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