वह किस्से जो नरेंद्रदत्त को स्वामी विवेकानंद बना गए

स्वामी विवेकानंद का मूलनाम नरेंद्र नाथ दत्त था. उनके पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाईकोर्ट में वकील थे. मां भुवनेश्वरी देवी गृहणी थीं. इस पारिवारिक परिदृश्य से निकलकर स्वामी विवेकानंद ने विश्व के कैनवस पर भारतीय आध्यात्म और योग का जो खाका खींचा है वह आज उन्हें भी अमर बनाता है साथ ही भारत को भी अपनी वास्तविक शक्तियों व क्षमताओं की याद दिलाता है.    

Written by - Vikas Porwal | Last Updated : Jan 12, 2021, 02:27 PM IST
  • स्वामी विवेकानंद ने अमेरिका तक फैलाया सनातनी प्रकाश
  • 11 सितंबर 1893 को शिकागो में हुआ था विश्व धर्म सम्मेलन
वह किस्से जो नरेंद्रदत्त को स्वामी विवेकानंद बना गए

नई दिल्लीः वह सभा स्थल अलग-अलग धर्मों में रुचि रखने वालों और उसके मानने वालों से भरा था. वहां कोई शोर तो नहीं था, लेकिन चुप्पी भी नहीं थी. कुछ फुसफुसाहट, बुदबुदाहट और तर्क-वितर्क की हल्की-फुल्की आवाज के बीच वक्ता आते, मंच संभालते, उद्बोधन करते और चले जाते. एक लंबे समय तक ऐसा होते रहने से माहौल अलसाया और उनींदा हो चला था. इस बीच आवाज आई कि अब भारत के वक्ता का उद्बोधन है. 

सभा ने सुना और अनसुना किया, लेकिन अगले ही पल जब एक गंभीर, तेज और ठोस आवाज गूंजी तो कान खड़े हो गए, आंखें खुली रह गईं और जो रीढ़, जो कि कुर्सियों में धंसी जा रही थी वह अचानक ही सीधी हो गई. खैर, वह योगी संसार की रीढ़ ही तो सीधी करने आया था.

क्या और कैसी थी वह आवाज
एक नीरव सी खामोशी के बाद आवाज आई, अमेरिकावासी, भाईयों और बहनों.. इतना सुनना था कि सभा का सारा आलस खिड़कियों से निकल भागा और इस रास्ते ऊर्जा की नई किरण चमचमाने लगी. वह साल 1893 का था, वह आवाज स्वामी विवेकानंद की थी और वह देश भारत था जो सितंबर महीने की ग्यारहवीं तारीख को शिकागो में एक बार फिर विश्व का सिरमौर बना था. 

स्वामी विवेकानंद ने भारतीय आध्यात्म, योग, भारतीय मनीषा को विश्व में प्रतिष्ठित किया था. लेकिन यह सिर्फ एक दिन, या महज एक पल की बात नहीं थी. यह एक व्यक्ति के जीवन में घटे कई प्रसंगों का परिणाम था, जो एक साधारण बालक नरेंद्र को स्वामी विवेकानंद बना देता है. आज उनकी जयंती है. 12 जनवरी 1863 को वह कोलकाता में जन्मे थे. 

...लेकिन शिकागो में क्या था, जो विवेकानंद पहुंच गए
दरअसल, कोलंबस ने अमेरिका की खोज की थी. यह मानी हुई बात है. जब उसने धरती के इस भाग को खोज निकाला तो 400 साल बाद उसका यह अहसान जताने के लिए अमेरिका एक भव्य आयोजन कराना चाहता था. आयोजन तय हुआ कि एक विशाल विश्व मेला कराया जाएगा. जिसका खास आकर्षण विश्व धर्म सम्मेलन था. 

इस सम्मेलन में विश्व भर में चल रहे सभी धर्मों के प्रतिनिधियों को आमंत्रण दिया गया था. इस आयोजन को लेकर अमेरिका के शहरों में होड़ मच गई, क्योंकि जिस भी शहर में इतना बड़ा आयोजन होता उसका कायाकल्प हो जाता है. ऐसे में अमेरिकी सीनेट में न्यू यॉर्क, शिकागो, वाशिंगटन और सेंट लुई शहर के बीच मतदान कराना पड़ा. इसमें शिकागो सबसे अधिक वोट मिले और वह प्रख्यात भारतीय मनीषा का गवाह बना.

वह भाषण जो इतिहास बन गया
अपने संबोधन से ही सभा की जोरदार तालियां बटोर लेने वाले स्वामी जी ने आगे कहा, आपके इस स्नेहपूर्ण और जोरदार स्वागत से मेरा हृदय अपार हर्ष से भर गया है. मैं आपको दुनिया की सबसे प्राचीन संत परंपरा की तरफ से धन्यवाद देता हूँ. 

मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूं और सभी जाति, संप्रदाय के लाखों, करोड़ों हिंदुओं की तरफ से आपका आभार व्यक्त करता हूं. मेरा धन्यवाद कुछ उन वक्ताओं को भी है जिन्होंने इस मंच से यह कहा कि दुनिया में सहनशीलता का विचार सुदूर पूरब के देशों से फैला है.

गीता के श्लोक का तात्पर्य सुनाया
भाइयों, मैं आपको एक श्लोक की कुछ पंक्तियां सुनाना चाहूंगा जिसे मैंने बचपन से स्मरण किया और दोहराया है और जो रोज करोड़ों लोगों द्वारा हर दिन दोहराया जाता है; जिस तरह अलग-अलग स्त्रोतों से निकली विभिन्न नदियां अंत में समुद्र में जाकर मिलती हैं, 

उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा के अनुरूप अलग-अलग मार्ग चुनता है. वर्तमान सम्मेलन जो कि आज तक की सबसे पवित्र सभाओं में से है, गीता में बताए गए इस सिद्धांत का प्रमाण है– जो भी मुझ तक आता है, चाहे वह कैसा भी हो, मैं उस तक पहुंचता हूं. लोग चाहे कोई भी रास्ता चुनें, आखिर में मुझ तक ही पहुंचते हैं.

ऐसे मिला मां शारदा से आशीष
शिकागो जाने से पहले स्वामी जी मां शारदा से आशीष लेने गए थे, लेकिन उन्होंने कुछ कहा नहीं और अगले दिन मिलने की आज्ञा दी. कहा कि मैं देखना चाहती हूं कि तुम शिकागो जाने के लायक हो या नहीं. 

अगले दिन विवेकानंद जब वहां पहुंचे तो वह भोजन बना रही थीं. उन्होंने स्वामी जी से कहा, जरा मुझे चाकू तो पकड़ाना. स्वामी जी ने जब उन्हें चाकू दिया तो शारदा मां ने झट कहा कि जाओ, सफल होकर लौटो. 

स्वामी जी ने जब इसका रहस्य पूछा तो उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति मूठ की तरफ से चाकू पकड़ाता है, वह समाज के हित को भी ऐसे ही कटने से बचाता रहेगा. तुममें जरूरी बुद्धि व्यावहारिकता है, इसलिए सफल रहोगे. 

जब उड़ा कपड़ों का मजाक
शिकागो की सड़कों पर स्वामी जी संन्यासी के वेष में भ्रमण कर रहे थे. एक दिन रास्ते में एक महिला ने उनके कपड़ों को देखकर मजाक किया और इसे अजीब बताया. 

स्वामी जी ठहरे और बोले, बहिन, तुम्हारे देश में कपड़ों से सज्जन व्यक्ति की पहचान होती है, लेकिन मैं जिस देश से आया हूं वहां विचार और आचरण किसी व्यक्ति को सज्जन बनाते हैं. यह जवाब सुनकर महिला शर्मिंदा हो गई. उसने स्वामी जी से क्षमा मांग ली. 

संकट से भागो नहीं, सामना करो
एक बार कहीं जाते हुए स्वामी विवेकानंद का पाला बंदरों से पड़ गया. वह जितना आगे बढ़ते, बंदर पीछे-पीछे चलते रहते. वह तेज भागते तो बंदर और तेज भागने लगते. 

धीरे-धीरे उनकी संख्या बढ़ने लगी और उन्होंने घेराव करना भी शुरू कर दिया. इसके बाद स्वामी जी रुके और पीछे मुड़ते हुए तेजी से कदम बढ़ाते हुए बंदरों की ओर बढ़ने लगे. अब बारी बंदरों के डरने की थी. 

तेज गति से बढ़ने के कारण वह भाग खड़े हुए. इसके बाद विवेकानंद ने समझाया कि समस्या-संकट से जितना भागेंगे वह आपका पीछा कर आपको डराएंगे. डरे नहीं सामना करें. 

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