जब भगवान् श्रीकृष्ण रणछोड़ बने और फिर द्वारिका की स्थापना की

भगवान श्रीकृष्ण के जीवन में अनोखी कथा है. जब समस्त ब्रह्मांड के स्वामी लीला करने के लिए युद्धभूमि छोड़कर भाग गए. लेकिन इसके पीछे भी आध्यात्मिक रहस्य मौजूद है.   

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Oct 12, 2020, 08:35 AM IST
    • भगवान कृष्ण की अद्भुत कथा
    • क्यों युद्ध छोड़कर भागे सृष्टि के स्वामी
    • कैसे हुई द्वारका की स्थापना
जब भगवान् श्रीकृष्ण रणछोड़ बने और फिर द्वारिका की स्थापना की

भगवान श्रीकृष्ण और बलराम जी ने कंस के सामने युद्ध का मैदान छोड़ दिया था और द्वारका यानी गुजरात जाकर बस गए थे. आईए बताते हैं आपको अद्भुत कथा-


कंस की दो पत्नियां थीं अस्ति और प्राप्ति. कंस अभिमान का साक्षात् स्वरुप था. अभिमान की पत्नी दो हैं अस्ति और प्राप्ति.  ये जरासंध कि पुत्रियां थी.  भागवत में लिखा है कि कंस रूपी अभिमान की पत्नी अस्ति और प्राप्ति.  अस्ति यानी है और प्राप्ति यानी होगा.  करोड़ो का का धन और अपरिमित शक्ति अभी है और करोड़ो का टर्न ओवर होने वाला है.  यही तो कंस रूपी अभिमान को बढ़ाने वाला भाव है. 

अस्तिः प्राप्तिश्च कंसस्य महिष्यौ भरतर्षभ।
मृते भर्तरि दुःखाते ईयतुः स्म पितुर्गृहान्।।

अभिमान यानी अपने पति कंस की मृत्यु के बाद उसकी पत्नियों अस्ति और प्राप्ति दोनों ने जाकर पिता जरासंध से शिकायत कर दी.  जरासंध ने तेईस अक्षौहिणी सेना लेकर मथुरा पर चढ़ाई कर दी. 
शुकदेवजी वर्णन करते हैं कि तेईस अक्षौहिणी सेना का.  श्रीमद्भागवत में अट्ठारह हजार मंत्र है और महाभारत में एक लाख मंत्र है.  उस एक लाख मंत्रों वाले महाभारत में कौरवों- पांडवों के प्रसिद्ध युद्ध के समय दोनों पक्ष की सेना मिलाकर केवल अट्ठारह अक्षौहिणी थी. 

जबकि जरासंध ने अकेले तेईस अक्षौहिणी सेना लेकर मथुरा पर चढ़ाई कर दी.  श्री कृष्ण और बलरामजी ने पुरी सेना को मार दिया.  जब बलरामजी जरासंध को भी मारने लगे तो श्रीकृष्ण ने कहा भैया इसे छोड़ दो. 


बलरामजी ने कहा छोड़े क्यों? हम तो राक्षसों को मारने ही तो आए है. 
भगवान् ने कहा- भैया आप समझते नहीं हो.  हम इसे छोड़ देंगे तो ये और सेना इकट्ठी करके लाता रहेगा और हम उन्हें मारते रहेंगे. 

जरासंध तो पापियों को इकट्ठा करने वाला काल पुरुष का एजेन्ट है. इसलिये इसे छोड़ दीजिए. ये राक्षसों को लाता रहेगा.  हम कहां ढूढेंगे राक्षसों को.  जरासंध ने एक बार या दो बार नहीं, पूरे सत्रह बार आक्रमण किया. 
सत्रह बार श्री कृष्ण ने उसे हरा दिया. अठारहवीं बार युद्ध करने आ रहा था तो उसके साथ कालयवन भी आया भगवान से युद्ध करने के लिए. 

भगवान् श्रीकृष्ण ने कालयवन को देखकर भागने की लीला की. कालयवन श्री कृष्ण के पीछे-पीछे भागा.  भगवान् भागते-भागते एक गुफा में प्रवेश कर गये वहाँ मुचकन्द राजा सो रहे थे. उनके उपर अपना पीताम्बर डाल कर भगवान् गुफा के अन्दर चले गये. भागता हुआ कालयवन आया और देखा कृष्ण ही पीताम्बर ओढ़कर सो रहा है. 
कालयवन ने लात मारी और राजा मुचकन्द उठे और देखते ही कालयवन जल कर राख हो गया, और उसी समय भगवान् गुफा से बाहर आए. 

भगवान् ने एक साथ दो काम किया.  मुचकन्द राजा को भी जगा दिया और कालयवन को भी मरवा दिया. 
भगवान् ने कहा राजा अब तो उठो. आप तो त्रेतायुग में सोए थे.  अब तो द्वापर का अन्त होने वाला है, अभी भी सो रहे हैं. 
ये राजा मुचकन्द सुर्यवंश में त्रेतायुग में हुए थे. असुरों के विरुद्ध इन्द्र की युद्ध में सहायता करते-करते थक गये पर युद्ध जीत गए. तब इन्द्र ने कहा राजा वरदान मांगो, तब राजा मुचकन्द ने कहा मैं सोना चाहता हूं, कोई मुझे जगाएगा नहीं. यदि कोई मुझे जबरदस्ती जगाएगा तो मेरे देखते ही वो जल कर भस्म हो जाएगा. राजा मुचकन्द को कालयवन ने जगाया और जल कर भस्म हो गया. 


कालयवन के मारे जाने के बाद जरासंध लौट आया. अट्ठारहवीं बार हारने के बाद जरासंध ने ग्यारह हजार पुजारियों को पूजा पर बैठाया और कहा- पंडितों! मैं इस बार कृष्ण से युद्ध करने जा रहा हूं. यदि इस बार मैंने कृष्ण को परास्त कर दिया तो आप ग्यारह हजार पंडितों को इतना दान दूँगा कि जीवन भर घर बैठे भोजन करते रहना. कहीं मांगने की जरूरत ही नहीं रहेगी.  यदि इस बार कृष्ण से हार गया तो आप ग्यारह हजार पुजारियों को सूली पर चढ़ा दूँगा. सारे पुजारी भयभीत हो गए और प्रार्थना करते हैं- हे गोविन्द! हमारी रक्षा करना.
अब जैसे ही जरासंध अपनी सेना लेकर मथुरा आया तो कृष्ण ने बलरामजी से कहा- भैयाजी, नानाजी तो फिर आ गये. 
बलरामजी बोले- आ गए तो आने दो.
कृष्ण बोले- अब हम रण यानी युद्धभूमि छोड़ कर भाग चलें तो कैसा रहे? 
बलरामजी बोले- ये क्या कहते हो? भागेंगे तो कितनी बदनामी होगी, हम लोग चन्द्र वंशीय क्षत्रिय है, लोग हमें कायर कहेंगे. 
कृष्ण बोले- भैया! वैसे भी लोग हमें माखन चोर तो कह ही देते हैं, चीर चोर भी कह देते हैं, तो रणछोड़ और सही, क्या फर्क पड़ता है? लेकिन मैं नहीं चाहता कि मेरे खातिर उन ग्यारह हजार पुजारियों को कष्ट हो.
कृष्ण-बलराम रणछोड़ कर भाग गयें, जरासंध हल्ला मचाता है- रणछोड़ है. इसलिये भगवान् का एक नाम पड़ गया रणछोड़राय. पुजारियों और संतों की सुरक्षा के लिये कृष्ण ने ये भी स्वीकार किया. 


भागते हुए भगवान पर्वत पर चढ़ गये.  जरासंध ने देखा यहीं पर्वत पर ही कहीं छुपा होगा और चारों तरफ से आग लगवा दी. 
श्री कृष्ण-बलरामजी ने गुप्त रास्ते से होते हुए समुद्र के किनारे चले गये और देवताओं के प्रधान शिल्पी विश्वकर्माजी को बुलाया और आज्ञा दी कि आप समुद्र के बीच एक नगरी बनाओ.

विश्वकर्माजी ने रात भर में जल के अन्दर एक सोने की नगरी का निर्माण किया. सब मथुरावासीयों को सोते-सोते को उस नगरी में पहुंचा दिया और सब सुबह उठे तो कहने लगे इस नगरी का द्वार कहा है.
इसलिये उस नगरी का नाम पड़ गया द्वारिका.  सोने की द्वारिका बहुत सुन्दर है समुद्र के बीच. आज भी जल कम होता है तो इसके दर्शन होते हैं. 

ये भी पढ़ें--जानिए कैसे दीपक जलाने से हर मनोकामना पूरी होती है. 

ये भी पढ़ें--भगवान राम की शासन व्यवस्था पूरी दुनिया के सामने आदर्श क्यों है. 

देश और दुनिया की हर एक खबर अलग नजरिए के साथ और लाइव टीवी होगा आपकी मुट्ठी में. 

डाउनलोड करिए ज़ी हिंदुस्तान ऐप. जो आपको हर हलचल से खबरदार रखेगा...

नीचे के लिंक्स पर क्लिक करके डाउनलोड करें-

Android Link - https://play.google.com/store/apps/details?id=com.zeenews.hindustan&hl=en_IN

iOS (Apple) Link - https://apps.apple.com/mm/app/zee-hindustan/id1527717234

ट्रेंडिंग न्यूज़