हरिद्वार महाकुंभ 2021: कैसे सागर मंथन के लिए साथ आए देव और दानव

अपनी शक्ति खो चुके देवताओं को अमृत पाने के लिए कई परीक्षाओं से गुजरना था. अमृत के लिए मंथन करना तो अंतिम कठिन परीक्षा थी, लेकिन उससे पहले की भी राह आसान नहीं थी.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jan 22, 2021, 01:20 PM IST
  • देवताओं ने पाताल लोक जाकर असुरों को मनाया
  • देवराज इंद्र के तर्कों के आगे हारे असुर, मंथन के लिए आए साथ
हरिद्वार महाकुंभ 2021: कैसे सागर मंथन के लिए साथ आए देव और दानव

नई दिल्लीः हरिद्वार महाकुंभ 2021 के कारण आस्था की नगरी हरिद्वार में उत्सव जैसा माहौल है. यह उत्सव आत्मा का उत्सव है. यह सिर्फ कुछ देर का नहीं है, बल्कि इस उत्सव से मिलने वाले आत्मिक आनंद को परमआनंद कहा गया है. आनंद ऐसा कि जब आत्मा महसूस करे कि पावन गंगा की शरण में आकर वह शुद्ध हो चुकी है. उसमें नवीनता आ चुकी है. वह परमात्मा का अनुभव करने के लिए तैयार है.

गंगा (Ganga) में डुबकी लगाने वाला व्यक्ति शरीर नहीं आत्मा बन जाता है. फिर आत्माएं जब अपने आस-पास अन्य शरीर को देखती हैं तो उन्हें उनमें वही एकरूपता नजर आती है. तब लगता है कि शरीर व्यर्थ ही बाहरी आडंबरों में फंसा हुआ है. आत्मा तो सबकी एक ही जैसी है. फिर क्या संत, क्या गृहस्थ, क्या धनी-क्या निर्धन सभी एक जल में स्नान कर एक ही हो जाते हैं. एकता का यही भाव मन में अमृत पनपने का भाव जगाता है.

मंथन से पहले की राह नहीं थी आसान

एक समय था कि इस अमृत को पाने के लिए त्रिदेवों को देवताओं के साथ ही बड़ा श्रम करना पड़ा था. यही श्रम समुद्र मंथन कहलाया. देवता अमृत पाकर अमर हुए और हरिद्वार (Haridwar) जैसे स्थल इसी अमृत से पावन हो गए. लेकिन यह इतनी भी साधारण बात नहीं थी. अपनी शक्ति खो चुके देवताओं को अमृत पाने के लिए कई परीक्षाओं से गुजरना था. अमृत के लिए मंथन करना तो अंतिम कठिन परीक्षा थी, लेकिन उससे पहले की भी राह आसान नहीं थी.

मृत संजीवनी विद्या से बिगड़ने लगा संतुलन

शुक्राचार्य (Shukracharya) ने मृत संजीवनी विद्या के बल पर असुरों के जरिए देवताओं को हरा दिया. युद्ध में मरने वाले और घायल असुर जब बार-बार जीवित होने लगे तब एक तो संसार का  संतुलन बिगड़ने लगा. दूसरी तरफ यम का पाश कमजोर पड़ने के साथ-साथ ब्रह्नमा (Brahma) की लेखनी भी झूठी पड़ने लगी.

ब्रह्म देव इसी समस्या पर विचार करने विष्णु लोक पहुंचे थे. तब तक देवता भी वहीं अपना दुख लेकर पहुंचे. भगवान विष्णु (Vishnu) ने पहले तो देवताओं से हुई उनकी हर गलतियां उन्हें याद कराईं. फिर कहा- देवेंद्र, इन अपराधों का पश्चाताप चाहते हों तो एक ही उपाय है.  सभी देवता एक साथ बोल उठे, क्या प्रभु? हम हर उपाय करेंगे.

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श्रहरि ने दिया समुद्र मंथन का उपाय

श्रीहरि ने समझाया कि उपाय तो यह है कि सागर मंथन किया जाए. यह सिर्फ भौतिक प्रक्रिया ही नहीं होगी, बल्कि सभी देव अपना मन भी मथें कि उनसे कहां और क्या गलतियां हो रही हैं. विचारों की लहरों का मंथन हो तो प्रगति का अमृत जरूर मिलेगा. इसी तरह क्षीरसागर के तल में भी कई रत्न छिपे हैं, लेकिन यह मंथन सभी देवता भी मिलकर अकेले नहीं कर पाएंगे. तो फिर कैसे होगा प्रभु? 

इस पर श्रीहरि ने कहा-आपको और दानवों को साथ आना होगा. सृष्टि के सभी प्राणी एक हैं, इसलिए कितना भी वैर कर लीजिए सत्य तो यही है कि आप सब एक हैं और इस एकता का परिचय तो देना ही होगा.  अब यह देवराज की सूझ-बूझ पर है कि वह दानवों को कैसे मंथन के लिए तैयार करते हैं.

उनकी यही सूझबूझ व धैर्य की शक्ति उनकी पहली परीक्षा भी होगी जो यह तय करेगी कि देवराज और देवगण क्या अमृत (Amrit) के लायक हैं भी या नहीं.

इस तरह मंथन  के लिए माने असुर

श्रीहरि की बात सुनकर और विचार करते-करते देवराज (Devraj) पाताल लोक पहुंच गए. महाराज बलि ने इंद्र के आगमन पर स्वागत किया लेकिन राहु ने शरणागत का ताना मारा. इंद्र इस व्यंग्य को सुनकर चुप रहे और तुरंत कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. कुछ देर की राजकीय बातचीत के बाद इंद्र ने बलि को स्वर्ग जीतने की बधाई दी और कहा कि युद्ध के बाद हर स्थिति में कई समझौते होते हैं. हमने कई बार युद्ध किया है, कभी आप जीते कभी हम.

इस बार संजीवनी विद्या आपकी जीत की सहायक बनी. लेकिन मान लीजिए कल को हम अपनी शक्ति जुटाकर दोबारा आक्रमण कर दें तो? यह सुनते ही शुक्राचार्य बोल उठे, यह दैत्यगुरु संजीवनी विद्या भूल नहीं गया है. मैं फिर से इसका प्रयोग करूंगा.

भारत का आध्यात्मिक इतिहास है समुद्र मंथन

इस पर इंद्र मुस्कुराए. उन्होंने शांत रहकर उत्तर दिया. आप समझे नहीं पूज्य दैत्यगुरु. मेरे कहने का तात्पर्य है कि संजीवनी विद्या सिर्फ आपके पास है. आप प्रकृति के नियमों से परे तो नहीं हैं. यानी जब तक आप हैं तब तक विद्या है, आप नहीं तो विद्या नहीं. इंद्र का तर्क सटीक था और निशाने पर जा लगा था. इस बात पर शुक्राचार्य तो निरुत्तर हो ही गए थे राक्षसों ने भी पहली बार देवताओं की किसी बात पर सहमति जताई थी.

देवराज अपनी पहली परीक्षा में सफल रहे थे. इस तरह देवों ने आखिर असुरों को सागर मंथन (Sagar Manthan) में साथ निभाने के लिए मना ही लिया.

इसके बाद जो हुआ वह भारत का आध्यात्मिक इतिहास है. Mahakumbh इसी प्राकृतिक एकता की ओर हमें ले चलने का पवित्र जरिया है.

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