महाकुंभ हरिद्वार 2021: समुद्र मंथन से ठीक पहले क्यों लड़ पड़े देव-दानव

समुद्र मंथन से ठीक पहले देव-दानवों में इस बात को लेकर युद्ध छिड़ गया कि वासुकि नाग का मुख और पूंछ कौन पकड़ेगा. देवताओं ने दौड़कर वासुकी का मुख पकड़ लिया, लेकिन क्यों?

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jan 23, 2021, 01:20 PM IST
  • मंथन के समय कष्ट में थे नागराज वासुकी
  • उनकी विषैली आह ने ले ली कई असुरों की जान
महाकुंभ हरिद्वार 2021: समुद्र मंथन से ठीक पहले क्यों लड़ पड़े देव-दानव

नई दिल्लीः हरिद्वार महाकुंभ इस समय आस्था का केंद्र बना हुआ है. एकता और आध्यात्म का यह संगम स्थल भारतीय संस्कृति की पहचान है. यह पहचान कोई एक दिन या एक समय में नहीं बनी है, बल्कि युगों से चली आ रही परंपरा के कारण विकसित हुई है. कुंभ स्नान जीवन में जरूरी नैतिक शिक्षा का पाठ पढ़ाने का भी केंद्र है. पावन गंगा का जल आचमन के लिए अंजुली  में लेते हुए ध्यान आते हैं अहंकार, असत्य, लोभ, मोह, क्रोध जैसे वे विकार जिन्हें त्याग करने ही मानव शरीर गंगा तट पर पहुंचता है. गंगा जल इन विकारों से नाश की वह सारी कहानी कह जाता है. समुद्र मंथन और इससे अमृत निकलने की कथा में ऐसी ही सीख शामिल है.  

वासुकी ने स्वीकार किया रस्सी बनना

देवताओं के समझाने पर दैत्यगुरु शुक्राचार्य सागर मंथन के लिए तैयार हो गए. देवों-दानवों के दोनों पक्षों की रजामंदी के बाद यह तय हुआ कि अमृत (Amrit) की खोज के लिए सागर मंथन किया जाएगा. इसके लिए तैयारियां की जाने लगीं. गरुण अपने साथ सुदर्शन चक्र को लेकर मंदार पर्वत पहुंचे और उसके शिखर को काटकर ले आए.

महादेव (Mahadev) की आज्ञा से नागराज वासुकी ने मंथन की रस्सी बनना स्वीकार किया. दरअसल रस्सी बनना मंथन के लिए सबसे कठिन काम था. क्योंकि लगातार होने वाले मंथन से लगने वाली रगड़ से वासुकी को बहुत पीड़ा होती, लेकिन परमार्थ के लिए वासुकी ने यह पीड़ा सहना स्वीकार कर लिया. लेकिन उसने देवताओं से कहा कि मैं रस्सी बनने को तैयार हूं, दर्द भी सह लूंगा, लेकिन पीड़ा होने पर आह लूंगा तो मेरे मुख से स्वभाव वश विष की फुहारें निकल सकती हैं. इसके लिए क्षमा मैं अभी ही मांग लेता हूं.

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देवताओं ने जताई चिंता

देवताओं ने उस समय तो वासुकी का बहुत आभार जताया, लेकिन विष की फुहारों वाली बात सूर्य और चंद्र के मन में बैठ गई. उन्होंने सभी देवताओं से जब इस पर चर्चा की तो सभी इससे चिंतित हुए, क्योंकि बात तो सही थी. वासुकी कि विष की फुहारें कोई सामान्य नहीं थीं. देवता अभी इसी उधेड़बुन में थे कि देवर्षि नारद (Narad) मंथन की तैयारियों का हाल देखने देवलोक पहुंचे. लेकिन वहां सभी देवताओं को चिंतित देख दंग रह गए.

उन्होंने देवराज से पूछा- क्या अब देवराज मेरे आने से प्रसन्न नहीं हैं. इस पर इंद्र ने कहा, नहीं देवर्षि, ऐसा नहीं है, लेकिन चंद्र और सूर्य देव ने हमें मंथन से पहले एक बड़ी चिंता में डाल दिया है. ऐसा कहकर देवराज (Devraj) ने नारद को सारी बात बताई.

देवताओं ने लगाई युक्ति

देवर्षि इस बात को सुनकर मुस्कुराए. फिर बोले, आपकी समस्या का निदान तो मेरे पास नहीं है, लेकिन देवराज आप यह जरूर याद रखें कि अहंकार हर तरह से नाश करता है. आप अपने भी अहंकार का परिणाम देख चुके हैं. इसलिए आप इसे समझ जाएंगे. इतनी गूढ़ बात कहकर देवर्षि वहां से चले गए. नियत तिथि पर मंथन के लिए सभी दल क्षीर सागर पर एकजुट हुए. देवता वहां पहले से ही पहुंचे थे. जैसे ही राक्षस व अन्य दैत्य पहुंचे अचानक देवताओं ने दौड़ लगाई और वासुकी नाग का मुंह का सिरा पकड़ लिया.

मंथन के बजाय होने लगा युद्ध

यह देखते ही असुर बिदक गए. राहु ने कहा-देवराज क्या आपने इसी अपमान के लिए हमें बुलाया था? इस पर देवगण बोले, हम देवता हमेशा से असुरों (Asur) से श्रेष्ठ रहे हैं, इसलिए हम मुंह की ओर ही रहेंगे, पूंछ पकड़ो तुम असुर. यह सुनकर असुर बोले कि श्रेष्ठता ही सिद्ध करनी है तो उठाओ तलवारें. अभी निर्णय कर लेते हैं.

ऐसा कहते ही दोनों पक्ष एक बार फिर आमने-सामने आ गए. जहां मिल-जुल कर मंथन होना था वहां एक बार फिर युद्ध का शंखनाद हो गया. इस पर देव गुरु बृहस्पति ने देवताओं को समझाते हुए कहा, असुरों की बात ठीक है, वह अतिथि हैं. उन्हें बुलाया गया है. इसलिए उनकी इच्छाओं आदि का सम्मान तो होना ही चाहिए.

इस पर देवताओं ने कहा- आप ठीक कह रहे हैं गुरुदेव, हम अपनी भूल स्वीकार करते हैं. हमें वासुकी नाग की पूंछ पकड़ना स्वीकार है.

असुरों ने नाश की ओर बढ़ा दिया कदम

इस तरह देवताओं ने वासुकी की पूंछ का सिरा पकड़ा और दैत्यों ने मुंह का. इसका नतीजा यह हुआ कि अभिमानी दैत्यों को वासुकी का विष आघात भी सहना पड़ा. वह बार-बार मूर्छित हो जाते थे कुछ मृत भी. लेकिन शुक्राचार्य (Shukracharya) उन्हें संजीवनी विद्या से जीवित कर रहे थे. फिर भी विष का ऐसा प्रभाव पड़ा कि असुर कमजोर होने लगे. अहंकार के कारण उन्हें अपने नाश की ओर कदम रख दिए थे.

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