किसे मिलेगा यूपी में ब्राह्मणों का आर्शीवाद? पूर्वांचल में अखिलेश बढ़ा रहे बीजेपी की टेंशन

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 को लेकर सभी सियासी पार्टियां सियासी जोड़-गणित लगाना शुरू कर दिया है. इसी बीच आपको यूपी में ब्राह्मणों को झुकाव देखना होगा.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Dec 12, 2021, 08:41 AM IST
  • मिशन 2022 के लिए अखिलेश का 'ब्राह्मण कार्ड'
  • यूपी में सत्ता के लिए ब्राह्मणों का आर्शीवाद जरूरी?
किसे मिलेगा यूपी में ब्राह्मणों का आर्शीवाद? पूर्वांचल में अखिलेश बढ़ा रहे बीजेपी की टेंशन

नई दिल्ली: यूपी में 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले सियासी दल ब्राह्मण वोटरों पर दांव लगाने में जुट गए हैं. क्या समाजवादी पार्टी, क्या बहुजन समाज पार्टी और क्या बीजेपी.. सभी पार्टियां ब्राह्मण वोट बैंक को लुभाने में लग गयी हैं. समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव भगवान परशुराम की मूर्ति लगवा रहे हैं, तो बीएसपी सुप्रीमो मायावती ब्राह्मण सम्मेलन कर रही हैं.

पूर्वांचल में बढ़ेगी बीजेपी की टेंशन?

यूपी की कुर्सी पर काबिज होने के लिए मायावती को 14 साल बाद फिर से ब्राह्मणों की याद आई है. तो अखिलेश यादव भी ब्राह्मणों का वोट पाने के लिए हर रोज नया दांव खेल रहे हैं.

अब पूर्वांचल की सियासत में ब्राह्मण चेहरा माने जाने वाले पूर्व मंत्री हरिशंकर तिवारी के दोनों बेटे हाथी से उतरकर साइकिल की सवारी करने जा रहे हैं. यानि विनय शंकर तिवारी और कुशल तिवारी समाजवादी पार्टी में शामिल होंगे. विनय शंकर तिवारी की मानें तो ब्राह्मण समाज योगी सरकार से नाराज चल रहा है.

विधायक विनय शंकर तिवारी ने हाल ही में कहा था कि 'एक वर्ग विशेष के अधिकारी ही सरकार में रखे जा रहे हैं. ब्राह्मणों के ऊपर लगातार अत्याचार हो रहा है इस सरकार में. आज की तारीख में ब्राह्मण सपा को बेहतर विकल्प मान रहा है. मैंने समाज के लोगों से बातचीत कर सपा में शामिल होने का फ़ैसला लिया है.'

बीएसपी भी कर रही भाजपा को कमजोर?

पूर्वांचल की सियासत में ब्राह्मण और ठाकुर के बीच सियासी जंग से सभी वाकिफ हैं. विधानसभा चुनाव से पहले हरिशंकर तिवारी के बेटों का समाजवादी पार्टी में एंट्री से पूर्वांचल के सियासी समीकरण बदल सकते हैं और साथ ही बीएसपी ही नहीं बल्कि बीजेपी की ब्राह्मण के लिए भी पूर्वांचल के इलाके में सियासी चुनौती खड़ी हो सकती है. हरिशंकर तिवारी के बेटों के समाजवादी पार्टी में शामिल होने से अखिलेश यादव को पूर्वांचल में बड़ा ब्राह्मण चेहरा मिल सकता है.

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यूपी की राजनीति में ब्राह्मणों का वर्चस्व हमेशा से रहा है. आबादी के लिहाज से राज्य में लगभग 13% ब्राह्मण हैं. कई विधानसभा सीटों पर तो 20% से ज्यादा वोटर्स ब्राह्मण हैं. ऐसे में हर पार्टी की नजर इस वोट बैंक पर टिकी है. इस वक्त बीजेपी ने अखिलेश यादव के जिन्ना वाले बयान को लेकर लगातार तंज कसना और उन्हें घेरना मकसद बना लिया है.

अब जरा इन आंकड़ों पर नजर डालिए..

-2007 के विधानसभा चुनाव BSP के टिकट पर 41 उम्मीदवार जीते और राज्य में मायावती की सरकार बनी
-2012 के विधानसभा चुनाव समाजवादी पार्टी के टिकट पर 21 उम्मीदवार जीते और राज्य में अखिलेश यादव की सरकार बनी
-2017 के विधानसभा चुनाव बीजेपी के टिकट पर 46 उम्मीदवार जीते और राज्य में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनी

इन आंकड़ों से साफ है कि क्यों यूपी में सारी पार्टियां ब्राह्मणों के पीछे भाग रही हैं और क्यों ब्राह्मण, मुस्लिम, दलित गठजोड़ से 2007 में सत्ता में आने वाली बीएसपी इस बार बीजेपी से ब्राह्मणों की नाराजगी का पूरा फायदा उठाना चाहती है. क्यों समाजवादी पार्टी की नजर यादव, कुर्मी, मुस्लिम, ब्राह्मण समीकरण पर है. इसी तरह कांग्रेस ब्राह्मण, दलित, मुस्लिम और ओबीसी को अपनी ओर खींचने में जुटी है.

आपको याद होगा कि विपक्ष और विरोधियों ने विकास दुबे के मुद्दे को भी ब्राह्मण विरोधी सरकार के तौर पर भुनाने की कोशिश की थी. जहां तक बीजेपी की बात है तो सीएम योगी आदित्यनाथ भी ब्राह्मण वोट बैंक को मनाने में जी जान से जुटे हैं. अबकी बार ब्राह्मणों का आर्शीवाद किसे मिलता है ये देखने वाली बात होगी.

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