President Election 2022: आज भी इन चुनावों में क्यों नहीं होता EVM का इस्तेमाल? जानिए वजह

President Election 2022: राष्ट्रपति चुनाव की मतदान प्रणाली के लिए ईवीएम तैयार नहीं की गई है. क्या आ जानते हैं कि भारत के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति, राज्यसभा के सदस्यों तथा विधान परिषदों के सदस्यों के चुनाव में क्यों इस्तेमाल नहीं होता है?

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jun 12, 2022, 05:22 PM IST
  • राष्ट्रपति के चुनाव में क्यों नहीं होता ईवीएम का इस्तेमाल?
  • चुनाव की मतदान प्रणाली के लिए ईवीएम तैयार नहीं की गई
President Election 2022: आज भी इन चुनावों में क्यों नहीं होता EVM का इस्तेमाल? जानिए वजह

नई दिल्ली: कभी आपने सोचा है कि 2004 के बाद से चार लोकसभा चुनावों और 127 विधानसभा चुनावों में इस्तेमाल की गईं इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) का भारत के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति, राज्यसभा के सदस्यों तथा विधान परिषदों के सदस्यों के चुनाव में क्यों इस्तेमाल नहीं होता है?

आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली से होता है राष्ट्रपति का चुनाव

ईवीएम एक ऐसी तकनीक पर आधारित हैं जहां वे लोकसभा और राज्य विधानसभाओं जैसे प्रत्यक्ष चुनावों में मतों के वाहक के रूप में काम करती हैं. मतदाता अपनी पसंद के उम्मीदवार के नाम के सामने वाले बटन को दबाते हैं और जो सबसे अधिक वोट प्राप्त करता है उसे निर्वाचित घोषित किया जाता है. लेकिन राष्ट्रपति का चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुसार एकल संक्रमणीय मत के माध्यम से होता है.

आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुसार एकल संक्रमणीय मत के माध्यम से, प्रत्येक निर्वाचक उतनी ही वरीयताएं अंकित कर सकता है, जितने उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं. उम्मीदवारों के लिए ये वरीयताएं निर्वाचक द्वारा मत पत्र के कॉलम 2 में दिए गए स्थान पर उम्मीदवारों के नाम के सामने वरीयता क्रम में, अंक 1,2,3, 4, 5 और इसी तरह रखकर चिह्नित की जाती हैं.

अधिकारियों ने ईवीएम से जुड़ी अहम जानकारी साझा की

अधिकारियों ने बताया कि ईवीएम को मतदान की इस प्रणाली को दर्ज करने के लिए नहीं बनाया गया. ईवीएम मतों की वाहक हैं तथा आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के तहत मशीन को वरीयता के आधार पर वोटों की गणना करनी होगी और इसके लिए पूरी तरह से अलग तकनीक की आवश्यकता होगी. दूसरे शब्दों में, एक अलग प्रकार की ईवीएम की आवश्यकता होगी.

निर्वाचन आयोग की वेबसाइट के अनुसार पहली बार 1977 में निर्वाचन आयोग में विचार के बाद इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ईसीआईएल), हैदराबाद को इसे डिजाइन और विकसित करने का काम सौंपा गया था.

1979 में विकसित किया गया था ईवीएम का प्रोटोटाइप

ईवीएम का प्रोटोटाइप 1979 में विकसित किया गया था, जिसे 6 अगस्त 1980 को राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के समक्ष निर्वाचन आयोग द्वारा प्रदर्शित किया गया. ईवीएम के निर्माण पर व्यापक सहमति बनने के बाद सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड (बीईएल), बैंगलोर के साथ ईसीआईएल ने इसका निर्माण किया.

ईवीएम का पहली बार मई, 1982 में केरल में विधानसभा चुनाव में इस्तेमाल किया गया था. हालांकि, इसके इस्तेमाल को निर्धारित करने वाले एक विशिष्ट कानून की अनुपस्थिति के कारण उच्चतम न्यायालय ने उस चुनाव को रद्द कर दिया.

इसके बाद, 1989 में संसद ने चुनावों में ईवीएम के इस्तेमाल को लेकर एक प्रावधान बनाने के लिए जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में संशोधन किया. इसकी शुरुआत पर आम सहमति 1998 में बनी और इनका उपयोग मध्य प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली के 25 विधानसभा क्षेत्रों में किया गया था.

मई 2001 में तमिलनाडु, केरल, पुडुचेरी और पश्चिम बंगाल राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में, सभी विधानसभा क्षेत्रों में ईवीएम का इस्तेमाल किया गया. तब से, प्रत्येक राज्य विधानसभा चुनाव के लिए, आयोग ने ईवीएम का इस्तेमाल किया है. वर्ष 2004 के लोकसभा चुनावों में देश के सभी 543 संसदीय क्षेत्रों में दस लाख से अधिक ईवीएम का इस्तेमाल किया गया था.

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