Gorakhpur Bharat Ratna: यदि कोई व्यक्ति यह दावा करता है कि वह भारत रत्न के लिए योग्य है तो उसपर आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी? आपको हंसी आएगी? लेकिन गोरखपुर प्रशासन ने इसे गंभीरता से लिया, बल्कि, अधिकारियों ने उसके दावे की जांच करने का फैसला किया और फिर अंत में उसके दावे को 'अयोग्य' घोषित कर दिया. इस अजीबोगरीब मामले में गोरखपुर के रहने वाले 39 साल के एक शख्स ने खुद को भारत रत्न दिलाने के लिए स्थानीय प्रशासन से मदद मांगी थी.
10 अक्टूबर को मंडलायुक्त को लिखे विनोद कुमार गौड़ के पत्र में कहा गया है कि ध्यान-साधना में बैठकर अंतरात्मा की आवाज ने उन्हें बताया कि उन्हें देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान मिलेगा.
पुरस्कार के लिए 'योग्य नहीं'
आयुक्त ने इसे जिला मजिस्ट्रेट को भेज दिया, जिन्होंने बाद में इसे अपने अधीनस्थों को भेज दिया. पत्र में जिला से लेकर तहसील स्तर तक के सभी प्रशासनिक अधिकारियों की नोटिंग दिखाई गई है. आखिरकार, उनके महराजी गांव के लेखपाल द्वारा भेजी गई एक रिपोर्ट के आधार पर, गोरखपुर के डीएम कृष्णा करुणेश ने उनके दावे को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वह पुरस्कार के लिए 'योग्य नहीं' थे.
लेकिन क्या यह दावा प्रशासन द्वारा देखने लायक था? जनता में से किसी की ओर से जिला प्रशासन को भेजे गए पत्र को सुना जाना चाहिए, जांच की जानी चाहिए और उस पर कार्रवाई की जानी चाहिए. विनोद ने भारत रत्न की मांग की थी. अधिकारियों ने काफी परिश्रम के बाद पाया कि उन्होंने अपने जीवन में ऐसा कुछ भी नहीं किया है जो उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान के योग्य बना सके.
राष्ट्रपति भवन तक भेजा
भारत रत्न की मांग करते हुए भेजे गए पत्र को जांचते हुए उसे राष्ट्रपति भवन कर भेज दिया गया. अधिकारियों ने बताया कि यह पत्र डाक से आया था. इसलिए हमने जांच के लिए आगे भेजा. वहीं विनोत से बात करने पर पता चला कि उसने कमिश्नर साहब को यह पत्र दिया था. जिसपर उन्होंने कहा था, 'आप जाइए पत्र मैं आगे भिजवा देता हूं.'
अब राष्ट्रपति भवन से फोने आया और विनोद की मांग को ठुकरा दिया है, लेकिन सवाल यह कि कैसे पत्र पर अधिकारियों के स्टाम्प व साइन हो गए. किसी अधिकारी ने कैसे अंतरात्मा की आवाज पर पत्र इतना आगे पहुंचा दिया.
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