इजराइल: देश जिसके चारों ओर हैं दुश्मन, पर आंख दिखाने की हिम्मत नहीं कर सकता कोई
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इजराइल: देश जिसके चारों ओर हैं दुश्मन, पर आंख दिखाने की हिम्मत नहीं कर सकता कोई

इजराइल यहूदियों के संघर्ष की कहानी है जहां के लोगों ने दुनिया से जूझकर अपने लिए जगह बनाई है. 

इजराइल ने पिछले कुछ सालों से अपनी साख दुनिया भर में बढ़ाई लेकिन अपनी सुरक्षा पर समझौता नहीं किया.  (फोटो: Reuters)

नई दिल्ली: दुनिया में ताकतवर देशों की बात की जाती है तो उसमें हम अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, और चीन की बात करते है. परमाणु शक्ति संपन्न देश को अगर ताकत का पैमाना माना जाए तो इसमें भारत, पाकिस्तान जैसे देश भी आ जाते हैं. इसके अलावा दुनिया भर में इस उन देशों की ताकत का आंकलन भी होता है जो आतंकवाद, खासतौर पर इस्लामिक आतंकवाद से पीड़ित हैं, लेकिन एक देश ऐसा है जो अपने चारों ओर इस्लामिक देशों से घिरा है. खुद इस्लामिक देश नहीं है और ज्यादातर पड़ोसी उसके दुश्मन हैं. इन तमाम विपरीत हालातों के बाद भी यह देश स्वाभिमान के साथ खड़ा है जिसके खिलाफ आंख उठाने से उसके दुश्मन डरते हैं. आज इजराइल एक ऐसा देश है जिसके भौगोलिक आकार की बात कोई नहीं करता बल्कि जिस बहादुरी से वह अपने पड़ोसी दुश्मनों के बीच शान से खड़ा है उसकी मिसाल दुनिया में कहीं नहीं है.

इजराइल दुनिया का सबसे ज्यादा यहूदी आबादी वाला देश है, लेकिन यहां एक ही शहर में यहूदी, मुस्लिम, और क्रिश्चियन धर्मों के तीर्थ स्थल मौजूद हैं. पिछले 70 सालों में एक कृषि प्रधान देश से इजराइल एक उच्च तकनीकी अर्थव्यवस्था वाला देश बन चुका है. इस देश के निर्माण के बाद दुनिया भर के यहूदी लोग यहां आकर बसने लगे. इजराइल को अमेरिका से शुरू से ही साथ मिलता रहा है जिसकी वजह से इजराइल तमाम पड़ोसी देशों से लोहा ले सका. 

भौगोलिक स्थिति
इजराइल मध्य पूर्व या पश्चिम एशिया का एक छोटा सा लेकिन इस क्षेत्र का महत्वपूर्ण देश है. पूर्व में भूमध्यसागर से, दक्षिण पूर्व में मिस्र, उत्तर में लेबनान, उत्तर पश्चिम में सीरिया, पश्चिम में जोर्डन, फिलिस्तीन का वेस्ट बैंक इलाका इजराइल को घेरता है. इजराइल के साथ सीरिया की गोलान हाइट्स, लेबनान की शेब्बा फार्म्स, और फिलिस्तीनी इलाके (पश्चिम में गाजा और पूर्व में वेस्ट बैंक का क्षेत्र) को लेकर आज भी विवाद सुलझा नहीं है. तटीय इलाकों में काफी उर्वर जमीन है जहां मक्का, सब्जियां, संतरे, अंगूर एवं केले उगाए जाते हैं. यहां का बहुत सा इलाका शहरी है जिसमें तेल अवीव शामिल है. उत्तर में गैलिली का पहाड़ी क्षेत्र है जहां इजराइल का सर्वोच्च पर्वत माउंट मेरॉन (1208 मीटर) है. जजरील घाटी गैलिली के पठार को समारिया तथा जूडिया से अलग करती है. गैलिली का पठार एवं जज़रील घाटी समृद्ध कृषिक्षेत्र हैं जहाँ गेहूँ, जौ, जैतून तथा तंबाकू की खेती होती है. समारिया का क्षेत्र जैतून, अंगूर एवं अंजीर के लिए प्रसिद्ध है. जार्डन रिफ्ट घाटी, जो केवल 10-15 मील चौड़ी तथा अत्यधिक शुष्क है. जार्डन नदी के मैदान में केले की खेती होती है. नेजेव मरुस्थल इजरायल के दक्षिणी भाग में है जहां उत्तरी भाग में कृषि होती है. इसके अलावा पूर्व में जार्डन की सीमा और वेस्ट बैंक के दक्षिण में मृत सागर का कुछ हिस्सा भी इजराइल से लगता है. 

इजराइल का क्षेत्रफल 20770 वर्ग किलोमीटर है. यहां की जलवाई शीतोष्ण है इसके अलावा दक्षिण और पूर्वी भाग में मरुस्थलीय जलवायु भी मिलती है. हिब्रू यहां की आधिकारिक भाषा है. अंग्रेजी को सामान्य विदेशी भाषा के तौर पर मान्यता मिली है. यहां की तीन चौथाई आबादी यहूदी है, बाकी एक चौथाई में से ज्यादातर मुस्लिम हैं.
तेल अवीव यहां का सबसे बड़ा और प्रमुख शहर है यहां की राजधानी यरुशलम है. यहां की मुद्रा इजराइली न्यू शेकेल है. 

संक्षिप्त इतिहास
इजराइल दूसरे विश्व युद्ध के बाद अस्तित्व में आया जब ब्रिटेन के फिलिस्तीन से हटने के बाद यह इलाका संयुक्त राष्ट्र ने अरब और यहूदी राज्यों में बांट दिया जिसे अरबों ने खारिज कर दिया था. इसके बाद से इजराइल ने अरबों को तो युद्ध में हरा दिया लेकिन दोनों के बीच तनाव कायम रहा. 7वीं सदी से पहले तक यह क्षेत्र  बैजेन्टाइन साम्राज्य के अधीन था. इसके बाद इस्लाम समर्थित सत्ता का यहां कब्जा हो गया जो ईसाई धर्मयुद्ध के दौर में विवादित क्षेत्र रहने के बाद भी ऑटोमन साम्राज्य के अंत तक कायम रहा. प्रथम विश्व युद्ध के दौरान यह क्षेत्र ब्रिटेन के अधीन आ गया. 

प्रथम विश्व युद्ध के बाद से ही इस क्षेत्र में यहूदियों का आना शुरू हो गया था जो द्वितीय विश्व युद्ध के समय जर्मन नाजियों की घृणा के कारण बढ़ता गया. इस दौरान फिलिस्तीन के आसपास इन लोगों का यहां के निवासियों से तनाव बढ़ा और संघर्ष का नतीजा यह हुआ कि संयुक्त राष्ट्र ने 1948 में फिलिस्तीन का य़हूदियों और अरब क्षेत्रों में बंटवारा कर दिया और इजराइल का उदय हुआ.

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इजराइल अरब संघर्ष
इजराइल के उदय से पहले ही यहूदियों और अरबों के बीच शुरू हुआ संघर्ष इजराइल के गठन के बाद भी खत्म नहीं हुआ. 1967 युद्ध के बाद से इजराइल के कब्जा किए गए इलाकों को इजराइल में शामिल होने की मान्यता नहीं मिली है. हालांकि इजराइल ने मिस्र, लेबनान और जॉर्डन के साथ अपने विवाद सुलझा लिए हैं.  पिछले कई सालों से इजराइल की फिलिस्तीन और सीरीया के साथ वार्ताएं चल रही हैं. इजराइल ने 2005 में गाजा का इलाका खाली कर दिया था. इसके अलावा पिछले कुछ सालों में इजराइल ने वेस्ट बैंक कुछ इलाके भी खाली किए जिस पर उसका कब्जा था. इसके बाद अभी तक इजराइल और फिलिस्तीन के बीच अंतिम समझौता नहीं हुआ है. दोनों के बीच प्रमुख बाधाएं यरुशलम, फिलिस्तीनी शरणार्थी और दोनों पक्षों के बीच हो रही हिंसा को लेकर है. 

शासन व्यवस्था
इजराइल की शासन व्यवस्था भारत और ब्रिटेन की तरह संसदीय प्रणाली है. लेकिन यहां कोई संविधान नहीं हैं, लेकिन यहां के मूल 12 नियम ही संविधान की तरह काम करते हैं जो समय-समय पर संशोधित होते रहे हैं. यहां राष्ट्रपति की शक्तियां भारत के राष्ट्रपति की तरह ही हैं और यहां प्रधानमंत्री का पद सबसे शक्तिशाली है. यहां की संसद के सदस्य चार साल के लिए चुने जाते हैं जिसमें बहुमत दल नेतृत्व में सरकार बनाती है.  

अर्थव्यवस्था
एक कृषि प्रधान देश से इजराइल आज उद्योगों की वजह से एक आत्मनिर्भर देश हो गया है. यहां के प्रमुख उद्योगों में उच्च तकनीकी उद्योग जिनमें विमानन, संचार, कम्प्यूटर एवं इलैक्ट्रॉनिक्स, मेडिकल, लकड़ी और कागज संबंधी उद्योग, पेय पदार्थ, रसायिनिक पदार्थ, तंबाखू, हीरा उद्योग, निर्माण कपड़ा, प्लास्टिक, एवं धातु उद्योग प्रमुख हैं. इनके अलावा यहां रसीले फल, सब्जियां, कपास, सूखे फल, डेयरी उत्पाद कृषि पर आधारित हैं. 

सबसे ताकतवर खुफिया एजेंसी है इजराइल 
दुनिया में जब भी खुफिया एजेंसियों की बात होती है तो अमेरिका की सीआईए और रूस की केजीबी का नाम ज्यादा लिया जाता रहा है, खासतौर पर शीतयुद्ध के दौरान दोनों एजेंसियों की गतिविधियां चरम पर थी. इनके अलावा ब्रिटेन की एमआई-5 का भी नाम लिया जाता है. लेकिन 1970 के दशक के अंत तक ही दुनिया यह मानने लगी कि संसार की सबसे मजबूत और खतरनाक खुफिया एजेंसी इजराइल की मोसाद एजेंसी ही है. यह मोसाद का ही कमाल है कि इजराइल आज चारों तरफ से अपने विरोधियों से घिरा होने के बावजूद एक मजबूत राष्ट्र के तौर पर खड़ा है. 

क्यों इतना अहमियत है यरुशलमम की
यरुशलमम इजराइल और फिलिस्तीन के वेस्ट बैंक इलाके की सीमा पर पड़ने वाला ऐतिहासिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण शहर है. दो साल पहले ही यरुशलमम को इजराइल की राजधानी के तौर पर अमेरिका की औपचारिक मान्यता दी गई थी. इससे पहले तेल अवीव को इजराइल की राजधानी माना जाता था. दुनिया के सबसे पुराने शहरों में से एक यरुशलम को तीन धर्म यहूदी, ईसाई और इस्लाम का पवित्र शहर माना जाता है. यरुशलम प्राचीन यहूदी राज्य का केन्द्र और राजधानी रहा है जहां यहूदियों का परमपवित्र सुलैमानी मन्दिर हुआ करता था, जिसे रोमनों ने नष्ट कर दिया था. यह शहर ईसा मसीह की कर्मभूमि रहा है. माना जाता है कि यहीं से हजरत मुहम्मद स्वर्ग गए थे. यहां 158 गिरिजाघर तथा 73 मस्जिदें हैं. तीन धर्मों के लिए खास मायने रखने वाले शहर पर 50 से ज्यादा बार हमले हुए हैं और कई बार इस छीना गया है दो बार इसे नष्ट भी किया जा चुका है. दोनों इजराइल और फिलिस्तीन पूरे यरुशलम को अपनी राजधानी होने का दावा करते रहे हैं. 

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कौन हैं बेंजामिन नेतन्याहू
1949 में तेल अवीव में जन्में बेंजामिन नेतन्याहू 1963 में अपने परिवार के साथ अमेरिका चले गए थे. 18 साल की उम्र में वे अपने देश लौटकर सेना से जुड़े और उन्होंने विशेष कमांडो इकाई के कप्तान रहकर बेरूत एयरपोर्ट रेड में हिस्सा लेने के बाद 1973 का युद्ध में भी भाग लिया. पांच साल सेना की सेवा करने के बाद वे अमेरिका वापस गए और अमेरिका से मसैचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से अपनी कॉलेज की पढ़ाई पूरी की. इसके बाद अपृहत यात्रियों को छुडा़ने के अभियान के दौरान अपने भाई की यूगांडा में मौत के बाद नेतन्याहू ने अपने भाई की याद में वॉशिंगटन में आतंकरोधी संस्थान खोला. 1984 में वे संयुक्त राष्ट्र में इजराइल के प्रतिनिधि भी नियुक्त किए गए. 1988 में इजराइल आने के बाद वे राजनीति में आए और लुकिड पार्टी से जुड़े और 1992 में पार्टी प्रमुख बन गए और 1996 में देश के प्रधानमंत्री बने. 

बेंजामिन नेतन्याहू इजराइल के सबसे ताकतवर प्रधानमंत्रियों में से एक रहे हैं. वे चार बार देश के प्रधानमंत्री रह चुके हैं और 2009 से अभी तक इस पद पर बने हुए हैं. देश के प्रधानमंत्री हैं. वे देश के विदेश मंत्री, वित्त मंत्री और नेसेट में विरोधी दल के नेता भी रह चुके हैं. सालों से नेतन्याहू को पश्चिम एशिया में कड़े विरोध के बीच इजराइल के रक्षक के तौर पर नजर आते हैं. उन्होंने हमेशा ही फिलिस्तीनियों के खिलाफ सख्ती बरतते हुए शांति वार्ताओं में इजराइल की सुरक्षा को शीर्ष प्राथमिकता दी.

वर्तमान परिदृश्य
इस साल अप्रैल में ही इजराइल में नेसेट (इजराइल के संसद) के लिए चुनाव होना है. ये चुनाव निर्धारित समय से सात महीने पहले ही हो रहे हैं. वर्तमान गठबंधन सरकार को 120 सदस्यीय संसद में 59 के मुकाबले 61 मतों से ही बहुमत हासिल है. गठबंधन सहयोगियों ने पिछले साल के अंत में ही नेसेट (संसद) भंग करने का फैसला किया था. इस गठबंधन सरकार का यह फैसला भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के संभावित अभियोजन और अदालत के आदेश पर एक विधेयक को पारित कराने के मुद्दे पर सांसदों के बीच असहमति के होने की वजह से लिया गया था. हाल ही में इजराइल के अटॉर्नी जनरल ने घोषणा की है कि वे प्रधानमंत्री नेतन्याहू के खिलाफ भ्रष्टाचार का मुकदमा चलाने की मंशा जाहिर की है. 

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नेतन्याहू की बढ़ रही हैं मुश्किलें
पुलिस ने नेतन्याहू को घूसखोरी, धोखाधड़ी और विश्वासघात के तीन मामलों में आरोपित करने की सिफारिश की थी. इजरायल के इतिहास में पहली बार होगा जब किसी मौजूदा प्रधानमंत्री पर किसी अपराध को लेकर आरोप लगे हैं. उन पर ये आरोप तीन अलग-अलग केस में लगे हैं. हालांकि आगे की कार्रवाई शुरू होने तक चुनाव भी शुरू हो चुके होंगे. इस मामले में उन्हें सहयोगियों का भी साथ नहीं मिल रहा है. ऐसे में चुनाव में नेतन्याहू की सफलता पर अभी से संदेह बढ़ने लगा है. 

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