काशी करवत: जब मोक्ष की प्राप्ति के लिए इस राजा ने खुद को आरे से चीर दिया

पौराणिक कथा है कि इस स्थान पर लोग मोक्ष की प्राप्ति के लिए अपने प्राणों को दान कर देते थे. इस जगह की पड़ताल के लिए जी हिन्दुस्तान वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर स्थित काशी करवत मंदिर पहुंचा. 

Written by - Ayush Sinha | Last Updated : Nov 5, 2021, 12:29 PM IST
  • काशी करवत का है रोचक इतिहास
  • मोक्ष की प्राप्ति का स्थान कहा गया इसे
काशी करवत: जब मोक्ष की प्राप्ति के लिए इस राजा ने खुद को आरे से चीर दिया

वाराणसी : Ground Report- संस्कृति और प्राचीन कथाओं की विरासत कहे जाने वाले बनारस के इतने सारे प्रसिद्ध किस्से हैं, जिसके बारे में जान कर हर कोई हैरान रह जाता है. ऐसी ही मान्यताओं में से एक है काशी करवत... वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर स्थित काशी करवत को लेकर अलग-अलग किस्से मशहूर हैं.

तरह-तरह की कहानियां हैं मशहूर

काशी करवत को लेकर लोग अपनी-अपनी कहानियां कहते रहते हैं. असलियत से ज्यादा इस स्थान को लेकर अफवाहें फैली हुई हैं. ज़ी हिन्दुस्तान की टीम ने मणिकर्णिका घाट का एक-एक सच्चा किस्सा लोगों तक पहुंचाने का फैसला किया. जब हम बनारस की पतली-पतली गलियों से होकर घाट पर पहुंचे तो हमने मणिकर्णिका कुंड के सामने एक मंदिर को देखा. वो मंदिर तिरछा (टेढ़ा) था.


उस मंदिर का नाम रत्नेश्वर महादेव है, उस स्थान के आस पास मौजूद लोग यही कह रहे थे कि यही मंदिर काशी करवत है. दरअसल, लोग करवत और करवट को लेकर भी थोड़े कन्फ्यूज नजर आए. हालांकि जब हम मणिकर्णिका घाट के पास आधी रात में पड़ताल कर रहे थे, उसी वक्त एक शख्स से जब हमने काशी करवत को लेकर सवाल पूछा तो उन्होंने सारी तस्वीरें साफ कर दी.

नेपाली खपड़ा के पास है असली काशी करवत

घाट पर मौजूद एक शख्स ने बताया कि 'पहली बात ये कि असल में ये काशी करवत है, करवट नहीं... दूसरी बात तिरछा वाला मंदिर काशी करवत नहीं, बल्कि रत्नेश्वर महादेव मंदिर है. काशी करवत नेपाली खपड़ा के पास है. वहां पर आप जाएंगे तो आपको सारी जानकारी मिल जाएगी.'

चूकि रात हो चुकी थी और इस वक्त मंदिर बंद हो गया था. इसी के चलते हमने ये फैसला किया कि अगली सुबह हम काशी करवत के इतिहास का पन्ना पलटने के लिए वहां पहुंचेंगे. सुबह के वक्त ज़ी हिन्दुस्तान की टीम मणिकर्णिका घाट की गलियों से होकर लोगों से रास्ता पूछते हुए नेपाली खपड़ा पहुंची. वहां एक दादा जी ने बताया कि इसी घर में काशी करवत मंदिर है.

हम मंदिर के बाहर जूता चप्पल निकाल कर अंदर दस्तख देते हैं. वहां पंडित लोगों का एक समूह बैठा हुआ था. मंदिर के भीतर एक किनारे एक पंडित अपना आसन ग्रहण किए हुए बैठे थे. हमने उनसे उनका शुभ नाम पूछा तो उन्होंने पंडित गणेश शंकर उपाध्याय बताया.

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पंडित ने बताई काशी करवत की कहानी

पंडित गणेश शंकर उपाध्याय से हमने बातचीत करते हुए इस स्थान के बारे में पूछा, इस पर उन्होंने बताया कि 'करवत हिंदी का शब्द है, उसका मतलब होता है आरा... लकड़ी काटने वाले यंत्र को आरा कहते हैं. काशी मोक्ष नगरी है, जिसके लिए लोग पहले अपना प्राण दान करते थे. हमारे यहां शास्त्रों में और पुराणों में वर्णन है कि पूरे भारत वर्ष में सात मोक्ष पुरी हैं.'

जब हमने उन स्थानों के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि 'अयोध्या, मथुरा, माया (हरिद्वार), काशी, कांची, अवंतिका (उज्जैन), द्वारकापुरी ये सात मोक्ष पुरी हैं, जहां लोग अलग-अलग तरीके से प्राण दान करते थे. जिसमें काशी की प्रधानता है. वो इसलिए क्योंकि काशी में जीव मात्र को भगवान शिव मोक्ष प्रदान करते हैं.'

पहले के समय में लोग काशी में निवास नहीं करते थे और भी मोक्ष पुरी में निवास के साधन नहीं होते थे. काशी में भी निवास का साधन नहीं था.

जब हमने पंडित गणेश शंकर उपाध्याय से पूछा कि मंदिर का इतिहास क्या है और ये कबसे है तो उन्होंने बताया कि 'ये मंदिर द्वापरकाल से है, जो आपने अभी नीचे दर्शन किया है. उसी स्थान का नाम काशी करवत है.'

इस स्थान को क्यों कहा गया करवत?

काशी में मोक्ष के लिए लोग प्राण दान करते थे, वह करवत की प्रथा द्वापरकाल से शुरू हुई है. मोरंग ध्वज कथा का वर्णन सत्य नारायण व्रत कथा में आया है. साधु नाम का जो वैश्य बनिया था सत्य नारायण व्रत कथा में, उसका पुर्नजन्म हुआ तो वो मोरंग ध्वज नाम का राजा हुआ. जो बहुत सत्यवादी राजा था. वह भगवान विष्णु का भक्त था, भगवान कृष्ण के परीक्षा लेने पर उसने अपने बच्चे का दाहिना अंग आरे से चीर करके भगवान कृष्ण को दान किया था. भक्तमाल की कथा में भी ये वर्णन आता है.

भगवान कृष्ण प्रसन्न हुए मोरंग ध्वज को दर्शन दिया और बच्चे को भी पुर्नजीवित किया और राजा को आशीर्वाद दिया कि अब तुम्हारा जन्म नहीं हो तुमको मोक्ष मिले. ऐसे में मोक्ष की प्राप्ति के लिए मोरंग ध्वज उसी आरे को लेकर काशी आए और काशी में खुद को चीर करके प्राण दान किए. वह स्थान है, जिसे काशी करवत बोला जाता है. इस मंदिर में ये भीमा शंकर हैं.

भीमा शंकर काशी में 12 ज्योतिर्लिंगों का उद्भव भी द्वापरकाल में ही हुआ है. काशी खंड में स्कंद पुराण के अंतर्गत इसका वर्णन है. राजा दीवोदास को मोक्ष प्राप्ति होने के बाद में भगवान शिव का काशी में पुर्नआगमन जब हुआ है, तो उत्सव में सभी देवी-देवता यहां आए, तो जितने भी सनातन धर्म में देवी देवताओं का स्थान यहीं काशी में है. उसी समय द्वापरकाल में सप्त गोदावरी तीर्थ से भगवान भीमेश्वर काशी आए. इसी स्थान पर भीमा शंकर के पास ही राजा मोरंग ध्वज ने करवत से अपना प्राण दान किया, इसीलिए इस स्थान को काशी करवत बोला गया.

भोग और मोक्ष के प्रदाता हैं भीमा शंकर

पंडित गणेश शंकर उपाध्याय ने बताया कि भीमा शंकर भोग और मोक्ष दोनों के प्रदाता हैं. ऐसा वर्णन किया गया है कि काशी खंड में इनके दर्शन करने मात्र से व्यक्ति के पाप नष्ट हो जाते हैं. ये जीवित रहते हुए भोग और मृत्यु के उपरांत मोक्ष के प्रदाता हैं. यह स्थान काशी में मोक्ष के लिए इतना प्रसिद्ध रहा है कि काशी मोक्ष नगरी और काशी का मोक्ष स्थल प्राण दान करने की जो विधि थी वो इस स्थान पर है.

आपको बता दें, भीमेश्वर महादेव का शिवलिंग जमीन से करीब 25 फीट नीचे है.

ऐसा नहीं है कि सिर्फ सनातन धर्म के लोग ही यहां आते रहे है और इसका वर्णन किया है. मीरा ने, कबीर ने, सूर ने, गुरुनानक देव जी ने, मलिक मोहम्मद जायसी ने, रजियब ने दादो ने भक्ति मार्ग की शाखा के जो कवि रहे हैं उन सभी लोगों ने वर्णन किया है. कबीर तो सनातन धर्मी नहीं थे, लेकिन उन्होंने भी काशी करवत के बारे में वर्णन किया है. भीमेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने मात्र से व्यक्ति पाप मुक्त होता रहता है.

काशी करवत को लेकर तरह-तरह की भ्रामक कहानिया और कथाएं फैली हुई हैं. लेकिन ज़ी हिन्दुस्तान ने ये फैसला किया कि आप तक हम सच और असल हकीकत पहुंचाएंगे. इतिहास से बिना छेड़-छाड़ के हमने आपको उससे रूबरू करवाया और बताया कि आखिर काशी को मोक्ष नगरी क्यों कहा जाता है...!

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