रांची: झारखंड हाई कोर्ट ने नाबालिग से दुष्कर्म के एक मामले में निचली अदालत के आदेश के बावजूद पीड़िता को गवाही के लिए पेश नहीं करने पर पुलिस की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठाते हुए शुक्रवार को संबद्ध पुलिस अधीक्षक एवं पुलिस महानिरीक्षक के खिलाफ अवमानना का नोटिस जारी किया. इसके साथ ही पुलिस महानिदेशक से सीधे तौर पर जवाब-तलब किया गया है.
पुलिस पर उठाए सवाल
जस्टिस आनंद सेन की पीठ ने वर्ष 2018 में साहिबगंज में दुष्कर्म की हुई घटना को लेकर पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठाया और पोक्सो एक्ट में मामला दर्ज करने और पीड़िता को गवाह नहीं बनाए जाने पर आश्चर्य व्यक्त किया.
पीठ ने इसे पुलिस की घोर लापरवाही मानते हुए राज्य के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) को इस मामले में स्वयं जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया.
कोर्ट ने पूछे ये गंभीर सवाल
न्यायालय ने कहा कि जब साहिबंगज की निचली अदालत ने पुलिस अधीक्षक एवं पुलिस उपमहानिरीक्षक तथा जांच अधिकारी को पीड़िता को गवाह बनाकर अदालत में पेश करने का निर्देश दिया तो अदालत के आदेश का पालन क्यों नहीं किया गया?
न्यायालय ने कहा कि इससे ऐसा प्रतीत होता है कि आरोपी को बचाने के लिए पुलिस ने योजनाबद्ध तरीके से काम किया. उच्च न्यायालय ने पुलिस महानिदेशक से पूछा है कि इस मामले में इतनी लापरवाही क्यों बरती गई है? जांच में लापरवाही बरतने वालों पर अब तक क्या कार्रवाई की गई?उच्च न्यायालय ने इस आदेश की प्रति केंद्रीय गृह मंत्रालय को भी भेजने का निर्देश दिया.
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4 हफ्ते में जवाब तलब
उच्च न्यायालय ने साहिबगंज के पुलिस अधीक्षक एवं पुलिस उपमहानिरीक्षक तथा मामले के जांच अधिकारी के खिलाफ अवमानना नोटिस भी जारी की. न्यायालय ने सभी से पूछा है कि निचली अदालत ने जब पीड़िता को गवाह बनाने और अदालत में पेश करने का निर्देश दिया था तो उसका अनुपालन क्यों नहीं किया गया? ऐसे में उनके खिलाफ क्यों नहीं अवमानना का मामला चले? इस मामले में सभी को चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने को कहा गया है.
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2018 का है मामला
नाबालिग पीड़िता के साथ वर्ष 2018 में दुष्कर्म हुआ था. इस मामले में आरोपी अनिल कुंवर पर साहिबगंज की मिर्जा चैकी थाना में प्राथमिकी दर्ज की गई. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. अनिल ने जमानत के लिए उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की है. जमानत पर सुनवाई के दौरान न्यायालय के संज्ञान में लाया गया कि पीड़िता को पुलिस ने गवाह ही नहीं बनाया है. न्यायालय ने इसे गंभीर लापरवाही मानते हुए पुलिस महानिदेशक से जवाब-तलब किया.
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