मजहबी कट्टरपंथियों का पैसा देश तोड़ने के लिए, गरीब मुसलमानों के लिए नहीं

जब-जब देश तोड़ने का षड्यंत्र रचा जाता है, देश विरोधी गतिविधियों को अंजाम देना होता है तो मजबूर मुस्लिमों का फायदा उठाकर दंगे-प्रदर्शन और उत्पाती करतूत की जाती है. इसके लिए बाकायदा फंडिंग भी की जाती है. लेकिन जब वास्तव में गरीब मुसलमानों की मदद की बारी आती है, तो मजहबी कट्टरंथी बिल में छिप जाते हैं. अगर कोई सामने आता है तो सिर्फ सोनू सूद जैसा मददगार ना कि मजहबी ठेकेदार..

Written by - Ayush Sinha | Last Updated : May 26, 2020, 04:46 PM IST
    • सिर्फ देश तोड़ने के लिए ही होती है फंडिंग
    • शाहीन बाग की आड़ लेकर देश विरोधी साजिश
    • दंगे के लिए फंडिंग होगी, मगर गरीब मुसलमान भूखा
    • ज़फरुल इस्लाम के इस्लाम प्रेम की सच्चाई
    • जाकिर नाइक की इस्लाम के नाम पर चल रही दुकान
    • मुसलमान को हिन्दुओं का दुश्मन बनाने वाला बयान
    • शरजील इमाम की वकालत करने वालों की असलियत
    • एलीट, पढ़ा लिखा और बुद्धिजीवी वर्ग की असलियत देखें
मजहबी कट्टरपंथियों का पैसा देश तोड़ने के लिए, गरीब मुसलमानों के लिए नहीं

नई दिल्ली: देश तोड़ने वाले तथाकथित गद्दारों और मजहबी कट्टरपंथियों ने इस कोरोना काल में ये साबित कर दिया है कि गरीब मुसलमानों को सिर्फ एक टूल की तरह इस्तेमाल किया जाता है. ऐसे मजहबी ठेकेदारों की साजिश इस मुश्किल वक्त में बेनकाब हो गई है. गरीब मुसलमानों से सबसे बड़े दुश्मन कौन हैं आपको हम समझाते हैं.

सिर्फ देश तोड़ने के लिए ही होती है फंडिंग

इसे देश की विडम्बना कहें या फिर कड़वा सच कि जब कभी देश को तोड़ने और भारत के टुकड़े करने की साजिश रची जाती है तो मुसलमानों को हथियार की तरह इस्तेमाल कर दिया जाता है. उन्हें ढाल बनाकर देश के खिलाफ आवाज बुलंद की जाती है. और इसके लिए बाकायदा करोड़ों की फंडिंग भी की जाती है, क्योंकि मसला देश तोड़ने का होता है.

क्या आपको मालूम है कि देश तोड़ने के लिए सबसे बड़ा 'टूल' एक गरीब मुसलमान आखिरकार बनता कैसे है और कब-कब इस टूल का इस्तेमाल किया जाता है और कब-कब इन्हें मरने के लिए छोड़ दिया जाता है? आपको इस पूरे वाकये की एक-एक परत से रूबरू करवाते हैं. सबसे पहले आपको उदाहरण के साथ इस सच्चाई से दो-चार करवाते हैं कि देश में कब-कब मुसलमान देश तोड़ने की साजिश का मोहरा बना है.

1). शाहीन बाग की आड़ लेकर देश विरोधी साजिश

शाहीन बाग का प्रदर्शन ये देश कभी नहीं भूल सकता है, क्योंकि इस प्रदर्शन और सड़क जाम के चलते ना सिर्फ देश की सम्पत्ति को सैकड़ों करोड़ों रूपये का नुकसान झेलना पड़ा बल्कि पूरे देश में इस शाहीन बाग की चिंगारी ने विरोध और दंगे की आग को हवा दी. कट्टरपंथियों ने देश के कोने-कोने में शाहीन बाग बनाने की वकालत की और देश के संविधान और लोकतंत्र की मर्यादा को खून से लथपथ और जख्मी कर दिया. 100 से अधिक दिनों तक शाहीन बाग की 'नौटंकी' चलती रही, लेकिन क्या वो इतना आसान था?

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एक स्थान पर प्रदर्शन करने के लिए हजारों की संख्या में भीड़ इकट्ठा होती थी, वहां टेंट (तंबू) लगाए गए थे. बिरयानी बांटे जाते थे, ये किसी से नहीं छिपा है. खुलासे में एक चौंकाने वाली ये बात सामने आई थी कि प्रदर्शन करने वाली महिलाओं को रोजाना 500-500 रूपये मिलता है. साथ ही इनकी शिफ्ट भी लगाई जाती है.

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खैर मामला सिर्फ 500-500 रूपये तक सीमित रहता तो ठीक था, लेकिन सबसे हैरानी की बात तो ये थी कि शाहीन बाग में मुसलमानों को बहला-फुसला कर और दिमाग में ये डाटा फिट करके कि CAA देश के खिलाफ और मुसलमानों के खिलाफ है, आग भड़का दी गई. देश तोड़ने की बात थी तो फंडिंग भी हुई. बैन संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) का शाहीन बाग से लिंक सामने आया तो ये खुलासा हुआ कि इस देश विरोधी प्रदर्शन के लिए फंडिंग की जा रही है. इतना ही नहीं इसमें कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल के भी तार जुड़ते नजर आए.

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शाहीन बाग प्रदर्शन 'देशविरोधी' क्यों?

  • मुख्य आयोजक शरजील की देश तोड़ने की बात
  • शाहीन बाग के मंच से भड़काऊ बयानबाजी
  • प्रदर्शन में छोटे-छोटे बच्चों के भड़काऊ बयान
  • आम लोगों के लिए इस्तेमाल होने वाले रास्ता रोका
  • सच दिखाने वाले पत्रकारों के साथ मारपीट की गई

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बहरहाल, शाहीन बाग के जरिए जब देश तोड़ने की साजिश को मुकम्मल कराने की कोशिश थी, तो जबरदस्त फंडिंग हो रही थी. इस्लाम को बचाने की दुहाई देकर झूठ फैलाया जा रहा था. लेकिन अब जब कोरोना काल में जगह-जगह गरीब और मजबूर लोगों और मुसलमानों की मदद का वक्त आया तो ये मजहबी दुकानदारों ने शटर गिरा दिया और इस वक्त सोनू सूद जैसा असली हीरो और मसीहा उभरकर आया. किसी का मजहब पूछे बिना हर किसी की मदद कर रहा है. लेकिन, देश विरोधी फंडिंग कंपनी गहरी नींद में सो रही है.

इस ट्वीट में देखिए, शेख जावेद नाम के एक मजबूर ने अपने दुख के बारे में सोनू सूद से बताया कि उसके अम्मी-अब्बू गांव में अकेले हैं और परेशान हैं. तो सोनू सूद ने इस गरीब को यही कहा कि अम्मी अब्बू से कह तो जल्दी मिलते हैं. अब भला शेख जावेद के लिए असली मसीहा कौन है सोनू सूद या मजहबी कट्टरपंथी?

 

अब सरफराज भाई की ही मजबूरी को देखते हुए सोनू सूद ने नंबर मांगा और उन्हें उनके गांव झारखंड भेजा.. भला इस मुश्किल वक्त में किये मदद का सूद सोनू को कैसे चुकाएगा? साफ है, दंगे के लिए फंडिंग होगी लेकिन गरीब मुसलमानों के लिए नहीं.

2). दंगे के लिए फंडिंग होगी, मगर गरीब मुसलमान भूखा तड़पेगा

देश में जब दंगे करवाने की बात होती है या फिर देश को आग लगाने की साजिश रचनी होती है तो बड़ी-बड़ी फंडिंग की जाती है. गरीब मुसलमानों को आगे कर दिया जाता है और उनकी मजबूरी का फायदा उठाकर सड़कों पर उतारा जाता है. इसमें कुछ दंगाई शाहरुख और ताहिर हुसैन जैसे 'गद्दार' मजहब ने नाम पर गोली और बम बरसाते हैं.

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पुलिस पर गोलियां चलाई जाती हैं, सुरक्षाकर्मियों को पीट-पीटकर अधमरा कर दिया जाता है. और इन सबके लिए बाकायदा फंडिंग होती है. ISI से लेकर PFI इसके लिए फंडिंग करती है. मगर, इस्लाम की दुकान चलाने वाले ठेकेदारों को गरीब मुसलमानों की कोई परवाह नहीं है. उसके लिए सोनू सूद जैसे शख्सियत ही आगे कदम बढ़ाते हैं.

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अब आप सद्दाम भाई की ही रिक्वेस्ट को देख लें, सोनू सूद को मजबूर सद्दाम अपना हाल बताया. सद्दाम की मदद के लिए देश तोड़ने वाले लोग आगे नहीं आए. लेकिन सोनू सूद ने सद्दाम को घर पहुंचाकर ये बतलाया कि सिर्फ गरीब मुसलमानों ही नहीं बल्कि सभी मजबूरों की मदद करके ही उनका मकदस पूरा होगा. मगर, कट्टरपंथियों की फंडिंग सिर्फ देश तोड़ने के लिए होती है. मजबूरों और गरीब मुसलमानों का इस्तेमाल करके ठेंगा दिखाना ही दंगाईयों का चरित्र है.

3). ज़फरुल इस्लाम के इस्लाम प्रेम की सच्चाई

अब दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष ज़फरुल इस्लाम की करतूत को ही देख लीजिए. जनाब ने देश में रहकर भारत को एक प्रकार से धमकी दी थी. इन्होंने ये आरोप लगाया था कि भारत के मुसलमानों पर जुल्म किया जाता है. इन्होंने भगोड़े जाकिर नाइक को अपना हीरो कर बता दिया था. इतना ही नहीं इन्होंने इस्लामिक देशों से ये अपील की थी कि भारत के इस मामले में दखल दें और इस मुद्दे को उठाया जाए.

ज़फरुल जैसे लोगों के दोहरे चरित्र को समझना बेहद आसान है. ज़फरुल कहने को तो दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष हैं. मुसलमानों का नाम लेकर अपनी दुकान चमकाते हैं, इस्लाम की रक्षा करने की बात करते हैं. दुहाई देते हैं कि भारत के मुसलमान खतरे में हैं. लेकिन, जब गरीब मुसलमानों को ऐसे बुरे दौर में मदद की दरकार होती है, तो ज़फरुल जैसे ढोंगी ठेकेदार चादर तान के सो जाते हैं.

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साफ है, जब देश तोड़ने के लिए जाकिर को हीरो बनाने का वक्त था, तब ज़फरुल की बदनीयत सामने आ गई. सऊदी, तुर्की के नाम पर धौंस दिखाने वाले ने मदद तो किसी की नहीं की, लेकिन जब प्रवासियों की मदद की बारी आई तो ये ढोंगी व्यक्ति नहीं बल्कि सोनू सूद सबकी मदद के लिए आगे आ रहा है. वो भी बिना किसी फायदे के बारे में सोचकर, क्योंकि उसका कोई ढोंग नहीं बल्कि लोगों की मदद करना ही असली टारगेट है.

4). जाकिर नाइक की इस्लाम के नाम पर चल रही दुकान

इस्लामिक उपदेशक का चोला ओढे हुए जाकिर नाइक नाम के मजहबी ठेकेदार की असलियत किसी से नहीं छिपी है. मुसलमानों के कंधे पर बंदूक रखकर चलाना उसकी फितरत है. यही तो वजह है कि देश के खिलाफ बोलने के लिए उसे पाकिस्तान से भी फंडिंग की मदद मिलती है.

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खुद की अय्याशी पूरा करने के लिए जाकिर 5 लाख डॉलर का फंड मांग लेता है, पाकिस्तान उसकी मदद भी कराता है. भगोड़े जाकिर को देश तोड़ने वाली बयानबाजी करके खूब मजा आता है. मुसलमानों का हितैषी बनने का ढोंग करके वो भड़काऊ बयानबाजी करता है. लेकिन, जब मुसलमानों की मदद का वक्त आता है, तब जाकिर का दोहराचरित्र सबके सामने आ जाता है.

ऐसे वक्त पर जब देश के प्रवासियों को मदद की जरूरत होती है और वो चाहें मुसलमान हो या हिंदू जाकिर नाइक नहीं सामने आता है, आगे बढ़ता है तो सोनू सूद जैसा साफ नीयत का व्यक्ति.

5). मुसलमान को हिन्दुओं का दुश्मन बनाने वाला बयान

AIMIM नाम की एक पार्टी है, जिसका सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी नाम का नेता है. पेशे से नेता के अलावा वो एक एडवोकेट भी है और लोगों का ये दावा है कि वो इस्लाम के साथ-साथ कानून का अच्छा जानकार व्यक्ति है. लेकिन इसी के पार्टी का एक नेता जिसका नाम वारिस पठान है, खुले मंच से ये बयान देता है कि '15 करोड़ मुसलमान 100 करोड़ (हिन्दुओं) पर भारी' हैं. लेकिन जब उन 15 करोड़ मुसलमानों में से कुछ लाख मुसलमानों के मदद की बारी आई तो ओवैसी और उनके 'तुच्चे' और दंगा भड़काने वाले नेता वारिस पठान को सांप सूंघ गया.

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मुसलमानों के नाम पर राजनीति करने वाले ओवैसी एंड कंपनी की दुकान फिलहाल बंद है, क्योंकि वक्त गरीबों की मदद का है. देश तोड़ने और दंगा भड़काने की बारी आएगी तो ये दुकान पुनः खुल जाएगी, लेकिन फिलहाल बंद है. और सारे गरीबों की मदद का ठेका सोनू सूद जैसे लोगों को दे दिया है.

6). शरजील इमाम की वकालत करने वालों की असलियत

देश को बांटने और असम को काटने की बात कहकर गद्दारों का सरदार बनना ही शरजील इमाम का मकसद था. तभी तो एक खुल मंच से उसने जो बयानबाजी की वो सिर्फ एक गद्दार ही कर सकता है. लेकिन, उसके दिमाग में ज़हर भरा हुआ था, उसे लगता था कि CAA विरोध के नाम पर शाहीन बाग की आग देश के कोने-कोने भड़काने का ये सही वक्त है. खुद को मुसलमानों का रक्षक साबित करने की कोशिश करने वाला शरजील इमाम जब गिरफ्तार हुआ तो बहुतों के पेट में दर्द होने लगा.

कई तो उसकी डिग्री और विदेश से नौकरी छोड़कर आने का हवाला देने लगे. कुछ उसे फंसाने की साजिश बताकर उसके गुनाह पर पर्दा डालने लगे. लेकिन वहीं लोग जो शरजील की वकालत करते थे आज मौन व्रत धारण किये बैठे हैं. क्योंकि इस बार माजरा देश बांटने और असम काटने का नही है. इस बार गरीब मुसलमानों का फायदा उठाने का वक्त नहीं है. इस बार तो मदद का वक्त है.

जितनी डिग्री, उतना ज्यादा दिमाग में कट्टरपंथ, शरजील ही नहीं तमाम हैं उदाहरण

मदद के वक्त भला शरजील के हितैषी कैसे आगे आ सकते हैं. वो तो सिर्फ देश तोड़ने का ठेका लेते हैं. गरीब मुसलमानों और मजबूरों की मदद के लिए सोनू सूद है न...

7). एलीट, पढ़ा लिखा और बुद्धिजीवी वर्ग की असलियत देखें

अवार्ड वापसी गैंग, टुकड़े-टुकड़े गैंग और खुद को बुद्धिजीवी कहने वाले लोगों की मंशा आज हर कोई समझने लगा है. जब देश को विश्वभर में बदनाम करने का मंसूबा पालने वालों ने अवार्ड वापसी कार्यक्रम चलाया था, हर किसी ने देखा. देश को तोड़ने की बात हो, अफज़ल की फांसी पर सवाल उठाना हो या फिर विवेकानंद जी की प्रतिमा के साथ खिलवाड़ करने की बात को टुकड़े-टुकड़े गैंग अपनी छाती पीटते हैं. लेकिन जब देश को जरूरत है तो इस गैंग के किसी सदस्य ने मजबूरों की मदद नहीं की.

तथाकथित मानवाधिकार की ठेकेदार एक्टिविस्ट अरुंधति रॉय ने ओछी करतूत का इतिहास ही खंगाल कर देखिए, तो समझ में आएगा कि ये कितनी बड़ी दोहरे चरित्र को खुद में समाए हुई है. कोरोना के वक्त भी कहां तक अरुंधति रॉय लोगों की मदद करेंगी, एक्टिविस्ट रॉय ने भड़काऊ बयान देकर ये कह दिया कि मुस्लिमों के खिलाफ सरकार कोरोना का फायदा उठा रही है. मैडम ने अच्छा हथकंडा अपनाया इस बुरे दौर में फेमस होने के लिए, लेकिन उन्हें  मजबूरों की याद नहीं आई, भले ही वो मुसलमान ही क्यों न हों.

हिन्दू-मुसलमान करके अरुंधति रॉय का बेहद भड़काऊ बयान! 'दंगा भड़काने का काम'

आपने वो कहावत तो सुनी ही होगी, गेहूं के साथ-साथ घुन भी पिसता है. ऐसे मजहबी कट्टरपंथी जो गरीबों की मजबूरी का फायदा उठाते हैं, मुसलमानों के हक का ढोंग करते है, वो भी तब जब देश तोड़ने की बात हो. ऐसे वक्त पर जब देश को दंगे के हवाले करने का मंसूबे को अंजाम देना हो, ये सबकुछ मुसलमानों के नाम पर किया जाता है. लेकिन जब देश के सच्चे मुसलमानों के मदद की बारी आती है, वास्तव में मुसलमानों और गरीबों के लिए कुछ करने का समय आता है, तो ये सारे मजहबी ढोंगी बिलों में छिप जाते हैं.

यहां बात सिर्फ सोनू सूद की नहीं है, ऐसे तमाम लोगों की है जो सच्चे दिल और ईमानदारी से बिना किसी फायदे के बारे में सोचे, मजहबी तुष्टिकरण किये बिना लोगों की मदद कर रहे हैं, वो भी निःस्वार्थ भाव से... ऐसे हर सोनू सूद को देश का सलाम और मजहबी कट्टरपंथियों को ये आखिरी चेतावनी कि दुकान बंद कर लो वरना अंजाम बेहद बुरा होगा. क्योंकि तुम इस कोरोना काल जैसे मुश्किल वक्त में बेनकाब हो गए हो.

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