हैदराबाद: 20 जनवरी को आंध्र प्रदेश विधानसभा ने तीन राजधानी से जुड़ा विधेयक पारित कर दिया. लेकिन प्रदेश की मुख्य विपक्षी पार्टी तेलुगु देशम को मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी का ये कदम रास नहीं आया है. टीडीपी विधायकों ने विधानसभा के अंदर हंगामा किया तो पार्टी नेता चंद्रबाबू नायडू ने इसे काला दिन बता दिया.
आखिर क्यों है ऐतराज?
सवाल है आखिर चंद्र बाबू नायडू और उनकी तेलुगु देशम पार्टी को तीन राजधानियों के प्रस्ताव पर एतराज़ क्यों है? जगन रेड्डी सरकार ने तीन राजधानी के फैसले के पीछे वजह पूरे प्रदेश के समान विकास की बताई है. सवाल ये भी है कि क्या सभी क्षेत्रों के विकास के लिए तीन राजधानी बनाना ज़रूरी है? वैसे दक्षिण अफ्रीका ऐसा देश है जहां ठीक ऐसी ही व्यवस्था कायम है जैसी जगन रेड्डी आंध्र प्रदेश में बनाना चाहते हैं. दक्षिण अफ्रीका में तीन राजधानियां हैं प्रिटोरिया जो कार्यकारी यानी एक्ज़ेक्यूटिव राजधानी है देश के राष्ट्रपति का दफ्तर यहीं पर है, केपटाउन दूसरी राजधानी है जहां देश की संसद बैठती है और विधायिका से जुड़े काम होते हैं, तीसरी राजधानी ब्लोमफोंटीन है, ये देश की न्यायिक राजधानी है,यहां देश की सुप्रीम कोर्ट है. ठीक इसी तर्ज पर जगन रेड्डी विशाखापत्तनम में कार्यकारी राजधानी, अमरावती में विधायी राजधानी और कुर्नूल में न्यायिक राजधानी बनाना चाहते हैं.
आंध्र प्रदेश के हैं तीन प्रमुख हिस्से
आंध्र प्रदेश के तीन प्रमुख क्षेत्र हैं उत्तर तटीय क्षेत्र या उत्तरीआंध्रा, रायलसीमा और मध्य आंध्र. आंध्र प्रदेश की प्रस्तावित राजधानियां विशाखापत्तनम उत्तरी आंध्रा में कुर्नूल रायलसीमा में और अमरावती मध्य आंध्र में होंगी.
सवाल है कि जगन रेड्डी का तीन राजधानी बनाने का फैसला सियासी है या वो प्रदेश के समान और संतुलित विकास को लेकर वाकई ईमानदार हैं? दूसरी ओर चंद्रबाबू नायडू के तीन राजधानी को लेकर भड़कने के पीछे असल वजह क्या है?
समझिए आंध्र प्रदेश की पृष्ठभूमि
आंध्र प्रदेश की पूर्ववर्ती सरकारों पर आरोप लगता रहा है कि एक आंध्र प्रदेश(तेलंगाना के अलग होने से पहले) के दौरान उन्होंने हैदराबाद और उसके आस पास के इलाकों के विकास पर ही पूरा ध्यान केंद्रित किया जबकि रायलसीमा और उत्तरी आंध्र जैसे पिछड़े क्षेत्र विकास की बाट जोहते रहे. टीडीपी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू पर तो खासतौर पर ये आरोप रहा. 1995 से 2004 तक प्रदेश का मुखिया रहते हुए उन्होंने ज़रूर हैदराबाद को आईटी हब के तौर पर पहचान दिलाई लेकिन जो भी विकास हुआ वो हैदराबाद के आसपास ही सीमित रहा. जून, 2014 में आंध्र प्रदेश से तेलंगाना के अलग होने और राजधानी हैदराबाद खोने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने अमरावती को नई राजधानी के तौर पर विकसित करने का प्रस्ताव रखा. अमरावती चुनने के पीछे उनका तर्क था कि ये आंध्र प्रदेश के बीच में है और इससे तीनों क्षेत्रों को सहूलियत होगी. उस समय विपक्ष में बैठे जगन रेड्डी ने भी अमरावती के पक्ष में अपना समर्थन दिया था.
पीएम मोदी ने किया था नई राजधानी अमरावती का शिलान्यास
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न केवल अमरावती को बतौर नई राजधानी बनाने के लिए शिलान्यास किया बल्कि उसके निर्माण के लिए केंद्र की ओर से 1,500 करोड़ की मदद भी दी.चंद्रबाबू नायडू के लिए अमरावती को राजधानी बनाना ड्रीम प्रोजेक्ट था. ये राजधानी 29 गांवों की 3,300 एकड़ ज़मीन पर करीब एक लाख करोड़ में बननी थी. लेकिन चंद्रबाबू नायडू के अमरावती को राजधानी बनाने के प्रस्ताव से रायलसीमा और उत्तरआंध्र के लोगों में असंतोष भड़क उठा. इसका नतीजा लोकसभा और विधानसभा के नतीजों में दिखा जब जगन रेड्डी के पूरे प्रदेश के विकास के वादे पर उन्होंने भरपूर समर्थन दिया और विधानसभा की 170 में से 153 सीटों पर जीत हासिल कर वाईएसआर कांग्रेस ने चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी का सूपड़ा साफ कर दिया.
नई राजधानी के बहाने राजनीतिक जंग
जगन रेड्डी ने सत्ता में आते ही चंद्रबाबू नायडू के हितों पर चोट करनी शुरू कर दी थी, पहले नायडू के नदी किनारे बने बंगले के बगल में बन रहे प्रजा वेदिका को गिरा दिया गया, पोलावरम प्रोजेक्ट के टेंडर को रद्द कर दिया गया, बिजली खरीद समझौते पर पुनर्विचार शुरू किया गया फिर अमरावती की जगह राज्य में तीन राजधानी बनाने का प्रस्ताव देकर चंद्रबाबू नायडू को गहरी चोट दी.चंद्रबाबू नायडू सरकार के समय यूएई के लूलू ग्रुप को अमरावती में दी गई ज़मीन वापस ले ली गई. लूलू ग्रुप अमरावती में 2,300 करोड़ का निवेश कर अंतर्राष्ट्रीय कनवेंशन सेंटर, शॉपिंग मॉल और फाइव स्टार होटल बनाने वाला था. जगन रेड्डी के आने के साथ ही चंद्रबाबू नायडू और उनके समर्थकों का अमरावती को ग्लोबल राजधानी के तौर पर विकसित करने का फैसला धराशायी हो गया.
इस वजह से नाराज है टीडीपी
दरअसल अमरावती को आंध्र प्रदेश की एकमात्र राजधानी नहीं बनाने से टीडीपी की नाराज़गी को समझना ज़्यादा मुश्किल नहीं.इसके पीछे असल वजह है प्रदेश के प्रभावशाली कम्मा समुदाय को हो रहा नुकसान. कम्मा समुदाय से ही चंद्रबाबू नायडू आते हैं और उनकी पार्टी को शुरू से ही इस समुदाय का समर्थन हासिल है. माना जा रहा है कि तीन राजधानी बनने से कम्मा समुदाय को भारी नुकसान होगा क्योंकि अमरावती के आसपास की ज़मीन पर इसी समुदाय का कब्ज़ा है और राजधानी बनाने के लिए इन्होंने इसी उम्मीद में ज़मीन दी थी कि इसका दोगुना फायदा उन्हें मिलेगा. एक अनुमान के मुताबिक अमरावती के थुल्लुरु जैसे इलाकों में ज़मीन की कीमत 1.5 से 2 लाख करोड़ प्रति एकड़ से बढ़कर 8 से 10 लाख प्रति एकड़ तक पहुंच गई थी. तीन राजधानियों का विरोध मुख्यतौर पर गुन्टूर, विजयवाड़ा, अमरावती जैसे इलाकों में ही केंद्रित है. ये वही इलाके हैं जिन्हें अमरावती के राजधानी बनने से सबसे ज्यादा फायदा होने वाला था. वाईएसआर कांग्रेस नेताओं का आरोप है कि राजधानी की सीमा में फेरबदल कर चंद्रबाबू नायडू ने अपने लोगों को फायदा पहुंचाया, अमरावती में चंद्रबाबू नायडू के लोगों ने औने पौने दामों में ज़मीन खरीदी और बाद में सरकारी आदेश से उसे राजधानी क्षेत्र घोषित करवा लिया ताकि राजधानी बनने के समय भारी मुआवज़ा वसूला जा सके. इसी फायदे को देखते हुए अमरावती के आस पास की ज़मीन में कम्मा समुदाय ने भारी निवेश किया था लेकिन चंद्रबाबू नायडू के चुनाव हारने और जगन रेड्डी के तीन राजधानी बनाने के प्रस्ताव ने उनका सपना चकनाचूर कर दिया. एक तरह से जगन रेड्डी ने अमरावती की अहमियत कम कर के चंद्रबाबू नायडू के वित्तीय स्रोत पर भी चोट पहुंचाई है.
कम्मा और रेड्डी समुदाय के बीच वर्चस्व की लड़ाई
जगन रेड्डी और चंद्रबाबू नायडू के बीच जंग दरअसल आंध्र प्रदेश के दो अत्यंत प्रभावशाली समुदाय कम्मा और रेड्डी के बीच वर्चस्व की लड़ाई का हिस्सा है. ये जंग मद्रास प्रांत से अलग होकर आंध्र प्रदेश बनने के साथ ही शुरू हो गई थी. हालांकि रायलसीमा के रेड्डी और तटीय क्षेत्र के कम्मा ने मिलकर तेलुगु भाषा के आधार पर राज्य के लिए लड़ाई लड़ी थी जिसके परिणामस्वरूप 1937 में श्रीबाघ समझौता हुआ और आगे चलकर 1 अक्टूबर 1953 को मद्रास राज्य से अलग होकर आंध्र प्रदेश के गठन का रास्ता साफ हुआ. लेकिन उसके बाद से सत्ता की डोर अपने हाथ में रखने के लिए कम्मा और रेड्डी समुदाय के बीच शुरू हुआ संघर्ष आज भी जारी है.
ऐतिहासिक रुप से आंध्र प्रदेश का गठन मुश्किलों में घिरा रहा है
राजधानी के मामले में आंध्र प्रदेश की किस्मत अच्छी नहीं रही है. पहले मद्रास प्रांत का हिस्सा रहे तेलुगु भाषी क्षेत्रों को लेकर 1949 में जेवीपी कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि आंध्र प्रदेश का गठन इस शर्त पर किया जा सकता है कि वो मद्रास पर अपना दावा छोड़ेगा. मद्रास पर दावा छोड़ने के बाद 1 अक्टूबर 1953 को आंध्र प्रदेश का गठन हुआ और कुर्नूल को राजधानी बना दिया गया लेकिन 1 नवंबर 1956 को हुए जेंटलमेन एग्रीमेंट के तहत आंध्र प्रदेश में हैदराबाद राज्य के तेलुगु भाषी इलाकों को मिलाकर नया राज्य बनाया गया और हैदराबाद को राजधानी घोषित किया गया. फरवरी, 2014 में तेलंगाना राज्य बनाने का फैसला होने और 2 जून, 2014 को उस पर मुहर लगने के साथ ही हैदराबाद तेलंगाना की राजधानी बना दी गई और आंध्र प्रदेश को फिर नई राजधानी बनाने के लिए कवायद शुरू करनी पड़ी. आंध्र प्रदेश की पहले राजधानी रह चुकी कुर्नूल से दोबारा उसे वो दर्जा देने की मांग उठी तो उत्तर आंध्र से भी ऐसी ही मांग उठने लगी. लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने फैसला अमरावती के पक्ष में किया . उनका ये फैसला रायलसीमा और उत्तरआंध्र के लोगों को रास नहीं आया जिसका नतीजा 2019 के विधानसभा और लोकसभा चुनाव में देखने को मिला. जगन रेड्डी ने तेलुगु देशम पार्टी का सफाया कर दिया.
जगन मोहन रेड्डी ने खेल दी राजनीति
मुख्यमंत्री जगन रेड्डी ने 17 दिसंबर को राज्य में तीन राजधानियां बनाने का प्रस्ताव दिया था, इसके लिए उन्होंने
पिछली कुछ समितियों की सिफारिशों को आधार बनाया.दिसंबर,2010 में तेलंगाना राज्य के गठन पर सिफारिश देने के लिए बनाई गई बीएन श्रीकृष्णा कमेटी ने कहा था कि रायलसीमा और उत्तरतटीय आंध्र का सबसे पिछड़ा होना और हैदराबाद के आस पास विकास केंद्रित रहना अलग राज्य की मांग का कारण है.अगस्त 2014 में शिवरामकृष्णन कमेटी को आंध्र प्रदेश की नई राजधानी के लिए जगह चुनने के लिए बनाया गया, जिसने कहा कि विकास के लिए विकेंद्रीकरण ज़रूरी है और एक मेगा राजधानी बनाना ज़रूरी नहीं है. दिसंबर 2019 में पूर्व आईएएस अधिकारी जीएन राव की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने प्रदेश के संतुलित विकास के लिए तीन राजधानी की सिफारिश कर दी.यही नहीं ग्लोबल मैनेजमेंट कंसल्टेंसी फर्म बोस्टन कन्सलटेंसी ग्रुप ने 3 जनवरी 2020 को विशाखापत्तनम को कार्यकारी अमरावती को विधायी और कुर्नूल को न्यायिक राजधानी बनाने की सिफारिश दी.
इतना आसान भी नहीं है तीन राजधानियों का फैसला
इसमें दो राय नहीं कि तीन राजधानी बनने से रायलसीमा और उत्तरतटीय आंध्र के पिछड़े इलाकों का विकास तेज़ होगा लेकिन ऐसा नहीं कि ये इतना आसान होगा. विशाखापत्तनम जहां राजभवन होगा मुख्यमंत्री बैठेंगे, सचिवालय होगा वो न्यायिक राजधानी कुर्नूल से 700 किमी और विधायी राजधानी अमरावती से 400 किमी दूर है जबकि अमरावती कुर्नूल के बीच का फासला 370 किमी का है. आंध्र प्रदेश का पुलिस हेडक्वॉर्टर मंगलापुरी में है,यहां से पुलिस अधिकारियों को 400 किमी की दूरी तय करके विशाखापत्तनम जाना होगा, इसी तरह सचिवालय में काम करने वाले अधिकारयों को हाईकोर्ट जाने के लिए 700 किमी का फासला तय करके कुर्नूल जाना होगा. रायलसीमा के चित्तूर अनंतपुर कडपा के लोगों को सचिवालय से जुड़े काम के लिए 800 किमी की दूर तय कर विशाखापत्तनम जाना होगा. इस दूरी को जगन कैसे कम करेंगे ये उनके लिए बड़ी चुनौती होगी.
विरोधियों का ये है तर्क
तीन राजधानी का विरोध करने के पीछे एक तर्क ये भी है कि तेलंगाना के अलग होने के बाद अब आंध्र प्रदेश काफी सिकुड़ गया है ऐसे में एक राजधानी से प्रदेश के विकास को रफ्तार देना मुश्किल नहीं. आंध्र प्रदेश क्षेत्रफल के हिसाब से देश का सातवां सबसे बड़ा राज्य है और महाराष्ट्र को छोड़कर बाकी सभी राज्यों में एक ही राजधानी है. हालांकि विकास और बेहतर शासन प्रबंध के मद्देनज़र ही वाजपेयी सरकार ने नब्बे के दशक में मध्य प्रदेश से निकाल कर छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश को तोड़कर उत्तराखंड और बिहार से अलग कर झारखंड राज्य बनाए थे जिसने निश्चित तौर पर इन इलाकों के विकास को गति दी.
लेकिन इस फैसले के फायदे भी हैं
राजधानी बनने से आंध्र प्रदेश के तीनों क्षेत्रों का विकास तेज़ होगा इससे इंकार नहीं किया जा सकता. बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने के लिए करोड़ों का निवेश ना केवल सुविधाएं बढ़ाएगा बल्कि रोज़गार के अवसर भी खोलेगा. किसी दूरदराज़ के इलाके में एक फैक्ट्री लगने से ही वहां स्कूल, अस्पताल, बाज़ार बनने शुरू हो जाते हैं, सड़क, बिजली, पानी जैसी सुविधाएं बढ़ जाती हैं कॉलोनियां बनने लगती हैं तो राजधानी बनने से इसमें और बढोत्तरी होगी इससे इंकार नहीं किया जा सकता. फिलहाल आर्थिक विकास के लिहाज़ से आंध्र प्रदेश देश में आठवें नंबर पर है, तीन राजधानी बनने से प्रदेश की जीएसडीपी यानी ग्रॉस स्टेट डॉमेस्टिक प्रोडक्ट में भी बढ़ोतरी संभव है. लेकिन इस फैसले को सही ढंग से अमली जामा पहनाना भी उतना ही ज़रूरी है. ज़ाहिर है राजधानी का ऐलान होते ही अमरावती के बाद विशाखापत्तनम और कुर्नूल में भी ज़मीन के दाम आसमान पर पहुंचेंगे, ऐसे में भू माफियाओं पर शिकंजा कसना बेहद ज़रूरी होगा. राजधानी के लिए होने वाले निर्माण में पारदर्शिता बरतना भी उतना ही ज़रूरी होगा.
जगनमोहन ने मजबूत की सियासी पकड़
इसमें दो राय नहीं कि जगन रेड्डी ने तीन राजधानी का प्रस्ताव देकर एक तीर से दो निशाने किये हैं, एक तो अपने धुर विरोधी चंद्रबाबू नायडू की धार कुंद की और दूसरा रायलसीमा और उत्तरआंध्र के लोगों को राजधानी का तोहफा देकर अपनी सियासी पकड़ मज़बूत की है. फिलहाल टीडीपी के घोर विरोध के बावजूद जगन रेड्डी सरकार अपने फैसले पर आगे बढ़ रही है. ,अगर ठीक ढंग से इस पर अमल किया गया तो जगन रेड्डी का ये प्रयोग उनके अपने प्रदेश के साथ ही दूसरे राज्यों और यहां तक कि देश के लिए भी मिसाल बन सकता है.
ब्रजेश गोपीनाथ
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं