नई दिल्लीः कोविड महामारी के दौरान ऑनलाइन शिक्षा नहीं मिलने के कारण आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) और वंचित समूहों के बच्चों की स्थिति पर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर चिंता व्यक्त की है. पिछले शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शिक्षा का अधिकार (RTE) को वास्तविकता बनाने के लिए केंद्र और राज्यों को यथार्थवादी और स्थायी योजना बनानी होगी.
शीर्ष अदालत ने दिल्ली सरकार से एक योजना बनाने को भी कहा, जिसे आरटीई अधिनियम के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए अदालत के समक्ष रखा जाएगा.
गौरतलब है कि लॉकडाउन में बच्चों की पढ़ाई जारी रहे. इसके लिए हमारे देश में भी ऑनलाइन माध्यम का सहारा लिया जा रहा है, लेकिन सभी परिवारों के पास कंप्यूटर, टेलीविजन, स्मार्टफोन और लैपटॉप जैसी जरूरी चीजें और इंटरनेट कनेक्शन की सुविधा नहीं है.
आंकड़े हैं चिंताजनक
नेशनल सैंपल सर्वे की शिक्षा पर एक रिपोर्ट (2017-18) बताती है कि देश के महज 24 फीसदी परिवारों के पास इंटरनेट की सुविधा है. गांवों में यह आंकड़ा 15 और शहरों में 42 फीसदी के आसपास है. जिन घरों में पांच से लेकर 24 साल तक की उम्र के लोग हैं. उनमें से केवल आठ फीसदी परिवारों के पास ही कंप्यूटर और इंटरनेट की सुविधा है.
इस तथ्य का विश्लेषण करें तो सबसे गरीब 20 फीसदी परिवारों में से केवल 2.7 फीसदी के पास कंप्यूटर और 8.9 फीसदी के पास इंटरनेट उपलब्ध है.
बिजली कटौती भी है बड़ी समस्या
शीर्ष के 20 फीसदी घरों में ये आंकड़े क्रमश: 27.6 तथा 50.5 फीसदी है. इसका मतलब यह है कि मध्य आयवर्ग के परिवारों में भी सभी के पास ऐसी सुविधा नहीं है कि उनके बच्चे ठीक से ऑनलाइन माध्यम से पढ़ाई कर सकें. एक बड़ी समस्या बिजली की निर्बाध आपूर्ति की भी है.
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्न की पीठ ‘एक्शन कमेटी अनएडेड रिकॉग्नाइज्ड प्राइवेट स्कूल्स’ द्वारा दाखिल एक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें दिल्ली हाई कोर्ट के पिछले साल के 18 सितंबर के आदेश को चुनौती दी गई है. दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश में गरीब छात्रों को ऑनलाइन कक्षाओं के वास्ते निजी और सरकारी स्कूलों को गैजेट और इंटरनेट उपलब्ध कराने का निर्देश दिया गया था.
पीठ ने कहा, 'संविधान के अनुच्छेद 21ए को एक वास्तविकता बनना है और अगर ऐसा है तो वंचित वर्ग के बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा तक पर्याप्त पहुंच की आवश्यकता से इनकार नहीं किया जा सकता है.'
बच्चों के बीच असमानता से दहल जाता है दिल
उसने कहा कि आजकल स्कूल ऑनलाइन कक्षाओं के माध्यम से शिक्षा प्रदान करते हैं, किसी को ऑनलाइन होमवर्क मिलता है और बच्चों को होमवर्क वापस अपलोड करना पड़ता है, लेकिन अगर वे ऐसा करने में असमर्थ हैं, तो यह पूरी तरह से असमानता होगी. पीठ ने कहा, 'हमें दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले की सराहना करनी चाहिए. बच्चों के बीच असमानता के बारे में सोचकर भी दिल दहल जाता है. एक गरीब परिवार को अपने बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई के लिए लैपटॉप या टैब कहां से मिलेगा?'
बच्चों की देखभाल सरकार की जिम्मेदारी
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, 'मुझे पता है कि हमारे कर्मचारियों को अपने बच्चों को पढ़ने के लिए अपने मोबाइल फोन देने पड़ते हैं. इन परिवारों में मां घरेलू सहायिका का काम करती है या पिता चालक हैं, ये चीजें हम अपने आस-पास देखते हैं, वे ऑनलाइन कक्षाओं के लिए लैपटॉप या कंप्यूटर कैसे खरीदेंगे.'
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि इन समस्याओं के कारण स्कूल छोड़ने की दर में वृद्धि हुई है और बच्चों को बाल श्रम, बाल विवाह या तस्करी की समस्या का सामना करना पड़ रहा है. उन्होंने कहा, 'अगर हमें इन खतरों से बचना है, तो राज्य को एक योजना बनानी होगी और धन जुटाना होगा. इन बच्चों की देखभाल करना सरकार की जिम्मेदारी है.'
पीठ ने अपने आदेश में कहा, 'इसलिए, हम निर्देश देते हैं कि वर्तमान मामले में एनसीटी दिल्ली सरकार के लिए यह आवश्यक होगा कि वह एक योजना लेकर आए जिसे अदालत के सामने रखा जाएगा.' इसमें कहा गया है, 'हम उम्मीद करते हैं कि केंद्र और राज्य दोनों इस मामले से तत्काल आधार पर निकट समन्वय से निपटेंगे, ताकि एक यथार्थवादी और स्थायी समाधान खोजा जा सके.'
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