ZEE जानकारी: हथियार बनाने वाली कंपनियों के लिए वरदान है युद्ध!
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ZEE जानकारी: हथियार बनाने वाली कंपनियों के लिए वरदान है युद्ध!

भारत के दबाव की वजह से पाकिस्तान का दम घुट रहा है. वहां की सेना और सरकार के मंत्री इस वक़्त Confused हैं... और एक दूसरे के बयान काट रहे हैं. 

ZEE जानकारी: हथियार बनाने वाली कंपनियों के लिए वरदान है युद्ध!

भारत के दबाव की वजह से पाकिस्तान का दम घुट रहा है. वहां की सेना और सरकार के मंत्री इस वक़्त Confused हैं... और एक दूसरे के बयान काट रहे हैं. अब से थोड़ी देर पहले पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता ने ये बयान दिया है कि पाकिस्तान में जैश-ए-मोहम्मद का कोई अस्तित्व है ही नहीं.

कल देर शाम पाकिस्तान से ये ख़बर आई थी, कि 24 घंटों के अंदर आतंकवादी मसूद अज़हर को गिरफ्तार किया जा सकता है. इसके अलावा कल ही मसूद अज़हर के भाई और उसके बेटे सहित 44 आतंकवादियों को Preventive Detention में भी लेना पड़ा था. जिसमें जैश के आतंकवादी भी शामिल हैं. लेकिन, पाकिस्तान की सेना के प्रवक्ता मेजर जनरल आसिफ गफूर ने आज एक Interview में दावा किया कि जैश ए मोहम्मद नामक आतंकवादी संगठन का पाकिस्तान में कोई वजूद नहीं है.

आपको याद होगा, कि कुछ दिनों पहले पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने दो महत्वपूर्ण बातें कही थीं. पहली ये, कि मसूद अज़हर पाकिस्तान में है और बहुत बीमार है. और दूसरी ये, कि पाकिस्तान के अधिकारी जैश ए मोहम्मद को चलाने वाले लोगों के संपर्क में हैं. और जैश ने पुलवामा हमले में अपना हाथ होने से साफ इंकार किया है. सोचने वाली बात ये है, कि पाकिस्तान के विदेश मंत्री जैश-ए-मोहम्मद और मसूद अज़हर के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं. और पाकिस्तान की सेना के प्रवक्ता कहते हैं, 
Jaish-e-Mohammad Does Not Exist In The Country...

वैसे पाकिस्तान के दिन अच्छे नहीं चल रहे. क्योंकि, जिस वक्त पाकिस्तान की सेना के प्रवक्ता का ये Interview प्रसारित हो रहा था. उसी दौरान, जैश ए मोहम्मद के सरगना मसूद अज़हर ने पाकिस्तान के नाम एक ऑडियो संदेश जारी कर दिया. 

इसके अलावा, जैश ए मोहम्मद के Mouthpiece कहे जाने वाले मैग्ज़ीन Al Qalam Magazine में मसूद अज़हर ने Rang o Noor के नाम से बाकायदा लेख लिखा है. जिसमें उसने कहा है कि वो ज़िंदा है. 

मसूद अज़हर ने अपने लेख में भारत और पाकिस्तान दोनों को निशाना बनाया है. लेकिन जिस देश की सेना और विदेश मंत्री अभी तक ये तय नहीं कर पाए हों....कि किसे क्या कहना है....उनसे आतंकवाद के विषय पर गंभीरता की उम्मीद नहीं की जा सकती.

इस बीच पाकिस्तान का दिखावे वाला ड्रामा जारी है. और इसी नौटंकी के तहत इस्लामाबाद प्रशासन ने प्रतिबंधित संगठनों द्वारा चलाए जा रहे मदरसों पर कब्ज़ा कर लिया है. इससे आप समझ सकते हैं कि पाकिस्तान कितने दबाव में है.

महान कम्यूनिस्ट नेता और आधुनिक चीन के निर्माता Mao Zedong ने कहा था कि

राजनीति बिना खून खराबे का युद्ध है..जबकि युद्ध एक ऐसी राजनीति है जिसमें बहुत खून खराबा होता है. दुनिया में पिछले 5 हज़ार वर्षों में युद्ध की राजनीति कभी नहीं रुकी. आज के दौर में युद्ध दुनिया का सबसे बड़ा बाज़ार बन चुका है. 

और इसमें अगर किसी का सबसे ज़्यादा फायदा हुआ है, तो वो है हथियार बनाने वाली कंपनियां. भारत ने तमाम सबूतों और तथ्यों के आधार पर अमेरिका को बता दिया है, कि 27 फरवरी को पाकिस्तान ने भारत पर हमले के लिए F-16 विमानों का इस्तेमाल किया. लेकिन ऐसा लग रहा है, कि अमेरिका अब भी एक गुप्त Agenda चला रहा है, ताकि कोई ये साबित ना कर पाए, कि उस दिन वाकई में F-16 का इस्तेमाल किया गया था. इसलिए आज हथियारों के नाम पर राजनीति करने वाली अमेरिकी कंपनी को Expose करना ज़रुरी है. और इसके लिए सबसे पहले हम दो अलग-अलग Articles की मदद लेंगे. 

अमेरिका की Foreign Policy नामक मैग्ज़ीन ने एक लेख छापा है. जिसका शीर्षक दिया गया है, India’s Dogfight Loss Could Be a Win for U.S. Weapons-Makers

इस लेख में बड़ी चतुराई से India Claims यानी भारत ने दावा किया है..... जैसी शब्दावली का इस्तेमाल किया गया है. और कहा गया है, कि भारत के दावे के मुताबिक, मिग-21 विमान ने, पाकिस्तान के F-16 फाइटर जेट को मार गिराया. ध्यान देने वाली बात ये है, कि भारत ने AMRAAM मिसाइल के मलबे की तस्वीरें पूरी दुनिया के सामने सार्वजनिक कर दी थीं. और Foreign Policy नामक मैग्ज़ीन ने अपने लेख में माना है, कि AMRAAM मिसाइल का जो मलबा दिखाया गया है, उस मिसाइल को F-16 से ही Fire किया जा सकता है.

लेकिन इस लेख में सीधे तौर पर इस बात की पुष्टि नहीं की गई है, कि पाकिस्तान ने इस लड़ाकू विमान का इस्तेमाल किया. इस मैग्ज़ीन को हर साल 4 करोड़ 90 लाख Online Views मिलते हैं. ऐसे में सोचने वाली बात ये है, कि F-16 को बचाने वाला एजेंडा कितनी बड़ी आबादी के विचारों में प्रवेश कर चुका होगा.

ठीक इसी तरह, The New York Times ने भी एक लेख छापा है. जिसका शीर्षक है
After India Loses Dogfight To Pakistan, Questions Arise About Its ‘Vintage’ Military. Vintage का मतलब होता है पुराना. इस लेख में बड़ी चतुराई से भारत के पुराने हथियारों पर कटाक्ष करते हुए, F-16 को बचाने की कोशिश की गई है. 

अब सवाल ये है, कि दुनिया के बड़े-बड़े अख़बार, बड़ी-बड़ी News Agencies और Fake News की फैक्ट्री चलाने वाले पत्रकार ये साबित करने पर क्यों तुले हुए हैं, कि मिग-21 जैसा पुराना विमान, F-16 जैसे अत्याधुनिक विमान को नहीं गिरा सकता.
आज हम इन सभी सवालों के जवाब आपको देंगे. लेकिन उससे पहले ये देखिए, कि जब US State Department के प्रवक्ता से F-16 वाला सवाल पूछा गया, तो उन्होंने क्या कहा ? 

यहां पर अमेरिकी प्रवक्ता द्वारा कही गई एक बात पर गौर करने की ज़रुरत है. उन्होंने पाकिस्तान और अमेरिका के हथियारों वाले समझौते के संदर्भ में कहा, कि वो ना तो सार्वजनिक तौर पर कोई टिप्पणी कर सकते हैं. और ना ही F-16 के मुद्दे पर पाकिस्तान के साथ हो रही बातचीत की जानकारी Share कर सकते हैं. सवाल ये है, कि उन्होंने ऐसा क्यों कहा ? इसे समझने के लिए हमें 11 साल पहले... वर्ष 2008 के Flash Back में जाना होगा.

अमेरिका ने पाकिस्तान के साथ किए F-16 के सौदे को न्याय-संगत बताते हुए दो शर्तें जोड़ दी थीं. 

पहली शर्त ये थी, कि वो इस लड़ाकू विमान का इस्तेमाल आत्मरक्षा के लिए करेगा.

और दूसरी शर्त ये थी, कि पाकिस्तान इसका इस्तेमाल आतंकवाद के खिलाफ करेगा. 

इस शर्त के मुताबिक आत्मरक्षा का मतलब ये था, कि अगर भारत के साथ पाकिस्तान का कोई टकराव होता है, तो वो आत्मरक्षा के लिए इसका इस्तेमाल कर सकता है. 

यहां पर जुलाई 2006 का ज़िक्र करना ज़रुरी है. ये वो समय था, जब अमेरिका को ये फैसला लेना था, कि भविष्य में पाकिस्तान को F-16 विमान बेचे जाएं या नहीं. 

उस वक्त अमेरिका के Military Affairs के तत्कालीन Assistant Secretary Of State ने कहा था, कि पाकिस्तान के साथ होने वाले समझौते कठोर शर्तों के साथ किए जाएंगे. 

और इसके लिए दो नियम तय किए गए थे. जिनके मुताबिक अगर पाकिस्तान इस लड़ाकू विमान का इस्तेमाल, अमेरिका द्वारा प्रतिबंधित इलाकों में करता है. या इनका किसी दूसरे देश के खिलाफ इस्तेमाल करता है, तो ऐसी स्थिति में पाकिस्तान को अमेरिका से Approval लेना होगा. 

लेकिन, इसके बाद वर्ष 2008 में अमेरिका ने इस नियम के साथ खेल कर दिया.

11 साल पहले पाकिस्तान में अमेरिका की तत्कालीन राजदूत Anne Patterson ने कहा था, कि परमाणु संपन्न देशों के खिलाफ F-16 लड़ाकू विमान एक कारगर हथियार साबित हो सकता है.

16 सितम्बर 2008 को एक अमेरिकी Admiral ने कहा था, कि पाकिस्तान के साथ हथियारों वाली Deal, तीन अलग-अलग Letters of Acceptance की बुनियाद पर खड़ी थी. आप इन्हें समझौते की कसौटियां भी कह सकते हैं.

इनमें पहला बिंदु था, पाकिस्तान को 18 नए F-16 लड़ाकू विमान देना.

दूसरा बिंदु था उसमें AMRAAM जैसी मिसाइल टेक्नोलॉजी को शामिल करना.

और तीसरा बिंदु था, पाकिस्तान के 46 पुराने F-16 फाइटर जेट्स को Update करना. 

और इस Deal के मुताबिक, पाकिस्तान को जून 2010 से AMRAAM मिसाइल के साथ नए लड़ाकू विमानों की डिलिवरी मिलनी शुरु होनी थी.

उस दौरान भारत में UPA की सरकार थी. और अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को F-16 बेचे जाने का विरोध भी किया गया. 

लेकिन अमेरिका की तत्कालीन जॉर्ज बुश सरकार ने भारत को आश्वासन दिया था, कि F-16 के इस्तेमाल और तैनाती को लेकर कड़ी निगरानी की जाएगी. 

हालांकि, ये आश्वासन सिर्फ भारत को खुश करने के लिए था. अमेरिका का असली एजेंडा कुछ और ही था. वैसे समय-समय की बात है. 2008 में तत्कालीन UPA सरकार तो उस डील को नहीं रोक पाई. लेकिन, 2016 में मौजूदा केंद्र सरकार ने बराक Obama के प्रशासन को घुटनों पर ला दिया था. उस वक्त पाकिस्तान की कोशिश ये थी, कि वो अमेरिका से 8 नए F-16 फाइटर जेट्स खरीदे. अमेरिका भी पाकिस्तान को ये विमान बेचना चाहता था. लेकिन 2016 में भारत ने ओबामा सरकार की कोशिश को रोक दिया था. और इसके लिए भारत ने अमेरिकी संसद में काफी आक्रामक Lobbying की थी.

दुनिया में जब भी कहीं कोई युद्ध होता है...तो अमेरिका इसे अपने लिए वरदान समझता है। वर्ष 2001 से 2011 को अमेरिका की डिफेंस इंडस्ट्री के लिए Golden Decade के तौर पर जाना जाता है। इसी दौरान इराक और अफगानिस्तान के साथ अमेरिका के युद्ध हुए। जिससे अमेरिका को अरबों डॉलर्स का फ़ायदा हुआ।

इतना ही नहीं...इन 10 वर्षों में अमेरिकी डिफेंस इंडस्ट्री का सालाना मुनाफा 4 गुना बढ़कर 25 Billion US डॉलर यानी एक लाख 75 हज़ार करोड़ रुपये प्रति वर्ष के स्तर तक पहुंच गया था। ठीक इसी तरह वर्ष 2015 में ISIS का आतंक भी अमेरिका के लिए Only Profit & No Loss वाली लड़ाई बन गया था। आमतौर पर ऐसा समझा जाता है कि आतंकवाद से सिर्फ आतंकवादियों को फायदा होता है। लेकिन अमेरिका जैसे देश आतंक से मुनाफा कमाने में एक्सपर्ट बन चुके हैं।

वर्ष 2017 तक दुनिया की 100 सबसे बड़ी हथियार बनाने वाली कंपनियों में से 42 कंपनियां अमेरिका की थीं।

इन कंपनियों ने 2017 में 16 लाख करोड़ रुपये से ज़्यादा के हथियार दुनियाभर में बेचे। 

अमेरिका की Lockheed Martin और Boeing, हथियार बनाने वाली दुनिया की दो सबसे बड़ी कंपनियां हैं। 

एक अंतरराष्ट्रीय एजेंसी के अनुसार वर्ष 2013 से 2017 के बीच भारत, हथियार खरीदने वाला दुनिया का सबसे बड़ा देश था । इन 5 वर्षों के दौरान दुनियाभर में हुई हथियारों की खरीददारी के मामले में भारत की हिस्सेदारी 12 फीसदी थी । 

भारत ने अपने सबसे ज़्यादा हथियार Russia से ही खरीदे । 2013 से 2017 के बीच भारत ने 62 प्रतिशत हथियार Russia से, 15 प्रतिशत अमेरिका से और 11 प्रतिशत हथियार इज़राएल से खरीदे थे। 

भारत अपनी ज़रुरत के मुताबिक सबसे ज़्यादा हथियार Russia से खरीदता है। लेकिन अमेरिकी कंपनियों की कोशिश है, कि वो इस मामले में Russia को पीछे छोड़ दें। क्योंकि, भारत में हथियारों का बाज़ार बहुत बड़ा है। और यही वजह है, कि 2013 के बाद भारत द्वारा अमेरिका से हथियारों की खरीददारी में 557 प्रतिशत का इज़ाफा हुआ है। 

एक अनुमान के मुताबिक.. आने वाले दस वर्षों में भारत 230 अरब डॉलर यानी करीब 16 लाख करोड़ रुपये, हथियारों की खरीददारी पर खर्च कर सकता है

यानी शुद्ध लाभ ही इकलौती ऐसी वजह है, जिससे Lockheed Martin जैसी अमेरिकी कंपनियों को F-16 की बदनामी बर्दाश्त नहीं हो रही। वैसे बात बदनामी की हो रही है, तो यहां आपको Lockheed Martin का छोटा सा इतिहास भी बता देते हैं।

इस कंपनी के एक पूर्व अध्यक्ष ने ये बात स्वीकार की थी, कि अपने फाइटर जेट्स बेचने के लिए इस कंपनी ने दूसरे देश के अधिकारियों पर करोड़ों रुपये खर्च किए थे। 

अमेरिका की एक गैर सरकारी संस्था Center for Responsive Politics के मुताबिक पिछले साल हथियार बेचने के लिए Lockheed Martin ने अमेरिका में Lobbying की पर कम से कम 90 करोड़ रुपये खर्च किए थे। 

इसके अलावा दुनियाभर में अपने हथियारों का प्रचार करने और Media Management के लिए भी ये कंपनी करोड़ों रुपये खर्च करती है।

वर्ष 2018 में भारत में इस कंपनी पर साढ़े तीन करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया था। क्योंकि उसने नियमों का पालन नहीं किया था। 

इस कंपनी पर दुनियाभर में पैसे देकर अपने हथियार बिकवाने के आरोप लगते रहे हैं।

1976 में एक बहुत बड़ा खुलासा हुआ था। उस वक्त इस कंपनी को आज के हिसाब से 9 हज़ार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था। क्योंकि जापान ने Anti Submarine Aircraft की डील में हुए भ्रष्टाचार के आरोप में Lockheed Martin से अपना करार तोड़ लिया था। 

हालांकि, तमाम विवाद के बावजूद अमेरिका की डिफेंस इंडस्ट्री का सुनहरा दौर अभी ख़त्म नहीं हुआ है। और Lockheed Martin जैसा कंपनियां F-16 जैसे लड़ाकू विमान की नाकामी को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं। क्योंकि, इसमें हथियारों वाला निजी हित छिपा हुआ है। हर युद्ध... हथियार बनाने वाली कंपनियों के लिए एक मौका होता है.. और जो इस मौके का फायदा उठाता है.. उसका ग्राफ.. तेज़ी से उठने लगता है। इसके उदाहरण देखिए। 

90 के दशक में Gulf War हुआ, तो पूरी दुनिया में Soviet Union द्वारा बनाए गए Scud Missile की चर्चा होने लगी। और अब भी 14 देश इस मिसाइल का इस्तेमाल कर रहे हैं।

ठीक इसी तरह अमेरिका ने अलग-अलग युद्धों में Patriot, नामक Surface-To-Air Missile Defence System का इस्तेमाल किया। 13 देशों ने अमेरिका से ये सिस्टम खरीदा। और आज भी ये देश इसका इस्तेमाल कर रहे हैं।

आपको याद होगा कि कारगिल युद्ध के दौरान Bofors का ज़िक्र किया गया। और ये कहा गया, कि Bofors की बदौलत भारत ने कारगिल युद्ध में जीत हासिल की। अलग-अलग News Articles में Bofors को भारतीय सेना का Hero बताया गया। उस दौर में बोफोर्स के पक्ष में हेडलाइन्स छापी जाती थीं और बड़े-बड़े लेख लिखे गए थे। 

यानी हर युद्ध से हथियार बनाने वाली कंपनियों का उदय होता है। और युद्ध की विनाशलीला, हथियार बनाने वाली कंपनियों के लिए किसी विज्ञापन की तरह काम करती हैं। 
इस रिपोर्ट को देखने के बाद आपको पता चल गया होगा, कि जब युद्ध की स्थिति पैदा होती है, तो वो हथियार बेचने वाली कंपनियों के लिए सबसे बड़ा मौका होता है। अमेरिका जैसे देश युद्ध के हिसाब से अपनी रणनीति बनाते हैं। वो फाइटर जेट्स से लेकर तोप तक...सबकी मार्केटिंग करते हैं। और इसके लिए वो Media का भी भरपूर इस्तेमाल करते हैं। ठीक वैसे ही, जैसे Lockheed Martin प्रति वर्ष अपने हथियारों के लिए Media Management करती है।

आप ये भी कह सकते हैं, कि दुनिया की ज़्यादातर News Agencies और अखबार, एक प्रकार से Compromised हैं। और एक एजेंडे के तहत किसी कंपनी विशेष को फायदा पहुंचाते हैं। इसी से जुड़ा हुआ विरोधाभास ये भी है, कि जब हम ऐसे विदेशी अखबारों या News Agencies का लेख पढ़ते हैं, तो आंख बंद करके उसपर भरोसा कर लेते हैं। और ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि, हम गुलामों वाली मानसिकता से बाहर नहीं आ पाए हैं। The New York Times जैसे अखबार को अमेरिका के राष्ट्रपति Fake News की श्रेणी में रखते हैं। लेकिन, हमारे ही देश के डिज़ाइनर पत्रकार ऐसे अखबारों में बिना किसी संकोच के भारत विरोधी लेख भी लिख देते हैं।

हथियारों की Lobbying करने वाली कंपनियां ना सिर्फ अपने हथियार बेचने के लिए एजेंडा चलाती हैं। बल्कि विकासशील देशों में बने स्वदेशी हथियारों को भी कमतर साबित करने की कोशिश करती हैं। इसीलिए ऐसी ख़बरें आती हैं, कि भारत में बना फाइटर एयक्राफ्ट तेजस बेकार है। अर्जुन टैंक बेकार है। भारत में बनी INSAS rifle बेकार है। इसमें काफी हद तक हमारी भी असफलता है। क्योंकि, हथियार बनाने के क्षेत्र में अभी तक हम वो मुकाम हासिल नहीं कर पाए, जो अमेरिका जैसे देशों ने कर लिया। और इसी का फायदा, Lockheed Martin जैसी कंपनियां उठाती हैं।

आपने नोट किया होगा कि दुनिया के बड़े बड़े publications में F-16 के बारे में जितना छपना चाहिए था उतना छपा नहीं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हथियार बनाने वाली कंपनियां अपने रास्ते में आने वाली हर आलोचना को जड़ से मिटा देती हैं

दबी ज़ुबान में लोग ये कहते हैं.. कि डिफेंस एक्सपर्ट और रक्षा मामलों के पत्रकार इन बड़ी बड़ी कंपनियों के साथ गठबंधन कर चुके हैं

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