DNA: क्या उस 'गलती' से फ्रांस ने ले लिया सबक, विदेशी इमामों पर बैन लगाने की INSIDE STORY
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DNA: क्या उस 'गलती' से फ्रांस ने ले लिया सबक, विदेशी इमामों पर बैन लगाने की INSIDE STORY

Islam in France: फ्रांस सरकार ने अप्रैल 2024 तक अपने देश, वापस लौटने का आदेश दिया. फ्रांस सरकार ने फैसला किया है कि अब फ्रांस में वही लोग इमाम बन सकते हैं जिन्होंने फ्रांस में ही ट्रेनिंग ली हो और फ्रांस के ही किसी संस्थान से सैलरी मिलती हो

DNA: क्या उस 'गलती' से फ्रांस ने ले लिया सबक, विदेशी इमामों पर बैन लगाने की INSIDE STORY

France New Law: फ्रांस के एक नियम की पूरी दुनिया में चर्चा हो रही है. ये नियम, फ्रांस के मुसलमानों समेत दुनिया के मुस्लिम देशों के लिए बड़ी खबर बन गया है. फ्रांस की मैक्रों सरकार ने अब दूसरे देशों के इमामों पर बैन लगा दिया है. फ्रांस में Turkey, Algeria और morocco के करीब तीन सौ इमाम हैं, जिन्हें उनके देशों से ही सैलरी आती है. अब उन्हें, फ्रांस सरकार ने अप्रैल 2024 तक अपने देश, वापस लौटने का आदेश दिया. फ्रांस सरकार ने फैसला किया है कि अब फ्रांस में वही लोग इमाम बन सकते हैं जिन्होंने फ्रांस में ही ट्रेनिंग ली हो और फ्रांस के ही किसी संस्थान से सैलरी मिलती हो.

इसके अलावा अब इस्लामिक शिक्षा देने के लिए इमामों के लिए जरूरी होगा कि वो सरकार से रजिस्टर्ड हों. आप सोच रहे होंगे कि फ्रांस विदेशी इमामों को देश-निकाला क्यों दे रहा है ? इसका सीधा सा जवाब है फ्रांस की मैक्रों सरकार देश में बढ़ती कट्टरवादी और अलगाववादी सोच को खत्म करना चाहती है. इसके लिए वर्ष 2021 में राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों की सरकार ने फ्रांस की संसद से Reinforcing Republican Principles नाम का कानून पास करवाया था. हिंदी में इसका अर्थ है - गणतंत्र के मूल्यों को दोबारा स्थापित करना.

आप इसे तेजी से बदल रही दुनिया का पहला ऐसा कानून भी कह सकते हैं जो धर्मनिरपेक्षता को सही मायनों में व्यवहारिक बनाता है. और धार्मिक कट्टरता को बढ़ने से भी रोकता है. लेकिन फ्रांस में इसे Anti Separatism Law यानी अलगाववाद को रोकने वाला कानून भी कहा जाता है. इस कानून का ये कहते हुए विरोध होता है कि ये फ्रांस के मुसलमानों के खिलाफ है. हालांकि इस कानून में कहीं भी इस्लाम का नाम तक नहीं है. लेकिन ये जरूर है कि लोकतांत्रिक नियमों को लागू करने वाले इस कानून में कई ऐसे प्रावधान हैं, जो इस्लामिक नियमों के खिलाफ हैं, जिसके उदाहरण आपको देते हैं.

जानें नियम की खास बातें

पहली बात- इस कानून के तहत फ्रांस में एक से ज्यादा शादी करना कानूनन जुर्म है. जबकि शरिया कानून के मुताबिक कोई भी मुसलमान चार शादी कर सकता है. लेकिन अब फ्रांस ने इस पर रोक लगा दी है.

दूसरी बात- अगर कोई व्यक्ति फ्रांस के किसी भी सरकारी अधिकारी या जनप्रतिनिधि को डराता है और उसे फ्रांस के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के खिलाफ जाने के लिए मजबूर करता है तो ये अपराध माना जाएगा.

तीसरी बात-फ्रांस में अगर कोई व्यक्ति अपने बच्चों को घर पर ही पढ़ाना चाहता है तो Home Schooling में मजहबी शिक्षा नहीं दी जा सकती. जबकि फ्रांस के मुस्लिम, घर पर ही बच्चों को मजहबी शिक्षा दिलवाते हैं.

चौथी बात-किसी भी तरह के लिंग भेदभाव को खत्म करने के लिए नए कानून में प्रावधान है कि स्कूलों में सिर्फ Co-Ed शिक्षा दी जाएगी, खेलकूद में लड़के और लड़कियों की टीम्स अलग-अलग नही होंगी. ये सब बातें, इस्लामिक मूल्यों के खिलाफ हैं.

पांचवी बात- तीन वर्ष पहले लागू हुए कानून के तहत फ्रांस के सभी धार्मिक संस्थानों को विदेशों से मिलने वाले चंदे की जानकारी सरकार को देनी होगी. ऐसा नहीं करने पर फ्रांस की सरकार ऐसे धार्मिक संस्थानों को देश से मिलने वाली आर्थिक सहायता बंद कर देगी.

छठी बात- जिन अलग अलग समूहों और संस्थाओं को सरकार से विशेष सहायता मिलती है, उन्हें एक समझौते पर हस्ताक्षर करने होंगे. इस समझौते के तहत उन्हें फ्रांस के संवैधानिक और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों का सम्मान करना होगा.

सातवीं बात-फ्रांस में धार्मिक संस्थानों में ऐसे भाषण नहीं दिए जा सकते, जिनसे दो समुदायों के बीच टकराव और वैमनस्य पैदा हो.

आठवीं बात- जिन लोगों पर फ्रांस में आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप होगा, ऐसे लोगों पर धार्मिक संस्थानों में हिस्सा लेने पर 10 साल के लिए बैन लगा दिया जाता है.

नौवीं बात-कोई भी व्यक्ति अगर किसी सरकारी कर्मचारी के खिलाफ सोशल मीडिया पर सांप्रदायिक पोस्ट करता है और उससे जुड़ी निजी जानकारियां सोशल मीडिया पर शेयर करता है तो दोषी को तीन साल की जेल हो सकती है.

दसवीं बात-फ्रांस में धार्मिक चिन्हों के प्रदर्शन पर प्रतिबंध है. पहले फ्रांस के सिर्फ सरकारी दफ्तरों में धार्मिक चिन्ह और पहनावे पर बैन था लेकिन नए कानून लागू होने के बाद अब Private Companies में भी ये नियम लागू हैं.

फ्रांस ने खुले दिल से किया था शरणार्थियों का स्वागत

तीन साल पहले आए इस कानून में कहीं भी इस्लामिक, मुस्लिम जैसे शब्दों का कोई प्रयोग नहीं है. क्योंकि ये कानून सभी धर्मों पर समान रूप से लागू हैं. लेकिन इस कानून का सबसे ज्यादा विरोध फ्रांस के मुसलमान ही करते हैं. ऐसा क्यों है ये तो आप समझ ही गए होंगे.

यूरोपियन यूनियन के देशों में फ्रांस सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाला देश है. फ्रांस की कुल आबादी में नौ प्रतिशत मुस्लिम हैं. फ्रांस की आबादी करीब साढ़े छह करोड़ है, जिसमें से करीब 60 लाख मुसलमान शामिल हैं.

यहां 1977 में एक नियम बनाया गया था. इसके तहत चार मुस्लिम देशों को यह मंजूरी दी गई थी कि वो अपने इमाम फ्रांस भेज सकते हैं. इनको मजहब और इस्लामिक कल्चर से जुड़ीं जिम्मेदारियां सौंपी गई थीं, जिसे अब खत्म कर दिया गया है. लेकिन फ्रांस को आखिर ये सब करने की जरूरत क्यों पड़ी? ये भी आपको समझना चाहिए.

इसकी दो बड़ी वजह हैं.पहली वजह है दूसरे देशों से आए शरणार्थी और दूसरी वजह है फ्रांस में कट्टर इस्लामिक आतंकवाद की बढ़ती घटनाएं. सबसे पहले आपको पहली वजह के बारे में बताते हैं.

फ्रांस ही नहीं यूरोप के कई देशों ने धर्मनिरपेक्ष दिखने की होड़ में दिल खोल कर शरणार्थियों का स्वागत किया और शरणार्थियों को बसने के लिए अपने देशों में जगह दी. लेकिन बाद में यही लोग फ्रांस और यूरोप के देशों के संवैधानिक और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को चुनौती देने लगे.

फ्रांस में बढ़ती गईं आतंकी घटनाएं

ये ठीक उसी तरह है, जैसे आप किसी असहाय व्यक्ति को मदद करने के लिए उसे अपने घर में शरण दे दें और और कुछ दिन के बाद वो व्यक्ति अपने आपको ही उस घर का मालिक समझने लगे क्योंकि, यूरोप के देशों में ऐसा ही हुआ है और फ्रांस में जो कानून आया है, उसकी एक बड़ी वजह यही है.

अब आपको इसकी दूसरी वजह बताते हैं और ये वजह है फ्रांस में कट्टर इस्लामिक आतंकवाद की बढ़ती घटनाएं और इन घटनाओं की जड़ में वही मुस्लिम शरणार्थी हैं, जिनके लिए फ्रांस ने अपनी सीमाओं को कभी बंद नहीं किया. लेकिन बाद में उसे ये समझ आ गया कि उससे बहुत बड़ी गलती हुई है.

फ्रांस में वर्ष 2015 के बाद कई बड़े आतंकवादी हमले हुए हैं. फिर चाहे वो जनवरी 2015 में पेरिस में शार्ली हेब्दो पर हुआ आतंकवादी हमला हो. या 2008 मुंबई जैसा आतंकी हमला हो, जिसमें 130 लोगों की जान चली गई थी.

या फिर जुलाई 2016 में हुआ नीस आतंकी हमला हो, जिसमें एक आतंकवादी ने 86 लोगों को ट्रक से कुचलकर मार डाला था. रिपोर्ट्स के मुताबिक उसी दौरान यानी वर्ष 2015-16 में फ्रांस के करीब दो हजार नागरिकों ने आतंकी संगठन आईएसआईएस जॉइन किया था, जिसका असर फ्रांस की सोसाइटी पर तेजी से दिख रहा था.

अक्टूबर 2020 में फ्रांस में एक स्कूल टीचर सैमुएल पैटी की हत्या कर दी गई थी. उन्होंने अभिव्यक्ति के अधिकार पर चर्चा करते हुए अपने स्कूल के कुछ छात्रों को पैगम्बर मोहम्मद का एक विवादास्पद कार्टून दिखाया था, जिसके बाद स्कूल के एक छात्र ने ये जानकारी अपने परिवार को दे दी थी और बाद में 18 साल के एक लड़के ने उनकी हत्या कर दी थी. ये हत्यारा 6 वर्ष की उम्र में रूस के एक प्रांत चेचन्या से एक शरणार्थी के रूप में फ्रांस आया था और इसका नाम अबदुल्लाख अंज़ोरोव था. इसके घटना के बाद फ्रांस में अलगाववाद और धार्मिक कट्टरता पर तेज बहस छिड़ गई थी.

इस घटना के बाद राष्ट्रपति मैक्रों ने इस्लामिक आतंकवाद के खिलाफ युद्ध का ऐलान कर दिया था और फ्रांस की Republic Values को बचाने के लिए नए कानून की पृष्ठभूमि तैयार कर दी थी.

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