नई दिल्लीः नेताजी सुभाष चंद्र बोस की बात होती है तो उनके भाषणों और प्रेरक वाक्यों में सबसे अधिक जिक्र होता है तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा. उनका दिया यह नारा ऐतिहासिक रूप से अमर है. इसके जरिए है नेताजी ने इतने बड़े हिंदुस्तान को अंग्रेजों के खिलाफ खड़ा कर दिया था. दूसरा सबसे चर्चित नारा रहा दिल्ली चलो.
आज भी जब कोई आंदोलन खड़ा किया जाता है या कोई राजनीतिक विरोध सामने आता है तो उसके नेता दिल्ली चलने का ही नारा देते हैं. इन दोनों नारों के अलावा भी नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने ऐसे कई प्रेरक वाक्य कहे जो आज भी हमारे मार्गदर्शक बनते हैं. जो हार मान रहे व्यक्ति को फिर से जीत का जज्बा देते हैं.
125वीं जयंती पर जानिए नेताजी के ऐसे ही प्रेरक वाक्य
आजादी के लिए जो भी कहा वह अमर हो गया
नेताजी सुभाष चंद्र बोस पूर्ण स्वराज्य चाहते थे. वह आजादी का अपने वतन का और इस मिट्टी का मोल समझते थे. उनके भाषणों में आजादी की बात प्रमुखता से होती थी. उन्होंने कहा था. 'ये हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी स्वतंत्रता का मोल अपने खून से चुकाएं.
हमें अपने बलिदान और परिश्रम से जो आज़ादी मिलेगी, हमारे अन्दर उसकी रक्षा करने की ताकत होनी चाहिए.' इसके अलावा उन्होंने एक मौके पर कहा था कि 'आज हमारे अन्दर बस एक ही इच्छा होनी चाहिए, मरने की इच्छा ताकि भारत जी सके! एक शहीद की मौत मरने की इच्छा ताकि स्वतंत्रता का मार्ग शहीदों के खून से प्रशश्त हो सके.'
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राष्ट्रवाद के नाम उनका संदेश
अपने एक भाषण में उन्होंने जीत और हार का अर्थ समझाया और राष्ट्रवाद की भी बात की है. उनके वाक्य को आज भी समझना चाहिए. उन्होंने कहा 'मुझे यह नहीं मालूम की स्वतंत्रता के इस युद्ध में हममे से कौन कौन जीवित बचेंगे ! परन्तु में यह जानता हूँ ,अंत में विजय हमारी ही होगी ' 'राष्ट्रवाद मानव जाति के उच्चतम आदर्श सत्य, शिव और सुन्दर से प्रेरित है .' 'भारत में राष्ट्रवाद ने एक ऐसी सृजनात्मक शक्ति का संचार किया है जो सदियों से लोगों के अन्दर से सुसुप्त पड़ी थी .'
वे प्रेरक वाक्य जो आज भी जज्बा देते हैं
"मेरे मन में कोई संदेह नहीं है कि हमारे देश की प्रमुख समस्यायों जैसे गरीबी ,अशिक्षा , बीमारी , कुशल उत्पादन एवं वितरण का समाधान सिर्फ समाजवादी तरीके से ही की जा सकती है ."
- "यदि आपको अस्थायी रूप से झुकना पड़े तब वीरों की भांति झुकना."
- "समझौता परस्ती बड़ी अपवित्र वस्तु है."
- जहां शहद का अभाव हो वहां गुड़ से ही शहद का कार्य निकालना चाहिए."
- "संघर्ष ने मुझे मनुष्य बनाया ! मुझमे आत्मविश्वास उत्पन्न हुआ ,जो पहले नहीं था."
- "कष्टों का निसंदेह एक आंतरिक नैतिक मूल्य होता है ."
- "मुझमे जन्मजात प्रतिभा तो नहीं थी ,परन्तु कठोर परिश्रम से बचने की प्रवृति मुझमे कभी नहीं रही ."
- "जीवन में प्रगति का आशय यह है की शंका संदेह उठते रहें और उनके समाधान के प्रयास का क्रम चलता रहे ."
- "हम संघर्षों और उनके समाधानों द्वारा ही आगे बढ़ते हैं ."
- "हमारी राह भले ही भयानक और पथरीली हो ,हमारी यात्रा चाहे कितनी भी कष्टदायक हो , फिर भी हमें आगे बढ़ना ही है ! सफलता का दिन दूर हो सकता है ,पर उसका आना अनिवार्य है ."
- "श्रद्धा की कमी ही सारे कष्टों और दुखों की जड़ है ."
- "अगर संघर्ष न रहे ,किसी भी भय का सामना न करना पड़े ,तब जीवन का आधा स्वाद ही समाप्त हो जाता है."
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