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नई दिल्ली: हिजाब विवाद (Hijab Row) को लेकर कर्नाटक हाई कोर्ट (Karnataka High Court) ने कहा है कि छात्रों के लिए यूनीफार्म (Uniform) वाले किसी भी स्कूल और कॉलेज में तब तक हिजाब पहनने की इजाजत नहीं होगी, जब तक इस मामले में आखिरी फैसला नहीं आ जाता. कोर्ट को ये बात इसलिए साफ करनी पड़ी, क्योंकि कुछ स्कूलों और कॉलेजों में मुस्लिम छात्राओं द्वारा ये कहा जा रहा था कि, हाई कोर्ट ने केवल उन्हीं स्कूलों में हिजाब पहनने पर रोक लगाई है, जहां विवाद चल रहा है. जबकि ऐसा नहीं है. ये अंतरिम रोक सभी स्कूलों और कॉलेजों पर समान रूप से लागू की गई है.
कोर्ट में सुनवाई के दौरान पहली बार कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (Campus Front of India) का नाम भी सामने आया. कर्नाटक सरकार ने माना है कि मुस्लिम छात्राओं को भड़काने में इसका हाथ हो सकता है. गौरतलब है कि ज़ी न्यूज़ (Zee News) पहला ऐसा चैनल था जिसने 9 फरवरी को ही बता दिया था कि छात्राओं को भड़काने के पीछे पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (Popular Front of India) और उसके छात्र संगठन कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (Campus Front of India) का हाथ है. पीएफआई (PFI) वही संगठन है जिस पर दिल्ली के शाहीन बाग में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हुए आंदोलन की फंडिंग करने का आरोप है. वहीं दिल्ली दंगों (Delhi Riots) में भी इस संगठन की भूमिका की जांच की जा रही है.
कर्नाटक हाई कोर्ट में राज्य के स्कूलों की तरफ से उनका पक्ष रख रहे वरिष्ठ वकील S.S. नागानंद की तरफ से दो मुस्लिम छात्राओं की तस्वीरें भी पेश की गई, जिनमें वो बिना हिजाब के स्कूल में दिख रही हैं. इन तस्वीरों को कोर्ट में पेश करते हुए ये दलील दी गई कि, पहले ये सभी मुस्लिम छात्राएं बिना हिजाब के स्कूलों में पढ़ रही थीं. लेकिन 31 दिसंबर को कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (Campus Front of India) नाम के संगठन द्वारा कुछ स्कूलों और इंटर कॉलेजों पर दबाव बनाया गया और वहां मुस्लिम छात्राओं को हिजाब पहन कर क्लास में प्रवेश देने की मांग की गई.
इस पर अदालत ने ये भी पूछा गया कि ये संगठन क्या करता है और क्या सुरक्षा एजेंसियों के पास इसके बारे में कुछ इनपुट हैं. इस पर कर्नाटक सरकार ने कहा गया कि वो CFI से संबंधित सील बन्द रिपोर्ट कोर्ट में पेश कर देगी. इस दौरान इस संगठन को कट्टरपंथी संस्था भी बताया गया. वहीं वकील S.S. नागानंद की तरफ से यह दलील भी दी गई कि इस संगठन द्वारा स्कूलों में कुछ शिक्षकों को धमकी भी दी गई कि अगर इन शिक्षकों ने स्कूलों में मुस्लिम छात्राओं को हिजाब पहनने से रोका तो ये उनके लिए अच्छा नहीं होगा. और इस मामले में एक शिक्षक ने पुलिस में शिकायत भी दर्ज कराई है, जिसके बाद अदालत ने भी इस घटना की पूरी जानकारी मांगी है. कर्नाटक के स्कूलों में सांप्रदायिक जहर घोलने के लिए स्कूलों पर दबाव बनाया जा रहा है और अब ये बात कोर्ट में भी साफ हो गई है.
अदालत में तीन और बड़ी बाते हुईं, जिन्हें समझना भी जरूरी.
1. दरअसल, इस मामले में जिन मुस्लिम छात्राओं ने याचिका दायर की है, उनका आरोप है कि उन्हें क्लास में हिजाब पहनने पर शिक्षकों द्वारा डांटा जाता है. जब वो हिजाब की वजह से क्लास अटेंड नहीं करती तो उनकी एबसेंट लगा दी जाती है. इस पर स्कूलों की तरफ से कोर्ट में पेश हुए वकील S.S. नागानंद ने कहा कि अगर कोई मुस्लिम छात्रा हिजाब पहनने की जिद पर अड़ी है और क्लास में आकर पढ़ना ही नहीं चाहती तो उसे क्लास से एबसेंट मार्क क्यों ना किए जाए इसलिए इसे धमकी नहीं कहा जा सकता है. ये भी समझने की जरूरत है कि छात्राएं क्लास में आना भी नहीं चाहती और इनकी मांग है कि इन्हें क्लास में प्रेजेंट भी माना जाए.
2. स्कूलों की तरफ से ये भी कहा गया कि जब परिवार में कोई बच्चा गलती करता है और उसकी गलती के लिए उसके माता-पिता उसे डांटते हैं या उसे ये बताते हैं कि उसके लिए क्या सही है और क्या गलत? तो क्या वो माता-पिता अपने बच्चे को धमका रहे होते हैं? क्योंकि ये मुस्लिम छात्राएं तो ऐसा ही आरोप लगा रही हैं. स्कूल और कॉलेज केवल नियमों का पालन कर रहे हैं. लेकिन पूरे मामले को इस तरह पेश किया जा रहा है जैसे पूरा सिस्टम मुस्लिम छात्राओं के खिलाफ हैं. जबकि ऐसा नहीं है.
3. हाई कोर्ट में ये बात भी कही गई कि अगर स्कूलों में हिजाब की मांग को मान लिया जाता है तो यूनीफॉर्मिटी (Uniformity) यानी समानता का सिद्धांत बच्चों के मन से हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगा. यानी जब वो स्कूलों से पढ़ कर कॉलेज में जाएंगे, नौकरी करेंगे तब ये मांग और बढ़ेगी और तब ये देश क्या करेगा?
कोर्ट में यह दलील भी दी गई कि हिंदू धर्म के 24 संस्कारों में से एक 'उपनयन संस्कार' में ब्राह्मण समाज के लोगों को जनेऊ पहनने के बाद उसके ऊपर से कोई वस्त्र पहनने की इजाजत नहीं है. अगर भविष्य में इस संस्कार को मानने वाला कोई छात्र ये कहता है कि वो बिना वस्त्र के स्कूल आना चाहता है, तब ऐसी स्थिति में स्कूल क्या करेंगे और अगर तब भी ये मामला अदालत आया तो कोर्ट क्या फैसला करेगी?
और ये सवाल हम भी लगातार आपके सामने उठा रहे हैं. क्योंकि ये एक ऐसा सिलसिला है, जो केवल हिजाब तक सीमित नहीं रहेगा.