मुलायम सिंह का 'अंतिम दांव' जो शायद अखिलेश भी नहीं समझ पाए...

मुलायम सिंह यादव राजनीति में कई बार ऐसे निर्णय लेते थे जो अप्रत्याशित महसूस होते थे. वो बीते कई सालों से स्वास्थ्य कारणों से सक्रिय राजनीति नहीं कर रहे थे. लेकिन सपा की राजनीति अक्सर उनसे सहमति लेकर ही आगे बढ़ती थी. 

Edited by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Oct 12, 2022, 06:33 PM IST
  • क्या था मुलायम सिंह का 'आखिरी दांव'.
  • समाजवादी पार्टी में स्थापित हुए अखिलेश.
मुलायम सिंह का 'अंतिम दांव' जो शायद अखिलेश भी नहीं समझ पाए...

नई दिल्ली. कुश्ती के अखाड़े में मुलायम सिंह यादव के चरखा दांव से विरोधी चित्त हो जाते थे. जब वो राजनीतिक सीढ़ियां चढ़ने लगे तो अखाड़ा छूट गया लेकिन कुश्ती से प्रेम बना रहा. कहते हैं मुलायम सिंह राजनीति में भी चरखा दांव चलते थे जिसे विरोधी कभी समझ नहीं पाए. यही कारण है कि राजनीति में वो कई बार ऐसे निर्णय लेते थे जो अप्रत्याशित महसूस होते थे. मुलायम सिंह बीते कई सालों से स्वास्थ्य कारणों से सक्रिय राजनीति नहीं कर रहे थे. लेकिन सपा की राजनीति अक्सर उनसे सहमति लेकर ही आगे बढ़ती थी. 

साल 2017 में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मुलायम परिवार के भीतर का विवाद खुलकर लोगों के सामने आ गया था. विवाद मुख्य रूप से अखिलेश यादव और शिवपाल सिंह यादव के बीच था. यह विवाद इतना बढ़ा कि मंच पर शिवपाल यादव ने मुलायम सिंह और अखिलेश यादव की तारीफ कर रहे सपा नेता को धक्का देकर हटा दिया था. अखिलेश यादव ने सपा MLC आशु मलिक पर आरोप लगाया था कि उन्होंने (आशु) बदनाम करने के लिए खबर छपवाई. बाद में यह भी खबर आई कि अखिलेश के नजदीकी विधायक पवन पांडेय ने आशु मलिक को थप्पड़ मार दिया है. 

यानी परिवार की कलह अपने चरम पर थी और दोनों ही पक्ष एक-दूसरे पर आक्रामक थे. लेकिन इन सबके बीच दोनों ही पक्ष नेताजी यानी मुलायम सिंह यादव के पास जाते रहते थे. दरअसल मुख्यमंत्री रहते हुए अखिलेश यादव ने न सिर्फ पार्टी पर पकड़ मजबूत की थी बल्कि सरकार में भी उनकी हनक बढ़ रही थी. दूसरी तरफ दशकों से नेताजी का साथ निभा रहे छोटे भाई शिवपाल यादव भी अपने भविष्य की योजनाएं बना रहे थे. 

2017 में अखिलेश बने 'सपा सुप्रीमो'
शिवपाल यादव पार्टी में अपनी पकड़ को मजबूत बनाए रखना चाहते थे. लेकिन कहते हैं कि उस वक्त मुलायम सिंह यादव के तटस्थ रवैये के कारण अखिलेश यादव और मजबूत होते चले गए. 2017 में ही अखिलेश यादव पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए. पहले जो कार्यकाल तीन साल का था, उसे पांच साल का कर दिया गया. इसके बाद ही अखिलेश समाजवादी पार्टी पर ग्रिप मजबूत होती गई. 

जब नेताजी ने नहीं पढ़ा नई पार्टी वाला पन्ना'
2017 के सितंबर महीने में ऐसा लगने लगा था कि शिवपाल यादव नई पार्टी बनाएंगे जिसका हिस्सा मुलायम सिंह यादव भी होंगे. लेकिन प्रेस कांफ्रेंस के दौरान मुलायम सिंह यादव चार पन्नों के दस्तावेज में नई पार्टी बनाने वाला पन्ना पढ़ा ही नहीं. नेताजी ने बड़ी सफाई से पहला पेज हटा दिया था जिस पर नई पार्टी की बात लिखी थी. उन्होंने बड़ी सफाई से वह पेज हटा दिया था. मुलायम ने अलग पार्टी बनाने से साफ इनकार कर दिया. बगल में बैठे शारदा शुक्ल बार-बार पहला पेज पढ़ने के लिए दे रहे थे, लेकिन नेताजी ने उसे पढ़ा ही नहीं. 

शिवपाल-अखिलेश में फेवरेट का सवाल टाल गए
यही नहीं उस प्रेस कांफ्रेंस में अखिलेश और शिवपाल के बीच चुनने के सवाल को भी मुलायम सिंह यादव टाल गए. यहीं से लगभग तय हो गया था कि अब शिवपाल यादव की स्थिति समाजवादी पार्टी में पहली जैसी नहीं होने वाली. आखिरकार शिवपाल यादव ने 2018 में अपनी पार्टी बना ली थी. उन्होंने अपनी पार्टी का नाम प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) रखा था. लेकिन फिर 2019 के चुनाव में शिवपाल अपनी पार्टी के साथ कोई करिश्मा नहीं कर पाए.

मिले फिर अलग हुए रास्ते
यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में शिवपाल और अखिलेश एक बार फिर साथ आए. लेकिन यह बेमन का साथ था और इस 'दोस्ती' में अखिलेश का हाथ मजबूत था. बीते जुलाई महीने में दोनों फिर अलग हो गए. सपा मुखिया अखिलेश यादव ने भी चाचा शिवपाल यादव को पत्र लिखकर स्वतंत्रता की बात कह डाली थी. वहीं, सपा विधायक और प्रसपा प्रमुख शिवपाल यादव ने भी ट्वीट कर कहा था कि राजनीतिक यात्रा में सिद्धांतों एवं सम्मान से समझौता अस्वीकार्य है.

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