नई दिल्ली: भारतीय नौसेना को अब स्वदेशी टारपीडो 'वरुणास्त्र' के लिए इंतजार नहीं करना होगा. 'वरुणास्त्र' की पहली खेप जल्द नौसेना को मिल जाएगी. इसे चलाए जाने के बाद 40 किलोमीटर के दायरे में किसी भी जहाज या पनडुब्बी की तबाही निश्चित मानी जाती है.
ये है 'वरुणास्त्र' की खासियतें
पूरी तौर पर स्वदेशी टारपीडो 'वरुणास्त्र' 74 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से हमला करता है. इस स्वदेशी टारपीडो से भारतीय जंगी जहाज़ों और सिंधु क्लास सबमरीन को लैस किया जाएगा.
इसका वजन लगभग डेढ़ टन है. इसमें 250 किलो के हाई लेबल एक्सप्लोसिव लगे होते हैं. 'वरुणास्त्र' में लगे ट्रांसड्यूसर्स इसको हमले के ज्यादा बड़ा एरिया प्रदान करते हैं. यही कारण है कि 'वरुणास्त्र' किसी भी सबमरीन पर ऊपर या नीचे दोनों तरफ से हमला कर सकता है.
इसमें जीपीएस लोकेटिंग सिस्टम लगा हुआ है, जिसकी वजह से इसका निशाना अचूक हो जाता है.
नौसेना ने 'वरुणास्त्र' के लिए किया है ऑर्डर
भारतीय नौसेना ने 1187 करोड़ रुपए में 63 'वरुणास्त्र' हासिल करने का ऑर्डर दिया है. इसमें जहाज़ और सबमरीन दोनों से फ़ायर होने वाले टारपीडो शामिल हैं. दोनों तरह के टॉरपीडो होंगे.
'वरुणास्त्र' को कोलकाता क्लास, राजपूत क्लास और डेल्ही क्लास डिस्ट्रायर्स के अलावा कमोर्ता क्लास कार्वेट्स और तलवार क्लास फ्रिगेट्स में भी लगाए जाने की योजना है. इसे सिंधु सीरिज की सबमरीन में भी लगाया जाएगा.
डीआरडीओ का उत्पाद है 'वरुणास्त्र'
'वरुणास्त्र' का विकास रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) के भारतीय नौसेना के विज्ञान और तकनीकी प्रयोगशाला ने किया है. इसे बनाने में DRDO की मदद नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशियन टेक्नोलॉजी ने भी की है. यह हथियार युद्ध के दौरान पैदा होने वाली कई स्थितियों के अनुकूल है.
'वरुणास्त्र' के जहाज संस्करण को औपचारिक रूप से 26 जून 2016 को तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने भारतीय नौसेना में शामिल किया था.
अभी तक भारतीय नौसेना विदेश से खरीदे गए टारपीडो का ही इस्तेमाल कर रही थी, लेकिन अब वरुणास्त्र के भारतीय नौसेना में शामिल होने के बाद भारतीय नौसेना स्वदेशी विध्वंसक से लैस हो जाएगी.
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